Laxman Rao's Blog, page 3
February 12, 2017
महान साहित्यकार विलियम शेक्सपियर

कुछ ही साहित्यकार ऐसे हैं जिनका नाम पूरे विश्व भर में जाना जाता है और उन्हीं में एक महान साहित्यकार हैं – विलियम शेक्सपियर। साहित्यिक पुस्तकों का अध्ययन करने वाले पाठकों को शेक्सपियर का नाम बिल्कुल पता है। शेक्सपियर का वह काल था जो भारतीय काव्य रचनाकार कालिदास का था। शेक्सपियर व कालिदास का समय पाँच सौ वर्ष पूर्व का माना जाता है। पाँच सौ वर्ष पहले के साहित्य को जीवित रखना भी एक विशेषता है। इसलिए शेक्सपियरके साहित्य को पूजा जाता है। शेक्सपियर के जीवन पर तथा उनकी रचनाओं पर अनेक शोध कार्य किए जा चुके हैं।
शेक्सपियर का जीवन शेक्सपियर की जीवनी में लिखा है कि उनका जन्म 26 अप्रैल, 1564 को हुआ तथा मृत्यु 23 अप्रैल, 1616 को हुई। उनकी रचनाएँ मुख्यतः नाट्यकला पर आधारित थीं तथा विलियम शेक्सपियर स्वयं एक थिएटर कलाकार थे।
सन 1582 में ऐनी हेथवे नाम की एक महिला के साथ विलियम शेक्सपियर का विवाह हुआ। ऐनी हेथवे शेक्सपियर से आयु में आठ वर्ष बड़ी थीं। उनका विवाह भी कई दिनों तक चर्चा का विषय बना रहा। शेक्सपियर एक्टर और प्ले राईटर थे और ऐनी हेथवे उन्हीं के साथ थिएटर में काम करती थीं।
शेक्सपियर का साहित्यशेक्सपियर ने चालीस के लगभग रचनाएँ लिखी हैं परंतु उनकी कोई पाँच-छ: रचनाएँ ही अधिक चर्चित हैं, जैसे - रोमियो जूलियट, मैकबेथ, ओथेलो, जूलियस सीज़र, हैमलेट आदि। 1593 व 1594 में उनकी अपनी कविताएं प्रकाशित हुईं। अपितु उनका सारा साहित्य नाट्यकला के लिए ही समर्पित था। विलियम शेक्सपियर एक नाटक कंपनी के सदस्य भी बने। वह इसलिए कि कंपनी शेक्सपियर के नाटकों का मंचन करके दर्शकों में पहचान बनाए।
थियेटर के क्षेत्र में शेक्सपियर का योगदान विलियम शेक्सपियर को जैसे-जैसे कला का अनुभव हुआ वैसे-वैसे उन्होंने कलात्मक साहित्य की उपज की। दर्शक उन्हें प्रिन्सिपल कॉमेडियन के नाम से जानने लगे। वर्ष 1603 में उन्हें प्रिन्सिपल ट्रेजेडियन के नाम से दर्शकों ने पहचाना अर्थात वे हास्य नाटकों के साथ-साथ संवेदनशील नाटकों की रचना एवं मंचन भी करने लगे। वे 1608 में उच्च दर्जे के नाटककार के रूप में दर्शकों के सामने उभरकर आए।
उन्होंने कलाकार होने के नाते थिएटर करते-करते बहुत धन कमाया और धन के साथ ख्याति भी प्राप्त की। ऐसा भी कहा जाता है कि उन्होंने अपनी कमाई का अधिकतर हिस्सा स्ट्रेटफोर्ड रियल एस्टेट के लिए खर्च किया जो एक उत्कृष्ट थिएटर कंपनी की स्थापना के लिए था। थिएटर की स्थापना तथा चालीस नाटक जो विश्व के लिए प्रेरणा बने, यह सब शेकस्पीयर की देन थे। उनके अपने साहित्य की रचना की कोई तिथि निश्चित नहीं थी, जो मन में आया उसे हाथोंहाथ तैयार किया तथा शाम को उसका मंचन भी कर लिया गया। यह स्थिति शेक्सपियर की थी।
विश्वभर के पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है शेक्सपियर का साहित्य विश्व के महान साहित्यकारों में शेक्सपियर का नाम सर्वश्रेष्ठ समझा जाता है। भारत के अनेक विश्वविद्यालयों के अंग्रेज़ी विषय के पाठ्यक्रम में शेक्सपियर के साहित्य को संलग्न किया गया है जिससे बच्चे शिक्षा के आधार पर प्रभावित हो सकें। ओथेलो, मैकबेथ, रोमियो जूलियट, हैमलेट, जूलियस सीज़र, इन रचनाओं को विद्यापीठों की कक्षाओं में पढ़ाया जाता है।
समाज के लिए प्रेरणादायी हैं शेक्सपियर की रचनाएँ शेक्सपियर के नाटकों का कथानक ज्वलंत समस्याओं पर आधारित है। पात्र ऐसे लगते हैं जैसे सजीव रूप में काम कर रहे हों। उनके साहित्य की भाषा भले ही कठिन हो परंतु विश्व भर के विद्वानों ने अपनी-अपनी मातृभाषा में शेक्सपियर के नाटकों का अनुवाद किया है। विश्वभर में सैकड़ों भाषाएँ हैं और उन सभी भाषाओं में शेक्सपियर के साहित्य का अनुवाद हुआ है।
शेक्सपियर ने अपनी पुस्तकों में मानवीय जीवन का विशेष मूल्यांकन प्रस्तुत किया है। जब भी जीवन में अहंकार का आगमन होता है तब व्यक्ति का पतन होने लगता है, यह परिभाषा शेक्सपियर ने अपने नाटकों द्वारा समाज के लिए प्रस्तुत की है।
Published on February 12, 2017 06:38
महान साहित्यकार विलियम शेकस्पीयर

