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February 5 - February 26, 2023
नागार्जुन का शून्यवाद
दर्शन में यह शब्द उस अवस्था का संकेत करता है, जिसमें से सारी चीजें निकली हैं। नागार्जुन का मत है कि हर चीज शून्य है।
सत्य के दो रूप हैं, एक संवृति–सत्य और दूसरा परमार्थ–सत्य।
वैदिक मत पर बौद्ध धर्म का प्रभाव
निवृत्ति का प्रचार
निवृत्ति जीवन को निस्सार और दु:खपूर्ण मानने के भाव को कहते हैं।
थे, इसके जहर से बच गए। एक कारण यह भी समझा जाना चाहिए कि चीन और जापान में बौद्ध धर्म का महायान रूप ही प्रचलित हुआ था, जो संन्यासप्रधान हीनयान मत की अपेक्षा कहीं अधिक आशापूर्ण और उल्लासमय था।
आचार पर प्रभाव
जाति–प्रथा को चुनौती
सांस्कृतिक उपनिवेशों की स्थापना
श्रीमद्भगवद्गीता
गीता गृहस्थों का उपनिषद् है।
खुलासा, अन्त में, गीता में ही आकर हुआ कि कर्म–न्यास का अर्थ कर्म का त्याग (अथवा संन्यास) नहीं, बल्कि, कर्म के फलों में होनेवाली आसक्ति का त्याग है।
मौर्योत्तर हिन्दू–जागरण
मौर्यों के पतन से लेकर गुप्तों के उत्थान तक का समय हिन्दुत्व के इतिहास का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण काल गिना जाना चाहिए।
मोक्ष–साधना के लिए वह उम्र बताई गई, जब मनुष्य गृहस्थ–धर्म का पालन कर चुकता है, जब वह पितृ, ऋषि और देव–ऋणों से मुक्त हो जाता है।
गुप्तकाल तक (चौथी सदी) आते–आते, हिन्दुत्व का पूरा विकास हो गया और उसके वे सारे अंग पुष्ट हो गए, जिन्हें हम आज देखते हैं।
प्राचीन भारत और बाह्य विश्व
बाहरी दुनिया से सम्पर्क
बौद्ध मत के प्रभाव के कारण ईसाइयत का उदय हुआ, इस बात को रोमन चर्च के अनुयायी मानते हैं, बल्कि, सेंट बोसाफेत के नाम से वे बुद्ध को भी ईसाई सन्तों में ही गिन लेते हैं।
ग्रीस का यूनान नाम, असल में, उसके एक नगर आयोनिया के नाम पर चला था और आयोनिया से ही अरबों ने यूनान और भारतीयों ने यवन शब्द बना लिए।2
यूनानी दर्शन का जनक थेल्स समझा जाता है।
अफलातून के वार्तालाप में जो यह कल्पना की गई है कि पृथ्वी परमात्मा का शरीर, स्वर्ग मस्तक, सूर्य और चन्द्रमा आँखें और आकाश मन है, वह भी उपनिषदों की विराट् की कल्पना से प्रभावित दीखती है।
कनिष्क के राज्यकाल में ही बुद्ध की पहली मूर्ति बनी।
बौद्ध जातकों और ईसाई धर्म–ग्रन्थों की बहुत–सी कथाएँ एक–सी लगती हैं।
एक यह भी विलक्षणता है कि भारतीय पंडितों ने तो यूनान का ऋण स्वीकार किया है, किन्तु अरबी पंडित ऐसी किसी स्वीकृति की सूचना नहीं देते।
शतरंज (चतुरंग) का भारतीय खेल भी अरब होकर ही यूरोप पहुँचा। भारत में इस खेल का प्रथम उल्लेख बाण (625 ई.) की रचना में मिलता है।
अरेबियन नाइट्स की कहानियों की मूल रचना सन् 950 के आस–पास हारूनर्रशीद के राज्यकाल में बसरा में हुई थी। इसके लेखक ने स्वीकार किया है कि इन कहानियों का आधार ईरानी, यूनानी और भारतीय कहानियाँ हैं।
गणित, ज्योतिष और विज्ञान
विज्ञान की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विल डुरांट का मत है कि सारी सभ्यता के समान, यह भी कृषि से ही विकसित हुआ होगा।
भारत के विषय में यह अनुमान है कि यहाँ विज्ञान का भी जन्म धर्म की गोद में हुआ है।
आर्यभट्ट (जन्म 476 ई.)
पदार्थ–विज्ञान की दिशा में पहला नाम कणाद का माना जाना चाहिए, जिनका मत था कि सृष्टि अणुओं से बनी हुई
सुश्रुत (ई.पू. पाँचवीं सदी), चरक (दूसरी सदी), वाग्भट्ट (छठी सदी) और भावमिश्र (1550 ई.)- ये आयुर्वेद के चार प्रधान आचार्यों के नाम हैं,
बृहत्तर भारत से सम्बन्ध
बाली-द्वीप
यव-द्वीप
सुमात्रा
बोर्नियो
हिन्द-चीन
चीन के साथ सम्बन्ध
बुद्ध और कनफ्यूशियस
लाओजे का जन्म ई.पू. 570 में, बुद्ध का ई.पू. 563 में और कनफ्यूशियस का ई.पू. 551 में हुआ था।
पेकिङ्ग का विजेता चंगेज खाँ (1162-1227 ई.) और उसका पोता एवं चीन का प्रथम मुगल सम्राट् कुबला खाँ (1294 ई. में मरा), दोनों बौद्ध थे।
बर्मा और स्याम
जापान में बौद्ध मत
शिन्तो-धर्म चीन के कनफ्यूशियस-मत से मिलता-जुलता था।
बौद्ध साधना पर शाक्त प्रभाव
राजाओं और बडे़ आदमियों का मन जीतने के लिए मूल बौद्ध साहित्य में उन्होंने इतना परिवर्तन किया कि उसे बुद्ध का उपदेश कहना कहाँ तक उचित है, यह नहीं कहा जा सकता।’’
भोग की अतिशयता से ऊबा हुआ समाज त्याग को समझना चाहता है और त्याग के अति-सेवन से पीड़ित मनुष्य भोग की ओर जाना चाहता है।