Laxman Rao's Blog, page 4

May 11, 2016

मदर टेरेसा का योगदान

      
mother-teresa 1980  के  दरम्यान  हमारे  देश  में  मदर  टेरेसा  का  नाम  बहुत  चर्चित  था।   मदर  टेरेसा  ने  समाज  सेवा  की,  ऐसी  सेवा  हर  कोई  नहीं  कर  सकता।  मदर  टेरेसा  का  कोलकाता  में  एक  आश्रम  था  और  उस  आश्रम  में  वे  बेसहारा  लोगों  को  ले  आती  थीं  और  उनकी  चिकित्सा  करती  थीं।

वे  बेसहारा  लोग  कौन  थे?   जो  लोग  बेघर  थे  और  सड़क  पर  रहते  थे,  उनको  न  खाना  मिलता  था  न  पानी,  फिर  वे  बीमार  पढ़  गए।  उन्हें  न  दवाई  मिल  रही  थी  न  कोई  साधन।  अंततः  वे  सड़क  पर  ही  बेसहारा  अवस्था  में  दम  तोड़  रहे  थे।  ऐसे  बेसहारा  लोगों  की  सेवा  के  लिए  मदर  टेरेसा  ने  बहुत  कष्ट  उठाये।  
अमेरिका  की  एक  पत्रिका  में   दिसम्बर  अंक  में  विदेशी  पत्रकार  ने  मदर  टेरेसा  का  साक्षात्कार  प्रकाशित  किया।  पत्रकार  ने  मदर  टेरेसा  से  प्रश्न  किया  -  "हिंदुस्तान के बारे में आपकी क्या राय है?"
मदर टेरेसा ने उत्तर दिया - "मैं  सभी  धर्म  के  लोगों  से  प्रेम  करती  हूँ।"
पत्रकार  ने  एक  और  प्रश्न  किया  -  "आप  के  लिए  सबसे  अधिक  आनंदित  स्थान  कौन  सा  है,  जहाँ  आप  बार  -  बार  जाकर  ख़ुशी  महसूस  करती  हैं?"
मदर  टेरेसा  ने  उत्तर  दिया  -  "मुझे  कालिघाट  पसंद  है,  जहाँ  खुशी  के  लिए  खुशी  से  जीते  हैं।  यह  बहुत  सुन्दर  विचारधारा  है  कि  भारत  देश  के  गरीब  लोग  अपने  परिवार  के  साथ  आनंद  के  साथ  रहते  हैं।"
कालीघाट  कोलकाता  की  एक  गली  का  नाम  है  जहाँ  मदर  टेरेसा  का  आश्रम  है।  जो  गरीब  लोग  हैं  उनमें  से  भी  गरीब  लोग  जिनके  लिए  भोजन  नहीं,  पानी  नहीं,  बीमारी  के  इलाज  के  लिए  दवाई  नहीं,  उन  लोगों  को  मदर  टेरेसा  अपने  आश्रम  में  ले  आती  थीं।  उन्होंने  उस  स्थान  पर  कोलकाता  के  इतिहास  में  54  हज़ार  लोगों  को  आश्रय  दिया।  जिनमें  से  23  हज़ार  लोग  मृत्यु  को  स्वीकार  कर  गए।  यह  23  हज़ार  लोग  वे  लोग  थे  जो  कई  दिनों  से  भूखे - प्यासे  थे  और  किसी  बीमारी  के  कारण  बिस्तर  पर  पढ़े  थे।  
पत्रकार  ने  एक  और  प्रश्न  किया  -  "भविष्य  के  लिए  आपकी  क्या  योजनाएं  हैं?"मदर  टेरेसा  ने  कहा  -  "जो  दिन  गुज़र  रहा  है  मैं  उसी  के  बारे  में  सोचती  हूँ।  कल  कभी  लौटकर  आएगा  नहीं  और  आने  वाले  कल  का  भी  कोई  भरोसा  नहीं।"
मदर  टेरेसा  का  मिशन  सत्य  पर  आधारित  था।  उन्होंने  मानवीय  सेवा  सहजता  से  की।  जिसके  लिए  न  तो  कोई  प्रलोभन  था  न  ही  आर्थिक  दृष्टिकोण।  एक  विशेष  सामाजिक  सेवा  थी।  मदर  टेरेसा  ने  इसे  गॉड  गिफ्ट  कहा।  उन्हें  भारत  सरकार  ने  भारत  रत्न  पुरस्कार  से  सम्मानित  किया  था।  उनका  कार्य  भविष्य  के  लिए  प्रेरणादायक  था  जिन्हें  लोग  आज  भी  याद  करते  हैं।  5  सितम्बर,  1997  को  उनका  निधन  हो  गया। 
मदर  टेरेसा  जैसे  बहुत  से  महानुभव  हमारे  देश  में  थे,  आज  भी  हैं  और  आगे  भी  रहेंगे।  पर  समय  बदल  रहा  है।   मनुष्य  के  प्रति  मनुष्य  की  सहानुभूति  नहीं   रही  है।  पूरे  समाज  का   चित्र  अब  बदल  चुका  है।
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Published on May 11, 2016 02:50

May 6, 2016

पर्यटन स्थल मांडू - रानी रूपमती एवं बाज़ बहादुर की अमर प्रेम कथा का साक्षी



यदि हम राज्यों की धरोहर एवं पर्यटन क्षेत्र की चर्चा करें तो हमारे देश के राज्य सम्पन्न संस्कृति से भरे-पूरे राज्य मने जाते हैं. हर राज्य की अपनी संस्कृति व भाषा है और इसी के आधार पर राज्य की पहचान मानी जाती है. मध्य प्रदेश विकासशील राज्य माना जाता है. परन्तु किसी भी राज्य की विरासत व पहचान बदल नहीं सकती . पर्यटन क्षेत्र व पर्यटन स्थल नष्ट नहीं हो सकते. ऐसा ही एक स्थान मध्य प्रदेश में है, जिसका नाम है - ‘मांडू’. कहा जाता है कि मांडू मध्य प्रदेश की धरती पर ऐसा ऐतिहासिक पर्यटन स्थल है जिसका सौंदर्य देखते ही बनता है. मांडू की हरी-भरी धरती गर्मियों के मौसम में और निखर जाती है. इसकी एक विशेषता यह भी है कि यहां का पर्यटन स्थल खंडहरों से बना है और उन खंडहरों से एक ऐसी सुन्दर स्त्री की प्रेम कहानी झलकती है जिसके प्रेम की दूर-दूर तक चर्चा है. उस स्त्री का नाम है ‘रानी रूपमती’. रानी रूपमती के किस्से मध्य प्रदेश की धरती पर विश्वास एवं सम्मान के साथ सुने जाते हैं.

