Himmilicious's Blog, page 9
July 8, 2015
The man and the wife
I chose to be blind and good with my ears.
I have stopped being an espionage for his deeds and I shifted him from my first priority.
and I have firmly prepared my head to catch my heart the next time it breaks.
That's how I chose to be happy and made efforts towards it..
That's how he became a loyal man and I, a wife.
May 9, 2015
"परिणय" #8815
महज़ इत्तेफ़ाक़ था शायद उन्होंने आज ये बात छेड़ दी, "मैं आज भी नफरत करता हूँ उससे" किचन से बहार आते वक़्त मैंने हाथ पोंछ कर तौलिया डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर ही टांग दिया।"क्यों बुरा सोचते हो बीती बातों का, जाने दो, क्या फायदा होगा?" कहते हुए पीछे से उसके काँधे पर सर रख दिया मैंने।"हम्म ठीक कह रही हो, एक ग्लास पानी पिला दो" और उन्होंने AC चला दिया, "गज़ब की गर्मी है भाई, वापस कब जाना है तुम्हे?"मैं कुछ बोली नहीं, मैं जाना ही नहीं चाहती थी, कहने का मन तो यह था की बोलू चलो ना पहाड़ों पर छुट्टी चलें, पूरा साल भर से ज्यादा हो चुका है,"कबीर, दफ्तर में सब कैसा है?""ठीक ही है, काम बहुत ज्यादा रहता है"
"हम्म"
"तुम वापस कब जा रही हो?"
"बता दूँगी.. अभी हूँ यहाँ"
"हम्म"
काफी देर एक ख़ामोशी ने घेर लिया उसके बाद हम दोनों को, माहौल काफी गंभीर हो चुका था बीती बातों के बाद, मैंने सोचा मैं ही बातों को घुमा दूँ, कबीर टीवी के चैनेल्स बदलने में लगे थे
मैंने शरारत सोची और बर्फ का एक टुकड़ा निकल लाइ फ्रिज में से..
पीछे से उनकी शर्ट में डालने ही लगी थी की उन्होंने हाथ पकड़ लिया..
"अच्छा बेटा.. शैतानी करेगा?.."
मैं हंस दी.. और बर्फ को अपने मुंह में डाल लिया।
कबीर ने मुझे अपनी तरफ खींचा और मेरा मुंह दबा दिया की मैं बर्फ निकाल दूँ।
मैं हंस भी रही थी और मुंह भी भींचे हुई थी क्योंकि मुझे पता था एक बार उनके हाथ बर्फ आ गई तो बस मुझे गुदगुदी कर कर के रुला देंगे..भला हो पिज़्ज़ा वाले का टाइम पे आ गया, वरना आज शामत थी, कबीर को छेड़ने का मतलब है, बस सोने नही देते वो सज़ा के तौर पर..
"परिणय" 090515
वह लड़का शरमाता हुआ बोला" शादी.. नहीं सर.. अभी कहाँ शादी"
"हम्म.. बेटे तभी नहीं पता, किसी तरह ऊपर की सीटें निकलवा दो वरना सन्डे तक खाना नसीब नहीं होगा ज़िन्दगी नर्क हो जायेगी"
फिर मेरी तरफ देख कर बोले " मतलब वो नहीं था तुम जानती हो"
मैं बस हंसी रोक नहीं पाती कबीर की ये सब हरकतें देख कर, टिकट काउंटर के दोनों लड़के दांत दिखा कर हंस रहे और मुझे और मैं भी बड़ी सी मुस्कराहट लिए अपने गालों के गड्ढो को घर रही..
