Himmilicious's Blog, page 5

December 4, 2016

I feel you, changing

I feel you changing
or It's just my insecurities talking.
I've met many on the path
who loved, laughed and kept walking
after they're done, after they've won
I feel you changing
or It's just the fear of losing you.
they taught me it's okay to leave
after you trust, investments you do.
I feel the change, in you..

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Published on December 04, 2016 03:54

November 30, 2016

More of you..

"Broccolis.. more?" he asked.
"yeah.. and take out those jalapeños", said I seeking some pamper.
"We have similar tastes." he smiled and served me the dish he made.
"Can I eat with hands..?" I asked if he wouldn't mind.
"should I hand feed you?" he took the plate in hands and offered me some love
I opened my mouth and felt like a child,"This is spicy" I frowned.
"No it's not, you don't eat spices" he tasted the food and said.
I grinned,"Now it's good" and he laughed "you don't stop being filmy, do you?"
"nope" I nodded. "Can I keep this shirt.. it smells of you, us, and sex" I asked buttoning his shirt on me.
"yes" he fed me more..
chewing the food I kept talking like a bad mannered girl, dripping the sauce on his shirt and wiping my mouth with the sleeves of his big shirt.
"do you want some more?" he asked.
"of you?" I looked into his eyes and smiled.
he kept the plate aside and made me sit on the kitchen slab "I can't get enough of you,What is it that I crave a lot, of your taste, your touch, your skin?"
"It's your love. Because I love you" I kissed his eyes.
"I love you more, than you, more" he said.
"because the happier you're, the more complete I feel, the more satisfied you're, the more successful I become, the more you demand the more I love to deliver, the more.."

"you talk to much, I want more of you" I unbuttoned his denim and pulled him closer.
"Yes ma'am" he said.

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Published on November 30, 2016 09:51

November 28, 2016

हम नहीं हैं..

हम नहीं हैं अब भी मुस्कुराते हो?
उन अजीब शक्लों पर, अल्हड़ आवाज़ों पर
जो यूँ ही बनाती थी मैं तुम्हें हँसाने को
रोज़ सुबह उठाने को..

हम नहीं हैं, अब भी मुस्कुराते हो?
किचन से भुने पनीर के गायब होने पर
जो यूँ चुरा लेती थी और खाने को
तुम्हे चिढ़ाने को..

हम नहीं हैं, अब भी चिल्लाते हो?
हर छोटी बात पर, दिन या रात पर
जो मुझे रुला देते थे डराने को,
फिर चुप कराने को..

देखती हूँ तुमको, तुम अब भी वही हो
भर गई है मेरी कमी, है नज़र तुम्हारी ज़माने पर
जो चिढा देती है, रोने-हँसाने को
तुम्हे रूसा कर मनाने को..


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Published on November 28, 2016 08:40

November 27, 2016

Why i couldn't be a columnist

Happy with my writing a gentleman just asked me, "Himadri. Why don't u make a regular career as a freelance columnist or even a specialist film critic....."

Sir, because nobody wants to hire me and pay for it.
They reject me saying..

I'm over qualified, unaffordable, underage, I don't have a cat, I don't live in the Himalayas, I've accented English,I don't"catch up for couple of drinks" and discuss work, I've a dog and I kept her name Gucci, because I follow krk on Twitter, I can't type in any language other than English, and farooq abdullah thinks pok has fathers, whosoever.. and I like when momota didi speaks hindi, I have less experience in office politics or sometimes because roses are red and violets are blue and बागों में बहार है मैडम?

and they end up saying "We'll get back to you"

Even Anuska sharma and Virat Kohli are back, but the HR doesn't come back to you.

hence, sir, I couldn't be something you suggested..🙈

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Published on November 27, 2016 21:35

November 25, 2016

कुल्लड़ की चाय..

चंद चुस्कियाँ चाय की
हलकी, सर्द शाम में
यूँ ही बेवजह बैठे कहीं
छोड़ सारे काम मैं
आ जाती झूठ बोल कर
जब भी तुम बुलाते थे
एक कुल्लड़ चाय पर
हँसते हंसाते थे..

तुम हो नहीं, आदत दिला गए
एक कुल्लड़ चाय की हुड़क सिखा गए
हैं चंद चुस्कियाँ चाय की
हलकी, सर्द शाम मे
वक़्त यूँ ही निकल जाता है
चाय में, और काम में..