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देशी-विदेशी पर्यटक जब मांडू के लिए चल पड़ते हैं तब मार्गदर्शन करने वाले गाइड सबसे पहले रानी रूपमती की प्रेम कहानी आरम्भ करते हैं क्योंकि मांडू का दूसरा नाम रानी रूपमती की प्रेम कहानी है. रानी रूपमती व ‘बाज़ बहादुर’ की प्रेम कहानी अर्थात पत्थरों एवं खंडहरों से एक ऐतिहासिक अमर प्रेम कहानी उभर कर सामने आती है. ऐतिहासिक पत्थरों से बने बड़े-बड़े दरवाज़े पर्यटकों कास्वागत करते हैं, तब ऐसा लगता है कि जिस समय पूरे स्थल के बाँध का काम चल रहा होगा तब के इंजीनियर, मिस्त्री व मज़दूर कैसे होंगे? आज तो ऐसे इंजीनियर दिखाई नहीं देते. क्योंकि विशालकाय महलों का निर्माण तो बंद हो गया है. बारह फुट से ऊँचें किसी इमारत के दरवाज़े नहीं हैं.
उस समय के शासक भी समृद्ध शासक होते थे. कोई भी काम करते थे तो इतिहास रचने के लिए करते थे. महल बनाने और वहां रहने का स्थान एकांत तथा पहाड़ी क्षेत्र को चुनते थे जहां जनसाधारण रहने के लिए न पहुंचे.
जून महीने में जब बरसात होती है तो उस बरसात का रंग जुलाई महीन में दिखाई देता है और पूरे मांडू क्षेत्र में हरियाली छा जाती है और इस हरियाली का आकर्षण यहां आने वाले पर्यटक, विशेष रूप से प्रेमी जोड़े बाज़ बहादुर व रानी रूपमती के चर्चे में खो जाते हैं. इसी कारण आषाढ़ व श्रावण मास में यहां पर्यटकों का मेला सा लगा रहता है. 

इतिहास के पृष्ठों में यह भी लिखा है कि किसी समय मालवा नाम का एक राज्य था और उस राज्य की राजधानी मांडू नगर था. यहां का राजा बादशाह बाज़ बहादुर के नाम से प्रसिद्ध था. बड़ी-बड़ी प्रेम कहानियां जैसे – लैला-मजनूँ, हीर-रांझा व रोमियो-जूलिएट प्रसिद्द हैं, इसी तरह इस मालवा राज्य में बादशाह बाज़ बहादुर की प्रेम कहानी प्रसिद्ध है. रूपमती नाम की बहुत सुन्दर स्त्री से बाज़ बहादुर का प्रेम हो जाता है. पहले वो राजा की प्रेमिका थी और बाद में राजा की पत्नी बनकर रानी बन गयीं. बाज़ बहादुर व रानी रूपमती में अटूट प्रेम था, यह मालवा के लोक गीतों में झलकता है.

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रानी रूपमती के लिए उनके नाम से एक महल भी बनवाया गया था. ऊंची पत्थर की चट्टान जिसकी ऊंचाई 400 मीटर है, ऐसे स्थान पर बाज़ बहादुर ने अपनी रानी का महल बनवाया था जिससे रानी को कोई देख भी न सके. ऐसा भी कहा जाता है कि उस महल से चारों तरफ का नज़ारा बहुत ही आकर्षक दिखाई देता है. रानी रूपमती अपने महल से दूर से बहती हुई नर्मदा नदी की बहती जलधारा की खूबसूरती को निहारती थीं. यह बताया जाता है कि रानी के आदेश व इच्छानुसार बाज़ बहादुर के महल का एक-एक डिज़ाइन तैयार करवाया गया था. 

इतिहास के पन्नों में यह भी लिखा है कि सन्‌ 1561 में मुग़ल बादशाह अकबर की सेना के जनरल आदम खान ने मालवा पर आक्रमण किया और बाज़ बहादुर को पराजित कर दिया था. उस अवस्था में रानी रूपमती को खोज निकाला गया क्योंकि रानी रूपमती की सुंदरता की खबर शत्रुओं को भी थी. रानी रूपमती शत्रुओं के हाथ लग गयी, परन्तु रानी रूपमती ने शत्रुओं के आगे समर्पण न करते हुए प्राण त्याग दिए. इसी घटना के साथ रानी रूपमती व बाज़ बहादुर की प्रेम कहानी अमर हो गयी. 
मांडू में देखने योग्य और भी स्थान हैं जैसे कि जहाज़ महल, हिंडोला महल, होशंग शाह का मक़बरा, नीलकंठ शिव मंदिर, वास्तुकला से निर्मित जामी मस्जिद. यही मांडू की ऐतिहासिक धरोहरें हैं.

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Published on May 06, 2016 23:31

May 3, 2016

उपन्यास ‘दंश’ का प्रथम अध्याय



first chapter of novel dansh by author laxman rao दंश   -  साहित्यकार लक्ष्मण राव उस  समय  सुबह  के  सात  बज  रहे  थे.  पंजाब  मेल  पूना  पहुँच  चुकी  थी.  पूना  रेलवे  स्टेशन  से  टैक्सी  लेकर  मैं  उस  गेस्ट  हाउस  पहुंचा  जहां  मुझे  ठहरना  था.
वह  गेस्ट  हाउस  केवल  उच्च  शिक्षा  अधिकारियों  के  लिए  था.  हमारे  पंजाब  के  बलवंत  सिंहजी  महाराष्ट्र  शिक्षा  विभाग  में  उच्च  शिक्षा  अधिकारी  थे.  उन्होंने ही  मुझे  अनुमति  पत्र  देकर  उस  गेस्ट  हाउस  में  ठहरने  की  अनुमति  प्राप्त  करवाई  थी.
गेस्ट  हाउस  के  स्वागत  कक्ष  में  जाकर  मैंने  अनुमति  पत्र  दिखाया.  स्वागत कक्ष  अधिकारी  ने  मेरा  नाम - पता  लिखकर  मुझे  एक  कक्ष  की  चाबी  दी  और  कर्मचारी  को  बुलवाकर  मेरा  सामान  प्रथम  तल  पर  आरक्षित  कक्ष  तक  पहुंचाने  का  आदेश  दिया.  मैंने  उन्हें  धन्यवाद  कहा  और  अपने  कक्ष  के  पास  जाकर  दरवाज़ा  खोलकर  सामान  अंदर  रखवाया  व  कर्मचारी  को  चाय - पानी  के  नाम  से  कुछ  पैसे  दिए.  वह ‘नमस्ते  बाबूजी’  कहकर  चला  गया.
मैं  बहुत  थक  चुका  था.  दरवाज़ा  अंदर  से  बंद  करके  मैं  सो  गया  और  फिर  चार  घंटे  के  बाद  मेरी  आँख  खुली.  स्नान  करके  मैं  तैयार  हो  गया.  तब  तक  दोपहर  का  एक  बज  चुका  था. मेरी नज़र  दरवाज़े  पर  पड़ी  जहां  फर्श  पर  एक  पर्चा  पड़ा  हुआ  था, शायद  वह  मेरे  लिए  मैसेज  था.  मैं उस  पर्चे  को  उठाकर  पढ़ने  लगा.  उसमें  लिखा  था  –  “सरदार बलवंत  सिंहजी  का  आपके  लिए  दो  बार  फोन  आया  था.  आप  कृपया  उनसे  संपर्क  करें.”
उस  पर्चे  को  लेकर  मैं  स्वागत  कक्ष  में  पहुंचा  और  वह  पर्चा  अधिकारी  को  दिखाया.  उन्होंने  सरदारजी  साहब  को  फ़ोन  लगाया.  फिर उन्होंने  रिसीवर  मुझे  सौंप  दिया  और  मैं  बात  करने  लगा.
मैंने  कहा  –  “जी  सर,  मैं  परमजीत  बोल  रहा  हूँ.”
उन्होंने  कहा  –  “ठीक से  पहुँच  गए न?”  मैंने  सकारात्मक  उत्तर  दिया.
आगे  उन्होंने  कहा  –  “अभी  मैं  ऑफिस  में  हूँ.  शाम  को  मेरे  घर  पहुंचना.  हम आगे  की  योजना  बनाएँगे.  ठीक  है?”
मैंने  कहा  –  “जी  ठीक  है  सर.”  उन्होंने  फ़ोन  रख  दिया.  पश्चात मैं  भोजन  कक्ष में  जाकर  भोजन करने  लगा.
बलवंत  सिंहजी  तीस - पैंतीस  वर्षों  से  महाराष्ट्र  प्रदेश  में  रहते  थे.  कभी  बम्बई,  कभी  नांदेड,  कभी  पूना,  परन्तु  इस  समय  वे  पूना  विद्यापीठ  के  शिक्षण  संस्थान  में  उच्च  अधिकारी  थे.  वे  पंजाब  में  हमारे  ही  गाँव  के  रहने  वाले  थे.  मेरे पिताजी  के  साथ  उनकी  गहरी  मित्रता  थी.  वे  बार - बार  मेरे  पिताजी  से  कहते  थे  –  “अपने  लड़के  को  ऑफिसर  बनाओ.  यदि  मेरी  कोई  सहायता  लगे  तो  अवश्य  बताना.”
उन्ही  के  कहने  पर  मैं  पूना  आया  था.  मैंने  पंजाब  यूनिवर्सिटी  से  बी.  ए. किया  था  और  अब  अंग्रेजी  विषय  में  एम.ए.  करना  चाहता  था. वे  मेरे  सामने  पूना  के  फर्गुसन  कॉलेज  की  बहुत  बार  प्रशंसा  कर  चुके  थे.  कहते थे  –  “एक  बार  तुम  फर्गुसन  कॉलेज  की  बिल्डिंग  व  परिसर  देख  लेना,  तुम्हारी  आँखें  खुल  जाएंगी.  तुम सोचते  ही  रह  जाओगे  कि  उच्च  शिक्षा  क्या  होती  है.”

