Gaurav Sharma Lakhi's Blog, page 11
September 9, 2014
" ऐ ज़िन्दगी, चल...
" ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैं "
ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैं ,
मैं तो गुज़र चुका हूँ ,तू ही थोड़ी सी बची है,चल तेरे गुजरने तक,साथ साथ हँस लेते हैं |
तू सवाल पूछते रहना, मैं जवाब ढूंढ़ता रहूँगा,मैं तेरी साँसों से प्यार कर लूँगा,
तू मेरे सपनों का दुलार कर लेना,
चल एक दूजे को अपना लेते हैं |
ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैं |
तू मुझे ऐसे ही चिढ़ाती रहना,रूठ जाऊं तो अपनी राह चल देना,जब से मिली हो, सता रही हो,आगे भी बेशक सताती रहना,मैं रूठ कर नहीं जाऊँगा,दोस्ती की है न, निभाउंगा,चलो पुराना लेन देन माफ़ कर देते हैं,ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैं |
तू नमकीन से पल देती रहना,मैं मुस्काऊँ, या झुँझलाऊं कभी,तू ज्यादा ध्यान न देना,चुभती बातों के बीच,कुछ मीठा बोल देना,ठोकर खाकर गिर जाऊं कभी,तो हँस देना चाहे, पर फिर,उठाने को हाथ बड़ा देना,तुम साथ हो ,बस इतना बता देना,चल बहुत हुआ, अब समझौता कर लेते हैं,ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैं |
हार जीत की होड़ छोड़ ,चल साथ साथ मुस्कुरा लेते हैं,तू मेरी उदासी पी ले,मैं तेरी हँसी जी लूँ,चल एक दूजे को समझ लेते हैं,ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैं |
ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैं ,
मैं तो गुज़र चुका हूँ ,तू ही थोड़ी सी बची है,चल तेरे गुजरने तक,साथ साथ हँस लेते हैं |
तू सवाल पूछते रहना, मैं जवाब ढूंढ़ता रहूँगा,मैं तेरी साँसों से प्यार कर लूँगा,
तू मेरे सपनों का दुलार कर लेना,
चल एक दूजे को अपना लेते हैं |
ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैं |
तू मुझे ऐसे ही चिढ़ाती रहना,रूठ जाऊं तो अपनी राह चल देना,जब से मिली हो, सता रही हो,आगे भी बेशक सताती रहना,मैं रूठ कर नहीं जाऊँगा,दोस्ती की है न, निभाउंगा,चलो पुराना लेन देन माफ़ कर देते हैं,ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैं |
तू नमकीन से पल देती रहना,मैं मुस्काऊँ, या झुँझलाऊं कभी,तू ज्यादा ध्यान न देना,चुभती बातों के बीच,कुछ मीठा बोल देना,ठोकर खाकर गिर जाऊं कभी,तो हँस देना चाहे, पर फिर,उठाने को हाथ बड़ा देना,तुम साथ हो ,बस इतना बता देना,चल बहुत हुआ, अब समझौता कर लेते हैं,ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैं |
हार जीत की होड़ छोड़ ,चल साथ साथ मुस्कुरा लेते हैं,तू मेरी उदासी पी ले,मैं तेरी हँसी जी लूँ,चल एक दूजे को समझ लेते हैं,ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैं |
Published on September 09, 2014 07:26
ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैंऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर ल...
ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैं
ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैं ,
मैं तो गुज़र चुका हूँ ,
तू ही थोड़ी सी बची है,
चल तेरे गुजरने तक,
साथ साथ हँस लेते हैं |
तू सवाल पूछते रहना,
मैं जवाब ढूंढ़ता रहूँगा,
मैं तेरी साँसों से प्यार कर लूँगा,
तू मेरे सपनों का दुलार कर लेना,
चल एक दूजे को अपना लेते हैं |
ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैं |
तू मुझे ऐसे ही चिढ़ाती रहना,
रूठ जाऊं तो अपनी राह चल देना,
जब से मिली हो, सता रही हो,
आगे भी बेशक सताती रहना,
मैं रूठ कर नहीं जाऊँगा,
दोस्ती की है न, निभाउंगा,
चलो पुराना लेन देन माफ़ कर देते हैं,
ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैं |
तू नमकीन से पल देती रहना,
मैं मुस्काऊँ, या झुँझलाऊं कभी,
तू ज्यादा ध्यान न देना,
चुभती बातों के बीच,
कुछ मीठा बोल देना,
ठोकर खाकर गिर जाऊं कभी,
तो हँस देना चाहे, पर फिर,
उठाने को हाथ बड़ा देना,
तुम साथ हो ,
बस इतना बता देना,
चल बहुत हुआ, अब समझौता कर लेते हैं,
ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैं |
हार जीत की होड़ छोड़ ,
चल साथ साथ मुस्कुरा लेते हैं,
तू मेरी उदासी पी ले,
मैं तेरी हँसी जी लूँ,
चल एक दूजे को समझ लेते हैं,
ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैं |
ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैं ,
मैं तो गुज़र चुका हूँ ,
तू ही थोड़ी सी बची है,
चल तेरे गुजरने तक,
साथ साथ हँस लेते हैं |
तू सवाल पूछते रहना,
मैं जवाब ढूंढ़ता रहूँगा,
मैं तेरी साँसों से प्यार कर लूँगा,
तू मेरे सपनों का दुलार कर लेना,
चल एक दूजे को अपना लेते हैं |
ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैं |
तू मुझे ऐसे ही चिढ़ाती रहना,
रूठ जाऊं तो अपनी राह चल देना,
जब से मिली हो, सता रही हो,
आगे भी बेशक सताती रहना,
मैं रूठ कर नहीं जाऊँगा,
दोस्ती की है न, निभाउंगा,
चलो पुराना लेन देन माफ़ कर देते हैं,
ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैं |
तू नमकीन से पल देती रहना,
मैं मुस्काऊँ, या झुँझलाऊं कभी,
तू ज्यादा ध्यान न देना,
चुभती बातों के बीच,
कुछ मीठा बोल देना,
ठोकर खाकर गिर जाऊं कभी,
तो हँस देना चाहे, पर फिर,
उठाने को हाथ बड़ा देना,
तुम साथ हो ,
बस इतना बता देना,
चल बहुत हुआ, अब समझौता कर लेते हैं,
ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैं |
हार जीत की होड़ छोड़ ,
चल साथ साथ मुस्कुरा लेते हैं,
तू मेरी उदासी पी ले,
मैं तेरी हँसी जी लूँ,
चल एक दूजे को समझ लेते हैं,
ऐ ज़िन्दगी, चल दोस्ती कर लेते हैं |
Published on September 09, 2014 07:26
August 28, 2014
....और दस वर्ष बाद ....... चलो आज ज़िन्दगी को ठेंगा दिखाकर...
....और दस वर्ष बाद .......