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Published on November 25, 2016 07:15

साथ सा..

तुम लिखते रहो,मैं मिटाती रहूंगी
शब्द सा, याद सा, अनकहा कुछ
तुम कहते रहो, मैं छुपाती रहूंगी
वो कुछ मेरे जज़्बात सा
मैं तो वही थी,
पिघल जाती जो तेरी तर्जनी की छुअन से
ओस सा, भाप सा, भीगी बरसात सा..
तुम हो, न हो, हो भी, नही भी
हैं कुछ मेरे साथ, तुम्हारे साथ सा, पास सा..

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Published on November 25, 2016 07:12

November 18, 2016

#नोटबंदी में आश्की : अंतिम भाग..


#नोटबंदी में आश्की : अंतिम भाग..तो बात कुछ ऐसी हुई के लाईन में उसने मुझे अपने आगे बड़े रौब से खड़ा कर लिया और मेरे दिल में कबूतर फिर से फड़फड़ाने लगे..मेरा हाल 13 साल की उस लड़की की तरह था जो अपनी क्लास में जिस लड़के को सबसे ज्यादा पसंद करती थी उसी से बात नहीं करती थी, अजीब सी हिचकिचाहट..दिल में एक हूक यह थी की हाय मेरे ज़ालिम कबूतर तू ही कुछ बात कर..
मैंने बड़ी मेहनत करी थी यहाँ तक पहुंचने के लिए और मेरा इंतज़ार भी कम न था!हालांकि मुझे दढ़ियल लौंडे पसंद नहीं आते लेकिन इसमें कुछ बात थी, और मुझे फ़वाद ख़ान तो कतई पसंद नहीं है.. शायद इसकी वो भारी आवाज़!देखो! ऐसे वक़्त में एक लड़की के दिल और दिमाग में कई सारी जलेबियाँ तल रही होती हैं.. एक तो सामाजिक परिधियों का डर दूसरा इतनी सारी जनता!यह ठीक वैसा ही संकोच था जैसा किसी भी लड़के को होता है जब उसे कोई लड़की पसंद आती है, वह सिर्फ उसे जानना चाहता है, वो कौन है.. लेकिन लड़कों की सोशल रेपुटेशन तो ऐसी है मानो उसने आगे बढ़ कर "hi!" क्या बोला लड़की उसको मौकापरस्त रेपिस्ट समझ लेती है..मैं मौकापरस्त रेपिस्ट नहीं लगना चाहती थी!हाँ वो मुझे पसंद आया..तो जनाब, बात वहीं की वहीं आ गई..
टप्पा मार के नाला तो कूद लिया आगे कहाँ जाए..अब तक मैंने ही बात शुरू की, आगे बढ़ी, और इतने सिग्नल दिए, मंदबुद्धि बालक तो नहीं कुछ समझ ही नहीं रहा!मेरी अंतरआत्मा वाली बेस्ट फ्रेंड ने फिर झपड़िया दिया मुझे "देखो बाबू, ई लौंडा इंट्रस्टीड ना हौ, चौपसी नै कराओ और चुप खड़ी रहो"तो हमने सोच लिया जब तक अब यह नहीं कुछ बोलेगा, हम नहीं बोलेंगे..स्त्री स्वाभिमान और वर्चस्व का पर्दा मुझपर हावी होने लगा..
तभी पीछे से धक्का लगा और वो थोड़ा सट सा गया..हाय!!! मेरा स्त्री स्वाभिमान मेरे दांतो के बीच होंठ बन कर दब गया और मेरे गालों पर गड्ढ़े बन गए..
उसने हलके से कहा.. "सॉरी"
मैंने भी मुस्कुरा कर कहा दिया "इट्स ओके"मेरा पहल न करने का डिसीजन मेरे गालों के गड्ढो में डूबता सा जा रहा था और पेट की तितलियाँ गले तक आ कर गेम ऑफ़ थ्रोन के ड्रैगन बन चुकी थी!सब्र टूटा और मैं तपाक बोल पड़ी.. "आप एग्ज़क्टली कहाँ रहते हैं"
"214, सेकंड फ्लोर"
"ओह!.. लेकिन आप कभी दिखे नहीं.. व्हाट डू यू डू?"