कुछ ही साहित्यकार ऐसे हैं जिनका नाम पूरे विश्व भर में जाना जाता है और उन्हीं में एक महान साहित्यकार हैं – विलियम शेकस्पीयर। साहित्यिक पुस्तकों का अध्ययन करने वाले पाठकों को शेकस्पीयर का नाम बिल्कुल पता है। शेकस्पीयर का वह काल था जो भारतीय काव्य रचनाकार कालिदास का था। शेकस्पीयर व कालिदास का समय पाँच सौ वर्ष पूर्व का माना जाता है। पाँच सौ वर्ष पहले के साहित्य को जीवित रखना भी एक विशेषता है। इसलिए शेकस्पीयर के साहित्य को पूजा जाता है। शेकस्पीयर के जीवन पर तथा उनकी रचनाओं पर अनेक शोध कार्य किए जा चुके हैं।
शेकस्पीयर का जीवन शेकस्पीयर की जीवनी में लिखा है कि उनका जन्म 26 अप्रैल, 1564 को हुआ तथा मृत्यु 23 अप्रैल, 1616 को हुई। उनकी रचनाएँ मुख्यतः नाट्यकला पर आधारित थीं तथा विलियम शेकस्पीयर स्वयं एक थिएटर कलाकार थे।
सन 1582 में ऐनी हेथवे नाम की एक महिला के साथ विलियम शेकस्पीयर का विवाह हुआ। ऐनी हेथवे शेकस्पीयर से आयु में आठ वर्ष बड़ी थीं। उनका विवाह भी कई दिनों तक चर्चा का विषय बना रहा। शेकस्पीयर एक्टर और प्ले राईटर थे और ऐनी हेथवे उन्हीं के साथ थिएटर में काम करती थीं।
शेकस्पीयर का साहित्यशेकस्पीयर ने चालीस के लगभग रचनाएँ लिखी हैं परंतु उनकी कोई पाँच-छ: रचनाएँ ही अधिक चर्चित हैं, जैसे - रोमियो जूलियट, मैकबेथ, ओथेलो, जूलियस सीज़र, हैमलेट आदि। 1593 व 1594 में उनकी अपनी कविताएं प्रकाशित हुईं। अपितु उनका सारा साहित्य नाट्यकला के लिए ही समर्पित था। विलियम शेकस्पीयर एक नाटक कंपनी के सदस्य भी बने। वह इसलिए कि कंपनी शेकस्पीयर के नाटकों का मंचन करके दर्शकों में पहचान बनाए।
थिएटर के क्षेत्र में शेकस्पीयर का योगदान विलियम शेकस्पीयर को जैसे-जैसे कला का अनुभव हुआ वैसे-वैसे उन्होंने कलात्मक साहित्य की उपज की। दर्शक उन्हें प्रिन्सिपल कॉमेडियन के नाम से जानने लगे। वर्ष 1603 में उन्हें प्रिन्सिपल ट्रेजेडियन के नाम से दर्शकों ने पहचाना अर्थात वे हास्य नाटकों के साथ-साथ संवेदनशील नाटकों की रचना एवं मंचन भी करने लगे। वे 1608 में उच्च दर्जे के नाटककार के रूप में दर्शकों के सामने उभरकर आए।
उन्होंने कलाकार होने के नाते थिएटर करते-करते बहुत धन कमाया और धन के साथ ख्याति भी प्राप्त की। ऐसा भी कहा जाता है कि उन्होंने अपनी कमाई का अधिकतर हिस्सा स्ट्रेटफोर्ड रियल एस्टेट के लिए खर्च किया जो एक उत्कृष्ट थिएटर कंपनी की स्थापना के लिए था। थिएटर की स्थापना तथा चालीस नाटक जो विश्व के लिए प्रेरणा बने, यह सब शेकस्पीयर की देन थे। उनके अपने साहित्य की रचना की कोई तिथि निश्चित नहीं थी, जो मन में आया उसे हाथोंहाथ तैयार किया तथा शाम को उसका मंचन भी कर लिया गया। यह स्थिति शेकस्पीयर की थी।
विश्वभर के पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है शेकस्पीयर का साहित्य विश्व के महान साहित्यकारों में शेकस्पीयर का नाम सर्वश्रेष्ठ समझा जाता है। भारत के अनेक विश्वविद्यालयों के अंग्रेज़ी विषय के पाठ्यक्रम में शेकस्पीयर के साहित्य को संलग्न किया गया है जिससे बच्चे शिक्षा के आधार पर प्रभावित हो सकें। ओथेलो, मैकबेथ, रोमियो जूलियट, हैमलेट, जूलियस सीज़र, इन रचनाओं को विद्यापीठों की कक्षाओं में पढ़ाया जाता है।
समाज के लिए प्रेरणादायी हैं शेकस्पीयर की रचनाएँ शेकस्पीयर के नाटकों का कथानक ज्वलंत समस्याओं पर आधारित है। पात्र ऐसे लगते हैं जैसे सजीव रूप में काम कर रहे हों। उनके साहित्य की भाषा भले ही कठिन हो परंतु विश्व भर के विद्वानों ने अपनी-अपनी मातृभाषा में शेकस्पीयर के नाटकों का अनुवाद किया है। विश्वभर में सैकड़ों भाषाएँ हैं और उन सभी भाषाओं में शेकस्पीयर के साहित्य का अनुवाद हुआ है।
शेकस्पीयर ने अपनी पुस्तकों में मानवीय जीवन का विशेष मूल्यांकन प्रस्तुत किया है। जब भी जीवन में अहंकार का आगमन होता है तब व्यक्ति का पतन होने लगता है, यह परिभाषा शेकस्पीयर ने अपने नाटकों द्वारा समाज के लिए प्रस्तुत की है।
Published on February 12, 2017 06:38
November 14, 2016
नोटबंदी - सकारात्मक पहल परन्तु विपरीत परिस्थितियां
8 नवम्बर, 2016 को 500 व 1000 रुपये के नोट बंद करने की घोषणा के बाद देश भर में जिस गम्भीर स्थिति का निर्माण हुआ है उस पर वित्त मंत्रालय क्या गम्भीरता से सोच रहा है? काला धन नियंत्रित या समाप्त करने के लिए सरकार ने जो कदम उठाए हैं वह बहुत सुन्दर हैं, परन्तु देश की सारी जनता जिस संकट को झेल रही है वह देखा नहीं जा रहा है.
काला धन रखने वालों के विरुद्ध सकारात्मक पहल , परन्तु … देश के लिए श्री नरेंद्र मोदी उचित कदम उठा रहे हैं, परन्तु गरीब से लेकर धनी लोगों तक सभी को संकट का सामना करना पड़ रहा है. परन्तु नोट बदलने की अवस्था में जो आर्थिक संकट का निर्माण हुआ है, इसका ध्यान रखते हुए पूर्व से ही पूरी तैयारी करनी चाहिए थी.
छायाचित्र सौजन्य Hindustan Times
नोट बदलने की कार्यप्रणाली आरम्भ करने से लोगों के जीवन में उथल - पुथल मच गयी है. बाज़ार में अव्यवस्था का वातावरण है. जो लोग लाइन में लगे हैं वही लोग प्रतिदिन लाइन में खड़े दिखाई दे रहे हैं तथा जो बैंक खातेधारक हैं वे भीड़ के कारण जा नहीं पा रहे हैं. कुछ लोगों को पुलिस की लाठियां खानी पड़ीं तथा कुछ लोगों को जान भी गंवानी पड़ी.
अव्यवस्था रोकने हेतु निम्नलिखित प्रयास किये जाने चाहिए: 1. बैंक में प्रतिदिन होने वाली भीड़ पर नियंत्रण करने हेतु एक दिन केवल जिन लोगों के खाते हैं वे अपने ही बैंक ब्रांच में जाकर रुपये जमा करें और निकालें तथा दूसरे दिन केवल नोट एक्सचेंज हेतु निर्धारित किया जाए.
2. अधिक मात्रा में सौ व पांच सौ रुपये के नोट तुरन्त बहाल किए जाएं, जिससे गरीबों का आर्थिक लेन - देन सुदृढ़ हो सके.
3. देशभर के सभी सरकारी कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारी पुलिस बल के साथ निगरानी के लिए तैनात किए जाएं.
4. जो लोग दिन में 3 - 4 बार बैंक में आकर लेन - देन कर रहे हैं, उन्हें रोका जाए.
5. जिन लोगों के खाते नहीं हैं वे किसी भी बैंक में जाकर भीड़ जुटा रहे हैं. इससे स्थिति और भी खराब हो चुकी है. इस पर नियंत्रण किया जाए.
6. जिन लोगों के पास नोटों की गड्डियां हैं वे लोग अपने कर्मचारियों व नौकरों को प्रलोभन देकर लाइन में लगवा रहे हैं, इसे रोकने का प्रयास किया जाए.
7. वरिष्ठ नागरिक व महिलाएं आवश्यकता पड़ने पर ही पैसे निकालने जाएं. अन्यथा परिवार के सदस्यों को ही इस कार्य में लगायें.
8. सरकार जो भी काम करना चाहती है उसके लिए विशेषज्ञों या समितियों को मान्यता देकर काम करें.
भारतीय अर्थव्यवस्था भारत देश का यह दुर्भाग्य रहा है कि हमारे देश के वित्त मंत्री वे ही बनाए जाते हैं जिनकी अर्थशास्त्र की पृष्ठभूमि नहीं रही है या जो हार्वर्ड या कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़कर आए हैं. कांग्रेस के राज में भी ऐसा ही रहा. वित्त मंत्री तब तक बड़ी - बड़ी बातें न करें जब तक बैंकों में लेन - देन की आर्थिक परिस्थिति सुधर नहीं जाती.
आर्थिक दृष्टि से यह समझना आवश्यक है कि हमारे देश की आर्थिक व्यवस्था एक रुपये से आरम्भ होती है और सौ रुपये पर समाप्त हो जाती है. अर्थात देश के 80% लोग एक रुपये से लेकर सौ रुपये तक अपना गुज़ारा कर लेते हैं.
छायाचित्र सौजन्य indianceo.in
अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए तथा काले धन पर नियंत्रण करने के लिए रेलवे की तरह ही रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया को भी अपनी टास्क फ़ोर्स बनानी चाहिए, यह बात मैं अपनी पुस्तक में लिख चुका हूं और अब यही यथार्थ सामने आ रहा है.
सबका समर्थन है आवश्यक जो लोग विपक्ष या प्रतिपक्ष के हैं वे लोग राजनीति करने की बजाय फिलहाल सरकार का साथ देकर परिस्थिति को सम्भालने का प्रयास करें.
और कड़क होनी चाहिए चाय
यह कहा जा सकता है कि नोटबंदी का निर्णय काला धन रखने वालों के विरूद्ध एक सकारात्मक पहल है, परन्तु इससे उपजी विपरीत परिस्थितियों से निपटने के लिए सरकार द्वारा तुरन्त ठोंस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है. दूसरे शब्दों में श्री मोदी जी चाय थोड़ी और कड़क बनाएं जिससे गरीबों व मध्यम वर्ग के नागरिकों को सुविधा हो सके.
आप भी अपने विचार कमेंट्स सेक्शन में साझा करें !