चलो आज ज़िन्दगी को ठेंगा दिखाकर,
कुछ देर भरपूर जी लेते हैं |
कठपुतली बनकर नाचना ही तो है,
आज अपनी रस्सी काट छुट्टी कर लेते हैं,
चलो एक दिन के लिए फिर से,
प्रेमी-प्रेमिका बन लेते हैं |
नुक्कड़ की रेहड़ी से चुस्की खरीदेंगे,
हर बार बच्चे 'ह्यजिनिक नहीं है' कहकर
टाल देते हैं न,
आज चूस लेते हैं,
'कोई क्या कहेगा' की चिंता,
रेज़गारी में दे देते हैं |
फिर टहलते हैं, उँगलियों में उँगलियाँ फँसाये,
देने दो उम्र ताने देती है तो,
कानों में बेशर्मी की रुई डाल लेते हैं |
पार्क की बेंच पर सट कर बैठेंगे,
मुद्दतें हुईं चलो, एक दूजे की
आँखें बांच लेते हैं,
जितने अधलिखे प्रेम पत्र
संकोच की टोकरी में भरे पड़े हैं,
एक-एक कर सारे पड़ लेते हैं |
फिर तुम कुछ गुनगुनाना,
मेरे कंधे पर सर रखकर,
अपनी बारी में मैं तुम्हारी
गोद में सर रख लूंगा,
आज फिल्मों के पात्रों सा
बन के देख लेते हैं |
ज़रा देना तो ऊपर वाले को रिश्वत,
कहना मौसम का रिमोट हमें दे दे |
आज साथ साथ बारिश में,
झूम लेते हैं |
और जब वो रुक जाएगी न,
तो खरीदेंगे आम,
घुटनो तक मोड़कर कपडे,
भरे पानी में छप-छप करते चलेंगे,
आओ एक दुसरे के हाथों से
आम चूस लेते हैं |
चलो आज ज़िन्दगी को ठेंगा दिखाकर,
कुछ देर भरपूर जी लेते हैं |
कठपुतली बनकर नाचना ही तो है,
आज अपनी रस्सी काट छुट्टी कर लेते हैं,
चलो एक दिन के लिए फिर से,
प्रेमी-प्रेमिका बन लेते हैं |
नुक्कड़ की रेहड़ी से चुस्की खरीदेंगे,
हर बार बच्चे 'ह्यजिनिक नहीं है' कहकर
टाल देते हैं न,
आज चूस लेते हैं,
'कोई क्या कहेगा' की चिंता,
रेज़गारी में दे देते हैं |
फिर टहलते हैं, उँगलियों में उँगलियाँ फँसाये,
देने दो उम्र ताने देती है तो,
कानों में बेशर्मी की रुई डाल लेते हैं |
पार्क की बेंच पर सट कर बैठेंगे,
मुद्दतें हुईं चलो, एक दूजे की
आँखें बांच लेते हैं,
जितने अधलिखे प्रेम पत्र
संकोच की टोकरी में भरे पड़े हैं,
एक-एक कर सारे पड़ लेते हैं |
फिर तुम कुछ गुनगुनाना,
मेरे कंधे पर सर रखकर,
अपनी बारी में मैं तुम्हारी
गोद में सर रख लूंगा,
आज फिल्मों के पात्रों सा
बन के देख लेते हैं |
ज़रा देना तो ऊपर वाले को रिश्वत,
कहना मौसम का रिमोट हमें दे दे |
आज साथ साथ बारिश में,
झूम लेते हैं |
और जब वो रुक जाएगी न,
तो खरीदेंगे आम,
घुटनो तक मोड़कर कपडे,
भरे पानी में छप-छप करते चलेंगे,
आओ एक दुसरे के हाथों से
आम चूस लेते हैं |
Published on August 28, 2014 21:14
August 22, 2014
जिंदगी....ठहर जाती है कभी, कभी झट से फिसल जाती है,व...
जिंदगी....
ठहर जाती है कभी, कभी झट से फिसल जाती है,
वक़्त के कांच पर ओस की बूँद जैसी है जिंदगी |
गम में उलझ जाये तो रोये सी फड़फड़ाती है,
बयार खुशियों की चले, तो लहलहाती है जिंदगी |
कभी सब कुछ पाकर भी अधूरेपन से छटपटाती है,
कभी सब कुछ लुटाकर भी मुस्कुराती है जिंदगी |
कभी उमंगों की रेत से आँखों के किनारे महल बनाती है,
पर सच्चाइयों की लहरों को रोक नहीं पाती है जिंदगी |
दिल साँसों की धमकियाँ सहता रहे, तब भी गुज़र जाती है,
पछताना पड़े चाहे, नाजायज़ सपने से रिश्ते बनाती है जिंदगी |
ग़मों से लड़ते लड़ते कितनी ही बार चूर चूर हो जाती है,
फिर भी चुटकी भर खुशियों की राह निहारती है जिंदगी |
Published on August 22, 2014 02:01
August 19, 2014
मेरी यादें.....अकेले फुर्सत में, कुसी पर आँखें मूँद झूलते...
