महान गायिका शमशाद बेगम
शमशाद बेगम का जन्म 14 अप्रैल, 1919 को अमृतसर में हुआ था. आज के ज़माने में शमशाद बेगम को बहुत कम लोग जानते हैं. पर जब संगीत और सिनेमा उभर कर आने लगा था तब शमशाद बेगम का नाम गायिकाओं की श्रेणी में सबसे ऊपर था. शमशाद बेगम के समय में जो और भी चर्चित गायक - गायिका थे उनके नाम थे नूरजहां, सुरैया, के. एल. सहगल, गीता दत्त, उमा देवी, आदि. परन्तु ये सभी फिल्मों में अभिनय भी करते थे. क्योंकि तब जिनमें गीत गाने की कला थी या जिनका स्वर अच्छा था ऐसे कलाकारों का ही फिल्मों में चयन किया जाता था. परन्तु शमशाद बेगम ऐसी पहली गायिका थीं जिन्होंने महिला कलाकारों के लिए पार्श्व गायन किया.
उनकी आवाज़ में इतना आकर्षण था कि वह जो भी गुनगुनाती थीं तो सुनने वाले वहीं रुक जाते थे. जब उनका प्रथम गीत रिकॉर्ड हुआ तो वह पूरे हिन्दुस्तान में प्रसिद्ध हुईं. उस समय देश का बंटवारा नहीं हुआ था. उन्हें विवाह तथा अन्य सांस्कृतिक समारोहों में विशेष रूप से गीत गाने के लिए बुलाया जाता था और शमशाद बेगम की रूचि भी ऐसे कार्यक्रमों में हुआ करती थी. विवाह समारोहों में वह दुल्हन को देख - देख कर उसकी प्रशंसा अपने गीतों में करती थीं तो महिलाओं के बीच में तालियों की गड़गड़ाहट होती थी. दूसरे दिन यह चर्चा होती थी कि शादी वाले घर में शमशाद बेगम गीत गाने आई थीं.
संगीत कला तथा गीत गायन के माध्यम से शमशाद बेगम ने अपनी अद्भुत छाप छोड़ी है. ‘उड़न खटोले पर उड़ जाऊं पर तेरे हाथ न आऊं’ यह गीत बहुत प्रसिद्ध हुआ था. शमशाद जी ने यह गीत ज़ोहराबाई के साथ गाया था. शमशाद बेगम को संगीत की दुनिया में गुलाम हैदर साहब लेकर आए. उसके बाद कुछ ऐसे भी संगीतकार थे जो बॉलीवुड में पैर जमाने का प्रयास कर रहे थे, जैसे सी रामचन्द्र, ओ पी नैयर, मदन मोहन, सचिन देव बर्मन, अनिल बिस्वास जैसे संगीतकार शमशाद बेगम की आवाज़ को अपने संगीत से सजाना चाहते थे.
शमशाद बेगम के सुप्रसिद्ध गीतराज कपूर की फिल्म आग 1948 में प्रदर्शित हुई थी. उसमें एक गीत था – ‘काहे कोयल शोर मचाए रे, मोह अपना कोई याद आई रे’. 1949 में दुलारी में गाया गीत – ‘चांदनी आई बनकर प्यार ओ सजना’ व पतंगा फिल्म का गीत – ‘मेरे पिया गए रंगून, वहां से किया है टेलीफून’. बाबुल 1950 में प्रदर्शित हुई थी. उसमें उन्होंने विदाई का गीत गाया था - ‘छोड़ बाबुल का घर’. 1954 में प्रदर्शित फिल्म आर – पार में गाया गीत - ‘कभी आर कभी पार लगा तीर ए नज़र. 1956 में प्रदर्शित हुई फिल्म C.I.D. का गीत – ‘ले के पहला - पहला प्यार’ आज भी लोग गुनगुनाते हैं.
1957 में प्रदर्शित फिल्म मदर इंडिया में नरगिस के लिए शमशाद बेगम ने होली का गीत गाया - ‘होली आई रे कन्हाई रंग छलके सुना दे ज़रा बांसुरी’. इसी तरह नया दौर 1957 में प्रदर्शित हुई थी. उसका एक गीत ‘रेशमी सलवार कुर्ता जाली का, रूप सहा नहीं जाए नखरे वाली का’. यह गीत लड़के - लड़कियां गुनगुनाते हुए नज़र आते थे. मुगले आज़म 1960 में आई थी. उसमें बेगम साहिबा ने कव्वाली गायी थी – ‘तेरी महफ़िल में हम किस्मत आज़मा के देखेंगे’. 1968 में प्रदर्शित हुई फिल्म किस्मत में गाया गीत ‘कजरा मोहब्बत वाला अंखियों में ऐसा डाला’ भी बहुत प्रसिद्ध हुआ था.
