Gaurav Sharma Lakhi's Blog, page 9

March 1, 2015

बड़ी मूड़ी सी है ज़िन्दगी...मिला हूँ ज़िन्दगी से,बड़ी मूड़ी सी ...


बड़ी मूड़ी सी है ज़िन्दगी...


मिला हूँ ज़िन्दगी से,
बड़ी मूड़ी सी है...
खुश होती है और
अचानक रूठ जाती है...
एक पल ठहाका,
दूजे पल मुँह बना लेती है...
कभी बहुत अपनी सी,
कभी दुश्मन बन जाती है....
जब सोचता हूँ
समझने लगा हूँ इसे,
तभी कुछ नया कर जाती है...
फिर से पहेली बन जाती है...
 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on March 01, 2015 02:41

February 26, 2015

इस दिए को क्यों सजाते हो ?इस दिए को क्यों सजाते हो ?तेल ह...





इस दिए को क्यों सजाते हो ?





इस दिए को क्यों सजाते हो ?तेल ही तो भरना है,बाती सजेगी, जियेगी,लौ थिरकेगी,उजाला पसरेगा,तेल चुकेगा,दिए तले तो अँधेरा ही रहेगा,क्या ये इसका उपकार होगा ?
जब बाती जी लेगी,तेल सारा पी लेगी,एक पूँछ दिए से चिपकीछोड़ देगी...और साथ में कालिख होगी,फिर इसमें कौन दोबारा तेल भरेगा?इसे तो फोड़ा ही जाएगा...तुम यूँ ही पसीना बहाते हो,इस दिए को क्यों सजाते हो ?
(c) गौरव शर्मा
 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on February 26, 2015 19:09

February 14, 2015

एक हृदय विदारक कविता का एक अंश है....दिल में टीस उठे तो इ...

एक हृदय विदारक कविता का एक अंश है....
दिल में टीस उठे तो इन बच्चों के लिए दुआ कीजियेगा......








"नहीं जानते लोरी क्या है, क्या होता है नज़र का टीका |
गिरा, दौड़कर,न आई कभी माँ,
नया नया जब चलना सीखा |
किलकारियां भरी इन्होंने भी,पर,
इतराने वाला कोई न था |
इनके पहले तोतले बोलों पर,
इठलाने वाला कोई न था |
घुंघराले बालों में नाम की चोटी,
आँख में काजल, पीली लंगोटी |
पाज़ेब पहने पैरों की छमछम
कान्हा जैसा सजाकर इन्हें,
रीझने वाला कोई न था |
चौंकते थे ये भी सोते सोते,
ढूंढ़ते थे किसी को रोते रोते |
गीली लंगोटी बदलने वाला,
इनके तकिये के नीचे चाक़ू,
रखने वाला कोई न था ..."गौरव शर्मा
 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on February 14, 2015 03:43

January 24, 2015

रिश्ते कैसे कैसे ....एक रिश्ता ऐसा भी होता है जैसा,हवा और...



रिश्ते कैसे कैसे ....





एक रिश्ता ऐसा भी होता है जैसा,
हवा और उड़ते कागज़ का...
जब जितना हवा का प्यार उमड़ता है,
कागज़ ऊपर ऊपर उड़ता है....
जब हवा मुंह मोड़ लेती है,
कागज़ हौले हौले गिरता है |
कुछ रिश्ते ऐसे ही चलते हैं,
मन हुआ तो निभा लिया,
मन ऊब गया तो मिटा दिया |







एक और रिश्ता होता है,
पानी और उस पर तैरते पत्ते का,

हर हिलोर पर ख्याल झलकता है,
टूटा पत्ता भी कितना बेफिक्र लगता है,
कभी जब बहुत प्यार आता है तब
पानी पत्ते के ऊपर से भी गुजरता है...
उसे पूरा भिगो देता है,
पर डुबोता नहीं....






चिड़ा भी बनाता है,
शीशे में अपनी परछाई
संग एक रिश्ता,
कभी गाल से गाल
सटाटा है,
कभी चोंच से चोंच
भिड़ाता है...
कितनी मनुहार करता है...
पर जितना देता है
उतना ही पाता है...
ज्यादा नहीं पर कुछ
अलग तो मिले...
दूसरी तरफ से भी
चाहत का पता तो चले...
चिड़ा हार कर लड़ पड़ता है...
जितना दो उतना ही मिलेगा...
रिश्ता क्या व्यापार होता है ?




एक रिश्ता और भी है...
जिसमे सूरज और धरती,
युगों से बंधे हैं....
कभी तोड़ने की
छूटने की बात नहीं करते....
न कभी पास आते हैं,
न कभी एक दूजे को छूते हैं....
दूर दूर हैं,
पर रिश्ता मजबूत है...
सूरज देता है,
कभी एहसान नहीं जताता...
धरती लेती है...
                                                                           कम ज्यादा शिकायत
                                                                           का झगड़ा नहीं होता...