मेरी यादें.....
अकेले फुर्सत में, कुसी पर आँखें मूँद झूलते हुए,
ख्याल तुम्हारे इधर से उधर फुदकते तो होंगे |
यूँ ही कुछ अपनी कुछ औरों की बातें सोचते हुए,
मेरी बातें और मेरी यादें तुम्हें कुरेदते तो होंगे |
खिड़की से बाहर झांकते हुए, खली आँखें तुम्हारी,
कुछ खोजना न भी चाहें, पर खोजती तो होंगी |
जानते हुए कि मैं नहीं हूँ, फिर भी किसी को देख,
पक्का करने कि बैचैन कोशिश करती तो होंगीं |
भीगें या नहीं,यादों कि बूंदा-बांदी चुनने कहाँ देती है,
तुम भी चाहे अनचाहे मुझे याद करती तो होंगी |
सब्ज़ी में करछी घुमाते, अखबार में कुछ पड़के,
कभी तुम मुझसे खामोश बातें करती तो होंगी|
दिन में कितनी ही बार बंद मकान में धूप कि तरह,
मेरे ख्याल तुम्हारे ज़हन में जबरन घुस जाते तो होंगे |
कहा जाये न कहा जाये, चाहत का पता चल ही जाता है,
हवा में घुले मेरे छन्द मेरे प्यार का एहसास कराते तो होंगे |
Published on August 19, 2014 20:51
August 11, 2014
I have written this poem on behalf of protagonist of LOV...
I have written this poem on behalf of protagonist of LOVE @ AIR FORCE, Shabd Mishra.....
शब्द मिश्रा कि एक कविता....
वह कौन है ??
जानती हो, इस संसार में तुम्हारा नाम,
तुम्हे स्मृति में रख,
तुम्हारे अतिरिक्त,
जिसने सबसे अधिक बार लिखा है,
वह कौन है ?
अकेले में खुद से बातें करते,
तुम से भी कीं हैं,
कितनी ही बातें,
तुम्हे कितनी बार पुकारा है,
जिसने तुम्हे हर रूप में सराहा है,
वह कौन है ?
दिसंबर की धुंध से डरी,उषा में खोकर,
उस सड़क के किनारे ठिठुरते हुए
तुम्हारी राह देखी है,
तुम्हारे निःस्वर अभिवादन की आशा में,
जिसने कांपते हुए बहुत सा समय गुजारा है,
वह कौन है ?
तुम आतीं थीं, मुस्कातीं थीं,
तुम्हारे होंठ कुछ कहते तो थे,
पर मैं सुन नहीं पाता था,
किन्तु समझ जाता था,
उस क्षणिक अपनत्व से निहाल होने को,
जो बहुत कुछ, शायद सब कुछ हारा है,
वह कौन है ?
तुम्हे याद भी न होंगी वो राहें,
जिनपर तुम्हारे हमारे,
पगों के निशाँ अब भी हैं,
दोनों और खड़े वृक्ष आज भी हैं
तुम जिनसे मिलने लौटकर न आईं,
पर जो आज भी उनसे मिलने अक्सर जाया करता है,
वह कौन है ?
तुम प्रयोगवादी होकर आगे बढ़ गयीं,
दुःख नहीं है की सब भूल गयीं,
निराशा है, पर संतुष्टि भी है,
कि जीवन में एक असाधारण व्यक्तित्व ,
मुझे मिला तो सही,
तुम्हे खोकर भी जीवन का अर्थ तुम्हे बनाया है,
वह कौन है ?
मिलन ही हो प्रेम का परिणाम, अनिवार्य तो नहीं,
तुम्हे याद रखना भी आवश्यक तो नहीं,
पर तुम्हारी भ्रान्ति, कि,
'समय सब कुछ भुला देता है'
दूर करना चाहता हूँ,
तुम्हे याद रखकर भी हर रिश्ता जिसने निभाया है,
वह कौन है ?