काला धन रखने वालों के विरुद्ध सकारात्मक पहल , परन्तु … देश के लिए श्री नरेंद्र मोदी उचित कदम उठा रहे हैं, परन्तु गरीब से लेकर धनी लोगों तक सभी को संकट का सामना करना पड़ रहा है. परन्तु नोट बदलने की अवस्था में जो आर्थिक संकट का निर्माण हुआ है, इसका ध्यान रखते हुए पूर्व से ही पूरी तैयारी करनी चाहिए थी.

नोट बदलने की कार्यप्रणाली आरम्भ करने से लोगों के जीवन में उथल - पुथल मच गयी है. बाज़ार में अव्यवस्था का वातावरण है. जो लोग लाइन में लगे हैं वही लोग प्रतिदिन लाइन में खड़े दिखाई दे रहे हैं तथा जो बैंक खातेधारक हैं वे भीड़ के कारण जा नहीं पा रहे हैं. कुछ लोगों को पुलिस की लाठियां खानी पड़ीं तथा कुछ लोगों को जान भी गंवानी पड़ी.
अव्यवस्था रोकने हेतु निम्नलिखित प्रयास किये जाने चाहिए: 1. बैंक में प्रतिदिन होने वाली भीड़ पर नियंत्रण करने हेतु एक दिन केवल जिन लोगों के खाते हैं वे अपने ही बैंक ब्रांच में जाकर रुपये जमा करें और निकालें तथा दूसरे दिन केवल नोट एक्सचेंज हेतु निर्धारित किया जाए.
2. अधिक मात्रा में सौ व पांच सौ रुपये के नोट तुरन्त बहाल किए जाएं, जिससे गरीबों का आर्थिक लेन - देन सुदृढ़ हो सके.
3. देशभर के सभी सरकारी कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारी पुलिस बल के साथ निगरानी के लिए तैनात किए जाएं.
4. जो लोग दिन में 3 - 4 बार बैंक में आकर लेन - देन कर रहे हैं, उन्हें रोका जाए.
5. जिन लोगों के खाते नहीं हैं वे किसी भी बैंक में जाकर भीड़ जुटा रहे हैं. इससे स्थिति और भी खराब हो चुकी है. इस पर नियंत्रण किया जाए.
6. जिन लोगों के पास नोटों की गड्डियां हैं वे लोग अपने कर्मचारियों व नौकरों को प्रलोभन देकर लाइन में लगवा रहे हैं, इसे रोकने का प्रयास किया जाए.
7. वरिष्ठ नागरिक व महिलाएं आवश्यकता पड़ने पर ही पैसे निकालने जाएं. अन्यथा परिवार के सदस्यों को ही इस कार्य में लगायें.
8. सरकार जो भी काम करना चाहती है उसके लिए विशेषज्ञों या समितियों को मान्यता देकर काम करें.
भारतीय अर्थव्यवस्था भारत देश का यह दुर्भाग्य रहा है कि हमारे देश के वित्त मंत्री वे ही बनाए जाते हैं जिनकी अर्थशास्त्र की पृष्ठभूमि नहीं रही है या जो हार्वर्ड या कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पढ़कर आए हैं. कांग्रेस के राज में भी ऐसा ही रहा. वित्त मंत्री तब तक बड़ी - बड़ी बातें न करें जब तक बैंकों में लेन - देन की आर्थिक परिस्थिति सुधर नहीं जाती.
आर्थिक दृष्टि से यह समझना आवश्यक है कि हमारे देश की आर्थिक व्यवस्था एक रुपये से आरम्भ होती है और सौ रुपये पर समाप्त हो जाती है. अर्थात देश के 80% लोग एक रुपये से लेकर सौ रुपये तक अपना गुज़ारा कर लेते हैं.

अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए तथा काले धन पर नियंत्रण करने के लिए रेलवे की तरह ही रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया को भी अपनी टास्क फ़ोर्स बनानी चाहिए, यह बात मैं अपनी पुस्तक में लिख चुका हूं और अब यही यथार्थ सामने आ रहा है.
सबका समर्थन है आवश्यक जो लोग विपक्ष या प्रतिपक्ष के हैं वे लोग राजनीति करने की बजाय फिलहाल सरकार का साथ देकर परिस्थिति को सम्भालने का प्रयास करें.
और कड़क होनी चाहिए चाय
यह कहा जा सकता है कि नोटबंदी का निर्णय काला धन रखने वालों के विरूद्ध एक सकारात्मक पहल है, परन्तु इससे उपजी विपरीत परिस्थितियों से निपटने के लिए सरकार द्वारा तुरन्त ठोंस कदम उठाए जाने की आवश्यकता है. दूसरे शब्दों में श्री मोदी जी चाय थोड़ी और कड़क बनाएं जिससे गरीबों व मध्यम वर्ग के नागरिकों को सुविधा हो सके.
आप भी अपने विचार कमेंट्स सेक्शन में साझा करें !
Published on November 14, 2016 05:32
October 15, 2016
क्या भारत और पाकिस्तान में युद्ध होने की सम्भावना है
पिछले एक महीने से दोनों देशों के नागरिकों में इस विषय पर तनाव बना हुआ है कि क्या भारत और पाकिस्तान आपस में युद्ध करेंगे. इस प्रश्न का उत्तर केवल दोनों देशों की सेना के उच्चाधिकारियों के पास ही है. बाकी जो बहस हो रही है, समाचार पत्र छप रहे हैं या समाचार चैनल पर चर्चाएं हो रही हैं, वह सब एक साधारण समाचार या वार्ता है. क्योंकि दो ज्ञानी आपस में लड़ने की कभी सोचते नहीं, वे एक दूसरे की समस्या पर विचार करते हैं.