 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on January 24, 2015 01:23

January 19, 2015

सुबह और सूरज वैसे तो सुबह और सूरजरोज़ ही साथ साथ नहीं...



सुबह और सूरज 


वैसे तो सुबह और सूरज
रोज़ ही साथ साथ नहीं आते,
पर आज
सूरज कुछ ज्यादा ही पीछे है
शायद झगड़े होंगे रात को...
किसी ने खींचा होगा बात को...
पर आज भी सुबह के थैले में,
रौशनी डालना नहीं भूला था सूरज...
दोनों का प्यार ही कुछ ऐसा है...
सूरज की रौशनी
सुबह की पहचान है...
और सुबह सूरज की जान है |
 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on January 19, 2015 20:14

January 3, 2015

                &...







                                                                     
                                                                       


                                                                   यूँ ही मत जी 


ज़िन्दगी तेरी लौ के 
ढंग भी निराले हैं,
कितनी भी आँधियाँ आएं,
बुझती ही नहीं तू...
बस लड़खड़ा के रह जाती है...
या तो हवा की फूँक में दम कम है,
या तेरी ज़िंदा रहने की भूख है ज्यादा...
चल अब जी ही रही है तो,
रोशनी भी बिखेर कुछ....
 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on January 03, 2015 19:41

              &nb...



              


            

           LIFE, ME & OUR CONFLICT

I urged life to halt

craving to assess the promise
in a dream...
I closed my eyes
And cherished virtuality
Life didn't heed
I didn't care
It made me stumble upon
the reality....
Our conflict is still going on.
 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on January 03, 2015 19:00

December 31, 2014

तू पहली रात थी या आखिरी नहीं जानता तूआखिरी रात थी बी...



तू पहली रात थी या आखिरी 



नहीं जानता तू
आखिरी रात थी बीते साल की,
या पहली रात थी नए साल की...
पर बड़ी बैचैन थी...

कितने जिस्म ओढे थी,
अपने ही वज़ूद के
प्रश्न चिन्ह लिए,
हवस की कीचड में सने हुए,
रूह तक नापाक नाखून गड़े हुए,
कितने जीवन थे मरे हुए,
ममता भी थी सिहरी हुयी,
मासूमियत यहाँ वहां बिखरी हुयी...

नहीं जानता मनाऊँ,
मातम या ख़ुशी
नए साल की...
तू आखिरी थी
या पहली थी?
रात तू बड़ी बेचैन थी....

उम्मीद पाल लूँ नयी,
जी उठूँ या मरा रहूँ,
नए सूरज से मांगूं क्या?
आदमी की आदमियत,
साफ़, पाक और नेक नियत,
डरा हुआ हूँ सोच रहा हूँ...
कैसे शुरुआत करूँ नए साल की,
तू आखिरी थी तो फिर मत आना...
इतने डरावने मंज़र मत लाना...
आज रात  तो नयी होकर आना...

                      गौरव शर्मा

 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on December 31, 2014 21:30

December 26, 2014

उम्मीदचुटकी में दबी रही उम्मीद,शर्मिंदा शाम नज़रें चुरा के...


उम्मीद





चुटकी में दबी रही उम्मीद,
शर्मिंदा शाम नज़रें चुरा के निकल गयी...
आँखों को सपनों की प्यास थी,
रात के दस्तक देते ही मचल गयी |

दिल की जेब में संभाल उम्मीद,
आँखों को करने दी मनमानी...
कल फिर उजियारा तो होगा,
ये कालिख होगी आसमानी |

अगले पहर करवट बदली जब,
पीठ में कुछ चुभ रहा था...
शायद दिल ने उम्मीद छोड़ दी थी,
या आँखों से सपना छूट गया था |

टटोला तो उम्मीद मिली,
सलवट में सिमटी करहाती थी...
सहेजा तो उंगली से लिपट गयी,
चुटकी में बंद होना चाहती थी |

पूछा तो बोली दिल खींचता है,
मैं जितनी हूँ उतनी ही रहने दो...
बड़ी और टूट गयी तो ज्यादा दुःख होगा,
मुझको चुटकी भर ही रहने दो...
मुझको चुटकी भर ही रहने दो....



                     गौरव शर्मा

 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on December 26, 2014 00:56

December 21, 2014

The Readers Cosmos: Interview with Gaurav Sharma:Author of Rapescars.....

The Readers Cosmos: Interview with Gaurav Sharma:Author of Rapescars.....: Rape - A cancer that has ruined lives and continues to penetrate and plague our society. Unfortunately if you open any newspaper today yo...
 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on December 21, 2014 20:24