"गुड़गांव के आईटी फर्म में हूँ.. और तुम?"हाय!! आप से तुम.. कितना सुन्दर तुम था यह..मैं स्कॉलर हूँ.. रिसर्च कर रही हूँ! मैंने कहा..अच्छा! किस कंपनी में? उसने पूछा..
मैं ऐसे प्रश्न से थोड़ा झेंप गई लेकिन फिर खुद को समझाते हुए मैंने कहा.." पीएचडी रिसर्च स्कॉलर"ओह! पढ़ाकू टाइप्स हो!! नाइस नाइस..
तो करती क्या हो?मैं समझ चुकी थी अबोध बालक को इस बारे में कुछ ज्ञात नहीं है! कोई बात नहीं..
"कुछ नहीं.. वेल्ली हूँ" हाहा.. कह कर मैंने बात टाल दी..
"हाहाहा.. काश मैं भी वेल्ला होता.."
मैंने सिर्फ मुस्कुरा दिया..होता है, होता है!! बेहद मामूली बात है.. अब अगर मैं किसी नैनोबायोटेक्नोलॉजी इंजीनियर से बात करूँगी तो वो भी मुझे वैसाखिनन्दन समझेगा.."तुम कहाँ रहती हो?"
"आपने वो चौहान हलवाई देखा है?"
"हाँ"
"बस उसकी अगली गली में"मेरे दिल में अभी भी यह सवाल कौंध रहा था, कही यह शादीशुदा तो नहीं!!"तो आप अकेले रहते हैं यहाँ पर?"लीजये, छोड़ दिया मैंने तीर! आर या पार.. 10 सेकंड के अंदर मैंने उसके "हाँ" के लिए मन्नतें मांग ली, 33 करोड़ देवी देवता को याद कर लिया और एक टक लगाए उसकी आँखों में जवाब देखती रही..हाँ.. फ़िलहाल!ये फ़िलहाल क्या होता है? मतलब क्या बनता है यह हाँ के साथ फ़िलहाल जोड़ने का.. मतलब क्या बाल विवाह हुआ था और अब घर ढूढ़ लिए शहर में तो बहुरिया का गौना करवा के लाओगे? मन ही मन में खीज गई!फ़िलहाल? मतलब आपकी वाइफ अभी हैं नहीं यहाँ..?मैंने झुंझुलाहट में सीधी तलवार खींच दी!"हाहा.. नहीं, मेरी शादी नहीं हुई है अब तक.."देखो और समझो ये वाली फीलिंग..
'गवर्नमेंट एग्जाम क्लियर हो गया'मेरे चेहरे पर मुस्कराहट आ गई और आवाज़ में वोही चहक वापस.."ओह! ओके.. फिर, भाई या पेरेंट्स?"
अब मुझे फील हुआ मैंने ज्यादा पर्सनल क्वेश्चन पूछ लिए,थोड़ा इस ज़ुबान को लगाम देदेनी चाहिए.."मेरा पार्टनर" वो बोला..
अरे तेरी! इसको भी कहीं स्टार्टअप का भूत तो नहीं?
कहीं यह उन लौंडों की तरह तो नहीं जो फेसबुक पर लिख के रखते हैं "works at I'm my own boss" या "Ceo and MD at my own business"आज कल औंतरप्रीनियोर का मतलब होता है आपके भेजे में एक धाँसू बिज़नस या मोबाइल एप्प का आईडिया है लेकिन उसको भुनाने के लिए अभी तक कोई बकरा नहीं फसा है!!"Okayyy" कह कर मैंने भी "हाँ मैं समझ गई " वाली टोन दे दी.."so what do you do in your free time? Hobby? Gaming? Gym?" उसने बात बढ़ाई..लड़के ने इंटरेस्ट ले लिया भाई! अब भाव खाने का टाइम आ चुका है.. आ जाओ अपने लड़की अवतार में।देखो और समझो..
हम लड़कियां बड़ी स्मार्ट होती हैं, देखने में चाहे कैसी भी हो.. जैसे ही पता चलता है कि पतंग हवा में पहुँच चुकी है बस डोर खींच ली..