पिछले कईं दिनों से देश - विदेश के समाचार पत्र व चैनल्स यही सम्भावना दर्शा रहे हैं कि पाकिस्तान व भारत के बीच युद्ध होगा. सेना के जो पूर्व अधिकारी हैं वे अपना - अपना अनुभव बताते हैं. अनुभव होना बहुत अच्छी बात है, परन्तु अनुभव के साथ - साथ वर्तमान परिस्थितियों को समझना भी उतना ही आवश्यक है. भारत और पाकिस्तान की सीमा पर क्या हो रहा है, यह केवल दोनों देशों के सैनिक ही जानते हैं. वे चिंतित भी हैं तथा परिस्थिति को सम्भालने में सक्षम भी हैं .
कश्मीर की समस्या केवल आज की नहीं हैं. कश्मीरियों की मनोस्थिति कश्मीरी ही समझते हैं. उनकी समस्या न तो पाकिस्तान समझ रहा है और न ही भारत. इस समय तो वे केवल भारत और पाकिस्तान की खेल की गुड़िया बने हुए हैं. अरबों रुपयों का राजस्व दोनों ही देश बर्बाद कर रहे हैं जबकि भारत कश्मीर राज्य से होने वाली पर्यटन आमदनी भी खो बैठा है.
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के सम्बन्ध पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जनाब नवाज़ शरीफ़ के साथ इतने मधुर थे कि श्री नरेंद्र मोदी शरीफ साहब की माताजी के पैर छूने पर अपनी पाकिस्तान यात्रा सफल मानते थे. पर अब उस मधुरता में यह ज़हर कहां से आया यह श्री नरेंद्र मोदी जी या जनाब नवाज़ शरीफ साहब ही जानते हैं.
भारत की सेना के सर्जिकल अटैक करने से चालीस से अधिक आतंकवादी मारे गए. इसके पश्चात पाकिस्तान में अक्टूबर महीने में जो सार्क सम्मेलन होना था वह रद्द हो गया. वह रद्द इसलिये हो गया क्योंकि कुछ देशों ने भाग लेने से मना कर दिया. इस कारण भारत की समाचार एजेंसियों ने यह समझा कि उस देश के प्रतिनिधि भारत का समर्थन कर रहे हैं. परन्तु तनावपूर्ण स्तिथि में ऐसे सम्मलेन करना उचित नहीं है, यह मानकर सम्बन्धित प्रतिनिधियों ने उसमें भाग लेना अनिवार्य नहीं समझा.
वस्तुतः सेना के किसी भी कार्य को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता और न ही उसे जीत या हार का परिणाम घोषित किया जा सकता है. सेना जो करती है उनका पहला उद्देश्य आत्मरक्षा या जान माल की सुरक्षा करना होता है. सेना का कोई भी कार्य गुप्त रखा जाता है. उसे राजनीति के माध्यम से प्रचार करने से सेना को जान - माल का नुकसान उठाना पढ़ सकता है तथा द्वेष व शत्रुत्व को बढ़ावा मिलता है. अब सेना को लेकर देश के सभी राजनीतिक दल के नेता इतने उतावले हो गए हैं कि वे क्या बोल रहे हैं और उनके बोलने से सेना की मनोवृत्ति पर क्या असर पड़ रहा होगा इसकी चिंता नहीं कर रहे हैं.
Published on October 15, 2016 21:50
October 4, 2016
उपन्यास 'दंश' की पुस्तक समीक्षा
श्री मुकेश दुबे जी द्वारा उपन्यास 'दंश' पर एक पाठकीय टिप्पणी


1947 में पार्टीशन का दंश सहते एक परिवार का महाराष्ट्र पहुँच कर हालात का सामना करना। पंजाब के गबरू नौजवान परमजीत का पढ़ने की चाह में घर से दूर जाना फिर प्रारब्ध की चालों के साथ परिस्थितियों से समझौते करते जाना भी ऐसे दंश हैं जिनकी पीड़ा को समझना मतलब पुस्तक के हर शब्द को ध्यान से पढ़ना।
लता मैडम का परिवार के सहारे के लिए अविवाहित रहना और छोटी बहन नन्दिनी का प्रेम में टूटकर शारीरिक व मानसिक संताप से गुजरना, सूरज का अपनी प्रेयसी से विवाह न हो पाना क्योंकि एक मंदिर के पुजारी को बेटी की खुशी उसके प्रेम में नहीं स्वजाति के वर में दिखलाई दे रही है। मुख्य कथानक के साथ इंतहाई खूबसूरती से राव साहब ने घटनाओं को जोड़ दिया है कि संगम पर कोई धार अलग नहीं दिखती। कहीं कोई रुकावट नहीं बल्कि कथा ऐसे विस्तार के साथ बहती जाती है जहाँ संकीर्णता कहीं तटबंध नहीं लाँघती और निर्झरणी सी प्रवाहित रहती है।
एक पात्र और जिसके जिक्र के बिना बात पूरी नहीं होती। प्रो. सरदार बलवंत सिंह जी। कमाल का व्यक्तित्व चुना गया है। एक शिक्षक जो पंजाब से आकर पुणे में शिक्षा विभाग में ऊँचे पद पर है। अपने शिष्य परमजीत (जो कथा का मुख्य पात्र है) को आगे पढ़ने के लिए अपनी पहुँच व सम्बंधों की दम पर फर्ग्यूसन महाविद्यालय, पुणे में न सिर्फ प्रवेश दिलवाते हैं बल्कि उसके एक अजनबी शहर में रहने खाने की व्यवस्था में भी पूरा सहयोग करते हैं।
एक शिक्षक की सहृदयता आत्मविभोर कर गई और शायद वजह बन गई आज शिक्षक दिवस पर एक गुरु को नमन करते हुए अपनी भावनाओं का यह तुच्छ गुलदस्ता बना भेंट करने की। मुझे लक्ष्मण राव जी में सदैव एक गुरु ही दिखा है। मिलनसार व्यक्तित्व जो हैरान कर जाता है। कहाँ आई. टी. ओ. पर वाहनों की रेलमपेल में कोलाहल मेंडूबा एक फुटपाथ और कहाँ साहित्य साधना में लीन ऋषि तुल्य यह लिटिल मास्टर। चाय के पतीले से उठती भाप में बन बिगड़ रही आकृतियों में पात्र तराशता या आगंतुकों से हुई बात में संवाद गढ़ता विलक्षण शिल्पी।
जीवन के कठोर पथ पर चलते-चलते छाले फूटकर वेदना को सहेजते रहे और श्रम को ईंधन बना झोंकता गया समय की भट्टी में यह कुशल चितेरा। अशुद्धियाँ निकलती गईं और 24 कैरट के खालिस सोने सा दमकता है लक्ष्मण राव जी का लेखन।
अनुभवों की स्पष्ट झलक है लेखनी में। न सपने बड़े और न उनको साकार करने के लिए कोई फरहाद पहाड़ काटता दिखता है। आसपास के परिवेश से उठाये पात्र जिनके आचरण में कहीं अतिशयोक्ति नहीं परिलक्षित होती। दंश प्रत्येक मानव की नियति में शामिल हैं जो मध्यमवर्गीय है और कुछ पाना चाहता है।
परमजीत का लता के प्रति आकर्षण परन्तु आर्थिक स्थिति जैसे खलपात्र की भूमिका में। लता का अपनी छोटी बहन के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित होना और नन्दिनी को खुश रखने का जिम्मा परमजीत को सौंपना। नन्दिनी पहले ही नीलेश के प्रेम में डूबकर प्यार की हर संभव हद पार कर चुकी है और जब नीलेश उसकी ज़िंदगी से दूर हुआ तो उसके मन मस्तिष्क ने शरीर का साथ छोड़ दिया और अपाहिज सी नन्दिनी घर की चार दीवारी में कैद होकर रह गई। बहुत ही रोचक व संवेदनशील प्रकरण है इस कथा का।
परमजीत के व्यक्तित्व का आकर्षण और उसका चरित्र लता को उद्वेलित करता गया और एक प्रेमकथा साँस लेने लगी।
आरम्भ में जितने भी दंश कसक रहे थे, चुभ रहे थे वही एक सुखांत में कैसे बदल गये? यदि जानना चाहते हैं तो अवश्य पढ़कर देखिये यह नायाब और बेमिसाल उपन्यास 'दंश'।
आदरणीय लक्ष्मण राव जी को सार्थक लेखन के लिए हृदयतल से बधाई एवम् असीमित शुभकामनाएँ संप्रेषित करते हुए अपनी बात को विराम देना चाहूँगा। शुभम्
Published on October 04, 2016 07:58
July 9, 2016
बेटी का जन्म सौभाग्य की बात
समाज में देखा गया है कि कुछ परिवार ऐसे भी हैं जो बेटियां होने के कारण दुखी हैं. उनके घर में लड़का नहीं है. घर में बहू नहीं आएगी जबकि बेटी बहू बनकर जाएगी. जिनकी दो - चार लड़कियां हैं वे अपने आप को अभागा समझते हैं पर लड़कियों के प्रति ऐसी नकारात्मक सोच नहीं होनी चाहिए. इसे ईश्वर की कृपा समझना चाहिए.

