Gaurav Sharma Lakhi's Blog, page 13

June 9, 2014

ये कैसी प्रेरणा है......यादों की कटोरी  में,उंगली डु...

ये कैसी प्रेरणा है......

यादों की कटोरी  में,
उंगली डुबो डुबो के,
ख्यालों की दीवार पर,
खींचता हूँ लकीरें |

तुम्हारी कंजूसी वाली हँसी,
लटों पर झूठी नाराज़गी,
मन की आँखें बना डालती हैं,
कितनी ही तस्वीरें |

 आँखें तरेरती एक तस्वीर,
खुश रहने की कसम
याद दिलाती है,
और उसे निभाने की प्रतिज्ञा,
अचानक चौंक कर
 चूल्हा जलाती है |

मैं हौले हौले मुस्काता हूँ,
और अंतर्मन की कढ़ाई में
अवसाद भूनता हूँ |
टूटे सपनो की सूखी
 किशमिश मिला के,
सौहार्द सूंघता हूँ |

ये कैसी प्रेरणा है,
 जो नहीं है,
पर कहीं तो हैं फिर भी|
बांधें है, पर आज़ाद
होने को कहती है,
ये अजीब हैं ज़ंजीरें |

यादों की कटोरी में,
उंगली डुबो डुबो के,
ख्यालों की दीवार पर,
खींचता हूँ लकीरें |

        गौरव शर्मा.....
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Published on June 09, 2014 21:34

June 4, 2014

प्यार का रंग ....सुबह से शाम तक,सूरज और मैंने पुरुक्षार्थ...

प्यार का रंग ....
सुबह से शाम तक,
सूरज और मैंने पुरुक्षार्थ किया,
शाम ने सुरमा लगाया,
तो पक्षी घर को लौटे,
मैं भी लौटा |

श्रम-स्वेद की गंध से,
गर्वित तन था,
जेब में उस पसीने से,
अर्जित धन था....
 उत्साहित पगों से,
मैं घर की और बढ़ रहा था,
पिया मिलान के,
सुन्दर सपने ,
बुन रहा था |

उसके हाथ पर जब ये
रूपये रखूंगा,
उसकी आँखे ख़ुशी से
चमक उठेंगी |
वो गर्व से मुझे निहारेगी ,
पंजों पर उचक कर,
मेरा माथा चूम लेगी |

मैं उसे आलिंगन में,
जकड़ लूँगा,
वो मेरी बाहों में और सिकुड़ेगी |
उसके लिए नुक्कड़ से,
एक गज़रा ले लूँगा,
मोगरे से हमारे प्यार की,
खुशबू और बढ़ेगी |

घर पंहुचा, द्वार खटखटाया,
उसने खोला |
कुंवारी सुबह,
ज्यों सूरज को निहारती है,
उसने मुझे कुछ ऐसे ही देखा |

उसे सजा धजा देख,
मैं उत्तेजित हो गया,
और उसे बाहों में भर लिया |

वो कसमसाई , अपने चेहरे को,
और कुरूप किया
और झटक कर,
अपने को मुझसे छुड़ा लिया |

'कितनी बदबू आ रही है तुमसे...पहले नहा कर आओ '
मैं अवाक रह गया,
अचंभित मूक आगे बढ़ा ,
घुसलख़ाने में खुद को,
बंद कर फफक कर रो पड़ा |
आंसुओं ने प्यार के,
कच्चे रंग को धो दिया |

                 ---गौरव शर्मा

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Published on June 04, 2014 20:32

June 2, 2014

प्यार की परिभाषाएँ.....हर युग में प्यार की नयी परिभाषाएँ ...

प्यार की परिभाषाएँ.....