भोजन  करते - करते  मैं  यही  सोच  रहा  था  कि  सबसे  पहले  फर्गुसन  कॉलेज  देखूं.  क्योंकि अब  मेरे  पास  समय  भी  था.  भोजन  करके  पूछताछ  करते  हुए  मैं  घूमते - फिरते  फर्गुसन  कॉलेज  पहुँच  गया  और  मैं  देखता  ही  रह  गया.  जिस  छात्र को  अध्ययन  की  जिज्ञासा  है  वह  छात्र  ऐसे  ही  शिक्षण  संस्थानों  को  देख  ले,  मन को  शान्ति  मिल  जाएगी.  मैं  सपने  देखने  लगा.  इसी  कॉलेज  में  मुझे  एम.ए.  के  लिए  एडमिशन  मिल  जाना  चाहिए.  पंजाब  की  तुलना  में  पूना - बम्बई  वास्तव  में  शिक्षा  के  माध्यम  से  बहुत  उच्चकोटि  के  शहर  थे.
अब  मेरा  मन  पूना  की  तरफ  खिंचता  चला  जा  रहा  था.  शाम  को  मैं  सरदारजी  साहब  के  घर  पहुँच  गया.  रात का  भोजन  भी  मैंने  उन्हीं  के  घर  किया.  उनका  भी  भरा - पूरा  परिवार  था.  पत्नी - बच्चे व  उनके  माता - पिता  भी  उन्हीं  के  साथ  रहते  थे.  मेरे  लिए  उन्होंने  कॉलेज  से  एडमिशन  फॉर्म  भी  खरीद  लिया  था.  मुझे  फॉर्म  देते  हुए  कहने  लगे  –  “इस  फॉर्म  को  भर  लेना,  साथ  में  पासपोर्ट  साइज  के  फोटोग्राफ  भी  लगने  हैं.  उस पर  हस्ताक्षर  मैं  कर  दूंगा.  पश्चात  मैं  गेस्ट  हाउस  चला  आया.”
दूसरे  दिन  ही  मेरा  कॉलेज  में  एडमिशन  हो  गया.  यह  सब  सरदारजी  साहब  के  प्रयासों  से  ही  संभव  हुआ  था.  क्योंकि  अंग्रेजी  में  एम.ए.  करने  के  लिए  छात्र -  छात्राओं  का  अभाव  रहता  था.  फिरअंग्रेजी  सुनने - सुनाने  में  तो  अच्छी  लगती  थी,  किन्तु  जब  व्यक्तिगत  रूप  से  अध्ययन  करने  की  बारी  आती  थी  तो  कई  विद्यार्थी  एम.ए.  फर्स्ट  ईयर  से  ही  छोड़कर  चले  जाते  थे.  एडमिशन  लेते  समय  सरदारजी  साहब  ने  मुझे  यही  हिदायत  दी  थी  कि  मन  लगाकर  पढ़ना.  बच्चों  के  समझ  में  नहीं  आता  है  तो  छोड़कर  चले  जाते  हैं.  मैंने उन्हें  आश्वासन  दिया  था  कि  मैं  मन  लगाकर  पढूंगा  तथा  विश्वास  के  साथ  एम.ए.  पास  करूँगा.
एडमिशन  की  समस्या  हल  हो  गयी  थी. अब  समस्या  थी  खर्चे  की  और  पूना  शहर  में  दो  वर्ष  रहने  की.  क्योंकि  जिस  गेस्ट  हाउस  में  मैं  ठहरा  था  वहां  पर  अधिक - से - अधिक  सात  दिन  तक  ही ठहर  सकते  थे.
मुझे  अपने  घर  से  पिताजी  जो  रकम  भेजेंगे  वह  रहने  के  लिए  पर्याप्त  नहीं  थी.  इसलिए मैं  सोच  रहा  था  कि  शाम  के  समय  ट्यूशन  पढ़ाने  का  काम  कर  लूंगा.  पर अब  ख़ुशी  इस  बात  की  थी  कि  एडमिशन  हो  गया  था  तथा  पंजाब  से  जो  सपना  पूरा  करने  के  लिए  मैं  पूना  आया  था  उसकी  नींव  डल  चुकी  थी.
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Published on May 03, 2016 22:47

April 30, 2016

मन की अवस्था तय करती है जीवन की दिशा

मनुष्य  अपना  जीवन  किस  अवस्था  में  बिता  रहा  है  यह  बहुत  महत्वपूर्ण  है.  जब  मन  में  ख़ुशी  या  आनंद  नहीं  है  तो  यह  समझना  चाहिए  कि  हम  खुश  नहीं  हैं,  हमारा  मन  शांत  नहीं  है.  आज  आप  देखते  होंगे  कि  पास  -  पड़ोस  में  या  राह  चलने  वाले  लोग  खुश  नहीं  हैं.  अधिकांश  लोगों  के  चेहरे  चिंताग्रस्त  दिखाई  देते  हैं.  इसका  कारण  क्या  है?  बस  वही  व्यक्ति  आनंद  से  जी  रहा  है  जिसके  मन  में  शान्ति  है,  चेहरे  पर  खुशी  है  व  शरीर  स्वस्थ  है.

