Gaurav Sharma Lakhi's Blog, page 14
May 20, 2014
तुम और मैं आक्रोश कि अंगीठी पर,मिट्टी की हान्ड...
तुम और मैं
आक्रोश कि अंगीठी पर,
मिट्टी की हान्डी में,
मेरी तुम्हारी
पौने दो मुलकातों की
यादें अब तक पक रही हैं
तुम्हरी झूम्ती लम्बी चोटी
अस्पष्ट भाव लिये तुम्हारी
घूरती आँखें
वो तिरछी मुस्कुराहट
और व्यन्ग वाली बातें
अब बरसों के बाद
भुने हुये अतीत की खुशबू
आत्मीयता भरे वर्तमान में
बिखरी है
मैं कितना भी झुठ्ला लूँ
मेरी जिन्दगी तुम्हारे खयालों से ही
निखरी है....
आक्रोश कि अंगीठी पर,
मिट्टी की हान्डी में,
मेरी तुम्हारी
पौने दो मुलकातों की
यादें अब तक पक रही हैं
तुम्हरी झूम्ती लम्बी चोटी
अस्पष्ट भाव लिये तुम्हारी
घूरती आँखें
वो तिरछी मुस्कुराहट
और व्यन्ग वाली बातें
अब बरसों के बाद
भुने हुये अतीत की खुशबू
आत्मीयता भरे वर्तमान में
बिखरी है
मैं कितना भी झुठ्ला लूँ
मेरी जिन्दगी तुम्हारे खयालों से ही
निखरी है....
Published on May 20, 2014 02:16
अंतर्द्वंद.....जीवन के अंधेरों में इतनी रोशनी नहीं ...
अंतर्द्वंद.....
जीवन के अंधेरों में इतनी रोशनी नहीं थी, कि कुछ लिखूं,
खुली आँखें झट से मूँद ली चांदनी समेटने के लिए....
ये कभी न मरने वाली भावनाओं के सच की कहानी है,
मुझसे रात की स्याही में तैरते सुनहरे तारे ने कहा था ...
मैंने सपनो को निचोड़ निचोड़ कर संवेदनाएं घोली हैं,
आंसुओं में भीगा था हर शब्द लेखनी से जब बहा था.....
जीवन के अंधेरों में इतनी रोशनी नहीं थी, कि कुछ लिखूं,
खुली आँखें झट से मूँद ली चांदनी समेटने के लिए....
ये कभी न मरने वाली भावनाओं के सच की कहानी है,
मुझसे रात की स्याही में तैरते सुनहरे तारे ने कहा था ...
मैंने सपनो को निचोड़ निचोड़ कर संवेदनाएं घोली हैं,
आंसुओं में भीगा था हर शब्द लेखनी से जब बहा था.....
Published on May 20, 2014 02:09
एक सपना ......ऐ सपने सच होना होगा तुझको, आंसुओं से ...
एक सपना ......
ऐ सपने सच होना होगा तुझको,
आंसुओं से सींचा है तुझको,
नौ मॉस नहीं नौ बरस नहीं,
युगों युगों पाला है तुझको,
पूजा परमात्मा सी की है,
मेरा पूर्ण समर्पण तुझको,
मन के गर्भ में सोया है तू,
जाग रहा हूँ मै न जाने कबसे,
आँखों में बसाये तुझको|
सावन की गीली आग लकड़ियों सा,
शरद की सूखी पत्तियों सा,
मर रहा हूँ जीने को तुझको,
पिघला विषाद पी रहा हूँ,
आकृति में पा लूँ तुझको,
सपने सच होना होगा तुझको|
Published on May 20, 2014 02:05
एक सपना ........समय के अधरों से साँझ मदिरा स...
एक सपना ........
समय के अधरों से साँझ मदिरा सी बूँद बूँद टपकती रही ...
मैं सिंचता रहा .....
चाँद तुम्हारी यादें चांदनी मे भिगो भिगो कर
लुटाता रहा ...मैं बीनता रहा .....