बहुत से लोग लड़कियों को ही पुरस्कार समझते हैं और बहुत से लड़के की अपेक्षा करते हैं. परन्तु लड़की होना सौभाग्य की बात है. जिस घर में लड़की जन्म लेती है वहां परिवार की जवाबदारी बढ़ जाती है. घर में किसी वस्तु की कमी न रह जाए यह सोचा जाता है. लड़की के संस्कार अच्छे बने रहें ये प्रयास किया जाता है. लड़की के मन में अच्छी भावना बनी रहे ये हर समय देखा जाता है.
बेटियों के विवाह की चिंताबहुत से लोग इसलिए परेशान हैं कि उनकी बेटियों का विवाह नहीं हो पा रहा है. कोई रिश्ता नहीं आ रहा है और यदि आता है तो पक्का नहीं हो पा रहा है. इसमें हताश होने की आवश्यकता नहीं है. रिश्ते पक्के करने के लिए घमण्ड और बड़प्पन दिखाने की आवश्यकता नहीं है. अपितु दूसरे को समझने की आवश्यकता है. परन्तु लड़की के विवाह की चिंता करना स्वाभाविक है. लड़की का विवाह अच्छे घर में हो यह सभी चाहते हैं.
पहली बात ये है कि लड़की का विवाह करने के लिए धन की आवश्यकता पड़ती है. इसलिए लड़की पैदा होने पर उसके अभिभावकों को आरम्भ से ही उसके विवाह हेतु धन की बचत व निवेश करना चाहिए. जिससे समय पर धन की समस्या न उत्पन्न हो. विवाह हेतु धन की व्यवस्था होने पर आधी समस्या हल हो जाती है.दूसरी समस्या है माता - पिता व परिवार के सदस्यों का आचरण व व्यवहार. सभ्य व संस्कार वाले परिवार के लड़के ढूंढने की आवश्यकता नहीं होती, जबकि लड़के वाले स्वयं लड़की के लिए रिश्ता लेकर आते हैं. इसलिए परिवार के सदस्य अच्छे स्वभाव के हों, अपनी कॉलोनी या मोहल्ले में उन्हें सम्मान से देखा जाता हो, ऐसे परिवार की लड़कियां समाज वाले ढूंढते रहते हैं.
तीसरी बात आती है लड़की की सुंदरता व उसका चरित्र. लड़के वाले यह अवश्य देखते हैं कि लड़की का चरित्र कैसा है. अपना चरित्र भले ही चार सौ बीस का हो परन्तु लड़की उन्हें चरित्रवान चाहिए और यह स्वाभाविक है. विवाह पक्का होने की बात लड़की पर ही निर्भर करती है.

इसलिए लड़की में क्या - क्या गुण होने चाहिए यह निम्नलिखित बातों पर निर्भर है: गुणवान होना अधिक महत्वपूर्णलड़की सुन्दर हो या न हो, यह महत्व का नहीं है. पर लड़की को हमेशा साफ़ - सफाई से रहना चाहिए. उसके प्रतिदिन के कपड़े भले ही कीमती न हों परन्तु अपने शरीर को वस्त्रों से ढंक कर चले. लड़की की योग्यता उसके गुणों से ही देखी जाती है, उसकी सुंदरता से नहीं. सुन्दर होना उसका सौभाग्य है, परन्तु उसका गुणवान होना उसकी सुंदरता से भी अधिक महत्वपूर्ण है. नौकरी करने वाली लड़कियां कुसंगति से अपना बचाव करें व किसी के प्रलोभन में न आएं.
संतुलित व पर्याप्त मात्रा में भोजनअधिक से अधिक लड़कियों में व्रत रखने की आदत होती है और वे सारा दिन भूखी रहती हैं. व्रत सप्ताह भर में एक दिन ही अच्छा है. लड़कियों द्वारा संतुलित व पर्याप्त मात्रा में भोजन न करने से वह कमज़ोर लगने लगतीं हैं. इसके कारण उनकी सुंदरता नष्ट होने लगती है. लड़कियों को समय पर भर पेट भोजन करना चाहिए. भोजन में आहार अच्छा रखें, साथ - साथ सलाद व फल का भी सेवन करें. लड़की में अच्छे संस्कार हों, सभ्यता हो और वह दूसरों का आदर - सम्मान करती हों, यही गुण उसे कामयाबी की तरफ बढ़ा सकते हैं.
शारीरिक अक्षमता जो शारीरिक रूप से अक्षम हैं ऐसी लड़कियां कभी संकोच न करें. जो है वह ईश्वर की देन है. छिपाने से छिप नहीं पाएगा. जबकि लोग सहानुभूति के साथ स्वीकार करेंगे.
उच्च शिक्षा का महत्व लड़कियों को उचित शिक्षा मिले यह सबसे महत्वपूर्ण है. लड़कियों का उच्च शिक्षा प्राप्त करना आवश्यक है. इससे लड़की के माता - पिता व परिवार की प्रतिष्ठा बढ़ती है. लड़कियां प्रतिदिन समाचार पत्र अवश्य पढ़ें. उसमें देश - विदेश का ज्ञान होता है.
लड़कियां जितना अच्छा बोलेंगी, जितना ढंग से रहेंगी, समाज में उनका सम्मान होगा और इसका सारा दायित्व माता - पिता पर निर्भर करता है. माता - पिता यह अवश्य ध्यान रखें कि जिनके घर में लड़की पैदा हुई है वे सबसे अधिक भाग्यशाली हैं.
Published on July 09, 2016 08:30
June 12, 2016
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Want to read sample, here is the link:First Chapter of Romantic Novel 'NARMADA'
Synopsis of Narmada:
This novel is a poignant depiction of life of a beautiful girl ‘Narmada’ who belongs to valley of Baitul in Madhya Pradesh, India. Protagonist ‘Babu’ is studying engineering from IIT, New Delhi. His parents want him to get married to his childhood friend ‘Varsha’, a highly educated and sophisticated girl.
When Babu in summer vacations reaches his home in Bhopal he falls in love with Narmada at first sight. Narmada is grand daughter of leader of laborers who works at construction site of Babu’s father in Baitul. Babu forgets Varsha. Narmada also gradually seems to be in love with Babu, while on the other side Varsha is not in a state to marry any other guy except Babu. She is quite jealous of Narmada.
Meanwhile, Narmada’s relatives fixes her marriage to a man named Govardhan in their own caste. When Babu comes to know this, fear of losing his love Narmada starts flourishing in his mind. Now Babu is in a dilemma whether to fight for his love or to marry Varsha whom he doesn’t love. What will Babu do? Read on to find out.
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Synopsis of Narmada:

