सुरेन्द्र मोहन पाठक's Blog

April 19, 2017

Interview

सुरेनदर मोहन पाठक से एक साकषातकारः

1. आप ने लिखना कैसे शुरू किया, यानी शौकिया या पैसों की खातिर?

# लिखना शौकिया शुरू किया। पैसे का तो सवाल ही नहीं था। जिस दौर में मैंने लिखना शुरू किया था, उस में तो नामी लेखकों को भी कोई मानीखेज उजरत नहीं मिलती थी। कोई भी लेखक लेखन से घर बार चला पाने की सथिति में तब नहीं होता था। इसी वजह से खुद मैंने 34 साल सरकारी नौकरी की।

2. कया आप आरमभ में ही अपने उपनयास का कथानक निरधारित कर लेते हैं या कहानी को आगे बढ़ाते जाने के उपरानत आये घटनाकरम में बदलाव या टविसट और टरन आ...

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Published on April 19, 2017 21:24

February 10, 2017

Down the Memory Lane

JAGJIT SINGH AS I KNEW HIM IN OUR COLLEGE DAYS

DAV College in those days was out of Jullundur Township and the new hostel was across the road from the college. The hostel was a massive; double-storey, stand alone, rectangular building with hundreds of rooms housing some seven hundred students. The occupant of one such room on first floor, facing GT road was a handsome, strapping young sikh from Ganganager known as Jagjit Singh pursuing his B.Sc. with me. So, we were not only hostelmates but a...

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Published on February 10, 2017 13:58

September 5, 2016

Kaatil Kaun

‘कातिल कौन’ के परति पाठकों की राय :

- हनुमान परसाद मुंदड़ा को कातिल कौन ‘परफेकट, आइडियल, शानदार, ऐन मेरी पसनद का’ लगा । बकौल उन के काफी समय बाद उन को कोई बढ़िया थरिलर (मरडर मिसटरी नहीं) पढने को मिला । साथ में परकाशित हुए लघु उपनयास ‘खुली खिड़की’ को उनहोंने लाजवाब बोनस करार दिया और गिला जाहिर किया मैंने उसे सुधीर कोहली का फुल लेंथ कारनामा कयों न बनाया ।

- मुंबई की डॉकटर सबा खान को भी ‘कातिल कौन’ से जयादा ‘खुली खिड़की ने मुतमईन किया और उनहोंने उपरोकत सरीखी ही बाकायदा शिकायत की कि इतने शानदार कथानक...

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Published on September 05, 2016 00:28

October 23, 2015

Crystal Lodge

'करिसटल लॉज' पाठकों की राय में

- मेलबोरन, ऑसटरेलिया से सुधीर बड़क ने ‘करिसटल लॉज’ को मेरा ‘जमीर का कैदी’ तिकड़ी के बाद से अब तक का सबसे अचछा उपनयास बताया है । उनहोंने इस उपनयास के जरिये मेरी लेखनी के बारे में अपनी राय - जो कि अंगरेजी में है - जाहिर की है जो कि दिलचसपी से खाली नहीं है ।

उन की राय उन के अपने शबदों में :

The beauty of the novel lies in its characterisation and diction of dialogues. Extended court room scenes, which off late you have taken a liking to, work as an icing on the cake....

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Published on October 23, 2015 01:47

March 16, 2015

Feedback 'Goa Galaata'

गोवा गलाटा पाठकों की राय में

जालंधर के जोधा मिनहास को गोवा गलाटा बहुत सुनदर उपनयास लगा और वो उपनयास की तेज रफतार से खास तौर से परभावित हुए । बकौल उन के, उपनयास उनहोंने पूरी रात में बहुत ही आनंद उठाते हुए पढ़ा और पढने की रफतार जानबूझ कर धीमी रखी ताकि वो जलदी खतम न हो जाये । इसी वजह से अगला दिन उनहोंने पूरे का पूरा सोकर गुजारा ।

मनु बनधेर ने गोवा गलाटा पूरी तरह से एनजॉय किया लेकिन ये बात उनहें दुरुसत न लगी कि कतल के केस की सुनवाई सीधे सैशन कोरट में न दरशाई गयी ।

उजजैन के राजेश पंथी को गोवा गलाटा...

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Published on March 16, 2015 23:08

November 3, 2014

Feedback 'Jo Lare Deen Ke Het' - 2

मैंने अपने पिछले वृतांत में आपको ‘जो लरे दीन
के हेत’ के बारे में पाठकों की राय से अवगत कराया था । उस लेख में एक खास तारीख तक
की चिट्ठियों और मेल का समावेश था । अब पेशे खिदमत है उपन्यास के बारे में कुछ और
पाठकों की राय:   



दिल्ली के विशी सिन्हा की अमूल्य राय उन्हीं के
शब्दों में उद्धृत है:



‘जो लरे दीन के हेत’
उन किताबों में से है जो पहले पन्ने से ही अपने तिलिस्म में बांध लेती है । शुरू
से ही बुलेट ट्रेन जैसी रफ्तार, प्रथम भाग में – दिल्ली वाले हिस्से में – कहानी
में पूरी कसावट, आगे भी बेहद ते...