sorrow, unhappiness

हम  मन  में  सोचते  हैं  कि  सामने  वाला  व्यक्ति  बहुत  अच्छा  दिख  रहा  है  या  दिख  रही  है.  हम  अपनी  तुलना  उनसे  करने  लग  जाते  हैं.  अभिनेता  –  अभिनेत्री,  साहित्यकार,  कवि,  राजनेता,  सम्पादक,  मैनेजिंग  डायरेक्टर,  सेना  के  अधिकारी,  सरकारी  कार्यालयों  में  वरिष्ठ  अधिकारी,  ऐसे  ऊंचे  -  ऊंचे  विभाग  या  पदभार  संभालने  वाले  लोगों  को  देखकर  पूरा  देश  भाग  रहा  है  कि  हम  भी  ऐसे  ही  बनें  और  वैसे  बनने  के  सपने  देखने  लगते  हैं.
पर  क्या  यह  संभव  है?  क्या  यह  मात्र  सपने  देखने  से  या  सोचने  भर  से  सम्भव  हो  सकता  है?  नहीं,  सम्भव  नहीं  है.  राजनेता  के  बेटे  अपने  माता  -  पिता  की  तरह  राजनेता  नहीं  बन  पाए . जद्दोजहद  करने  लगे.  अभिनेता  व  अभिनेत्रियों  के  बेटे  -  बेटियां  कलाकार  नहीं  बन   पाए  और  रास्ता  भटक  गए.  कारण  यह  है  कि  जो  भी  काम  करना  है  वह  दूसरे  को  देखकर  आसान  लगता  है.  परन्तु  कितना  संघर्ष  करना  है,  संकटों  का  सामना  कैसे  करना  है,  उन्हें  यह  पता  ही  नहीं  होता  है.
जीवन  की  रूपरेखावस्तुतः  जीवन  की  रूपरेखा  बालावस्था  से  ही  बनती  है  और  जो  कुछ  बनना  है  उसकी  जानकारी  आरम्भ  से  लेकर  अंत  तक  होनी चाहिए,  नहीं  तो  व्यक्ति  कभी  सफल  नहीं  हो  सकता  है.  जीवन  में  रूपरेखा  बनाना  उतना  ही  आवश्यक  है  जितना  वास्तविकता  समझना  ज़रूरी  है.
हम  कभी  -  कभी  किसी  व्यक्ति  का  जीवन  चरित्र  या  उस  व्यक्ति  की  कामयाबी  का  इतिहास  समाचार  पत्रों   में  पड़ते  हैं,  टीवी  में  देखते  हैं  और  उसका  अनुकरण  करने  लगते  हैं.  परन्तु  जो  लोग  वैसे  ही  करने  लगते  हैं  और  जब  सफलता  नहीं  मिलती  तो  उन्हें  वह  सब  छोड़   देना  पड़ता  है.
आज  का  दिन  बीते  हुए  कल  पर  निर्भर  करता  हैसोच  बहुत  बड़ी  होती  है.  अच्छी  सोच  लक्ष्य  तक  पहुंचाती  है.  आज  का  दिन  अच्छा  बीतना  चाहिए  ये  हर  कोई  सोचता  है.  यह  तब  ही  सोचा  जाएगा  जब  आपने  कल  का  दिन  अच्छे  कार्य  करके  बिताया  है.  कल  कपड़े  धो  लिए  थे   इसलिए आज  धुले  हुए  कपड़े  पहने  हैं.  कल  कुछ  कमाकर  लाये  थे  इसलिए  आज  अच्छा  भोजन  कर  रहे  हैं.  कल  बहुत  अध्ययन   किया  था   इसलिए  आज  परीक्षा  का  प्रश्न  पत्र  ठीक  से  हल  हो  जाएगा.  आज  का  दिन  बीते  हुए  कल  पर  निर्भर  करता  है.  इसलिए  आज  अच्छे  कार्य  करें  जिससे  आपका  आने  वाला  कल  सुन्दर  हो.  जीवन  की  प्राथमिकता आज  हर  व्यक्ति  की  चिंता  धन  कमाने  की  है.  धन  कमाना  मात्र  भोजन  और  मकान  के   लिए  आवश्यक  है.  यह  जीवन  की  प्राथमिकता  है.  भोजन  बिना  रह  नहीं  सकते,  किसी  छत  के  नीचे  रहकर  ही  अपनी  सुरक्षा  कर  सकते  हैं  और  जिसने  भोजन  व  छत  की  लड़ाई  जीत   ली  वह  संसार  में  सुखी  व्यक्ति  है.
आपने  देखा  होगा  कि  जब  चार  -  पांच  लोग  समूह  में  बैठकर  वार्तालाप  करते  हैं  तो  उसमें  बुराई  व  आलोचना  करने  का  विषय  पहले  निकलता  है.  आलोचना  और  बुराई  भी  उस  व्यक्ति  की  होती  है  जो  शिखर  पर  पहुंचा  हुआ  होता  है.  पहले  उसकी  चर्चा  हीरो  के  रूप  में  की  जाती  है,  फिर  उसकी  चर्चा  विलन  के  रूप  में  की  जाती  है.  जब  वह  हमारे  जीवन  से  जुड़ा  हुआ विषय  नहीं  है  तो  उस चर्चा  में  हम  प्रचारक  बनकर  रह  जाते  हैं.  हमें  तो  स्वयं  को  आगे  बढ़ते  हुए  देखना  है.  दूसरा  कितना  महान  है  यह  सोचने  की  आवश्यकता  नहीं  है.
जो  कवि  या  साहित्यकार  यह  मान  ले  कि  कालिदास  व  शेकस्पियर  की  हम  बराबरी  नहीं  कर  सकते  तो  ऐसा  सोचना  संकुचित  धारणा  का  प्रतीक  है.  परन्तु  जो  लेखक  या  साहित्यकार  कालिदास  या  शेकस्पियर  के  आगे  निकलने  की  प्रतिस्पर्धा  रखता  है  वह  निश्चित  ही  अपने  जीवन  में  सफलता   प्राप्त करता  है,  फिर  कालिदास  या  शेकस्पियर  को  स्पर्धक  न  मानकर  गुरु  का  दर्जा  देना  उचित  है.  
मन  की  भावना सबसे  पहले  अपने  मन  को  साफ़  रखने  की  आवश्यकता  है.  दूसरा  हमें  अच्छा  कहे  यह  सोचकर  चलना  चाहिए.  क्रोध  करना,  तिरस्कार  करना,  बुराई  करना,  धन  का  प्रलोभन  देना,  उधारी  का व्य वहार  करना,  यह  सब  व्यक्ति  को पीछे  ले  जाने  के  लक्षण  हैं.   जिस  व्यक्ति  ने  इतना  सोच  लिया  वह  कभी  पीछे  मुड़कर  नहीं  देखता. 
इतनी  समझ  ही  तो  वर्षों  के  अनुभव  के  बाद  आती  है.  हर  व्यक्ति  का  आधा  जीवन  आडम्बर  व  अहंकार  में  बीतता  है.  मन  से  अहंकार  आसानी  से  नहीं  निकलता.  इसके  लिए  त्याग  की  भावना  रखना  आवश्यक  है.  इसलिए  मन  की  भावना  की  तरफ  ध्यान  देना चाहिए.  मन  की  भावना  क्षण  भर  में  ही  पतन  की  ओर  ले  जाती  है  और  मनुष्य  अपना  पूरा  जीवन  बर्बाद  कर  लेता  है.  
read books

 इसलिए  मन  को  शांत  व  स्थिर  रखना  चाहिए.  इसके  लिए  कुछ  न  कुछ  करते  रहना  चाहिए.  समाचार  पत्र  एवं  ज्ञानवर्धक  पुस्तकें  पढ़ने,  व्यायाम  करना,  यह  सब  प्रतिदिन  होना  चाहिए.  इससे  मन  सुदृढ़  होता  है.  कुछ  लोग  यह  प्रतिदिन  करते  हैं  और  नियमित  रूप  से  वर्षों  तक  करते  हैं.   अपनी  सोच  हमेशा  सकारात्मक  रखते  हैं  और  जीवन  में  निरंतर  आगे  बढ़ते  रहते  हैं.