When Babu in summer vacations reaches his home in Bhopal he falls in love with Narmada at first sight. Narmada is grand daughter of leader of laborers who works at construction site of Babu’s father in Baitul. Babu forgets Varsha. Narmada also gradually seems to be in love with Babu, while on the other side Varsha is not in a state to marry any other guy except Babu. She is quite jealous of Narmada.
Meanwhile, Narmada’s relatives fixes her marriage to a man named Govardhan in their own caste. When Babu comes to know this, fear of losing his love Narmada starts flourishing in his mind. Now Babu is in a dilemma whether to fight for his love or to marry Varsha whom he doesn’t love. What will Babu do? Read on to find out.
Published on June 12, 2016 08:35
June 9, 2016
मन की अवस्था तय करती है जीवन की दिशा
मनुष्य अपना जीवन किस अवस्था में बिता रहा है यह बहुत महत्वपूर्ण है. जब मन में ख़ुशी या आनंद नहीं है तो यह समझना चाहिए कि हम खुश नहीं हैं, हमारा मन शांत नहीं है. आज आप देखते होंगे कि पास - पड़ोस में या राह चलने वाले लोग खुश नहीं हैं. अधिकांश लोगों के चेहरे चिंताग्रस्त दिखाई देते हैं. इसका कारण क्या है? बस वही व्यक्ति आनंद से जी रहा है जिसके मन में शान्ति है, चेहरे पर खुशी है व शरीर स्वस्थ है.
हम मन में सोचते हैं कि सामने वाला व्यक्ति बहुत अच्छा दिख रहा है या दिख रही है. हम अपनी तुलना उनसे करने लग जाते हैं. अभिनेता – अभिनेत्री, साहित्यकार, कवि, राजनेता, सम्पादक, मैनेजिंग डायरेक्टर, सेना के अधिकारी, सरकारी कार्यालयों में वरिष्ठ अधिकारी, ऐसे ऊंचे - ऊंचे विभाग या पदभार संभालने वाले लोगों को देखकर पूरा देश भाग रहा है कि हम भी ऐसे ही बनें और वैसे बनने के सपने देखने लगते हैं.
पर क्या यह संभव है? क्या यह मात्र सपने देखने से या सोचने भर से सम्भव हो सकता है? नहीं, सम्भव नहीं है. राजनेता के बेटे अपने माता - पिता की तरह राजनेता नहीं बन पाए . जद्दोजहद करने लगे. अभिनेता व अभिनेत्रियों के बेटे - बेटियां कलाकार नहीं बन पाए और रास्ता भटक गए. कारण यह है कि जो भी काम करना है वह दूसरे को देखकर आसान लगता है. परन्तु कितना संघर्ष करना है, संकटों का सामना कैसे करना है, उन्हें यह पता ही नहीं होता है.
जीवन की रूपरेखावस्तुतः जीवन की रूपरेखा बालावस्था से ही बनती है और जो कुछ बनना है उसकी जानकारी आरम्भ से लेकर अंत तक होनी चाहिए, नहीं तो व्यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता है. जीवन में रूपरेखा बनाना उतना ही आवश्यक है जितना वास्तविकता समझना ज़रूरी है.
हम कभी - कभी किसी व्यक्ति का जीवन चरित्र या उस व्यक्ति की कामयाबी का इतिहास समाचार पत्रों में पड़ते हैं, टीवी में देखते हैं और उसका अनुकरण करने लगते हैं. परन्तु जो लोग वैसे ही करने लगते हैं और जब सफलता नहीं मिलती तो उन्हें वह सब छोड़ देना पड़ता है.
आज का दिन बीते हुए कल पर निर्भर करता हैसोच बहुत बड़ी होती है. अच्छी सोच लक्ष्य तक पहुंचाती है. आज का दिन अच्छा बीतना चाहिए ये हर कोई सोचता है. यह तब ही सोचा जाएगा जब आपने कल का दिन अच्छे कार्य करके बिताया है. कल कपड़े धो लिए थे इसलिए आज धुले हुए कपड़े पहने हैं. कल कुछ कमाकर लाये थे इसलिए आज अच्छा भोजन कर रहे हैं. कल बहुत अध्ययन किया था इसलिए आज परीक्षा का प्रश्न पत्र ठीक से हल हो जाएगा. आज का दिन बीते हुए कल पर निर्भर करता है. इसलिए आज अच्छे कार्य करें जिससे आपका आने वाला कल सुन्दर हो. जीवन की प्राथमिकता आज हर व्यक्ति की चिंता धन कमाने की है. धन कमाना मात्र भोजन और मकान के लिए आवश्यक है. यह जीवन की प्राथमिकता है. भोजन बिना रह नहीं सकते, किसी छत के नीचे रहकर ही अपनी सुरक्षा कर सकते हैं और जिसने भोजन व छत की लड़ाई जीत ली वह संसार में सुखी व्यक्ति है.
आपने देखा होगा कि जब चार - पांच लोग समूह में बैठकर वार्तालाप करते हैं तो उसमें बुराई व आलोचना करने का विषय पहले निकलता है. आलोचना और बुराई भी उस व्यक्ति की होती है जो शिखर पर पहुंचा हुआ होता है. पहले उसकी चर्चा हीरो के रूप में की जाती है, फिर उसकी चर्चा विलन के रूप में की जाती है. जब वह हमारे जीवन से जुड़ा हुआ विषय नहीं है तो उस चर्चा में हम प्रचारक बनकर रह जाते हैं. हमें तो स्वयं को आगे बढ़ते हुए देखना है. दूसरा कितना महान है यह सोचने की आवश्यकता नहीं है.
जो कवि या साहित्यकार यह मान ले कि कालिदास व शेकस्पियर की हम बराबरी नहीं कर सकते तो ऐसा सोचना संकुचित धारणा का प्रतीक है. परन्तु जो लेखक या साहित्यकार कालिदास या शेकस्पियर के आगे निकलने की प्रतिस्पर्धा रखता है वह निश्चित ही अपने जीवन में सफलता प्राप्त करता है, फिर कालिदास या शेकस्पियर को स्पर्धक न मानकर गुरु का दर्जा देना उचित है.
मन की भावना सबसे पहले अपने मन को साफ़ रखने की आवश्यकता है. दूसरा हमें अच्छा कहे यह सोचकर चलना चाहिए. क्रोध करना, तिरस्कार करना, बुराई करना, धन का प्रलोभन देना, उधारी का व्य वहार करना, यह सब व्यक्ति को पीछे ले जाने के लक्षण हैं. जिस व्यक्ति ने इतना सोच लिया वह कभी पीछे मुड़कर नहीं देखता.
इतनी समझ ही तो वर्षों के अनुभव के बाद आती है. हर व्यक्ति का आधा जीवन आडम्बर व अहंकार में बीतता है. मन से अहंकार आसानी से नहीं निकलता. इसके लिए त्याग की भावना रखना आवश्यक है. इसलिए मन की भावना की तरफ ध्यान देना चाहिए. मन की भावना क्षण भर में ही पतन की ओर ले जाती है और मनुष्य अपना पूरा जीवन बर्बाद कर लेता है.
इसलिए मन को शांत व स्थिर रखना चाहिए. इसके लिए कुछ न कुछ करते रहना चाहिए. समाचार पत्र एवं ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़ना, व्यायाम करना, यह सब प्रतिदिन होना चाहिए. इससे मन सुदृढ़ होता है. कुछ लोग यह प्रतिदिन करते हैं और नियमित रूप से वर्षों तक करते हैं. अपनी सोच हमेशा सकारात्मक रखते हैं और जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहते हैं.