उंगली भर मोमबत्ती ,मिटटी की मुंडेर पर ...
यथार्थ की हवाओं से लड़ती रही ...
मैं बचाता रहा .....
कानो के बक्सों में बंद तुम्हारी चूड़ियों की खनखनाहट आती रही ...
.मैं सुनता रहा .....
तुम्हारी खुशबू पी रही थी सांसें ...
एक दीर्ध श्वास छोड़ा मैंने .... .
चूल्हे की लकड़ी को छूकर अपना सपना तोडा मैंने .......
समय के अधरों से साँझ मदिरा सी बूँद बूँद टपकती रही ...
मैं सिंचता रहा .....
चाँद तुम्हारी यादें चांदनी मे भिगो भिगो कर
लुटाता रहा ...मैं बीनता रहा .....
उंगली भर मोमबत्ती ,मिटटी की मुंडेर पर ...
यथार्थ की हवाओं से लड़ती रही ...
मैं बचाता रहा .....
कानो के बक्सों में बंद तुम्हारी चूड़ियों की खनखनाहट आती रही ...
.मैं सुनता रहा .....
तुम्हारी खुशबू पी रही थी सांसें ...
एक दीर्ध श्वास छोड़ा मैंने .... .
चूल्हे की लकड़ी को छूकर अपना सपना तोडा मैंने .......
Published on May 20, 2014 02:03
May 18, 2014
KEJRIWAL AND BHAGAT….. &nbs...
KEJRIWAL AND BHAGAT….. THE SELF PROCLAIMED REFORMERS Arvind Kejriwal and Chetan Bhagat are two biggest self-proclaimed reformers. Both yearn to change India. Kejriwal one jumped into politics, claiming that nothing will be changed without changing the system. I really respect his ideas and actively participated in his movements until before he declared to form a political party.And Chetan Bhagat wants to bring revolution by making the youth of the country to be conscious about the affairs prevailing in the country and be vocal and actively participate to bring about a change in the scenario.Both of them got substantial success to encourage them.
Now that the people of the country have shown him the mirror of realism, he has time to rethink where he went wrong. The outcome of the Delhi Assembly elections surprised all political pundits. People voted for their faith in Kejriwal that was a clear cut indication of how desperately they want a change.However, his 40 day stint as the chief minister of Delhi revealed profusely that though his inventions are noble, he may have chosen an appropriate path but he has no concrete path to execute what he professes.One may feel wary of his accusing and ridiculing the two prominent parties as every citizen of this country know every bit of what he screams from a public platform. People know everything.In my view, it is wasting energy. As an advocate of the true democracy or ‘Swaraj’, he must be focusing on the ways and methods of mending what he thinks needs rectification. He should act and let his work speak for himself.Chetan Bhagat, seems to know what young India wants. He maintains that he has experienced and researched why and where we lack to prosper as a country. Again, his ideas were great, motives are noble, thoughts were inspiring, but I could festoon his ideas, motives and thoughts with inhibitions and apprehensions only after reading his non-fiction book ‘What Young India Wants’, which I found motivational.
In all his fictional creations, the path he advocates for the Indian youth to pursue is more about coaxing them to come out of the cultural cocoon of the Indian values.But do noble ideas really need garnishing with pornographic language?Are painting rosy pictures of college life, girls and boys sleeping together in IIM hostel is a way of bringing Renaissance?Is glamorising sex before marriage is the only way out to reform this country? Those who have read his books really think that steamy scenes were demand of the story.I may sound feeble-minded, but it’s certainly not prejudice if I say that he could have avoided them.His book ‘Three mistakes of my life’ was found on the bed-table of the diseased child Arushi Talwar.I think he needs to be more responsible for he himself has chosen to be a role model for the generation who will hold the reins of this country.
Published on May 18, 2014 21:44
यदि समय थकता.......काश समय को गति का, लोभ न होता|वह भी थक...