और इस बात में कोई दो राय नहीं की इस नखरे में मज़ा बहुत आता है.."Yeah.. many!!" मैंने आँखे ततेरते हुए कहा.. और मन में सोचने लगी "पके हुए घीये के बीज.. तुझे किस षष्टिकोन से मैं जिम जाने वाली महिला लगती हूँ!खैर.. इन्ही छोटी छोटी बातों, मोबाइल टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रॉनिक मनी,केजरीवाल और मोदी के कारनामे.. ममता दीदी और अखिलेश यादव के ड्रामे.. सोनम गुप्ता की बेवफाई और काले धन के ताने बाने में मेरा नंबर आ चुका था.. मैंने हज़ार का नोट चेंज करवाया तो काउंटर पे बैठा बैंक वाला भी मेरी शकल देखने लगा..देखो! मेरी सच्ची मुहोब्बत, धैर्य, लालसा, और कर्मठ होने का प्रतीक है यह 1000 का नोट!!और मेरे बाद उसने भी करवा लिया..
मैंने उसका वेट किया.. (मुझे प्यार हो गया है शायद.)वो मुस्कुराता हुआ सामने से चला आ रहा था..और मेरे सर के चारो तरफ हाथो में तीर लिए लंगोट पहने छोटे बच्चे उड़ रहे थे..."My partner is coming in couple of days, if you wish we can go for morning walks.."
उसने सामने खड़े होकर कहा.. और मैं गर्दन उठाए उसे मुस्कुरा कर देख रही थी..
"that means, you're gonna wake me up daily in the morning?"
इसको कहते हैं ट्रम्प कार्ड खेलना.. अब या तो वो मेरी अलार्म क्लॉक बनने के लिए फ़ोन नंबर मांगेगा या मैं खुद ही उसको दे दूँगी.."haha.. yeah? why not ma'am!.. should I come down your place and ring your bell daily 5am?"(अबे बौरा गया है क्या, पापा बाँध के बैठा देंगे और कुत्ता छोड़ देंगे तेरे ऊपर)"haha.. nope.. a phone call would do!!" मैंने डायरेक्ट लाइन देते हुए कहा..हम साथ साथ चल पड़े.. क्योंकि घर एक ही जगह था और अब तो "पड़ोसी प्रेम" निभाना था!
हालांकि इस दौरान वो काफी बार अपने पार्टनर की बात कर चुका था तो इस बात ने मेरे अंदर क्यूरियोसिटी बढ़ा दी....एंड क्यूरियोसिटी किल्स दी कैट! मैंने क्यों पुछा..
"so.. what does your partner do?""oh.. he's a business man.. actually we are flying to Ohio next month, he got a job there.." उसने ख़ुशी जाहिर करते हुए कहा..घर पहुँचने में अभी वक़्त था और मैंने जानबूझ कर अपने कदम धीमे किए हुए थे..अब तक एक एक पल कितना सुहाना लग रहा था.. न ट्रैफिक की चिल पोँ.. न भिखारियों के छूने से चिढ.. कुछ सुनाई नहीं से रहा था बस दिल में हार्ट शेप बबल ऐसे फुट रहे थे मानो फेसबुक मैसेंजर पर किसी ने लव स्टीकर भेज दिया हो.. पट पट..पट..पट..
और उसकी इस बात ने जैसे मेरे हार्ट शेप गुब्बारे में नुकीली पेन्सिल चुभा दी हो!what? you're leaving India? मैंने चिढ कर कहा.. your friend is getting job there.. you have your life here, I guess" मैंने बड़ा प्रैक्टिकल और मैच्योर बनते हुए कहा..(काहे ही मैच्योरिटी बे! कैसे जा सकता है ये.. मतलब अब क्या मुझे सिंगल ही रहना पड़ेगा! कुछ भी कर के इसको रोको भाई...)देखो! प्यार तो प्यार होता है.. 4 साल का होंय 4 दिन का.. और इसके लिए तो इतनी मेहनतभी की है, अपने संकुचित कन्या वाले अवतार से कूद कर, सामाजिक परिधियों को लांघ कर, और खिसियाई हुई नोटबंदी की लाइन को धोखा दे कर साथ चल रही हूँ..मैं क्रन्तिकारी भावनाओं से अभिभूत थी.."प्रेम क्रांतिकारी.. बहुत ही क्रांतिकारी"