शब्द मिश्रा कि एक कविता....
वह कौन है ??
जानती हो, इस संसार में तुम्हारा नाम,
तुम्हे स्मृति में रख,
तुम्हारे अतिरिक्त,
जिसने सबसे अधिक बार लिखा है,
वह कौन है ?
अकेले में खुद से बातें करते,
तुम से भी कीं हैं,
कितनी ही बातें,
तुम्हे कितनी बार पुकारा है,
जिसने तुम्हे हर रूप में सराहा है,
वह कौन है ?
दिसंबर की धुंध से डरी,उषा में खोकर,
उस सड़क के किनारे ठिठुरते हुए
तुम्हारी राह देखी है,
तुम्हारे निःस्वर अभिवादन की आशा में,
जिसने कांपते हुए बहुत सा समय गुजारा है,
वह कौन है ?
तुम आतीं थीं, मुस्कातीं थीं,
तुम्हारे होंठ कुछ कहते तो थे,
पर मैं सुन नहीं पाता था,
किन्तु समझ जाता था,
उस क्षणिक अपनत्व से निहाल होने को,
जो बहुत कुछ, शायद सब कुछ हारा है,
वह कौन है ?
तुम्हे याद भी न होंगी वो राहें,
जिनपर तुम्हारे हमारे,
पगों के निशाँ अब भी हैं,
दोनों और खड़े वृक्ष आज भी हैं
तुम जिनसे मिलने लौटकर न आईं,
पर जो आज भी उनसे मिलने अक्सर जाया करता है,
वह कौन है ?
तुम प्रयोगवादी होकर आगे बढ़ गयीं,
दुःख नहीं है की सब भूल गयीं,
निराशा है, पर संतुष्टि भी है,
कि जीवन में एक असाधारण व्यक्तित्व ,
मुझे मिला तो सही,
तुम्हे खोकर भी जीवन का अर्थ तुम्हे बनाया है,
वह कौन है ?
मिलन ही हो प्रेम का परिणाम, अनिवार्य तो नहीं,
तुम्हे याद रखना भी आवश्यक तो नहीं,
पर तुम्हारी भ्रान्ति, कि,
'समय सब कुछ भुला देता है'
दूर करना चाहता हूँ,
तुम्हे याद रखकर भी हर रिश्ता जिसने निभाया है,
वह कौन है ?
Published on August 11, 2014 21:19
August 7, 2014
'मैं हूँ'ज़िन्दगी के कान में हवा, न जाने क्या फुसफु...
'मैं हूँ'
ज़िन्दगी के कान में हवा,
न जाने क्या फुसफुसा के गई ,
साँझ ने मुँह छुपाया घुटनों में,
और बेतहाशा सिसकने लगी |
मेरे कहकहों से अब तक,
सहमी सहमी रहती थी उदासी,
अचानक तमतमा के उठी,
और हर तरफ बिखर गई |
आसमां ने भेज दी यूँ ही,
दो बूँदें मुझे समझाने को,
खामोश रहा ठंडा झोंका.
शायद आया था बहलाने को |
ठहरी हुयी थी अब तक,
लौ दिए की हिलने लगी |
सूरज ने समेट ली रौशनी,
स्याही काली बिखरने लगी |
साज़िशों की हंसी हँसता था,
तिनका तिनका कोना कोना,
तेरा मुस्काता अक्स लेकर
तब चमक रहा था आईना |
तुम्हारी लटें उड़ीं,आँखें झपकी,
'मैं हूँ' तुम बुद्बुदाईं |
सिमट कर छिप गई उदासी,
ज़िन्दगी झट से लौट आयी |
ज़िन्दगी के कान में हवा,
न जाने क्या फुसफुसा के गई ,
साँझ ने मुँह छुपाया घुटनों में,
और बेतहाशा सिसकने लगी |
मेरे कहकहों से अब तक,
सहमी सहमी रहती थी उदासी,
अचानक तमतमा के उठी,
और हर तरफ बिखर गई |
आसमां ने भेज दी यूँ ही,
दो बूँदें मुझे समझाने को,
खामोश रहा ठंडा झोंका.