हम मन में सोचते हैं कि सामने वाला व्यक्ति बहुत अच्छा दिख रहा है या दिख रही है. हम अपनी तुलना उनसे करने लग जाते हैं. अभिनेता – अभिनेत्री, साहित्यकार, कवि, राजनेता, सम्पादक, मैनेजिंग डायरेक्टर, सेना के अधिकारी, सरकारी कार्यालयों में वरिष्ठ अधिकारी, ऐसे ऊंचे - ऊंचे विभाग या पदभार संभालने वाले लोगों को देखकर पूरा देश भाग रहा है कि हम भी ऐसे ही बनें और वैसे बनने के सपने देखने लगते हैं.
पर क्या यह संभव है? क्या यह मात्र सपने देखने से या सोचने भर से सम्भव हो सकता है? नहीं, सम्भव नहीं है. राजनेता के बेटे अपने माता - पिता की तरह राजनेता नहीं बन पाए . जद्दोजहद करने लगे. अभिनेता व अभिनेत्रियों के बेटे - बेटियां कलाकार नहीं बन पाए और रास्ता भटक गए. कारण यह है कि जो भी काम करना है वह दूसरे को देखकर आसान लगता है. परन्तु कितना संघर्ष करना है, संकटों का सामना कैसे करना है, उन्हें यह पता ही नहीं होता है.
जीवन की रूपरेखावस्तुतः जीवन की रूपरेखा बालावस्था से ही बनती है और जो कुछ बनना है उसकी जानकारी आरम्भ से लेकर अंत तक होनी चाहिए, नहीं तो व्यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता है. जीवन में रूपरेखा बनाना उतना ही आवश्यक है जितना वास्तविकता समझना ज़रूरी है.
हम कभी - कभी किसी व्यक्ति का जीवन चरित्र या उस व्यक्ति की कामयाबी का इतिहास समाचार पत्रों में पड़ते हैं, टीवी में देखते हैं और उसका अनुकरण करने लगते हैं. परन्तु जो लोग वैसे ही करने लगते हैं और जब सफलता नहीं मिलती तो उन्हें वह सब छोड़ देना पड़ता है.
आज का दिन बीते हुए कल पर निर्भर करता हैसोच बहुत बड़ी होती है. अच्छी सोच लक्ष्य तक पहुंचाती है. आज का दिन अच्छा बीतना चाहिए ये हर कोई सोचता है. यह तब ही सोचा जाएगा जब आपने कल का दिन अच्छे कार्य करके बिताया है. कल कपड़े धो लिए थे इसलिए आज धुले हुए कपड़े पहने हैं. कल कुछ कमाकर लाये थे इसलिए आज अच्छा भोजन कर रहे हैं. कल बहुत अध्ययन किया था इसलिए आज परीक्षा का प्रश्न पत्र ठीक से हल हो जाएगा. आज का दिन बीते हुए कल पर निर्भर करता है. इसलिए आज अच्छे कार्य करें जिससे आपका आने वाला कल सुन्दर हो. जीवन की प्राथमिकता आज हर व्यक्ति की चिंता धन कमाने की है. धन कमाना मात्र भोजन और मकान के लिए आवश्यक है. यह जीवन की प्राथमिकता है. भोजन बिना रह नहीं सकते, किसी छत के नीचे रहकर ही अपनी सुरक्षा कर सकते हैं और जिसने भोजन व छत की लड़ाई जीत ली वह संसार में सुखी व्यक्ति है.
आपने देखा होगा कि जब चार - पांच लोग समूह में बैठकर वार्तालाप करते हैं तो उसमें बुराई व आलोचना करने का विषय पहले निकलता है. आलोचना और बुराई भी उस व्यक्ति की होती है जो शिखर पर पहुंचा हुआ होता है. पहले उसकी चर्चा हीरो के रूप में की जाती है, फिर उसकी चर्चा विलन के रूप में की जाती है. जब वह हमारे जीवन से जुड़ा हुआ विषय नहीं है तो उस चर्चा में हम प्रचारक बनकर रह जाते हैं. हमें तो स्वयं को आगे बढ़ते हुए देखना है. दूसरा कितना महान है यह सोचने की आवश्यकता नहीं है.
जो कवि या साहित्यकार यह मान ले कि कालिदास व शेकस्पियर की हम बराबरी नहीं कर सकते तो ऐसा सोचना संकुचित धारणा का प्रतीक है. परन्तु जो लेखक या साहित्यकार कालिदास या शेकस्पियर के आगे निकलने की प्रतिस्पर्धा रखता है वह निश्चित ही अपने जीवन में सफलता प्राप्त करता है, फिर कालिदास या शेकस्पियर को स्पर्धक न मानकर गुरु का दर्जा देना उचित है.
मन की भावना सबसे पहले अपने मन को साफ़ रखने की आवश्यकता है. दूसरा हमें अच्छा कहे यह सोचकर चलना चाहिए. क्रोध करना, तिरस्कार करना, बुराई करना, धन का प्रलोभन देना, उधारी का व्य वहार करना, यह सब व्यक्ति को पीछे ले जाने के लक्षण हैं. जिस व्यक्ति ने इतना सोच लिया वह कभी पीछे मुड़कर नहीं देखता.
इतनी समझ ही तो वर्षों के अनुभव के बाद आती है. हर व्यक्ति का आधा जीवन आडम्बर व अहंकार में बीतता है. मन से अहंकार आसानी से नहीं निकलता. इसके लिए त्याग की भावना रखना आवश्यक है. इसलिए मन की भावना की तरफ ध्यान देना चाहिए. मन की भावना क्षण भर में ही पतन की ओर ले जाती है और मनुष्य अपना पूरा जीवन बर्बाद कर लेता है.

इसलिए मन को शांत व स्थिर रखना चाहिए. इसके लिए कुछ न कुछ करते रहना चाहिए. समाचार पत्र एवं ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़ना, व्यायाम करना, यह सब प्रतिदिन होना चाहिए. इससे मन सुदृढ़ होता है. कुछ लोग यह प्रतिदिन करते हैं और नियमित रूप से वर्षों तक करते हैं. अपनी सोच हमेशा सकारात्मक रखते हैं और जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहते हैं.
Published on June 09, 2016 00:00
May 26, 2016
अस्पतालों की अवस्था
स्वास्थ्य जीवन की प्राथमिकता है. स्वास्थ्य ठीक नहीं तो कुछ भी ठीक नहीं. स्वास्थ्य यदि ठीक नहीं तो उसे कैसे ठीक किया जाए यह भी एक प्रश्न है. आजकल चिकित्सक पर भी पूरी तरह से विश्वास करना कठिन है. चिरपरिचित अस्पताल और सुप्रसिद्ध डॉक्टर से भी विश्वास उठ जाता है.

कुछ साल पहले श्रीमतीजी का स्वास्थ्य खराब रहने लगा था. छह महीने बीत गए तब हमने निर्णय लिया कि किसी विद्वान महिला डॉक्टर को दिखाना चाहिए. श्रीमती जी को लेकर मैं विकास मार्ग पर लक्ष्मी नगर के एक सुप्रसिद्ध अस्पताल गया.
डॉक्टर ने दो दिन की दवाई लिखी और दो दिन बाद फिर आने को कहा. दो दिन बाद फिर हम गए तो उस महिला डॉक्टर ने मेरी पत्नी से कहा कि – “आपकी बीमारी कुछ अलग दिख रही है. आप हमारे एक्सपर्ट डॉक्टर को दिखाओ, पर उनकी फीस ज़्यादा है.”
हम राज़ी हो गए. एक्सपर्ट को दिखाया तो उन्होंने सी. टी. स्कैन, ब्लड टेस्ट वगैरह के लिए कहा. सब रिपोर्ट्स लेकर फिर उस एक्सपर्ट के पास गए तो उन्होंने कहा कि – “आपके सीने में गाँठ है. यह गाँठ टी. बी. की भी हो सकती है और कैंसर की भी.” हम घबरा गए.
आगे वे बोले – “मैं आपको एक कैंसर स्पेशलिस्ट हॉस्पिटल में भेजता हूँ. उनकी जांच फीस सात सौ रुपये है.” हम उनसे पता लेकर घर आ गए और सोचने लगे कि वह डॉक्टर सात सौ रुपये मात्र चेकअप के लेते हैं तो आगे क्या होगा? दो-चार दिन हम सोचते रहे. पैसों का बंदोबस्त नहीं था इसलिए मैंने नागपुर में रहने वाले अपने छोटे भाई को फ़ोन किया और अपनी परिस्थिति से अवगत कराया. उन्होंने सलाह दी कि – “किसी फ़र्ज़ी डॉक्टर के कहने में मत आना, सरकारी अस्पताल में ही इलाज ठीक रहेगा.”
हम बंगाली मार्केट के बाबर रोड गए. वहां कैंसर सोसाइटी का एक क्लीनिक है, वहां दिखाया. चेकअप के बाद डॉक्टर ने ये कहा कि कैंसर नहीं है. उन्होंने शक दूर करने के लिए हमें AIIMSजाकर दिखाने के लिए कहा. सफदरजंग स्थित इस अस्पताल के कैंसर विभाग में जाकर सारे कागज़ एवं रिपोर्ट्स दिखाई. उन्होंने कहा कि कल सवेरे O.P.D.में दिखाओ.