और इसी क्रांतिकारी हथकंडो को अपनाते हुए मैंने नंबर एक्सचेंज कर लिया था.. यह मेरे प्रेम की फ़तेह थी!! मैं तारिक़ फ़तेह महसूस कर रही थी.. और दिल में इसको रोकने का षडयंत्र बुन रही थी..
मेरा दिमाग चाचा चौधरी हो चला था क्योंकि मुझे यह 6 फुटिया साबू चाहिए था..घर पास आने वाला था..वो बोला" yes, actually.. we don't have a life in India"देखो! प्यार एक तरफ है और राष्ट्रवाद एक तरफ! मैं देख के लिए लाइन में खड़ी हो सकती हूँ.. इतना तो मैं जियो सिम के लिए नहीं खड़ी हुई.. लेकिन इंडिया को कुछ बोला तो अभी शब्दभेदी बाण चालू होंगे और मैं नमस्ते लन्दन की अक्षय कुमार बन जाऊँगी..
"what do you mean?" मैं वहीँ मेडिकल स्टोर के सामने रुक गई, एक आइब्रो उठा कर आवाज़ में थोड़ी सख्ती लाते हुए पूछा.. (गन लोडिड थी, की अगर यह एंटी नेशनल निकला तो मैं अपने प्यार का गला घोंट दूँगी और साले को अभी कच्चा धारी नाग बना कर शपथ दिलवाऊंगी)"actually.. we are planning to get married in February in Ohio, society doesn't accept us here"wait! what! मैंने जो सुना वो मुझे समझ नहीं आया और मेरी शक्ल पके हुए पिलपिले खरबूजे सी बन गई (भाई अंतर्जातीय विवाह कर रहा क्या और खाप पंचायत पीछे आ रही?)प्यार में चोट लग चुकी थी, पल्ले कुछ न पढ़ा और सिर्फ "getting married" समझ आया..
"We are gay and it's not legal in India" उसने आगे कहा..यह वो वाली फीलिंग थी 'जनरल कोटे के लास्ट चांस में भी प्रिलिमिनरी क्लियर नहीं हुआ, बाकी चीज़ों के लिए उम्र निकल चुकी है, सिर्फ BA pass डिग्री हाथ में है और कोई प्रोफेशनल एक्सपीरियंस नहीं है'oh!! (और क्या कहती मैं.. इस ओह में आह थी.. आह.. दिल टूटने की आवाज़ नहीं होती)"that's great.. in that case you must fly.. I'm happy for you.. yeah.. we live in the socity of hypocrites " मैंने अपनी भाव भंगिमा सुधार कर मीठे स्वर में कहा..
I have many gay friends, and they're happily settled in delhi only.. give a second thought.. our society isn't that bad..यह मेरी रेस्पोंसिब्लिटी बन गई थी की मैं उसको कम्फ़र्टेबल फील करवाऊँ, कहीं वो यह न सोचें कि मैं उसे जज कर रही हूँ..उसने मुस्कुरा दिया.. अब यह मेडिकल स्टोर सीमा थी उसके एक तरफ वो और कुछ दूर मैं रहती थी..अलविदा कहने का टाइम था.. "चलो see you again then.." मैंने कहा.."तुम और नोट एक्सचेंज करवाने जाओगी? साथ चलेंगे.. I'll call?" उसने पूछा"nope! I am left with nothing now.."दो तरफ़ा बात कहते हुए मैं मुस्कुरा कर आगे चल दी..आज सुबह 5 बजे की मिस्ड कॉल थी किसी unknown number से..मेरा KLPD हो चुका था, "खड़ी लाइन पर धोखा.." मैं किसी की सौतन नहीं बनना चाहती थी..और एक तरफ़ा प्यार बड़ा दर्द देता है, मैं शाहरुख़ नहीं जो डायलॉग मार कर निकल जाऊँ..बाय द वे.. वैसाखिनन्दन संस्कृत में गधे को कहते हैं..
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Published on November 18, 2016 00:23

