अस्पतालों की अवस्था


स्वास्थ्य जीवन की प्राथमिकता है. स्वास्थ्य ठीक नहीं तो कुछ भी ठीक नहीं. स्वास्थ्य यदि ठीक नहीं तो उसे कैसे ठीक किया जाए यह भी एक प्रश्न है. आजकल चिकित्सक पर भी पूरी तरह से विश्वास करना कठिन है. चिरपरिचित अस्पताल और सुप्रसिद्ध डॉक्टर से भी विश्वास उठ जाता है.


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कुछ साल पहले श्रीमतीजी का स्वास्थ्य खराब रहने लगा था. छह महीने बीत गए तब हमने निर्णय लिया कि किसी विद्वान महिला डॉक्टर को दिखाना चाहिए. श्रीमती जी को लेकर मैं विकास मार्ग पर लक्ष्मी नगर के एक सुप्रसिद्ध अस्पताल गया.

डॉक्टर ने दो दिन की दवाई लिखी और दो दिन बाद फिर आने को कहा. दो दिन बाद फिर हम गए तो उस महिला डॉक्टर ने मेरी पत्नी से कहा कि – “आपकी बीमारी कुछ अलग दिख रही है. आप हमारे एक्सपर्ट डॉक्टर को दिखाओ, पर उनकी फीस ज़्यादा है.” 

हम राज़ी हो गए. एक्सपर्ट को दिखाया तो उन्होंने सी. टी. स्कैन, ब्लड टेस्ट वगैरह के लिए कहा. सब रिपोर्ट्स लेकर फिर उस एक्सपर्ट के पास गए तो उन्होंने कहा कि – “आपके सीने में गाँठ है. यह गाँठ टी. बी. की भी हो सकती है और कैंसर की भी.” हम घबरा गए. 

आगे वे बोले – “मैं आपको एक कैंसर स्पेशलिस्ट हॉस्पिटल में भेजता हूँ. उनकी जांच फीस सात सौ रुपये है.” हम उनसे पता लेकर घर आ गए और सोचने लगे कि वह डॉक्टर सात सौ रुपये मात्र चेकअप के लेते हैं तो आगे क्या होगा? दो-चार दिन हम सोचते रहे. पैसों का बंदोबस्त नहीं था इसलिए मैंने नागपुर में रहने वाले अपने छोटे भाई को फ़ोन किया और अपनी परिस्थिति से अवगत कराया. उन्होंने सलाह दी कि – “किसी फ़र्ज़ी डॉक्टर के कहने में मत आना, सरकारी अस्पताल में ही इलाज ठीक रहेगा.”

हम बंगाली मार्केट के बाबर रोड गए. वहां कैंसर सोसाइटी का एक क्लीनिक है, वहां दिखाया. चेकअप के बाद डॉक्टर ने ये कहा कि कैंसर नहीं है. उन्होंने शक दूर करने के लिए हमें AIIMSजाकर दिखाने के लिए कहा. सफदरजंग स्थित इस अस्पताल के कैंसर विभाग में जाकर सारे कागज़ एवं रिपोर्ट्स दिखाई. उन्होंने कहा कि कल सवेरे O.P.D.में दिखाओ.  


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दूसरे दिन आकर O.P.D. में दिखाया. उन्होंने चौथी मंज़िल पर भेज दिया. दो  घंटे बाद नंबर आया. डॉक्टर ने चेकअप करने के बाद एक सप्ताह बाद फिर बुलाया. इसी तरह चार हफ्ते बीत गए. परेशान होकर हमने डॉक्टर से कहा कि – “न तो आप दवाई दे रहे हैं और अगले सप्ताह आने की ही बात करते हो.”  

कहने लगे – “आपको सीनियर डॉक्टर को दिखाना है और आज भी वे ऑपरेशन थिएटर में हैं. अगले सप्ताह आइये, आपसे उनकी मुलाकात करवाते हैं.” 

अगले सप्ताह गए तो फिर वही स्थिति थी. उन्होंने ग्राउंड फ्लोर पर टी. बी. विभाग में भेजा. वहां पर आरम्भ से इलाज शुरू हुआ. लगातार दस हफ्ते जाते रहे. फिर उन्होंने X-Ray व सी. टी. स्कैन अपने पास रख लिए और दूसरे दिन आने को कहा.  

दूसरे दिन गए तो डॉक्टर ने कहा कि मरीज़ को टी. बी.है. उन्होंने चार सौ रुपये महीने की दवाई लिख कर दी. वह दवाई श्रीमतीजी तीन महीने तक लेती रहीं. उसके बाद उसमे 25%दवाई घटाई गयी. फिर तीन महीने इलाज चला. छह महीने में टी. बी. की बीमारी ख़त्म हुई. अब पत्नी का स्वास्थ्य एकदम ठीक है. 
अंत में यही कहा जा सकता है कि यदि स्वास्थ्य खराब हो जाता है तो चिकित्सक पर विश्वास करना कठिन है. आज अस्पताल भी व्यापार का स्थान बन गए हैं. मजबूर व्यक्ति धन खर्च करके अपना इलाज तो करवा सकता है, परन्तु जो निर्धन है उसे मृत्यु को स्वीकार करना पड़ता है.  

दिल्ली के सफदरजंग क्षेत्र में AIIMSनाम का अस्पताल भले ही इलाज की दृष्टि से प्रथम श्रेणी का है, परन्तु वहां की प्रशासन व्यवस्था ठीक नहीं है. नंबर की प्रतीक्षा दो-दो घंटों तक करनी पड़ती है. AIIMS का स्टाफ अपने मरीज़ बिना लाइन के डॉक्टर के पास पहुंचाता है. डॉक्टर को भी ऐतराज़ नहीं है. मरीज़ को पूछताछ कक्ष से सही सलाह भी नहीं मिल रही. पूछा कुछ जाता है और बताया कुछ जाता है.

पर ईश्वर की कृपा से सोच समझकर कष्ट उठकर यदि इलाज करवाया जाए तो सरकारी अस्पतालों में ही समाधान है. प्राइवेट अस्पताल व नर्सिंग होम मात्र धनी लोगों के लिए हैं. इसलिए गरीब लोग सरकारी अस्पतालों की तरफ अधिक भागते हैं. दिल्ली के हर बड़े से बड़े सरकारी अस्पताल में ग्रामीण लोग अधिक आते हैं.

ग्रामीण लोगों के पास न तो पैसा है न समय और न इलाज का ज्ञान है. इसलिए सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीज़ों की गरीबी व दयनीय अवस्था दिखाई देती है. अस्पताल के हालात देखकर जो गरीबी का स्पष्ट चित्र है वह दिखाई देता है. ईश्वर करे हर व्यक्ति अपने घर में सुखी रहे और उसे अस्पताल के चक्कर न काटने पढ़ें.
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Published on May 26, 2016 23:07
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