"सर शुरू की 4 रोज़ खाली हैं, बाकि सब भर चुकी हैं.. आप चार बजे का शो ले लीजिये""चार बजे!!! अरे भाई मरवाओगे क्या? हमारी मोहतरमा यही छुट्टी कर देंगी, 2 बजे मतलब 2 बजे.. आदेश है उनका, पूरा करना पड़ेगा वरना ताने दे दे के मार डालेंगी.. अरे बंधू कुछ करो"मैं टुकुर टुकुर कबीर की तरफ देख रही थी, मेरी तरफ देख कर बोले,"आगे की सीट चलेंगी मैडम?""नो" मैंने भी इतराते हुए जवाब दे दिया.."देखा, अरे बड़े भाई को बचा लो बंधू, मैं अच्छा रिव्यु दूंगा और 10 दोस्तों को रेकमेंड कर दूंगा""सर, फ़िल्म शुरू होने के 5 मिनट पहले बता पाउँगा" कह कर वो कबीर की बोतल में उतर चुका था.."तुम कितने चेक फड़वाते हो मेरे नाम के ना" मैंने कबीर के कंधे पर मरते हुए बोला "खाना नहीं देती मैं??""अरे भई, समझा करो, शादीशुदा मर्द से हर कोई सहानूभूति रखता है" कबीर कन्धा मसलते हुए बोले, "दे देगा ऊपर की सीट्स, होती है मेनेजर के पास""हाँ तो तुम शादी शुदा कहाँ हो?""अरे, दिखता तो हूँ ना, उस बेचारे को क्या पता, मैं तो खौफ डाल आया लड़के के मन में तुम्हारा""सारे ज़माने के लिए चुड़ैल बना रखा है मुझे"
"बड़े दांत वाली चुड़ैल" और यह बोल कर वो ज़ोर से हंस पड़े"उन्न्न" मैंने भी मुंह चिढ़ा दिया और कबीर का हाथ पकड़ कर फ़ूड कोर्ट की तरफ चल पड़ी..
शादी नहीं हुई हमारी, हम एक साथ रहते हैं, दोनों के परिवार वाले बैंगलोर में हैं और हम दोनों यहाँ, दिल्ली में।कबीर बैंक में मेनेजर हैं और मैं कॉलेज में इतिहास पढ़ाती हूँ, हमारा रिश्ता काफी उतार चढ़ाव से निकलता हुआ यहाँ तक पहुंचा, लेकिन एक अजीब सा बंधन है हमारे बीच, हम दोनों एक दुसरे के लिए जीते हैं, और इसके लिए हमे कोई ख़ास मशक्कत नहीं करनी पड़ती.. साधारण सी ज़िन्दगी है, दफ्तर दोस्त और मैं, यही कहते हैं वो सबसे, ज़रा सा रूठ जाऊं तो जैसे अधूरापन फ़ैल जाता है ज़िन्दगी में और मेरे अंदर भी टीस ऐसे उठती है मानो अंदर से कुछ निकल गया हो और सब खाली सा हो गया हो.."पूर्णिमा, सुनो, सीने में अजीब जलन सी हो रही है"
"क्यों क्या खाया था? बहार गए थे ना सुबह गाडी लेकर!"
"हाँ यार, भोले चटूरे खाए थे"
"भोले-चटूरे"!! हाहाहा.. तुम भी ना.. चलो इनो ले लेते हैं"मर्दों को समझना इतना मुश्किल नहीं है, बस दिक्कत ये है की वो कुछ जताते नहीं है और हम औरतें इतनी स्वार्थी होती हैं की जब तक शब्दों में ना कहा जाए कुछ समझ ही नहीं पाती, सुबह से कबीर भी यूँही घूम रहे थे, काम निपटा रहे थे, गाडी सर्विसिंग पर देना, बैंक जाना, यही सब शनिवार के काम और जल्दी में नाश्ता किया नहीं, दोस्तों के साथ खाली पेट दबा लिए "भोले चटूरे" और अब दर्द..
ज़िद करके दवा ना दो तो सारा दिन ऐसे ही चिढचिढे रहेंगे और खुद को भी नहीं पता चलेगा आखिर हुआ क्या है..
अब कबीर तो ऐसे ही हैं.."मैं कुछ नहीं खाऊंगा, बता रहा हूँ, आगे बढ़ के मुँह में मत ठूसने लगना" इनो पीने के बाद कबीर बोले..बड़ी अजीब आदत होती है न हम लड़कियों की, जब भी बहार जाते हैं, खुद खाना पीना भूल जाते हैं और बस उनको खिलने में लग जाते हैं, जैसे बच्चा साथ चल रहा हो, हर चीज़ बार बार पूछना, खुद ही खिला देना, उनकी पसंद का ध्यान रखना, जो उन्हें खाना हो वोही आर्डर देना, धीरे धीरे पता नहीं चलता और हम कब अपनी पहचान खो कर उनके हो जाते हैं.... शायद, इसी तरह से हम बन हैं, जिस रूप में चाहो ढाल जाते हैं, मैं भी कई बार कोशिश करती हु की मैं रहूँ लेकिन पता नहीं क्या, जैसे ही कबीर सामने आते हैं, बस उनकी पूर्णिमा हो जाती हूँ, बहार, काम पर, दोस्तों के साथ, अपनी एक अलग पर्सनालिटी होती है, दमदार जो देखता है इम्प्रेस हो जाता है लेकिन ऐसा क्यों होता है की एक इंसान ज़िन्दगी में होता है जिसके लिए हम सब कुछ त्याग कर समर्पित हो जाते हैं.. मैं समझ नहीं पाई, और काफी परेशानिया भी झेलनी पड़ी इस आदत के चलते, अपनी ख़ुशी से पहले उसकी ख़ुशी और उसकी पसंद....""आज चुप क्यों हो? सब ठीक है?" मेरे ख्यालों को तोड़ते हुए और ऊपर से चौथी रो की टिकट लहराते हुए कबीर बोले.."मिल गई?" मैंने आश्चर्य से पूछा
"अरे मैडम, ज़माना तो है नौकर बीवी का" आँखे मटकाते हुए हमने सिनेमा हॉल में एंट्री की..और बहुत कुछ है बताने को, पीकू देखने के बाद बताती हूँ..
