Moushmi Radhanpara's Blog, page 10
December 15, 2020
सूरज से गुफ्तगू #37
तुमसे ज्यादा आज कल
वो उड़ते पंछी पसंद आते है
पर मुझे छोड़
वो भी तुम्हारे पास चले आते है
कुछ तो होगा तुजमे
जो किसी और में नहीं दीखता
ये सारा का सारा संसार
क्यों तुजसे ही है खिलता
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December 14, 2020
सूरज से गुफ्तगू #36
ज़िम्मेदारियों का बोज नहीं
सिर्फ तेरे न होने का है,
खुशियों की खोज नहीं
सिर्फ तेरे साथ का है.
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December 13, 2020
सूरज से गुफ्तगू #35
सब कुछ हो के अब कुछ नहीं रहा
हमारे दरमियान अब कुछ न रहा
तू आना मुझसे मिलने अगर चाहे तो
कयुकी मेरे पास अब तुजसे मिलने का कोई बहाना न रहा
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December 12, 2020
सूरज से गुफ्तगू #34
तू खवाब है मेरा पर पूरा नहीं
तू मेरा है पर मेरा नहीं
तू पयार है मेरा पर अधूरा नहीं
तू सूरज है पर सवेरा कयों नहीं
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December 11, 2020
सूरज से गुफ्तगू #33
तेरे कंधे पर सर रख कर रोना चाहती हूँ
तुजे बाहो में भर कर कुछ देर सोना चाहती हूँ
फिर जल के राख हो जाऊं तो भी कोई गम नहीं
बस तेरे सीने में भी खुद की पहचान छोडना चाहती हूँ
तेरी उंगलियों के बीच खुद की उंगलियां पिरोना चाहती हूँ
तेरे सपनो में मेरी जान, खुद के सपनो को पिरोना चाहती हूँ
मोहबबत की है हमने ये बेखौफ कहते है
अब तेरी मोहबबत का इकरार भी नगमों में सुनना चाहती हूँ
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December 10, 2020
सूरज से गुफ्तगू #32
वो कहते है वकत बडा तेज हैं
शायद उनहोंने कभी सारी रात उस चाँद को नहीं देखा हैं
शायद उनहोंने अकेले में बिसतर पर सिलवटों को नहीं सजाया हैं
शायद, शायद उनहोंने उन तारो को तांकते हुए तुमहारा इंतजार नहीं किया हैं
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December 9, 2020
सूरज से गुफ्तगू #31
सुन तू चला जा
मैं हकीकत में जीना चाहती हूँ
खवाब बहुत देख लिए मैंने
अब उनहें जुडते देखना चाहती हूँ
उनहें टूटने नहीं देना चाहती हूँ
सुन तू चला जा
मधुशाला में खोना नहीं चाहती हूँ
में शायद बस कडवे घूट ही पीना जानती हूँ
#amorfati :Amor fati is a Latin phrase that may be translated as love of fate or love of ones fate. It is used to describe an attitude in which one sees everything that happens in ones life, including suffering and loss, as good or, at the very least, necessary.
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December 8, 2020
सूरज से गुफ्तगू #30
जो देखना चाहता है तो देख लेता है
वरना न जाने कहा छुप जाता है
मै इंतजार करती हूँ की तू अब आएगा
पर तुजे न जाने मुझे यु परेशां देख, कया चैन आता है.
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सूरज से गुफ्तगू #29
तू आया तो है फिर से आज
पर तू सवेरा नहीं, अँधेरा लाया है
कया बात हुई, कया कोई बात अधूरी छूटि
या फिर बस मेरे अंदर का अनधेरा तुज पर भी चाय हैं
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December 6, 2020
सूरज से गुफ्तगू #28
बिन मांगी जलन है
एक तूफान, एक सैलाब भी है
रोज तुजसे पूछना चाहती हु, पर भूल जाती हूँ
तू है तो सही पर इतना दूर दूर कयों हैं
Read More: सूरज से गुफतगू #27