November 16, 2016

नोटबंदी में आश्की भाग 2

#नोटबंदी में आश्की भाग 2तो आप लोगों की दुआ कुछ ऐसी रंग लाई की तीन दिन बाद वो दिख गया..
लेकिन आज कतार में वो इतनी आगे खड़ा था कि मुड़ कर देखे तो भी नज़र ना आऊँ, हाँ.. मैं लेट हो गई, करीब एक-डेढ़ घंटा लगा लीजिए..
सुबह सब्ज़ी को लेकर पिताजी के नखरों से चिक चिक करती माँ,कढ़ी में हींग का तड़का लगाने-ना लगाने की संसदीय बैठक और कर्नाटक के मिनिस्टर रेड्डी अपनी बेटी की 500 करोड़ की शादी में मैं फस गई थी..सच कहूं तो मैंने हिम्मत नहीं हारी थी और आखरी ट्राय मारने मैं आज फिर चली गई नोटबंदी की कतार में.. ( कल रात तो लंबू का सपना भी देख डाला: वैसा वाला नही..)
बिना नहाए, एक आँख में फैला हुआ काजल, पाजामा डाले, चप्पल पहन और हाथ में एक कलम पकड़ कर यूँ ही चल दी..दिल्लगी का आलम तो देखिए, मात्र 1000 रूपए बदलवाने चली, जो की आसानी से जल बोर्ड के दफ्तर में जमा हो जाते.. लेकिन दिल के कबूतर की गुटरगूँ तो आपने भी सुनी होगी..पहुंची तो इतनी लंबी कतार देख कर मानो अपनी किस्मत को ही सौतन मानने का मन किया.. अंदर वीर ज़ारा के गाने बजने लगे की इन 20 लोगो की झाड़ियों को लांघ कर कैसे उस गन्ने तक पहुँचूँ.. मीठा, रसीला गन्ना आज हाफ पैंट में था और मेरी नज़र उसकी टांगों की तरफ..
मेरी हालात उस आदमी के जैसी हो रही थी जिसने लड़की को इम्प्रेस करने के चक्कर में 4 बोतलें बियर की चढ़ा ली हो और रेस्टोरेंट में यूनिसेक्स बाथरूम हो और आगे 5 लड़कियाँ खड़ी हो..
बस मैं कुछ ऐसे ही मचल रही थी और अपने हाव भाव छुपाने की कोशिश भी कर रही थी..
1 घंटा 12 मिनट.. मैं खड़ी रही और वो खुबानी के बीज का कड़वा बादाम एक बार भी पीछे नहीं मुड़ा..
जब मुझे यह पक्का हो गया ये हाफ पैंट पीछे मुड़ेगा नहीं.. मुझे ही कुछ तिकड़म लगाना पड़ेगा और फ़ोन कॉल सबसे मस्त होता है..
फ़ोन उठा कर फ़र्ज़ी कॉल लगाते हुए कहा "हाँ मम्मी.. लाइन में खड़ी हूँ.. हेल्लो.. हाँ मम्मी.. "
आगे खड़े लड़के से कहा, भईया आपके पीछे खड़ी एक मिनट में आई कह कर आगे चली गई.. की उसकी नज़र में तो आऊँ..
फिर कान में खाली फ़ोन लगाए आगे निकल गई.. कनखियों से उसको देखा, और आगे जा कर बाल खोल लिए.. मन ही मन सोचने लगी.. हाय!! नहा लेना चाहिए था.... चुड़ैल तो नही लग रही.. फिर कोने में जा कर फ्रंट कैमरा ऑन किया और आँखों के नीचे का फैला हुआ काजल साफ़ किया..
बालो तो सेट किया और मटकती हुई बिना उसकी तरफ देखे वापस आने लगी की उसकी नज़र मुझ पर पड़ जाए..
लेकिन कहाँ जनाब! 2000 के नए नॉट की तरह मैं भी "पैसे हैं लेकिन पैसे नहीं हैं"वाली हालात में थी..
यहाँ थोड़ी बेशरमी की जरूरत थी और मैंने ही उसके पास जा कर बोल दिया "oh hi!! You again!!"
हाय.. वो मुस्कराहट.. वो बोला "hello, you got your change?"
"Oh no.. not yet.. I'm standing way behind you.. guess, would be taking more than 2 hours after you.."
ये मारा मैंने टिपिकल लौंडियों वाला इमोशनल कार्ड और वैसा वाला मुँह.. बस गन्दी वाली झंड होती अगर वो "ओके" बोल कर बात ख़त्म कर देता..