हर युग में प्यार की नयी परिभाषाएँ होती हैं,
अब न मीराएँ होती हैं,
न राधाएँ होती हैं |

मेहंदी का सुर्ख होना,
बिंदी का काबिज़ होना,
लम्बी मांग भर लेना,
कबके ढोंग हो चुके हैं,
भावनाएं हथेली पर लेकर,
प्यार ढूंढने वाले,
कबके बोझ हो चुके हैं |
अब प्यार की ये निशानियाँ,
बाधाएं होती हैं,
अब न मीराएँ होती हैं,
न राधाएँ होती हैं |


आँखों को पढ़ने वाले,
ख़ामोशी सुनने वाले,
समर्पित, मर मिटने वाले,
कल की बात हो चुके हैं |
एक स्पर्श और जीवन डोर
से बंधने वाले,
आँखें और जुल्फों पर,
कविता कहने वाले,
खोखले ज़ज़्बात हो चुके हैं |
अब कोरी बातें नहीं,
सिक्कों की स्पर्धाएं होती हैं |
अब न मीराएँ होती हैं,
न राधाएँ होती हैं |
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Published on June 02, 2014 21:46

 माँ  पुरुष तो करके एक, सूक्ष्मदर्शी अंशदान, पा...

 माँ 
पुरुष तो करके एक,
सूक्ष्मदर्शी अंशदान,
पा लेता है,
पिता कहलाने का सम्मान|

पर माँ सींचती है,
महीनों बीज को,
अनंत पीड़ाएँ सहकर,
बनती है महान |

प्रतिक्षण आँचल की छांव में रखकर,
अपने दूध से नवजात को तृप्त कर |
रातों रात थपथपाती नींद तजकर,
और न जाने देती है कितने ही बलिदान,
.................तब बनती है महान |

पिता ले आये एक कमीज नयी,
पर माँ की लोरी का मोल नहीं |
घुटनो पर चलते लगे जब खुरचन,
पिता भाग झट से उठा लेता है,
पर आंसू पोंछती माँ का दिल,
बच्चे की हर सुबकी पर रोता है |
ममता भर ले बोली में,
निस्वार्थ का पहने परिधान
........तब बनती है महान |

पिता का दायित्व भौतिकता,
पर माँ स्नेह से पेट भर देती है |
पिता दुलार छुपा कर रखता है,
माँ जब चाहो वर्षा कर देती है |
बच्चा जब जब करवट लेता है,
माँ नींद से बैर कर लेती है |
निरुपम तपस्या है माँ होना,
इसका न कोई परिमाण,
.............तब बनती है महान |
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Published on June 02, 2014 21:41

May 25, 2014

नयी शुरुआत करतें हैं... जिंदगी चल आ.. फिर से बात करते हैं...


नयी शुरुआत करतें हैं...
जिंदगी चल आ..
फिर से बात करते हैं |
हार-जीत का हिसाब नहीं,
नयी शुरुआत करते हैं |
कोई प्रश्न मैं न पूछूं ,
कोई प्रश्न तुम न करना |
साँसों का मकसद क्या हो?
ऐसा कोई सवाल न करना |
धड़कनों के शोर का भी,
अब कोई ख्याल न करना |
आँखों के आंसुओं को
निचोड़ आगे बढ़ते हैं |
हार जीत की बात नहीं,
नयी शुरुआत करते हैं |
उदास हैं साँसे, उदास सही,
मन की चिड़चिड़ाहट रुके नहीं,
नया कोई सपना उगे नहीं,
वक़्त चलता रहे, लम्हें थमें नहीं |
न मंज़िल की परवाह करें,
न ग़मों से डरते हैं,
हार जीत का हिसाब नहीं,
नयी शुरुआत करते हैं |
चाहत नहीं दस्तक दें,
भावुक खुशियां फिर से |
न फूल खिलें, न बयार चले,
न चमकें अँखियाँ फिर से |
टूटी हुयी नाव से ही,
पार उतरते हैं |हार जीत की बात नहीं,
नयी शुरुआत करते हैं |
तुझसे कोई शिकायत नहीं है,
तुमभी बेशक रियायत न करना |
तैयार हूँ और इम्तिहानों के लिए,
तुम भी आसान सवाल न करना |
मुर्दा उत्साह अपग उमंग,
टूटे सपनो को दफ़न करते हैं |
हार जीत की बात नहीं,
नयी शुरुआत करते हैं |
गौरव शर्मा
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Published on May 25, 2014 05:12

May 20, 2014

चल ज़रा .........सेवइयों से छोटे-छोटे रास्तों पे चलें नहीं...