शायद आया था बहलाने को |
ठहरी हुयी थी अब तक,
लौ दिए की हिलने लगी |
सूरज ने समेट ली रौशनी,
स्याही काली बिखरने लगी |
साज़िशों की हंसी हँसता था,
तिनका तिनका कोना कोना,
तेरा मुस्काता अक्स लेकर
तब चमक रहा था आईना |
तुम्हारी लटें उड़ीं,आँखें झपकी,
'मैं हूँ' तुम बुद्बुदाईं |
सिमट कर छिप गई उदासी,
ज़िन्दगी झट से लौट आयी |
Published on August 07, 2014 20:18
July 31, 2014
ऐ खुदा ... रस्में नयी बनाना ... ऐ खुदा ,कोई और जहाँ...
ऐ खुदा ... रस्में नयी बनाना ...
ऐ खुदा ,कोई और जहाँ कभी बनाओ तो रस्में नयी बनाना ,
फिर दुबारा, ताकत को नशा, मजबूरी को गुनाह मत बनाना |
कोई किसी हंसी की वजह बना, इसका पता चले न चले,
पर कितने आंसू उसके कारण बहे, इसका हिसाब ज़रूर बताना |
काँटों पर चलकर मंज़िल पाये, तो ख़ुशी दोगुनी हो जाये,
पर फूल रोंद कर बढ़े कोई, तो उसे एहसास ज़रूर कराना |
झूठन छोड़ने का शौक अमीर को कराओ, करा देना बेशक ,
मासूमों को रूखी रोटी खिलाओ, पर भूखा मत सुलाना |
किसी को मुस्काता देख, दूसरे भी मुस्काएं, ज़रूरी न भी हो,
पर किसी के दर्द को, किसी की दवा हरगिज़ नहीं बनाना |
मोहब्बत दिल में उपजे और दिल तक ही सिमटी रहे बस,
ज़हर-ऐ-हवस मिलाकर, मोहब्बत को नापाक मत बनाना |
दर्ज़ा अपना बक्शना न चाहो, औरत को, कोई शिकवा नहीं,
बहन बेटी को किसी की अय्याशी का सामान मत बनाना |
बचपन की भूख तालीम गिरवी रखकर, बारूद न खरीदा जाये,
सरहदों को लहू से सींचने का चलन , आगे और न चलाना |
इंसानियत ही ढूंढे इंसान, उसे खुदाई ढूंढने का जूनून न हो,
ऐ खुद, अबकी बार अपने नाम को मज़हबी जामा न पहनाना |
गम हो तो हर आँख भीगे, ख़ुशी महके तो हर आँगन महकाए,
ईद-दिवाली सालाना क्यों, इंसानियत का त्यौहार हर रोज़ मनवाना |
ऐ खुदा ,कोई और जहाँ कभी बनाओ तो रस्में नयी बनाना ,
फिर दुबारा, ताकत को नशा, मजबूरी को गुनाह मत बनाना |
कोई किसी हंसी की वजह बना, इसका पता चले न चले,
पर कितने आंसू उसके कारण बहे, इसका हिसाब ज़रूर बताना |
काँटों पर चलकर मंज़िल पाये, तो ख़ुशी दोगुनी हो जाये,
पर फूल रोंद कर बढ़े कोई, तो उसे एहसास ज़रूर कराना |
झूठन छोड़ने का शौक अमीर को कराओ, करा देना बेशक ,
मासूमों को रूखी रोटी खिलाओ, पर भूखा मत सुलाना |
किसी को मुस्काता देख, दूसरे भी मुस्काएं, ज़रूरी न भी हो,
पर किसी के दर्द को, किसी की दवा हरगिज़ नहीं बनाना |
मोहब्बत दिल में उपजे और दिल तक ही सिमटी रहे बस,
ज़हर-ऐ-हवस मिलाकर, मोहब्बत को नापाक मत बनाना |
दर्ज़ा अपना बक्शना न चाहो, औरत को, कोई शिकवा नहीं,
बहन बेटी को किसी की अय्याशी का सामान मत बनाना |
बचपन की भूख तालीम गिरवी रखकर, बारूद न खरीदा जाये,
सरहदों को लहू से सींचने का चलन , आगे और न चलाना |
इंसानियत ही ढूंढे इंसान, उसे खुदाई ढूंढने का जूनून न हो,
ऐ खुद, अबकी बार अपने नाम को मज़हबी जामा न पहनाना |
गम हो तो हर आँख भीगे, ख़ुशी महके तो हर आँगन महकाए,
ईद-दिवाली सालाना क्यों, इंसानियत का त्यौहार हर रोज़ मनवाना |
Published on July 31, 2014 02:04
July 26, 2014
हँसी के बहाने तुम कितना हँसती हो,जब भी आती हो,हँसी बिखेर ...