शमशाद बेगम के गानों में चंचलता, रुलाई, अल्हड़पन, मस्ती, शोखी, आदि सभी प्रकार के भाव दिखाई देते थे. यह भी सुनने में आता है कि लता मंगेशकर के साथ उनकी बनती नहीं थी. शमशाद बेगम ने बिना किसी संगीत विद्यालय की तालीम लिए ही कईं कर्णप्रिय गीत गाये. ये बात आजकल की लड़कियों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है. 23 अप्रैल, 2013 को उनका मुंबई में निधन हो गया. परन्तु उनके गाए गीतों के माध्यम से वह हमेशा लोगों के दिलों में रहेंगी.

उनकी आवाज़ में इतना आकर्षण था कि वह जो भी गुनगुनाती थीं तो सुनने वाले वहीं रुक जाते थे. जब उनका प्रथम गीत रिकॉर्ड हुआ तो वह पूरे हिन्दुस्तान में प्रसिद्ध हुईं. उस समय देश का बंटवारा नहीं हुआ था. उन्हें विवाह तथा अन्य सांस्कृतिक समारोहों में विशेष रूप से गीत गाने के लिए बुलाया जाता था और शमशाद बेगम की रूचि भी ऐसे कार्यक्रमों में हुआ करती थी. विवाह समारोहों में वह दुल्हन को देख - देख कर उसकी प्रशंसा अपने गीतों में करती थीं तो महिलाओं के बीच में तालियों की गड़गड़ाहट होती थी. दूसरे दिन यह चर्चा होती थी कि शादी वाले घर में शमशाद बेगम गीत गाने आई थीं.
संगीत कला तथा गीत गायन के माध्यम से शमशाद बेगम ने अपनी अद्भुत छाप छोड़ी है. ‘उड़न खटोले पर उड़ जाऊं पर तेरे हाथ न आऊं’ यह गीत बहुत प्रसिद्ध हुआ था. शमशाद जी ने यह गीत ज़ोहराबाई के साथ गाया था. शमशाद बेगम को संगीत की दुनिया में गुलाम हैदर साहब लेकर आए. उसके बाद कुछ ऐसे भी संगीतकार थे जो बॉलीवुड में पैर जमाने का प्रयास कर रहे थे, जैसे सी रामचन्द्र, ओ पी नैयर, मदन मोहन, सचिन देव बर्मन, अनिल बिस्वास जैसे संगीतकार शमशाद बेगम की आवाज़ को अपने संगीत से सजाना चाहते थे.
शमशाद बेगम के सुप्रसिद्ध गीतराज कपूर की फिल्म आग 1948 में प्रदर्शित हुई थी. उसमें एक गीत था – ‘काहे कोयल शोर मचाए रे, मोह अपना कोई याद आई रे’. 1949 में दुलारी में गाया गीत – ‘चांदनी आई बनकर प्यार ओ सजना’ व पतंगा फिल्म का गीत – ‘मेरे पिया गए रंगून, वहां से किया है टेलीफून’. बाबुल 1950 में प्रदर्शित हुई थी. उसमें उन्होंने विदाई का गीत गाया था - ‘छोड़ बाबुल का घर’. 1954 में प्रदर्शित फिल्म आर – पार में गाया गीत - ‘कभी आर कभी पार लगा तीर ए नज़र. 1956 में प्रदर्शित हुई फिल्म C.I.D. का गीत – ‘ले के पहला - पहला प्यार’ आज भी लोग गुनगुनाते हैं.
1957 में प्रदर्शित फिल्म मदर इंडिया में नरगिस के लिए शमशाद बेगम ने होली का गीत गाया - ‘होली आई रे कन्हाई रंग छलके सुना दे ज़रा बांसुरी’. इसी तरह नया दौर 1957 में प्रदर्शित हुई थी. उसका एक गीत ‘रेशमी सलवार कुर्ता जाली का, रूप सहा नहीं जाए नखरे वाली का’. यह गीत लड़के - लड़कियां गुनगुनाते हुए नज़र आते थे. मुगले आज़म 1960 में आई थी. उसमें बेगम साहिबा ने कव्वाली गायी थी – ‘तेरी महफ़िल में हम किस्मत आज़मा के देखेंगे’. 1968 में प्रदर्शित हुई फिल्म किस्मत में गाया गीत ‘कजरा मोहब्बत वाला अंखियों में ऐसा डाला’ भी बहुत प्रसिद्ध हुआ था.
शमशाद बेगम के गानों में चंचलता, रुलाई, अल्हड़पन, मस्ती, शोखी, आदि सभी प्रकार के भाव दिखाई देते थे. यह भी सुनने में आता है कि लता मंगेशकर के साथ उनकी बनती नहीं थी. शमशाद बेगम ने बिना किसी संगीत विद्यालय की तालीम लिए ही कईं कर्णप्रिय गीत गाये. ये बात आजकल की लड़कियों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है. 23 अप्रैल, 2013 को उनका मुंबई में निधन हो गया. परन्तु उनके गाए गीतों के माध्यम से वह हमेशा लोगों के दिलों में रहेंगी.
Published on April 14, 2016 00:31
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