यदि समय थकता.......
काश समय को गति का,
लोभ न होता|
वह भी थकता,
रुकता|
मेरे पास अब भी '
मेरा बचपन होता,
माँ की गोद होती,
मैं भी लोरी सुनता,
अपने सपनों तक की दूरी,
घुटनों पर ही,
मैं कर लेता पूरी|
यदि समय थकता, रुकता|
काश समय को,
अनथक चलने का,
शौक न होता|
कोई पड़ाव उसे भी भाता|
तब यादें इतना न सताती|
अतीत इतना कुरूप,
न लगता|
यदि समय थकता, रुकता|
काश अविस्मरणीय क्षणों पर,
समय शाषन न करता,
सुखकाल कभी भूत न बनता,
जीवन पर मृत्यु का ,
अधिकार न होता,
तुम भी इतना दूर न जाती|
जीवन से मैं भी शिकायत न करता|
यदि समय थकता, रुकता|
-गौरव शर्मा
काश समय को गति का,
लोभ न होता|
वह भी थकता,
रुकता|
मेरे पास अब भी '
मेरा बचपन होता,
माँ की गोद होती,
मैं भी लोरी सुनता,
अपने सपनों तक की दूरी,
घुटनों पर ही,
मैं कर लेता पूरी|
यदि समय थकता, रुकता|
काश समय को,
अनथक चलने का,
शौक न होता|
कोई पड़ाव उसे भी भाता|
तब यादें इतना न सताती|
अतीत इतना कुरूप,
न लगता|
यदि समय थकता, रुकता|
काश अविस्मरणीय क्षणों पर,
समय शाषन न करता,
सुखकाल कभी भूत न बनता,
जीवन पर मृत्यु का ,
अधिकार न होता,
तुम भी इतना दूर न जाती|
जीवन से मैं भी शिकायत न करता|
यदि समय थकता, रुकता|
-गौरव शर्मा
Published on May 18, 2014 20:36
May 15, 2014
क्षण .....कुछ क्षण &n...
क्षण .....
कुछ क्षण
जो बार गूंजते हैं,
नहीं मरते,
क्योंकि छोड़ पाये हैं,
छाप, एक याद,
नहीं मिटते |
वो क्षण जब,
मुस्काती आँखें ही बोलती हों,
चमकती सी,
कह जाएँ,
इतना कुछ कि,
नींद भी जागी रहे,
उसे सुनने को|
और सुबह भी खटखटाये,
किवाड़ रात के,
कई बार,
कि सुन ले कुछ तो|
एक शान वो भी जब,
भीगी आँखें ही बोली हों,
कुछ अस्पष्ट सा कहें,
भारी हुयी पलकों से,
पूछा भी बहुत,
अचानक उठकर,
क्या कहा मुझसे?
देखा था?
गुहार थी?
या शिकायत की थी?
एक क्षण, वो था जब,
मैंने एक जीवन-प्रश्न,
किया था तुमसे,
दाँतो में दबाकर, जबाब दिया था तुमने,
बुझे चेहरे से जब,
उठी थी आँखें ऊपर,
और न समझकर भी,
मैं सब कुछ समझ,
मैंने को तत्पर|
और वो भी थे क्षण
जब आशाएं जगाई तुमने,
और तोड़ दी,
न चाहकर भी
असहाय होने का ,
संकेत देती,
किन्तु मेरे लिए
जीवन वाक्य बन गए हैं,
तुम्हारे द्वारा कहे कुछ शब्द,
मेरे हर क्षण के स्वामी हैं,
हाँ, तुम परिपक्व हो,
तभी मैं, स्तब्ध|
गौरव शर्मा
कुछ क्षण
जो बार गूंजते हैं,
नहीं मरते,
क्योंकि छोड़ पाये हैं,
छाप, एक याद,
नहीं मिटते |
वो क्षण जब,
मुस्काती आँखें ही बोलती हों,
चमकती सी,
कह जाएँ,
इतना कुछ कि,
नींद भी जागी रहे,
उसे सुनने को|
और सुबह भी खटखटाये,
किवाड़ रात के,
कई बार,
कि सुन ले कुछ तो|
एक शान वो भी जब,
भीगी आँखें ही बोली हों,
कुछ अस्पष्ट सा कहें,
भारी हुयी पलकों से,
पूछा भी बहुत,
अचानक उठकर,
क्या कहा मुझसे?