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Published on November 03, 2014 01:42

October 9, 2014

Feedback 'Jo Lare Deen Ke Het'

मैं खेद के साथ लिख रहा हूं कि ‘जो लरे दीन के
हेत’ के माध्यम से विमल को वो मुक्तकंठ प्रशंसा न प्राप्त हो सकी जो कि हार्पर
कॉलिंस से प्रकाशित मेरे पिछले उपन्यास ‘कोलाबा कांस्पीरेसी’ में जीतसिंह को हुई
थी । इसका ये मतलब हरगिज भी नहीं है कि पाठकों को विमल या उपन्यास नापसंद आया ।
उपन्यास बराबर पसंद आया लेकिन ये दो बड़ी शिकायत भी लगभग तमाम पाठकों को हुई:



1. उपन्यास में विमल मेहमान कलाकार लगा । 110
पृष्ठ तक तो उपन्यास में उसकी एंट्री तक नहीं हुई थी ।



2. उपन्यास एक ही जिल्द में सिमट गया जब कि अब
पाठकों को विम...

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Published on October 09, 2014 02:16

July 28, 2014

Feedback on 'Singla Murder Case'

सिंगला
मर्डर केस



उपरोक्त
उपन्यास सुनील सीरीज में 121 वां है और मेरी आज तक प्रकाशित कुल रचनाओं में 288
वां है । मुझे खुशी है कि उपन्यास मेरे हर वर्ग के पाठकों को – एकाध अपवाद को
छोड़कर जो कि हमेशा ही होता है – पसंद आया है ।



गोंदिया
के शरद कुमार दुबे की निगाह में ‘कोलाबा कांस्पीरेसी’ के धमाकेदार प्रवेश के बाद
‘सिंगला मर्डर केस’ मानो दबे पांव दाखिल हुआ लेकिन अपनी हाजिरी लगवाने में 100%
सफल हुआ । सीरीज के सभी स्थायी पात्र अपने अपने रोल में खरे उतरे । बकौल दुबे
साहब, उपन्यास ने उन का भरपूर मनोरंजन किया ।



मेरे...

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Published on July 28, 2014 00:22

May 30, 2014

Feedback on 'Colaba Conspiracy' - Part 2

Part 1 से आगे...

पुनीत दुबे को ‘कोलाबा कान्स्पिरेसी’ बेमिसाल, पूरे सौ नंबरों के काबिल लगा, बावजूद उनकी नीचे लिखी दो
नाइत्तफाकियों के:



1. बकौल उनके पंगा
शब्द जो एडुआर्डो और जीतसिंह के डायलॉग्स में आता है गोवा या मुंबई में इस्तेमाल नहीं
होता ।



2. गाइलो जीतसिंह से
मदद मांगने जाता है तो जीतसिंह उसे अपनी जाती दुश्वारियों का हवाला देकर टाल देता है,
बावजूद इसके कि अतीत में गाइलो ने जीतसिंह की भरपूर मदद की थी, और कई मुसीबतें झेली
थीं । ये A FRIEND IN NEED
IS A FRIEND INDEED तो न हुआ ।



उपरोक्त के अलावा दुबे
साहब...

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Published on May 30, 2014 20:32

Feedback on 'Colaba Conspiracy' - Part 1

कोलाबा कांस्पीरेसी



जीत सिंह के इस सातवें
कारनामे को जो तारीफ और मकबूलियत हासिल हुई है, वो बेमिसाल है और उससे आप का लेखक गदगद
है कि उसकी मेहनत रंग लायी । उपन्यास ने पाठकों को किस कदर प्रभावित किया, आत्मसात
किया, उसकी ये भी मिसाल है कि 406 पृष्ठों में फैला कथानक पढ़ कर भी उसको ऐसा लगा कि
अभी एक खंड और होना चाहिए था । बहरहाल अपने गुणग्राहक पाठकों की गुणग्राहकता के आगे
मै नतमस्तक हूं और भविष्य में और भी अच्छा लिखने के लिए दृढ प्रतिज्ञ हूं ।



यहां इस पर खास
बात का जिक्र भी अनुचित नहीं होगा कि उपन्यास की का...

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Published on May 30, 2014 20:31

सुरेन्द्र मोहन पाठक's Blog

सुरेन्द्र मोहन पाठक
सुरेन्द्र मोहन पाठक isn't a Goodreads Author (yet), but they do have a blog, so here are some recent posts imported from their feed.
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