"Oh.. okay" वो बोला.. बस फुस..मन ही मन सोचा लो अब क्या करोगी.. कंटीन्यू दी कन्वर्सेशन बेबी!!
"Yeah! And I'm badly getting late for an interview.. it's scheduled for 2 PM.. guess I have to miss it!!"
अजी काहे का इंटरव्यू..! जो आया दिमाग में फिट कर दिया बस..
"Oh! That's bad.. you wanna come ahead me? If it helpa?"देखो!! वैसे तो मैं बहुत शांत और संभली हुई कन्या हूँ लेकिन उस वक़्त मानो मेरी मन की मुराद बुधवार वाले भगवान ने सुन ली.. मेरा दिल उस कुत्ते की तरह ख़ुशी से लोट रहा था जिसका मालिक सारे दिन भर के बाद ऑफिस से घर आया हो.."That would be a great help! But umm.. " मैंने एक्सेंट झाड़ते हुए बोला और वो समझ गया मैं लोगो की बात कर रही हूँ!
किसी को बीच में घुसा लो तो जनता खाप पंचायत सी भड़कती है जैसे मैं दूसरी जाती की लड़की हूँ और दूजे जाती के लड़के से प्यार कर बैठी!
"It's okay.. just come!" बस.. उसका यह कहना और मेरा छोटे से बच्चे की तरह बीच में घुस जाना..और शुरू हो गया हल्ला!! मैंने होंठ दबा लिए की बेज्जती करवा कर पीछे जाना पड़ेगा और उसके सामने भी इम्प्रैशन की मट्टी पलीत होगी.. तभी वो भारी सी आवाज में बोला "क्या दिक्कत है? एक घर के हैं फैमिली है!!"
उसका यह कहना था और बस मैं तो सर से पांव तक ब्याह करने के लिए तैयार हो गई थी..
मुझे उसमे सारे अच्छे गुण दिखने लगे.. और "फॅमिली है" हाय.. शादी ऐसे होगी और बच्चे ऐसे होंगे और हनीमून यहाँ और लॉन्ग ड्राइव वहां..
मतलब मेरे गाल फूल कर भटूरा बन गए थे और दिल ऐसे बच्चे की तरह उछल रहा था "मिल गया.. मिल गया..मिल गया.. ये!!!"देखो!!वैसे तो मैं बेहद शर्मीली कन्या हूँ लेकिन कभी कभी बेशर्म होना पड़ता था!!
एक मेरी अंतर आत्मा उस बेस्ट फ्रेंड की तरह है जो हमेशा नेगेटिव ही कहेगी उस लड़के के लिए जिसको भी मैं डेट करुँगी और ज़िन्दगी भर आपको "डिज़रविंग मैन" के लिए सिंगल रखेगी और साथ में यह डायलॉग जरूर चिपकायेगी "देख मैं तेरी बेस्ट फ्रेंड हूँ और तुझे मुझसे अच्छा कोई नहीं जानता.. दैट गाए इस नॉट गुड फ़ॉर यू.. यू डिज़र्व बेटर" (लड़कियों वाली बात है, वो समझ जाएँगी)
तो मेरी उसी अंतर आत्मा ने थप्पड़ मारा और सोचने पर मजबूर किया "अबे बहन बनाने की तो नहीं सोच रहा.. फ़ेमिली बोल रहा है"खैर..चिक चिक करते लोग चुप हो चुके थे "अब सिर्फ वो और मैं और ये नोटबंदी की कतार"हम 2 घंटे लाइन में खड़े रहे.. जनाब का नाम कबीर है..देखो! मैं बड़ी शांत किस्म की कन्या हूँ, लेकिन कभी कभी शैतानी करनी पड़ती है..
अब 6 फुट लंबा इंसान पीछे खड़ा हो तो बातों में कुछ अजब की लचक आ जाती है..दो घंटों में मैंने बहुत कुछ किया है, जल्द ही बताती हूँ पहले रात के खाने वाली चिक चिक से ज़रा निपट लूँ..तब तक आप मुझे बताइये, इन जनाब को पटाने के नुस्खे..
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Published on November 16, 2016 08:51