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Published on April 30, 2016 00:41

April 23, 2016

कठिन परिश्रम और धैर्य से मिलती है सफलता


सफलता  के  लिए  जो  विशेष  गुण  माने  जाते  हैं  उन  गुणों  का  होना  अत्यंत  आवश्यक  है.  जैसे  कि  प्रामाणिकता,  ज़िद्द,  कठिन  परिश्रम,  जिज्ञासा,  संयम  के  साथ - साथ  आत्मविश्वास.  जिस  व्यक्ति  में  यह  सब  गुण  हैं  वह  व्यक्ति  अपने  जीवन  को  सामान्य  से  महत्वपूर्ण बना  सकता  है.  क़ुछ  लोगों  में  ऐसे  व्यसन होते  हैं  जिनसे छुटकारा  नहीं  मिल  पाता.  जब  कष्ट  उठाने  की  बात  आती  है  तो  किसी  न  किसी कारण  टाल  मटोल  किया  जाता  है.  यह  असफलता  का  कारण  होता  है.  समय  का  सदुपयोग  नहीं  किया  तो  जीवन  में  केवल  असफलता  है.  इसलिए  आज  अधिकतर  लोग  असफल  हैं.  


बहुत  से  लोग  तृतीय  या  चतुर्थ श्रेणी  की  नौकरियाँ  करने  की  तरफ  ध्यान  नहीं  देते हैं.  योग्यता  होने के  पश्चात  भी  फॉर्म  नहीं  भरते हैं.  उम्र  निकलने  तक  ऊंचे  पद  की  आशा  में  धक्के  खाते  रहते  हैं.  अंततः  उनके  हाथों  में  शून्य  होता  है.  जब  छोटी  नौकरी  हाथ  में  होगी  तो  पदोन्नति  उसी  छोटे  पद  से  ऊपर  के  पद  पर  होनी  है.  फिर  छोटे  से  पद  से  ही  शुरुआत  क्यों  न  की  जाए?  
मनुष्य  का  जीवन  क्या है  यह  समझना  बहुत  कठिन  है.  व्यक्ति  का  जीवन  बालपन  से  ही बनता  है.  जीवन   में  जितना   भी  विकास  हुआ  है  उसकी  शुरुआत  बालपन  से  ही  होती  है.  जो  लोग  अपने  जीवन  में  कुछ  नहीं  कर  पाये  वे  अपने  जीवन   को  तो  भूल  जाते  हैं  पर  अपने  बच्चों  का  भविष्य  बनाने  में  लग  जाते  हैं. आपको  भारत  देश में  ऐसे  अनेक  उदाहरण मिलेंगे  कि  जो  व्यक्ति  उच्च  शिक्षा  प्राप्त  करके  उच्चाधिकारी  बन  गए  उनके  माता - पिता  साधारण  लोग  थे.  जैसे  हेड  क्लर्क,  हेड  मास्टर,  अध्यापक  यहां  तक  कि  चपरासी  आदि.  इस तरह  के  छोटे  कार्य  करके  उन्होंने  अपने  बच्चों  को  उच्च  शिक्षा  प्रदान  की  और  उनके  बच्चे योग्य  व  वरिष्ठ अधिकारी  बन  गए.   लड़कियों  को  उच्च शिक्षा  दी  और  उनकी  बेटियां  धनी  परिवार  में  ब्याही गयीं.
जब  तक  एक पीढ़ी  त्याग  की  भावना  नहीं  अपनाएगी  तब  तक  दूसरी  पीढ़ी  अपना  जीवन  स्तर  उच्च  दर्जे  का  नहीं  बना  सकती.  आज  हर  काम  में  स्पर्धा  है.  स्पर्धा  में  रूचि  रखना  जीवन  के  विकास  का  हिस्सा  बन  गया है.  समय  ऐसा  आ  गया   है  कि जनरल  नॉलेज,  कंप्यूटर ट्रेनिंग,  कम्पटीशन  यह  सब  जीवन  का  हिस्सा  बन  गए  है.  ग्रामीण  बच्चे  शहर  की  तरफ   यह  सब  प्राप्त  करने  के  लिए  भाग  रहे हैं.  भले  ही  उनकी  आर्थिक  परिस्थिति  गरीबी  की  हो  परन्तु  उनमें  उन्नति  का   रास्ता  हासिल  करने  का  जज़्बा  है.  इसके  अतिरिक्त  जीवन  में  कुछ  नहीं  है.  हर  कला  हर  ज्ञान समय  के  साथ - साथ  हस्तगत  की  जाती  है.  जिन्होंने  समय  व  सुअवसर  खो  दिए  वे  जीवन में  निराश  दिखाई  देते  हैं.


ऐसे  ही  लोग  जीवन  भर  कुछ  नहीं  कर  पाये  और  अंततः  पश्चाताप करते  रहे.  कोई  भी  काम  करते समय  उस  काम  के   प्रति  मन  में  शंका  नहीं  होनी  चाहिए और  उस  काम  के  लिए  अनुभव  चाहिए  तथा  दिखाने  के  लिए  प्रमाण भी  होने  चाहिए.
बच्चे  एक  ही  परीक्षा   बार - बार  दे  चुके  हैं,  फिर भी  पास  नहीं  हुए.  इसका  कारण  मात्र  पढ़ाई  न  करना है.  कुछ  परीक्षाएं  ऐसी  भी  हैं  जिनमें  पांच  या  दस  प्रतिशत  विद्यार्थी  ही  उत्तीर्ण  हो  पाते  हैं.  अपने  शैक्षणिक  जीवन  में  यदि  विद्यार्थियों  को  उत्तीर्ण  होना  है तो  उसके  लिए  एकाग्रता  से  तह  तक  अध्ययन  करना  चाहिए.  जब  तक  शिक्षा नहीं  पाओगे  तब  तक भटकते  रहोगे  या  दूसरों  पर  निर्भर  रहोगे.  फिर  जीवन  में  यश  प्राप्त  करना  है  तो  उसके  लिए  जीवन  में  संघर्ष  करना  पड़ता  है. 


जीवन  में  संकट  भी  बहुत  आते हैं.  संकटों  का  सामना  करना  पड़ता  है.  इसी  में जीवन  की  सफलता है.  अच्छा  व  स्वादिष्ट  भोजन  सबको  नहीं  मिलता.  सबकी  पत्नियां  सुन्दर  नहीं  हैं.  सबका  रहन - सहन  प्रशंसनीय  नहीं  है.  इसी  कारण  समाज  में  भेदभाव  व  वर्गीकरण  है.  अपने  करियर  को  कैसे  संवारना  है,  यह  स्वयं  सोचना  पड़ेगा  और  संयम  प्रमाणित  करके  दिखाना  पड़ेगा.  आलस्य  मनुष्य  का  शत्रु  है.  आलसी  व्यक्ति  के  सामने  यश  नहीं  अपयश  होता है.  अंततः  वह यह  कहकर  टाल  देता  है  की  मेरा  नसीब  ही  नहीं  है.  इसमें  नसीब  का  कोई  दोष  नहीं  है.  दोष  आलस्य  का है.  बुद्धिमान  व्यक्ति   का  चेहरा  बताता  है  कि  वह  कितना  बुद्धिमान  है.
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Published on April 23, 2016 09:16

April 14, 2016

महान गायिका शमशाद बेगम

शमशाद  बेगम  का  जन्म  14  अप्रैल, 1919  को  अमृतसर   में  हुआ  था.  आज  के  ज़माने  में  शमशाद  बेगम  को  बहुत  कम  लोग  जानते  हैं. पर जब  संगीत  और  सिनेमा  उभर  कर  आने  लगा  था  तब  शमशाद  बेगम  का  नाम  गायिकाओं  की  श्रेणी  में  सबसे  ऊपर  था.  शमशाद  बेगम  के  समय  में  जो  और  भी  चर्चित  गायक  -  गायिका  थे  उनके  नाम  थे  नूरजहां,  सुरैया,  के. एल. सहगल,  गीता दत्त,  उमा देवी,  आदि.  परन्तु  ये  सभी  फिल्मों  में  अभिनय  भी  करते  थे.  क्योंकि  तब  जिनमें  गीत  गाने  की  कला  थी  या जिनका  स्वर  अच्छा  था  ऐसे  कलाकारों  का  ही  फिल्मों  में  चयन  किया  जाता  था.  परन्तु  शमशाद  बेगम  ऐसी  पहली  गायिका  थीं  जिन्होंने  महिला  कलाकारों  के  लिए  पार्श्व  गायन  किया. 

