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February 5 - February 26, 2023
शाक्त धर्म का परिचय
किन्तु, शिव, शव और शक्ति प्रेरणा है।
सांख्य दर्शन के अनुसार पुरुष और प्रकृति, दोनों अनादि हैं और उन्हीं के योग से सृष्टि उत्पन्न होती है।
योग-शास्त्र योग शब्द युज् धातु से
योग की परम्परा प्राग्वैदिक परम्परा है।
निरीश्वर योगसाधन का प्रतिपादन महावीर और बुद्ध के अनुयायियों ने किया।
तन्त्र-मार्ग
कामिकागम के अनुसार, तन्त्र-साहित्य वह साहित्य है, जिनमें तत्त्व और मन्त्र के विषय निरूपित किए गए हैं।
हिन्दू-धर्म में तन्त्र अथवा आगम पाँच माने जाते हैं; गाणपत्य, सौर, वैष्णव, शैव और शाक्त।
शाक्त-दर्शन
शक्ति की शक्तियाँ दो हैं; एक विद्या, जो चेतना उत्पन्न करती है अविद्या, जो माया-शक्ति का प्रतीक है। इसी माया-शक्ति के द्वारा एक अनेक बनता है, अनन्त सान्त का आकार ग्रहण करता है और जो अनादि तथा निराकार है, वह भूत, जीवन और मन के रूप में प्रकट होता है।
सबसे नीचे ‘पशु’ है, जो माया के पाश में आबद्ध है। उसके ऊपर ‘वीर’ और उससे भी ऊपर ‘दिव्य’ जीव की कोटियाँ हैं।
उलटी धारा की साधना
इस उलटी साधना ने इस विचार पर जोर दिया कि संसार से मुक्ति का उपाय उससे भागना नहीं, प्रत्युत, सर्वतोभावेन उसे स्वीकार करना है।
यह नेति (Elimination) की प्रक्रिया
वाममार्गी साधक उदात्तीकरण (Sublimation) की प्रक्रिया में विश्वास करते हैं।
सबसे नीचे का चक्र मूलाधार है और सबसे ऊपर का सहस्रार।
पाशों में से कामिनी और कांचन, ये दो पाश महाभयानक हैं।
सांख्य से शाक्त-दर्शन का एक बड़ा भेद इस बात को लेकर है कि सांख्य दर्शन में प्रकृति जड़ एवं पुरुष चेतन है अर्थात् नारी जड़ तथा नर जीवन्त है। किन्तु शाक्त-मत में जड़ता का आरोप नर (शिव) पर किया गया है, चेतना उसमें शक्ति (नारी) की चालना से उत्पन्न होती है।
तन्त्र-साधना की परम्परा
गुह्य-समाज-तन्त्र की विशेषताएँ
वज्रयान और मन्त्रयान
कालचक्र-यान का विकास भारत से बाहर हुआ था और बाहर से ही यह यान बंगाल और असम में पहले-पहल पाल-युग में पहुँचा। यह यान मन्त्र की सम्यक् सिद्धि के लिए तिथि, मुहूर्त, नक्षत्र और राशि पर जोर देता था। अतएव, कालचक्र-यान ने मन्त्रों का सम्बन्ध ज्योतिष की गणना से भी जोड़ दिया।
सहजयान
वज्रयानी–सहजयान का दार्शनिक सिद्धान्त यह बना कि सृष्टि का आरम्भ बोधिचित्त से हुआ है जो सहज ही उद्भूत है,
काम–योग
वैष्णव-सहजिया-सम्प्रदाय
सृष्टि का जो आदि तत्त्व है, वह प्रेम है और वही सहज भी है। सहज ने ही, मात्र लीला के लिए, अपने आपको दो रूपों में विभक्त कर दिया है, जिनमें से एक रूप ‘रस’ और दूसरा ‘रति’ है।
‘समरस’ अथवा ‘सहजानन्द’ वह है, जो स्वरूप–ज्ञान से सम्भूत समाधि से उत्पन्न होता है।
मार का प्रतिशोध
मिथिलायां दह्यमानायां न मे दहति किंचन।
कैसा रहा होगा वह समय और वह समाज, जिसके विश्वास की पताका, कोणार्क, पुरी, भुवनेश्वर और खजुराहो के मंडपों पर फहरा रही
बाद के सन्तों पर सहजयान का प्रभाव
कबीर वज्रयानी परम्परा के उत्तराधिकारी हुए और
सहज सहज सब कोई कहै, सहज न चीन्है कोइ, जिन सहजे हरि जी मिलें, सहज कहीजै सोइ।
उद्यम अवगुन को नहीं जो करि जानै कोय, उद्यम में आनन्द है साईं सेती होय।
एक जोग में भोग है, एक भोग में जोग, एक बुड़हिं वैराग्य में, एक तरहिं सो गिरही लोग।
बौद्ध आन्दोलन के सामाजिक प्रसंग
य: शास्त्रविधिमुत्सृज्य वर्तते कामकारत:, न स सिद्धिमवाप्नोति न सुखं न परां गतिम्।
वेद-विरोधी आन्दोलन
नय और आचार के बीच दरार
बौद्ध मत पर पुराणों के आक्रमण
पाषंडिनो विकर्मस्थान्बैडालव्रतिकांच्छठान। हैतुकान्बकवृत्तिंश्च वाङ्मात्रेणापि नार्चयेत्।
जैनों और बौद्धों पर शैवों का प्रहार
प्रबोध-चन्द्रोदय नाटक में जैन और बौद्ध श्रमणों का जो रूप अंकित किया गया है, वह अत्यन्त पतित और घृणा उपजानेवाला है।
इस्लाम से पूर्व ही इस्लामवत् सम्प्रदाय
बौद्ध धर्म का लोप
इस्लाम से हिन्दुओं की अनभिज्ञता
मुसलमानों का भारत-विषयक अज्ञान
मक्के के काबा-मन्दिर में 360 मूर्तियाँ थीं, जिनमें प्रतिदिन एक मूर्ति की, विशेष रूप से, पूजा की जाती थी।