नोटबंदी में आशक़ी Part 1

नोटबंदी ने उन लौंडो को भी दिन भर लाइन में खड़ा कर दिया है जो सिर्फ रात को जिम में बॉडी पंप करके सीधा नाईट क्लब जाते थे..
मुझे पता नहीं था मेरी कॉलोनी में इतने गबरू भी हैं जो अब नोटबंदी के स्प्रे से कोने कोने में छुपे कॉकरोचों की तरह बहार निकल रहे हैं..परसो स्टेट बैंक की लाइन में लगी थी, दो आदमी छोड़ कर एक 6 फुट का दढ़ियल खड़ा था। कभी देखा नहीं था उसको आते जाते, या दूध की डेरी पर, केमिस्ट में, किराने की दूकान पर..दिल में कबूतर से फड़फड़ा गए उसको देख कर और दूसरी बार पलट कर आँखों में आँखे डाल दी मैंने..लंबा तो था ही, सीधा एंगल बन रहा था नैनमटक्का करने के लिए..
अब दो विकल्प थे मेरे पास, या तो उसको अपने आगे बुला लूँ या अपने पीछे खड़ी दोनों अम्माओं को आगे बढ़ा कर खुद उसके आगे लग जाऊँ..उसको आगे करती तो जनता मुझपर ऐसा पथराव करती मानो गाँव में किसी औरत को चुड़ैल घोषित कर दिया हो जमींदार के छोरो ने..और दिल में बड़े सारे सवाल थे भाई साहब!!इतना "हॉट" लड़का है, सिंगल तो कतई न होगा..उम्र में छोटा हुआ तो माँ वाली फीलिंग तुरंत से पहले आ जायेगी मेरे अंदर..बात शुरू कैसे करूँ.. आस पास का है क्या.. दिखा क्यों नहीं अब तक..कहाँ इन घसियारों की फ़ौज में एक गन्ना उग गया..और मैं डेस्परेट नहीं लगना चाहती थी.. पैसा जरूरी है..इसी कश्मकश में मैं एक बार फिर पीछे मुड़ कर उसको देखने लगी.. 'कुछ तो बोल'फिर मैंने दिल मसोस कर सोचा चलो जाने दो.. मैरीड भी हो सकता है.. बहुत बार कटा है ये "बाद में शादीशुदा निकला" केस में मेरा..बाकी जनता कुछ गालियाँ दे रही थी, कुछ बुद्धिजीवी बनने की कोशिश कर रही थी, कुछ मोबाइल पे केंडी कृश खेल रही थी और मेरा दिल यहाँ छोले भटूरे हुआ जा रहा था..कोई "पंच लाइन" भी नहीं सूझ रही थी, सच कह रही हूँ दिमाग की फैक्ट्री में one liners बनने बन्द से हो गए, कोई आइडिया नहीं आ रहा की कैसे एक बार पीछे मुड़ जॉन और बात शुरू हो जाए..हाय, वो सिल्की सिल्की से बालों में उसका हाथ फेरना.. फिर मोबाइल निकाल कर टाइम चेक करना.. फिर टीशर्ट खेंच कर सीधा करना.. चप्पल में भी कितना क्यूट लग रहा था..हिम्मत कर के मैं फिर पीछे मुड़ी और उसको देखा.. कम्बख़त मोबाइल में लगा हुआ था..करीब 40 मिनट मेरे दिल के जुझारू मुर्गे यूँही भिड़ते रहे और मैं उस ख़यालों में चिकन निहारी बनाती रही..जब रहा नहीं गया, तो पीछे वाली अम्मा को बोला, "अम्मा आपके आगे खड़ी हूँ, एक मिनट में आई" और फ़ोन करने का बहाना करके एक चक्कर काट आई..वापस आते वक्त उसके साथ खड़ी हुई.. और एक स्माइल दे दी..
फिर जा के अपनी जगह खड़ी हो गई..दबंग तो हम बचपन से हैं और अम्मा दोनों बहुओ की बुराई में लगी हैं.. बस फिर पीछे मुड़ कर तुक्के में इतना पूछ लिया "You live somewhere near..or something? I guess I have seen you somewhere.."एक मुस्कराहट के साथ उसने भारी आवाज़ में अपना ब्लॉक नंबर बताया.. "Yes, just nearby, next to medical store"और बस.. अब तो मैं शाम तक खड़ी हो सकती थी..फिर मैंने और कुछ नहीं पूछा.. दो दिन हो गए, अभी तक दोबारा दिखा नहीं है.. अब की मिला तो बस..~ नोटबंदी में आशक़ी..
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Published on November 16, 2016 08:50

October 30, 2016

बंगला साहिब

करीब 10 साल बाद आज मैं फिर से बंगला साहिब जी गई।
जगह वैसी ही है, और सुकून भी..

कुछ यादें, फिर मैंने संजो ली..

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Published on October 30, 2016 04:50