legendary bollywood playback singer shamshad begum


उनकी  आवाज़  में  इतना  आकर्षण  था  कि  वह  जो  भी  गुनगुनाती  थीं  तो  सुनने  वाले  वहीं  रुक  जाते  थे.  जब  उनका  प्रथम  गीत  रिकॉर्ड  हुआ  तो  वह  पूरे  हिन्दुस्तान  में  प्रसिद्ध  हुईं.  उस  समय  देश  का  बंटवारा  नहीं  हुआ  था.  उन्हें  विवाह  तथा  अन्य  सांस्कृतिक  समारोहों  में  विशेष  रूप  से  गीत  गाने  के  लिए  बुलाया  जाता  था  और  शमशाद  बेगम  की  रूचि  भी  ऐसे  कार्यक्रमों  में  हुआ  करती  थी.  विवाह  समारोहों  में  वह  दुल्हन  को  देख  -  देख  कर  उसकी  प्रशंसा  अपने  गीतों  में  करती  थीं  तो  महिलाओं  के  बीच  में  तालियों  की  गड़गड़ाहट  होती  थी.  दूसरे  दिन  यह  चर्चा  होती  थी  कि  शादी  वाले  घर  में  शमशाद  बेगम  गीत  गाने  आई  थीं. 
संगीत  कला  तथा  गीत  गायन  के  माध्यम  से  शमशाद  बेगम  ने  अपनी  अद्भुत  छाप  छोड़ी  है.  ‘उड़न  खटोले  पर  उड़  जाऊं  पर  तेरे  हाथ  न  आऊं’  यह  गीत  बहुत  प्रसिद्ध  हुआ  था.  शमशाद  जी  ने   यह  गीत  ज़ोहराबाई  के  साथ  गाया था.  शमशाद  बेगम  को  संगीत  की  दुनिया  में  गुलाम  हैदर  साहब  लेकर  आए.  उसके  बाद  कुछ  ऐसे  भी  संगीतकार  थे  जो  बॉलीवुड  में  पैर  जमाने  का  प्रयास  कर  रहे  थे,  जैसे  सी  रामचन्द्र,  ओ  पी  नैयर,  मदन  मोहन,  सचिन  देव  बर्मन,  अनिल  बिस्वास  जैसे  संगीतकार  शमशाद  बेगम  की  आवाज़  को  अपने  संगीत  से  सजाना  चाहते  थे.
शमशाद  बेगम  के  सुप्रसिद्ध  गीतराज  कपूर  की  फिल्म  आग  1948  में  प्रदर्शित  हुई  थी.  उसमें  एक  गीत  था  –  ‘काहे  कोयल  शोर  मचाए  रे,  मोह  अपना  कोई  याद  आई  रे’. 1949  में  दुलारी  में  गाया  गीत  –  ‘चांदनी  आई  बनकर  प्यार  ओ  सजना’  व  पतंगा  फिल्म  का  गीत  –  ‘मेरे  पिया  गए  रंगून,  वहां  से  किया  है  टेलीफून’. बाबुल  1950  में  प्रदर्शित  हुई  थी.  उसमें  उन्होंने  विदाई  का  गीत  गाया  था   -  ‘छोड़  बाबुल  का  घर’.  1954  में  प्रदर्शित  फिल्म  आर  –  पार  में  गाया  गीत  -  ‘कभी  आर  कभी  पार  लगा  तीर  ए  नज़र.  1956  में  प्रदर्शित  हुई  फिल्म  C.I.D.  का  गीत  –  ‘ले  के  पहला  -  पहला  प्यार’  आज  भी  लोग  गुनगुनाते  हैं.   
1957  में  प्रदर्शित  फिल्म  मदर  इंडिया  में  नरगिस  के  लिए  शमशाद  बेगम  ने  होली  का  गीत  गाया  -   ‘होली  आई  रे  कन्हाई  रंग  छलके  सुना  दे  ज़रा  बांसुरी’.  इसी  तरह  नया  दौर  1957  में  प्रदर्शित  हुई  थी.  उसका  एक  गीत  ‘रेशमी  सलवार  कुर्ता  जाली  का,  रूप  सहा  नहीं  जाए  नखरे  वाली  का’.  यह  गीत  लड़के  -   लड़कियां  गुनगुनाते  हुए  नज़र  आते  थे.  मुगले  आज़म  1960  में  आई  थी.  उसमें  बेगम  साहिबा  ने  कव्वाली  गायी  थी  –  ‘तेरी  महफ़िल  में  हम  किस्मत  आज़मा  के  देखेंगे’.  1968  में  प्रदर्शित  हुई  फिल्म  किस्मत  में  गाया  गीत  ‘कजरा  मोहब्बत  वाला  अंखियों  में  ऐसा  डाला’  भी  बहुत  प्रसिद्ध  हुआ  था.
शमशाद  बेगम  के  गानों  में  चंचलता,  रुलाई,  अल्हड़पन,  मस्ती,  शोखी,  आदि सभी प्रकार के भाव दिखाई देते थे.  यह  भी  सुनने  में  आता  है  कि  लता  मंगेशकर  के  साथ  उनकी  बनती  नहीं  थी.  शमशाद  बेगम  ने  बिना  किसी  संगीत  विद्यालय  की  तालीम  लिए  ही  कईं  कर्णप्रिय  गीत  गाये.  ये  बात  आजकल  की  लड़कियों  के  लिए  प्रेरणा  का  स्त्रोत  है. 23  अप्रैल,  2013  को  उनका  मुंबई  में  निधन  हो  गया. परन्तु  उनके  गाए  गीतों  के  माध्यम  से  वह  हमेशा  लोगों  के  दिलों  में  रहेंगी.
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Published on April 14, 2016 00:31