April 9, 2015
परिणय..
February 24, 2015
मैं Abnormal हूँ
बेहतरीन!
February 10, 2015
महज़, सच
बेहतरीन!
डॉ. कुमार विश्वाश और अरविन्द केजरीवाल की दो बात से मैं सहमत हूँ, यही मेरे पिता का व्यक्तित्व रहा है जिसकी मैं प्रत्याषी रूप से साक्षी हूँ और इसी "सच" के सफ़र में किस भट्टी में मैं तपी हूँ इसके वह साक्षी हैं, बस यही एक बात जिसकी मैंने धुनि रमाई हुई है "सच और ईमानदारी" इसपर चलने वालो को ना ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है बल्कि एक लंबा संघर्षपूर्ण जीवन जीना पड़ता है दूसरा "अहंकार".. कहावत है "अकड़ तो केवल मुर्दों में होती है और सूखी लकड़ी ही जल्दी टूटती है"
रोटी के पहले निवाले के साथ ही जैसे ही सुना केजरीवाल की हिदायत "साथियो घमंड मत करना, मुझे डर भी लग रहा है "और विश्वाश साहब का ट्वीट "सम्मान के साथ बीजेपी का विपक्ष में स्वागत है" मुंह से बस एक शब्द निकला "वाह"
मैंने लगातार तीसरी बार केजरीवाल को वोट दिया है यह सोच कर नहीं की जीत होगी या हार बल्कि यह सोच कर की हर "आम आदमी" की यही सोच होती है, वह ही सबसे बड़ा भक्षक है और सबसे बड़ा रक्षक भी।
निरंतर प्रयास करने से क्या नहीं मिलता, देर से ही सही, कम ही सही लेकिन आत्म संतुष्टि और आत्मविश्वाश से परिपूर्ण जीवन जिसमे हम सर उठा कर और नज़रे मिला कर सबके सामने खड़े हो सकते हैं..
सत्य बोलने में जो आनंद है वो बेईमानी और झूठ बोलने में कहाँ, एक झूठ बोल कर, ना जाने आप ज़िन्दगी में क्या खो बैठे और आपकी वजह से किसी को ना जाने कितनी तकलीफों का सामना करना पड़े।
सामाजिक परिधि तो अंतहीन है, सूक्ष्म रूप से केवल अपने रिश्तों को ही देख लें आप खुद ही भांप जाएंगे.. जिन लोगो को आपने खो दिया, जिस तकलीफ का आपने सामना किया, पीढ़ा की जिस अग्नि में आप जले उसके बाद आपको आत्मग्लानि होती है, उन रिश्तों को खोने का पश्चाताप होता है, आप अपमान सहते हैं, आप विश्वाश खोते हैं, आप किसी ना किसी बहाने से खुद को ही झूठ बोल कर, अपनी कुंठा और अपने अंदर के विनाशक को दबाने के लिए, जीने के लिए, खुद को धोखे में रखते हैं की आप सही थे या समय खराब था.. या आपको उस दर्द और लंबे संघर्ष के बाद आपका आत्मविश्वाश अधिक गहरा हो जाता है, आप और विनम्र हो जाते हैं और दुसरे के दर्द को समझ पाते हैं, उनको भी माफ़ कर देते हैं जिनके कारण आपको कष्ट सहना पड़ा और साथ ही इश्वर पर और भरोसा होता चला जाता है और आप समझ जाते हैं की आपको ज़िन्दगी के कुछ मूल सिखाने के लिए उसे चाबुक चलाने ज़रूरी थे..