देखा था?
गुहार थी?
या शिकायत की थी?
एक क्षण, वो था जब,
मैंने एक जीवन-प्रश्न,
किया था तुमसे,
दाँतो में दबाकर, जबाब दिया था तुमने,
बुझे चेहरे से जब,
उठी थी आँखें ऊपर,
और न समझकर भी,
मैं सब कुछ समझ,
मैंने को तत्पर|
और वो भी थे क्षण
जब आशाएं जगाई तुमने,
और तोड़ दी,
न चाहकर भी
असहाय होने का ,
संकेत देती,
किन्तु मेरे लिए
जीवन वाक्य बन गए हैं,
तुम्हारे द्वारा कहे कुछ शब्द,
मेरे हर क्षण के स्वामी हैं,
हाँ, तुम परिपक्व हो,
तभी मैं, स्तब्ध|
गौरव शर्मा
Published on May 15, 2014 20:37
May 14, 2014
स्वपन जागेंगे....
स्वपन जागेंगे....
आँखें जब सोने को होंगी,
स्वपन जागेंगे |
जीवन के सुरभित सौभाग्य,
यत्न मांगेंगे |
कितनी ही इच्छाएं अंतर्मन में,
छटपटाती रहती हैं,
कितनी ही आँसु स्मृतियों में,
पछताते रहते हैं|
सब अपने लिए थोड़ा थोड़ा,
मरहम मांगेंगे,
आँखें जब सोने को होंगी,
स्वपन जागेंगे |
कई प्रश्न समय के,
अनबूझे ही रहते हैं,
क्षण भी बात अपनी,
बीतने पर ही कहते हैं|
भविष्य के कण नए नए सम्बोधन मांगेंगे,
आँखें जब.......|
कितनी घुटी हुयी
भावनाओं को पाला है,
गिरते हुए आंसूं को,
पलकों में संभाला है|
ये भी अपने लिए नया,
एक अर्थ चाहेंगे|
आँखें जब.............|
कितनी ही चेहरे
अपनत्व की आस जगाते हैं,
स्नेह सिक्त दृष्टि से,
प्रेम की प्यास बुझाते हैं|
एकांकीपन के सहमे एहसास,
झटपट भागेंगे,
आँखें जब ...........|
बहुत से कथनों के ,
गुणात्मक अर्थ होते हैं,
भोजे न जाएँ ऐसे वाक्य,
व्यर्थ होते हैं|
भटके शब्द अपने लिए,
आशय मांगेंगे,
आँखें जब सोने को होंगी ,
स्वपन जगेंगे,
जीवन के सुरभित सौभाग्य,
यत्ने मांगेंगे|
भवैश्य बता रहा है,
वर्तमान झूठा है|
खुशियां मत ढूँढो ,तुमसे,
भाग्य रूठा है|
फिर भी उनके साथ नया एक,
जीवन मांगेंगे,
आँखें जब सोने को होंगी,
स्वपन जागेंगे|
आँखें जब सोने को होंगी,
स्वपन जागेंगे |
जीवन के सुरभित सौभाग्य,
यत्न मांगेंगे |
कितनी ही इच्छाएं अंतर्मन में,
छटपटाती रहती हैं,
कितनी ही आँसु स्मृतियों में,
पछताते रहते हैं|
सब अपने लिए थोड़ा थोड़ा,
मरहम मांगेंगे,
आँखें जब सोने को होंगी,
स्वपन जागेंगे |
कई प्रश्न समय के,
अनबूझे ही रहते हैं,
क्षण भी बात अपनी,
बीतने पर ही कहते हैं|
भविष्य के कण नए नए सम्बोधन मांगेंगे,
आँखें जब.......|
कितनी घुटी हुयी
भावनाओं को पाला है,
गिरते हुए आंसूं को,
पलकों में संभाला है|
ये भी अपने लिए नया,
एक अर्थ चाहेंगे|
आँखें जब.............|
कितनी ही चेहरे
अपनत्व की आस जगाते हैं,