April 12, 2016

बेटी का जन्म सौभाग्य की बात

समाजमें देखा गयाहै कि कुछपरिवार ऐसे भीहैं जो बेटियांहोने के कारणदुखी हैं. उनकेघर में लड़कानहीं है. घरमें बहू नहींआएगी जबकि बेटीबहू बनकर जाएगी. जिनकी दो - चारलड़कियां हैं वेअपने आप कोअभागा समझते हैंपर लड़कियों केप्रति ऐसी नकारात्मकसोच नहीं होनीचाहिए. इसे ईश्वरकी कृपा समझनाचाहिए.
daughter father bonding
बहुतसे लोग लड़कियोंको ही पुरस्कारसमझते हैं औरबहुत से लड़केकी अपेक्षा करतेहैं. परन्तु लड़कीहोना सौभाग्य कीबात है. जिसघर में लड़कीजन्म लेती हैवहां परिवार कीजवाबदारी बढ़ जातीहै. घर मेंकिसी वस्तु कीकमी न रहजाए यह सोचाजाता है. लड़कीके संस्कार अच्छेबने रहें येप्रयास किया जाताहै. लड़की केमन में अच्छीभावना बनी रहेये हर समयदेखा जाता है.
बेटियोंके विवाह कीचिंताबहुतसे लोग इसलिएपरेशान हैं किउनकी बेटियों काविवाह नहीं होपा रहा है. कोई रिश्ता नहींआ रहा हैऔर यदि आताहै तो पक्कानहीं हो पारहा है. इसमेंहताश होने कीआवश्यकता नहीं है. रिश्ते पक्के करने केलिए घमण्ड औरबड़प्पन दिखाने की आवश्यकतानहीं है. अपितुदूसरे को समझनेकी आवश्यकता है. परन्तु लड़की केविवाह की चिंताकरना स्वाभाविक है. लड़की का विवाहअच्छे घर मेंहो यह सभीचाहते हैं.
पहलीबात ये हैकि लड़की काविवाह करने केलिए धन कीआवश्यकता पड़ती है. इसलिए लड़की पैदाहोने पर उसकेअभिभावकों को आरम्भसे ही उसकेविवाह हेतु  धन कीबचत व निवेशकरना चाहिए. जिससेसमय पर धनकी समस्या नउत्पन्न हो. विवाहहेतु धन कीव्यवस्था होने परआधी समस्या हलहो जाती है.
दूसरीसमस्या है माता- पिता व परिवारके सदस्यों काआचरण व व्यवहार. सभ्य व संस्कारवाले परिवार केलड़के ढूंढने कीआवश्यकता नहीं होती, जबकि लड़के वालेस्वयं लड़की केलिए रिश्ता लेकरआते हैं. इसलिएपरिवार के सदस्यअच्छे स्वभाव केहों, अपनी कॉलोनीया मोहल्ले मेंउन्हें सम्मान से देखाजाता हो, ऐसेपरिवार की लड़कियांसमाज वाले ढूंढतेरहते हैं.
तीसरीबात आती हैलड़की की सुंदरताव उसका चरित्र. लड़के वाले यहअवश्य देखते हैंकि लड़की काचरित्र कैसा है. अपना चरित्र भलेही चार सौबीस का होपरन्तु लड़की उन्हेंचरित्रवान चाहिए और यहस्वाभाविक है. विवाहपक्का होने कीबात लड़की परही निर्भर करतीहै. 
daughter marriage

इसलिएलड़की में क्या- क्या गुण होनेचाहिए यह निम्नलिखितबातों पर निर्भरहै:गुणवानहोना अधिक महत्वपूर्णलड़कीसुन्दर हो यान हो, यहमहत्व का नहींहै. पर लड़कीको हमेशा साफ़सफाई से रहनाचाहिए. उसके प्रतिदिनके कपड़े भलेही कीमती नहों परन्तु अपनेशरीर को वस्त्रोंसे ढंक करचले. लड़की कीयोग्यता उसके गुणोंसे ही देखीजाती है, उसकीसुंदरता से नहीं. सुन्दर होना उसकासौभाग्य है, परन्तुउसका गुणवान होनाउसकी सुंदरता सेभी अधिक महत्वपूर्णहै. नौकरी करनेवाली लड़कियां कुसंगतिसे अपना बचावकरें व किसीके प्रलोभन मेंन आएं. 
संतुलितव पर्याप्त मात्रामें भोजनअधिकसे अधिक लड़कियोंमें व्रत रखनेकी आदत होतीहै और वेसारा दिन भूखीरहती हैं. व्रतसप्ताह भर मेंएक दिन हीअच्छा है. लड़कियोंद्वारा संतुलित व पर्याप्तमात्रा में भोजनन करने सेवह कमज़ोर लगनेलगतीं हैं. इसकेकारण उनकी सुंदरतानष्ट होने लगतीहै. लड़कियों कोसमय पर भरपेट भोजन करनाचाहिए. भोजन मेंआहार अच्छा रखें, साथ - साथ सलादव फल काभी सेवन करें. लड़की में अच्छेसंस्कार हों, सभ्यताहो और वहदूसरों का आदर- सम्मान करती हों, यही गुण उसेकामयाबी की तरफबढ़ा सकते हैं.
शारीरिकअक्षमता जोशारीरिक रूप सेअक्षम हैं ऐसीलड़कियां कभी संकोचन करें. जोहै वह ईश्वरकी देन है. छिपाने से छिपनहीं पाएगा. जबकिलोग सहानुभूति केसाथ स्वीकार करेंगे.
उच्चशिक्षा का महत्वलड़कियोंको उचित शिक्षामिले यह सबसेमहत्वपूर्ण है. लड़कियोंका उच्च शिक्षाप्राप्त करना आवश्यकहै. इससे लड़कीके माता - पिताव परिवार कीप्रतिष्ठा बढ़ती है. लड़कियां प्रतिदिन समाचार पत्रअवश्य पढ़ें. उसमेंदेश - विदेश काज्ञान होता है.
लड़कियां  जितना  अच्छा  बोलेंगी,  जितना  ढंग  से  रहेंगी,  समाज  में  उनका  सम्मान  होगा  और  इसका  सारा  दायित्व  माता - पिता  पर  निर्भर  करता  है.  माता - पिता  यह  अवश्य  ध्यान  रखें  कि  जिनके  घर  में लड़की  पैदा  हुई  है  वे  सबसे  अधिक  भाग्यशाली  हैं.
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Published on April 12, 2016 01:00

April 7, 2016

क्या ITC का पतन होने जा रहा है?

ITC company logo ITC यानी Indian Tobacco Company वर्तमान समय में विश्वकीसबसेबड़ीसिगरेट उत्पादनकरनेवालीकम्पनी है. ITC काइतिहाससौवर्षपुरानाहै. ITC कीस्थापनावर्ष1910 मेंहुईथी. तबइसकानामImperial Tobacco Company था. 1970 केआस - पासकम्पनी नेइतनीतरक्कीकरलीकीImperialनामहटाकरIndian Tobacco Company नाम रखदिया. वर्तमान मेंइसकम्पनी की सभी उद्योगों से होने वाली आय 7.5 बिलियनडॉलर्स (लगभग पचास हज़ार करोड़ रुपये)  है जिसमें से केवल सिगरेट उत्पादन से होने वाली आय 6 बिलियनडॉलर्स (लगभग चालीस हज़ार करोड़ रुपये) है. यानी 80% आय का स्त्रोत सिगरेट उत्पादन है. ऐसाबतायाजाताहैकि24 अगस्त, 1910 कोकम्पनी नेपहलाउत्पादनमार्केट मेंलांचकियाथाऔरमुख्यालयकलकत्ताकोचुनाजोआजकोलकाताकेनामसेजानाजाताहै. 
ITC ने सिगरेट उत्पादन रोका:यह सुनकरआश्चर्यहो रहा हैकि सरकार }kjk सिगरेटके डिब्बों के 85 प्रतिशत हिस्से पर चित्र चेतावनी अनिवार्य करने के कारणITC नेसिगरेट का उत्पादन रोक दिया है. परन्तु सिगरेट कम्पनियां मात्रशरीरकेलिएहानिकारकपदार्थउत्पादितकररहीहैं.इसलिएतम्बाकू या इससे जुड़े अन्य पदार्थों का सेवन करने वाले लोगों को जागरूक करने के लिए सरकार }kjk चित्र चेतावनी को अनिवार्य किया गया है.
परन्तु तम्बाकू के उत्पादन एवं सिगरेट व्यापार की दृष्टि से ITC कम्पनी ने एक शताब्दी से ऊपर कितने परिश्रम किये और पसीना बहाया इसका शायद ही सरकार को कोई सरोकार है. पर तम्बाकू को हानिकारक समझकर पिछले 30 वर्षोंसे जो हाहाकार मच रहा है वह इस सीमा तक पहुँचचुका है कि संभवतः जल्द ही ITC के सिगरेट उत्पादन इकाईयों के प्रमुख दरवाज़े पर ताला लग जाएगा.