दूसरे दिन आकर O.P.D. में दिखाया. उन्होंने चौथी मंज़िल पर भेज दिया. दो घंटे बाद नंबर आया. डॉक्टर ने चेकअप करने के बाद एक सप्ताह बाद फिर बुलाया. इसी तरह चार हफ्ते बीत गए. परेशान होकर हमने डॉक्टर से कहा कि – “न तो आप दवाई दे रहे हैं और अगले सप्ताह आने की ही बात करते हो.”
कहने लगे – “आपको सीनियर डॉक्टर को दिखाना है और आज भी वे ऑपरेशन थिएटर में हैं. अगले सप्ताह आइये, आपसे उनकी मुलाकात करवाते हैं.”
अगले सप्ताह गए तो फिर वही स्थिति थी. उन्होंने ग्राउंड फ्लोर पर टी. बी. विभाग में भेजा. वहां पर आरम्भ से इलाज शुरू हुआ. लगातार दस हफ्ते जाते रहे. फिर उन्होंने X-Ray व सी. टी. स्कैन अपने पास रख लिए और दूसरे दिन आने को कहा.
दूसरे दिन गए तो डॉक्टर ने कहा कि मरीज़ को टी. बी.है. उन्होंने चार सौ रुपये महीने की दवाई लिख कर दी. वह दवाई श्रीमतीजी तीन महीने तक लेती रहीं. उसके बाद उसमे 25%दवाई घटाई गयी. फिर तीन महीने इलाज चला. छह महीने में टी. बी. की बीमारी ख़त्म हुई. अब पत्नी का स्वास्थ्य एकदम ठीक है.
अंत में यही कहा जा सकता है कि यदि स्वास्थ्य खराब हो जाता है तो चिकित्सक पर विश्वास करना कठिन है. आज अस्पताल भी व्यापार का स्थान बन गए हैं. मजबूर व्यक्ति धन खर्च करके अपना इलाज तो करवा सकता है, परन्तु जो निर्धन है उसे मृत्यु को स्वीकार करना पड़ता है.
दिल्ली के सफदरजंग क्षेत्र में AIIMSनाम का अस्पताल भले ही इलाज की दृष्टि से प्रथम श्रेणी का है, परन्तु वहां की प्रशासन व्यवस्था ठीक नहीं है. नंबर की प्रतीक्षा दो-दो घंटों तक करनी पड़ती है. AIIMS का स्टाफ अपने मरीज़ बिना लाइन के डॉक्टर के पास पहुंचाता है. डॉक्टर को भी ऐतराज़ नहीं है. मरीज़ को पूछताछ कक्ष से सही सलाह भी नहीं मिल रही. पूछा कुछ जाता है और बताया कुछ जाता है.
पर ईश्वर की कृपा से सोच समझकर कष्ट उठकर यदि इलाज करवाया जाए तो सरकारी अस्पतालों में ही समाधान है. प्राइवेट अस्पताल व नर्सिंग होम मात्र धनी लोगों के लिए हैं. इसलिए गरीब लोग सरकारी अस्पतालों की तरफ अधिक भागते हैं. दिल्ली के हर बड़े से बड़े सरकारी अस्पताल में ग्रामीण लोग अधिक आते हैं.
ग्रामीण लोगों के पास न तो पैसा है न समय और न इलाज का ज्ञान है. इसलिए सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीज़ों की गरीबी व दयनीय अवस्था दिखाई देती है. अस्पताल के हालात देखकर जो गरीबी का स्पष्ट चित्र है वह दिखाई देता है. ईश्वर करे हर व्यक्ति अपने घर में सुखी रहे और उसे अस्पताल के चक्कर न काटने पढ़ें.
Published on May 26, 2016 23:07
May 25, 2016
First Chapter of Romantic Novel 'NARMADA'

He got a big tender in Baitul valley last year. Around four hundred labourers were working together on a daily basis and our company was growing persistently.
I was 22 years old and my parents were constantly discussing about my marriage. When they wanted to know my decision for the same, I gave my consent. First they proposed Varsha’s name (our ex-neighbour Vermaji’s daughter) before me. She was pursuing M.A. in English Literature from Bhopal itself. We had good relations with Vermaji’s family for the past ten years. I and Varsha often used to play, hang around and eat together. For the past two years, she started avoiding confronting me. Whenever I asked the reason, she would smile and walk away.Nearly six months ago, I met Varsha in a social programme in Bhopal. While talking to me, she asked my hostel’s address. After that, she even wrote some letters to me, but I did not reply for even a single time.Once the exams got over, I started preparing to return to my home in Bhopal and wrote a letter to my mother and informed her. On the day of journey, I boarded an Express Train from New Delhi Railway Station at 7 in the morning and reached Bhopal Railway Station at 4 pm on the same day. Our car driver had come to receive me. At 5 pm, I was at home.It was summer and was very hot. As soon as I reached patio our maid 'Jaanki' opened the door and greeted me. Drawing room cooler soothed my mind. I felt silence at home. Till now, Mom would have welcomed me with words - “Oh! Son, u came”.Housemaid Jaanki came and said - “Have bath. Tea is ready”. I ordered her to bring tea and said - “I’ll have tea before shower”. I thought Mom would be sleeping in her room. I went to have bath and got dressed. Then Jaanki asked if she can serve the breakfast but I asked her to awake Mom first.She told me that Mom has gone to Baitul Valley. It was being ten days since she was not at home. Jaanki said - “Ma’am has wrote a letter for you.”I asked - “Where is that letter? Show me.”She went to Mom’s room and I followed her. She picked up the letter lying on the table and handed it to me. I started reading the letter:“Dear Babu (My Name),I got to know that you are coming home from Delhi. I am leaving for Baitul Valley due to some reason and have to stay there for some days. After reaching home, you too come here.Rest is fine. Your Mom”
What could be the reason that Mom went to a lonesome place leaving her home behind? I was in a doubt after reading the letter. If Dad were out of town, maybe she was needed there for superintendence. But Dad was never confident about Mom’s management.Once I thought she might have been there because it was too hot here. But I guess I was wrong as it was mentioned in the letter that she had to leave due to some reason. It was better not to predict. I stood up to ask Jaanki and all of a sudden my eyes were stuck on some dresses hanging on the rack.There were some beautiful design green scarf, long skirts and loose blouses. Then I saw slippers and sandles. It seemed that we had some guest. All slippers and clothes were seemed to be of a young lady.Mom used to keep the cupboard’s key below the bed’s mattress. I took the keys from there and opened the cupboard and was surprised on seeing literature books. In a meanwhile, Jaanki had served the breakfast and asked me to come. While eating I asked Jaanki if we had guest at home. In a reply to this, she narrated a long story -Last month Mom and Dad visited Baitul Valley. My Mom met ‘Narmada’ over there. She is a grand daughter of the laborers’ incharge. Narmada had pricked her leg on a thorn. When she tried to scratch it, pus oozed out. Her foot swelled up. Mom got acquainted with this incident and brought Narmada along with her for the treatment.Mom was fascinated by her playful, mercurial behavior, harmonic sweet voice, beauty, black eyes and long hair. Mom treated Narmada as her daughter on her cleanliness and way of living.Mom loved her (Narmada) cooking and she became Mom’s family member in a very short span of time. Once Narmada expressed that she was missing Baitul valley and would like to go there. Mom asked Narmada if she would like to come back to Bhopal? “Definitely, only if Grandpa gives me permission”- said Narmada. That is why Mom personally went to see her off and she was with her for the past ten days.Narmada was born and grown up in a labor family. Four years ago, her parents died in an accident during digging a mound of soil. It was a turning point of her life. On seeing her condition, a couple who were doctor by profession, gave her shelter. With this, she had notable changes in her way of living. Two years later, that couple shifted abroad and she again returned to her grandfather’s cottage. I was amazed on having brief introduction of Narmada. After dinner, I lay down on bed and started thinking about Narmada.‘Narmada’ - I have heard this name several times earlier as well. Undoubtedly, she was an innocent girl, but she was very beautiful and attractive too, I had heard so.Jaanki told about Narmada in a coquettish manner and actually whatever she had said was true. My guess was all correct. I fell asleep thinking about Narmada.
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Published on May 25, 2016 22:07