चल ज़रा .........
सेवइयों से छोटे-छोटे रास्तों पे चलें नहीं .....
चल ज़रा जलेबी सी बना दे राहें नयी ....
उँगलियों में उँगलियों को फँसा कर चल ज़रा .....
आँखों में  आँखें डाले पुतलियों के
 नए रंग से नए सपने लिखले ज़रा .....
न दिन बुझे  ,  न रात खर्च हो ....
चल ..मेरे कंधे  पे रख के सर चल ज़रा ....
कदमो को सुस्ती की दवाई पिला कर चलें ...
चल ...शैतान मुस्कानों से एक दूजे को रिझाते चले ....
चाँद का लड्डू जो आधा खाकर छोड़  दिया  है  ज़मीं  ने .....
चल ,उसे ही मंज़िल बना कर वहां तक चलें  ....
चल ज़रा ....जलेबी सी बना के राहें ज़िन्दगी  की  चलें ....
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Published on May 20, 2014 03:15

एक आशा .....वो शब्द जो तेरे होठों से बह कर मुझ तक पहुंचे ...

एक आशा .....

वो शब्द जो तेरे होठों से बह कर मुझ तक पहुंचे थे ....
मेरी स्मृति में मंदिर के घंटों सा बजते हैं .....
रात जब थक जाती है और  सूरज  दिया जलाता है ..
मेरे मन के वीरानो  में तेरे बोल कोयल सा कूकते हैं .....
जीवन की लौ बचाने में दिन तो यूँ ही ढल जाता है ..
तेरे आने की आशा लिए सपने विरही सजनी सा सजते हैं ....
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Published on May 20, 2014 02:45

अंतर्द्वंद.....गले हुए एहसासों को सम्भालूँ कब तक ...उंगली...

अंतर्द्वंद.....

गले हुए एहसासों को सम्भालूँ कब तक ...
उंगली लगाते ही चिर जाते हैं ....
आँखों की वेदना को क्या समझेंगे वो ,
जो शब्दों का भी गलत अर्थ लगाते हैं ....
भीड़ में उनके कंधे पर हाथ रखके कितना भी मुस्कुरालूं मैं ...
रिश्तों में लगे पैबंद सबको नज़र आते हैं ......
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Published on May 20, 2014 02:40

सवाल.....फिर  वही अकेली रात  हैरान  है ......

सवाल.....

फिर  वही अकेली रात  हैरान  है ....
मेरी  टकटकी  से शर्मसार छत सिमट रही है ...
मेरी करवटें  गिन  रही  है  चादर  की  सलवटें ....
तकिया भी मेरी बैचेनी से परेशान है .....
खुली हुयी आँखों में एक सवाल  है ...
एक टूटा हुआ सपना है ...
और सपने में तुम हो ....
मेरी कल्पना तुमसे पूछती है ...
क्यों तुमने मुझे अपना नहीं बनाया ...
मेरी कल्पना तुम्हारी जुबान से  बोलती है
'तुम इस लायक ही नहीं थे'
फिर शुरू होता  है तर्क
मेरे हृदय और मेरी कल्पना का |
दिल कहता है शायद ये सच भी हो
पर वो कभी नहीं बोलेगी
कल्पना हार कर फिर पूछती है
क्या तुम्हे मुझसे प्यार  है ...
हाँ नहीं के शोर में आँखें थक कर सो जाती हैं
कल फिर रात आएगी ...सवाल  दोहरायेगी ..
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Published on May 20, 2014 02:34

तुम और मैं  आक्रोश कि अंगीठी पर,मिट्टी की हान्ड...

तुम और मैं 
 
आक्रोश कि अंगीठी पर,
मिट्टी की हान्डी में,
मेरी तुम्हारी
पौने दो मुलकातों की
यादें अब तक पक रही हैं
तुम्हरी झूम्ती लम्बी चोटी
अस्पष्ट भाव लिये तुम्हारी
घूरती आँखें
वो तिरछी मुस्कुराहट
और  व्यन्ग वाली बातें
अब बरसों के बाद
भुने हुये अतीत की खुशबू
आत्मीयता भरे वर्तमान में
 बिखरी है
मैं कितना भी झुठ्ला लूँ
मेरी जिन्दगी तुम्हारे खयालों से ही
निखरी है....
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Published on May 20, 2014 02:16