ITC headquarter kolkata ITC's headquarter at Kolkata
देशकास्वास्थ्यमंत्रालय, विश्वस्वास्थ्यसंगठन(WHO) तथा स्वास्थ्य सुरक्षा से जुड़े अन्यसंस्थान ज़ोर- शोरसे  यह प्रचारकररहेहैंकितम्बाकूकासेवनकरनेसेलोगोंकीमौतेंहोरहीहैं. तम्बाकू कासेवनकरनाशरीरकेलिएहानिकारकहैयहसभीजानतेहैं. परन्तुएकसर्वेकेअनुसार30 प्रतिशतलोगहीतम्बाकू कासेवनकरतेहैं. अब सरकार हेल्थ वार्निंग का जो टाइटल चला रही है वह सिगरेट उत्पादन संस्थान स्थापित होने सेपहलेहीचलालेतीतोस्वास्थ्यमंत्रालयकोइसप्रकारकेकदमउठानेमेंजोखिमनहींआता. हमारे देश का स्वास्थ्य मंत्रालय एवं उनके मंत्रीगण स्वास्थ्य के प्रति कितने ईमानदार  हैंयहकिसीसेछुपानहींहै. किन्तुविश्वमेंचर्चितदेशकीसिगरेटकंपनियांउत्पादनबंदकररहीहैं, यह सुनकरदेशकेव्यापार-उद्योगकोबहुतबड़ाझटकालगाहै.
ITC की मार्केटिंग रणनीति:मैं लक्ष्मण राव ITC की मार्केटिंग रणनीति अपनाकर ही एक साहित्यकार के रूप में उभर कर आया हूँ. आजमुझे एक चायवाला साहित्यकार के नाम से जाना जाता है. परन्तु 30 वर्षपहले मुझे पानवाला उपन्यासकार के नाम से जाना जाताथा. क्योंकिजिस ITO केपास विष्णु दिगंबर मार्ग पर मैं आज चाय बेच रहा हूँ, उसी स्थान पर मैं पान – सिगरेट बेचता था.
ITC का सेल्समैन साइकिल पर आकर मुझे सिगरेट देताथा. एक दिन वह सेल्समैन कुछ जल्दी में दिखाई दिया तो मैंने इसका कारण पूछा. वह कहने लगा – “लक्ष्मण राव जल्दी करो, आज हमारे पीछे ITC कम्पनी के मैनेजिंग डायरेक्टर की कार खड़ी है और वह साहबयह देखना चाहते हैं कि हम सिगरेट की सप्लाई किस तरह से करते हैं.”
दूसरे दिन वही सेल्समैन मुझे बताने लगा कि मैनेजिंग डायरेक्टर साहब ने डिस्ट्रीब्यूटर्स् को यह आदेश दिया है कि साइकिल पर सिगरेट बेचने के लिए सेल्समैन बढ़ाओ. जितनी अधिक साइकिलें होंगी उतनी अधिक सिगरेट बिकेगी. क्योंकि साइकिल छोटी - छोटी गलियों में जा सकती है झुग्गी - बस्ती में जा सकती है और सिगरेट के चाहने वालेतक पहुँच सकती है. हम कम्पनी की तरफ से हर साइकिल वाले को 90 रुपयेप्रतिमाह अलग से देंगे. यह बात 1978 कीहै.
यह छोटा सा नुस्खा मैंने अपने दिमाग में बिठाकर रखा और जब मेरी पुस्तकें छपने लगीं और बिक नहीं रही थीं तब मैं किताबें लेकर साइकिल से ही दिल्ली के अलग - अलगक्षेत्रों में स्थित स्कूलों में जाने लगा और अपनी पुस्तकें स्कूल के पुस्तकालय में खरीदने हेतु देने लगा. मैं ITO से30-40 किलोमीटर दूर - दूर तक जाने लगा और आज मुझे देश में हिंदी भाषा का साहित्यकार कहा जाता है.
सिगरेट कंपनियां बंद हो रही हैं इसका मुझे दुःख नहीं है. मैंने जीवन में कभी सिगरेट व शराब का सेवन नहीं किया. परन्तु जिस मेहनत से ITC कम्पनी ने लाखोंलोगों को रोज़गार दिए, अरबों– खरबों रुपयोंका सरकार को कर (tax) दिया, देश में विदेशी सैलानियों के लिएपांच सितारा होटल बनवाये, उससंस्थान कोबचाने का कोई विकल्प सरकार के पास है क्या, यहशोध का विषय है.
कम्पनी के सिगरेट उत्पाद:1977 मेंजबमैंनेपान- सिगरेटबेचनाआरम्भकियाथा, उससमयकम्पनी केब्रांडजैसेविल्सनेवीकटकापैकेटएकरुपयेबीस पैसेमेंबेचताथा. गोल्डफ्लेक्सकिंगएकरूपयापचासपैसे, क्लासिक सात रुपये(बीससिगरेटकापैकेट), इंडियाकिंग दस रुपयेमें (बीस सिगरेटकापैकेट), कैपस्टनसिगरेटप्रतिपैकेटएकरुपयेकाथा, 90 पैसेया95 पैसेमेंमैं खरीदताथाऔरएकरुपयेमेंबिकताथा. ब्रिस्टलनामकेसिगरेटकीडिमांडबहुतथी, परन्तुइससिगरेटकेपैकेटकावितरणदिल्लीमेंनहींथा. बम्बईसेआनेवालेलोगब्रिस्टल सिगरेटमांगतेथेक्योंकिब्रिस्टलमुंबईमेंबहुतबिकतीथी. उस समय भी हर सिगरेट के पैकेट पर यह सूचना अवश्य लिखी जाती थी– ‘ धूम्रपानकरनास्वास्थ्यकेलिएहानिकारकहै ’. 
आश्चर्यकीबातयहथीकिहरवर्षमार्चमेंवार्षिकबजटमेंसिगरेटकेदामबढ़जातेथेऔरयहीसिगरेटदीपावलीकेबादब्लैकमेंबिकना शुरूहोजाताथा. सरकारीकार्यालयोंमेंकामकरनेवाले 30% वरीष्ठअधिकारीभीसिगरेटकास्टॉकघरमेंभरलेतेथे और मार्चमहीनेकेबादउसेबेचकरमुनाफाकमातेथे. दीपावलीसेमार्चमहीनेतकसिगरेटका जोब्लैकरेट होता था वही रेट बजटमें सिगरेट का मूल रेटनिश्चितकरदियाजाताथा.
ITC का विभिन्न व्यापारिक क्षेत्रों में विस्तार:ITC ने देश में सौ के करीब होटल्स बनवाये हैं और वो भी सिर्फ सिगरेट की कमाई पर तथा अलग – अलग क्षेत्रों में भी अपना व्यापार बढ़ाया है जैसे की इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, कृषि व्यवसाय, उपभोक्ता वस्तुएं, आदि .  

ITC maurya hotel new delhi ITC Maurya Hotel in New Delhi
यह सुनकर दुःख हो रहा है कि अब इसी कम्पनी को स्वास्थ्य सुरक्षा के नाम पर उजाड़ा जा रहा है. यदि कम्पनी का शत प्रतिशत उत्पादन उन देशों में निर्यात किया जाए जिन देशों को ITC के उत्पादों में रुचि है तो हज़ारों लोगों का रोज़गार सुरक्षित रखा जा सकता है. शायद सरकार ऐसा ही सोचेगी. क्योंकि व्यापार बढ़ाए जाते हैं, उजाड़े नहीं जाते हैं.
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Published on April 07, 2016 04:29

February 7, 2016

Dansh Available Online

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Published on February 07, 2016 00:17

February 6, 2016

Book trailer of latest novel 'Dansh'.

Watch the book trailer of #DanshByLaxmanRao
 
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Published on February 06, 2016 02:38