हँसी के बहाने
तुम कितना हँसती हो,
जब भी आती हो,
हँसी बिखेर जाती हो,
इतनी हँसी
कहाँ से लाती हो ?
आँखों की बुझी चमक,
झिलमिलाने लगती है,
हाथों की बेजान लटक,
कसमसाने लगती है,
चौक पर खेलते बचपन,
के साथ, रस्सा कूदती हो,
तब तुम्हारी
खिलखिलाहट,गूंजती है,
सुनते ही उमंग मेरी,
मुस्तैदी से, बिखरी उदासी,
समेटने लगती है |
तुम्हारी हँसी की,
इस हवा को,
कितनी आदत है ,
मैं सुनु न भी,
पर सूंघ लेता हूँ |
और तुम्हारे पहुँचने से पहले,
दरवाज़ा खोल देता हूँ |
नुक्कड़ से मुड़ते ही,
हमारी नज़रें मिलते ही,
तुम एक चुम्बन,
उछाल देती हो,
मैं गली की,
पहरेदार नज़रों को,
नापने लगता हूँ,
पर तुम बेफिक्र हँसती रहती हो |
अंदर आकर, मेरी आँखों के,
ढोंगी गुस्से का मज़ाक उड़ाती हो,
'मत करो कोशिश-
नाराज़ नहीं हो पाओगे'
कहकर ताली मारकर,
ठहाका लगाकर,
फिर हँस पड़ती हो |
फिर, लम्बे क़दमों से,
चलकर मेरे पास आती हो,
दिन में एक बार, संजीदा ,
होने की रस्म निभाती हो,
मेरी आँखों में खुद को बसाकर,
अपनी आँखों में मुझको बसाकर,
कहती हो-
'जानते हो, मैं क्यों हँसती हूँ?
क्यूंकि, मेरी हँसी ही तो,
तुम्हारी ऑक्सीजन है,
मेरे साथ तुम भी,
हंस लेते हो,
इसी बहाने, थोड़ा ही सही,
जी तो लेते हो'
वो फिर हँस पड़ती है,
और गूंजती हँसी के साथ
ओझल हो जाती है
काश जीवन में ऐसी हँसी,
बिखेरने वाले होते,
मुस्कुराने के बहाने
न ढूढ़ने पड़ते |
तुम कितना हँसती हो,
जब भी आती हो,
हँसी बिखेर जाती हो,
इतनी हँसी
कहाँ से लाती हो ?