स्नेह सिक्त दृष्टि से,
प्रेम की प्यास बुझाते हैं|
एकांकीपन के सहमे एहसास,
झटपट भागेंगे,
आँखें जब ...........|
बहुत से कथनों के ,
गुणात्मक अर्थ होते हैं,
भोजे न जाएँ ऐसे वाक्य,
व्यर्थ होते हैं|
भटके शब्द अपने लिए,
आशय मांगेंगे,
आँखें जब सोने को होंगी ,
स्वपन जगेंगे,
जीवन के सुरभित सौभाग्य,
यत्ने मांगेंगे|
भवैश्य बता रहा है,
वर्तमान झूठा है|
खुशियां मत ढूँढो ,तुमसे,
भाग्य रूठा है|
फिर भी उनके साथ नया एक,
जीवन मांगेंगे,
आँखें जब सोने को होंगी,
स्वपन जागेंगे|
Published on May 14, 2014 02:45
May 12, 2014
क्षण
क्षण .......
हर पल के लिए,
जीवन की किताब पर,
छूटा होता है एक हाशिया...
मिट जाते हैं कभी,
और कभी अमिट छाप लिए,
वे पल छोड़ जाते हैं कई नाम,
कई टिप्पणियाँ |
भविष्य को बहाकर लाने वाले,
पृष्ठों से जब धुंधलाते हैं,
अतीत को, तब भी,
स्पष्ट सा दिखता है कुछ,
कुछ क्षण,
कुछ नामों की अर्थी लिए,
बन जाते हैं याद,
भविष्य को ढकती परछाईयाँ|
उस हाशिये पर,
कुछ हलके नाम भी हैं,
जो समय में बहते आये,
पर न ठहरे,
जीवन की किताब पर,
छोड़ न सके कोई निशाँ|
फिर भी दीखते हैं,
कहते हैं,
टूटे सपने जब
आंसुओं में बहते हैं ,
गूंजती हैं तब,
उन क्षणों से जुडी कहानियाँ|
अब भी ये पल,
वर्तमान के ,
लिए हुए हाशिये,
बिना किसी नाम के,
टिप्पणियों से सजे हुए,
इतराते हैं यूँ ही|
पर समांतर पंक्तियों में है,
ज़िक्र पुराने नामों का,
हर क्षण फुसफुसाता है,
नए नाम भी यही लाएंगे,
सोचता हूँ क्या खेल रचा रहे हैं?
आने वाला सभी पल क्यों,
अतीत की है कठपुतलियां?
---गौरव शर्मा
हर पल के लिए,
जीवन की किताब पर,
छूटा होता है एक हाशिया...
मिट जाते हैं कभी,
और कभी अमिट छाप लिए,
वे पल छोड़ जाते हैं कई नाम,
कई टिप्पणियाँ |
भविष्य को बहाकर लाने वाले,
पृष्ठों से जब धुंधलाते हैं,
अतीत को, तब भी,
स्पष्ट सा दिखता है कुछ,
कुछ क्षण,
कुछ नामों की अर्थी लिए,
बन जाते हैं याद,
भविष्य को ढकती परछाईयाँ|
उस हाशिये पर,
कुछ हलके नाम भी हैं,
जो समय में बहते आये,
पर न ठहरे,
जीवन की किताब पर,
छोड़ न सके कोई निशाँ|
फिर भी दीखते हैं,
कहते हैं,
टूटे सपने जब
आंसुओं में बहते हैं ,
गूंजती हैं तब,
उन क्षणों से जुडी कहानियाँ|
अब भी ये पल,
वर्तमान के ,
लिए हुए हाशिये,
बिना किसी नाम के,
टिप्पणियों से सजे हुए,
इतराते हैं यूँ ही|
पर समांतर पंक्तियों में है,
ज़िक्र पुराने नामों का,
हर क्षण फुसफुसाता है,
नए नाम भी यही लाएंगे,
सोचता हूँ क्या खेल रचा रहे हैं?
