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February 5 - February 26, 2023
अहिंसा और क्षत्रिय जाति
“ब्राह्मणों के यज्ञानुष्ठानादि के विरुद्ध क्रान्ति कर क्षत्रियों ने उपनिषद्-विद्या की प्रतिष्ठा की और बाह्मणों ने अपने दर्शनों की नींव डाली।
जैन धर्म की विशेषताएँ
जैन धर्म की दो बड़ी विशेषताएँ अहिंसा और तप हैं।
जैन धर्म के पहले तीर्थंकर श्री ऋषभदेव हैं। उनकी कथा विष्णु–पुराण और भागवत–पुराण में भी आती है, जहाँ उन्हें महायोगी, योगेश्वर और योग तथा तप–मार्ग का प्रवर्तक कहा गया
जैन दर्शन के सिद्धान्त
कैवल्य या मोक्ष
अनेकान्तवाद
स्याद्वाद
स्याद्वाद निश्चित ज्ञान का माध्यम नहीं हो सकता, उसमें बराबर शंका लिपटी रहती है।
धर्माचरण के सिद्धान्त
यह सम्प्रदाय, जिसे हम यती–सम्प्रदाय (Ascetic) कह सकते हैं, हर खूबसूरत चीज को गुनाह की जगह और प्रत्येक सुख को दु:ख का कारण मानता है।
जैन धर्म का त्रिरत्न (सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चरित्र), असल में, वैदिकों के भक्तिभोग, ज्ञानयोग और कर्मयोग का ही परिवर्तित रूप है।
तीन प्रकार की मूढ़ताएँ हैं-लोक–मूढ़ता, देव–मूढ़ता और पाषंड–मूढ़ता।
आठ प्रकार के अहंकार भी त्याज्य बताए गए हैं। ये हैं-(1) अपनी बुद्धि का अहंकार, (2) अपनी धार्मिकता का अहंकार, (3) अपने वंश का अहंकार, (4) अपनी जाति का अहंकार, (5) अपने शरीर या मनोबल का अहंकार, (6) अपनी चमत्कार दिखानेवाली शक्तियों का अहंकार, (7) अपने योग और तपस्या का अहंकार तथा (8) अपने रूप और सौन्दर्य का अहंकार।
प्रत्येक जैन गृहस्थ को पंचव्रत का प्रण लेना पड़ता है, जिनके नाम अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह हैं।
जैन मत और बौद्ध मत
जैन धर्म का इतिहास
सांसारिकता पर विजयी होने के कारण वे जिन (जयी) कहलाए और उन्हीं के समय से इस सम्प्रदाय का नाम जैन हो गया।
बौद्ध धर्म
बौद्ध धर्म और आचार
अव्याकृत विषय
वैदिक धर्म से समानता
बुद्धदेव का विचार यह है कि आत्मा कूटस्थ नहीं होती, वह भी शरीर के साथ बदलती रहती है, वह भी बूढ़ी, जवान, मलिन और निर्मल होती रहती है।
क्या बुद्ध नास्तिक थे?
बुद्धदेव का विचार यह है कि आत्मा का ज्ञान जीव के मोक्ष नहीं, बन्धन का कारण है,
आत्मा और निर्वाण
ईंधन के बिलकुल निःशेष हो जाने पर जैसे यह नहीं जाना जा सकता कि जो आग सामने प्रज्वलित थी, वह कहाँ चली गई, उसी प्रकार कर्म–संस्कारों के समाप्त हो जाने पर यह नहीं जाना जा सकता कि जीव किस अवस्था में कहाँ चला जाता है।’’
निर्वाण मृत्यु भी है और जीवन की पूर्णता भी।
निर्वाण वासनाओं से छुटकारे का नाम है। निर्वाण वह उज्ज्वल शान्ति है, जिसका कभी भंग नहीं होता।’’
हिन्दुत्व का बौद्धीकरण
कठोपनिषद् का कहना है कि जिस मनुष्य के हृदय का काम शमित हो जाता है, वह इसी जीवन में ब्रह्म बन जाता
बुद्ध का व्यक्तित्व
अपने महापरिनिर्वाण के पूर्व तथागत ने आनन्द से कहा था,
हे आनंद! तुम अपने लिए स्वयं दीपक होओ; धर्म की शरण में जाओ, किसी दूसरे का आश्रय न खोजो।’’
जो शब्द में नहीं आ सकता, उसकी चर्चा छोड़ दो; जो बुद्धि से पकड़ा नहीं जा सकता, उसका पीछा करना व्यर्थ है, यह उनके दृष्टिकोण का निचोड़
कर्म की महत्ता
बौद्ध धर्म की सीमाएँ
बुद्धदेव ने ईश्वर को जनता से दूर रखना चाहा था, लेकिन, कालक्रम में, वे स्वयं ईश्वर हो गए।
बुद्धदेव ने कहा कि निर्वाण का अधिकारी वही होगा, जो गार्हस्थ्य–धर्म का त्याग करके भिक्षु हो जाएगा।
दिगम्बर–पन्थवालों ने साफ घोषणा कर दी कि मुक्ति नारियों के लिए नहीं है। नारियों को चाहिए कि वे सीमित धर्म का पालन करें, जिससे अगले जन्मों में वे पुरुष का जन्म ग्रहण कर सकें, क्योंकि, मोक्ष–लाभ के समीप आने पर, उन्हें पुरुष होकर जन्म लेना ही पड़ेगा।
पौराणिक समन्वय
जैन–पुराणों में महापुरुषों की संख्या तिरसठ बताई गई है। इनमें से 24 तो तीर्थंकर हैं, 9 बलदेव, 9 वासुदेव और 9 प्रतिवासुदेव।
हिन्दुत्व का खरल
महायान की उत्पत्ति
बुद्ध वह होता है, जिसने मोक्ष और निर्वाण प्राप्त कर लिया है। बोधिसत्त्व वे सभी लोग हैं, जो बुद्ध बनने के प्रयास में हैं।
हस्तादिभेदेन बहुप्रकारः कायो यथैकः परिपालनीयः तथा जगद् भिन्नमभिन्न दुःख–सुखात्मकं सर्वमिदं तथैव।
बोधिचर्यावतार मानवता की साधना का अपूर्व ग्रन्थ है।
मुच्चमानेषु सत्त्वेषु ये ते प्रामोद्यसागराः तैरेव ननु पर्याप्तं मोक्षेणारसिकेन किम्?
सुखावटी–व्यूह महायान धर्म का दूसरा प्रमुख ग्रन्थ है।