आँखों की बुझी चमक,
झिलमिलाने लगती है,
हाथों की बेजान लटक,
कसमसाने लगती है,
चौक पर खेलते बचपन,
के साथ, रस्सा कूदती हो,
तब तुम्हारी
खिलखिलाहट,गूंजती है,
सुनते ही उमंग मेरी,
मुस्तैदी से, बिखरी उदासी,
समेटने लगती है |
तुम्हारी हँसी की,
इस हवा को,
कितनी आदत है ,
मैं सुनु न भी,
पर सूंघ लेता हूँ |
और तुम्हारे पहुँचने से पहले,
दरवाज़ा खोल देता हूँ |
नुक्कड़ से मुड़ते ही,
हमारी नज़रें मिलते ही,
तुम एक चुम्बन,
उछाल देती हो,
मैं गली की,
पहरेदार नज़रों को,
नापने लगता हूँ,
पर तुम बेफिक्र हँसती रहती हो |
अंदर आकर, मेरी आँखों के,
ढोंगी गुस्से का मज़ाक उड़ाती हो,
'मत करो कोशिश-
नाराज़ नहीं हो पाओगे'
कहकर ताली मारकर,
ठहाका लगाकर,
फिर हँस पड़ती हो |
फिर, लम्बे क़दमों से,
चलकर मेरे पास आती हो,
दिन में एक बार, संजीदा ,
होने की रस्म निभाती हो,
मेरी आँखों में खुद को बसाकर,
अपनी आँखों में मुझको बसाकर,
कहती हो-
'जानते हो, मैं क्यों हँसती हूँ?
क्यूंकि, मेरी हँसी ही तो,
तुम्हारी ऑक्सीजन है,
मेरे साथ तुम भी,
हंस लेते हो,
इसी बहाने, थोड़ा ही सही,
जी तो लेते हो'
वो फिर हँस पड़ती है,
और गूंजती हँसी के साथ
ओझल हो जाती है
काश जीवन में ऐसी हँसी,
बिखेरने वाले होते,
मुस्कुराने के बहाने
न ढूढ़ने पड़ते |
Published on July 26, 2014 04:42
July 25, 2014
कविता यूँ ही नहीं बन पाती यूँ ही कभी भी कलम कागज़ लेकर बैठ...
कविता यूँ ही नहीं बन पाती
यूँ ही कभी भी कलम कागज़ लेकर बैठ जाऊं,
और स्वतः ही बह निकले एक अद्भुत कविता,
ऐसा हो नहीं पाता |
कितना भी प्रयास कर लूँ,
किन्तु अब भी शब्द कविता के दास हैं,
न मेरे, न ही शब्दों की दास है मेरी कविता |
इधर उधर से शब्दों को बीन बीन कर,
तुकबंदी के गारे में चिन-चिन कर,
कहाँ कविता जन्म ले पाती है ?
शब्द तो पाषाण होते हैं,
भावनाओं को राम नाम की तरह,
लिखा जाता है जब उन पर,
तभी वह हृदय-सागर में तैर पाते हैं |
और हमारे उद्गारों और पाठकों के बीच,
समुन्द्र-सेतु सा मार्ग बना पाते हैं |
मोती की तरह चुनना होता है शब्दों को,
फिर पिरोना होता है संवेदनाओं के धागे में,
तभी तो हृदय-स्पर्शी कविता
जन्म ले पाती है |
गौरव शर्मा
यूँ ही कभी भी कलम कागज़ लेकर बैठ जाऊं,
और स्वतः ही बह निकले एक अद्भुत कविता,
ऐसा हो नहीं पाता |
कितना भी प्रयास कर लूँ,
किन्तु अब भी शब्द कविता के दास हैं,
न मेरे, न ही शब्दों की दास है मेरी कविता |
इधर उधर से शब्दों को बीन बीन कर,
तुकबंदी के गारे में चिन-चिन कर,
कहाँ कविता जन्म ले पाती है ?
शब्द तो पाषाण होते हैं,
भावनाओं को राम नाम की तरह,
लिखा जाता है जब उन पर,
तभी वह हृदय-सागर में तैर पाते हैं |
और हमारे उद्गारों और पाठकों के बीच,
समुन्द्र-सेतु सा मार्ग बना पाते हैं |
मोती की तरह चुनना होता है शब्दों को,
फिर पिरोना होता है संवेदनाओं के धागे में,
तभी तो हृदय-स्पर्शी कविता
जन्म ले पाती है |
गौरव शर्मा
Published on July 25, 2014 20:33