आने वाला सभी पल क्यों,
अतीत की है कठपुतलियां?
---गौरव शर्मा
Published on May 12, 2014 21:40
क्षण .......हर पल के लिए, जीवन की किताब पर,छूटा होता है ए...
क्षण .......
हर पल के लिए,
जीवन की किताब पर,
छूटा होता है एक हाशिया...
मिट जाते हैं कभी,
और कभी अमिट छाप लिए,
वे पल छोड़ जाते हैं कई नाम,
कई टिप्पणियाँ |
भविष्य को बहाकर लाने वाले,
पृष्ठों से जब धुंधलाते हैं,
अतीत को, तब भी,
स्पष्ट सा दिखता है कुछ,
कुछ क्षण,
कुछ नामों की अर्थी लिए,
बन जाते हैं याद,
भविष्य को ढकती परछाईयाँ|
उस हाशिये पर,
कुछ हलके नाम भी हैं,
जो समय में बहते आये,
पर न ठहरे,
जीवन की किताब पर,
छोड़ न सके कोई निशाँ|
फिर भी दीखते हैं,
कहते हैं,
टूटे सपने जब
आंसुओं में बहते हैं ,
गूंजती हैं तब,
उन क्षणों से जुडी कहानियाँ|
अब भी ये पल,
वर्तमान के ,
लिए हुए हाशिये,
बिना किसी नाम के,
टिप्पणियों से सजे हुए,
इतराते हैं यूँ ही|
पर समांतर पंक्तियों में है,
ज़िक्र पुराने नामों का,
हर क्षण फुसफुसाता है,
नए नाम भी यही लाएंगे,
सोचता हूँ क्या खेल रचा रहे हैं?
आने वाला सभी पल क्यों,
अतीत की है कठपुतलियां?
---गौरव शर्मा
हर पल के लिए,
जीवन की किताब पर,
छूटा होता है एक हाशिया...
मिट जाते हैं कभी,
और कभी अमिट छाप लिए,
वे पल छोड़ जाते हैं कई नाम,
कई टिप्पणियाँ |
भविष्य को बहाकर लाने वाले,
पृष्ठों से जब धुंधलाते हैं,
अतीत को, तब भी,
स्पष्ट सा दिखता है कुछ,
कुछ क्षण,
कुछ नामों की अर्थी लिए,
बन जाते हैं याद,
भविष्य को ढकती परछाईयाँ|
उस हाशिये पर,
कुछ हलके नाम भी हैं,
जो समय में बहते आये,
पर न ठहरे,
जीवन की किताब पर,
छोड़ न सके कोई निशाँ|
फिर भी दीखते हैं,
कहते हैं,
टूटे सपने जब
आंसुओं में बहते हैं ,
गूंजती हैं तब,
उन क्षणों से जुडी कहानियाँ|
अब भी ये पल,
वर्तमान के ,
लिए हुए हाशिये,
बिना किसी नाम के,
टिप्पणियों से सजे हुए,
इतराते हैं यूँ ही|
पर समांतर पंक्तियों में है,
ज़िक्र पुराने नामों का,
हर क्षण फुसफुसाता है,
नए नाम भी यही लाएंगे,
सोचता हूँ क्या खेल रचा रहे हैं?
आने वाला सभी पल क्यों,
अतीत की है कठपुतलियां?
---गौरव शर्मा
Published on May 12, 2014 21:40