पश्चाताप के आंसू नहीं, रह जाती है तो केवल मुस्कराहट की "असली सफ़र तो अब शुरू हुआ है, अब तक तो बस गिर कर घुटनो के बल रेंग रहे थे, खड़े हुए हैं अभी दौड़ना बाकी है"
मंजिल तक पहुँचने में जो लोग रास्ते में छोड़ गए या छूट गए वो अगर "सच" बोलने के कारण अलग हुए तो यकीं मानिए वापस ज़रूर आएंगे और यदि आपने "झूठ" बोलकर उनको खो दिया तो कर्मो से ठीक कीजिये ना की बातों से, आखिर कब तक अपने आपको फन्नेखां समझेंगे? जब काँधे पर ले जाने वाले भी नहीं बचेंगे तब?
खैर, यह तो सियासी पारी का आगाज़ मात्र है, अगर "आम" बने रहे तो दर्द भी मिलते रहेंगे और जीत के अंजामी ब्युगल भी बजते रहेंगे, और लोग आपके मुरीद होते रहेंगे..
चलती हूँ, नमस्ते!
February 7, 2015
Valentines ouch.. 2015
❤FEBRUARY.. Yaay..
The month of love.. love everywhere.. and I'm yet to feel how special a woman feels being in love, how proud she becomes to have the man who completes her.. How beautiful is it to be in love..? How does it feel at all, overall..?
Maybe after some more years I shall also show off the cute pictures and collage of captured memories forever ..
.. but till then, let me be allergic to relationship, being sarcastic and mocking to couples, being single, being unmarried, being unloveable, being worst girlfriend material, being threat of insecurity to all women..
Simply cannot see PDA on facebook.. and outside as well.. it hits at the right place!
Ouch! Use protection, avoid hotel rooms, check out for hidden cameras, just don't get pregnant, don't be melodramatic and over emotional, Think before you say YES to proposals, don't commit suicide for the sake of one sided infatuation, accept that it's over and the pseudo self created hallucination of "yuss.. you're da one!!" Has apparently screwed your life. Last but not the least don't hate being in love because people ditch, feelings don't. Stick to the one you have, it's better to fight with the one you love than loving someone you don't know at all, stand by no matter what and remember..
A friend working in MNC who understands your need is a friend indeed so don't hesitate to ask for the keys!
Happy "well-in-time" month.. don't disturb me!
करवट बदल कर पहले हमें थमेगा कौन
महज़ इस बात पे लड़े थे हम
की करवट बदल कर पहले थामे कौन
पलकों पर सूखी हुई नमी को न मैंने दिखाया
ना वो पलट कर कह सका के छोडो जाने दो
महज़ इस बात पे लड़े थे हम
की करवट बदल कर पहले थामे कौन..
चुप चाप रसोई में जा कर सुबह की चाय बना दी
बिना कुछ बोले तौलिया वहीँ रखा रोज़ की तरह
इससे पहले वो कुछ बोले मैंने मौक़ा ना दिया
बेतरतीब पड़ी फाइलों को समेट, कमीज का टूटा बटन टांक दिया
फिर भी उदास चेहरे पर ये उम्मीद थी
तिरछी आँखों से इंतज़ार था उसके हाथों का कमर पर
के मनाने के लिए थोड़ी जद्दोजहद होगी तो मान जाउंगी
अपनी बात ऊपर रख कर सब कुछ मनवाउंगी
चिट भी मेरी और पट भी मेरी का रिवाज़ तो उस दिन से था
सालों पहले चाय की प्याली सरकाते हुए
और सबकी नज़रे बचाते हुए धीमे से पुछा था मुझसे
"थोडा गुस्से वाला हूँ.. चलेगा?"
मैंने सर झुका कर भर दी थी हामी और कहा
" अगर थोड़ा नखरा मेरा भी हो तो चलेगा?"
और अब महज़ इस बात पे लड़ बैठे हम,
करवट बदल कर पहले थामेगा कौन..
..करवट बदल कर पहले हमें थमेगा कौन..
The winters..
''This weather, chai, one shawl and you in the balcony.. '' Wish you were here,
I'd have shared
some sips of chai
Leaning in the balcony,
Giggling over your jokes
Sometimes, resting my head
On your shoulders
Or hiding in your warm shawl
Wish you were here
I'd have tasted your lips
For long
I'm craving for kiss
And that beautiful song
Wish you were here,
Holding me in your arms
Leading the way of romancing souls..
I'd have followed your steps
In this weather, chai, one shawl and you in the balcony..


