Pather Dabi Quotes
Pather Dabi: The Right of Way
by
Sarat Chandra Chattopadhyay1,527 ratings, 4.09 average rating, 85 reviews
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Pather Dabi Quotes
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“उन लोगों का हित करना चाहते हो तो जाकर करो; लेकिन एक के विरुद्ध दूसरे को उत्तेजित करके नहीं। दूसरों पर कलंक लगाकर नहीं, विश्व के सामने उनको हास्यास्पद करके नहीं।”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“राजनीतिक विप्लव में मत भाग लेना! तुम कवि हो, तुम देश के बड़े कलाकार हो, तुम राजनीति से बड़े हो, इस बात को मत भूल जाना।”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“सभ्यता का यदि कुछ भी अर्थ हो तो यही है कि असमर्थों और दुर्बल के न्यायोचित अधिकार, प्रबल के शारीरिक बल से परास्त न हों।”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“पथ का दावेदार मेरी तर्कशास्त्र की पाठशाला नहीं है, यह मेरी पथ पर चलने के अधिकार की शक्ति है। कौन-कब-किस अज्ञान आवश्यकता के लिए नीति-वाक्य की रचना कर गया, वही हो जाएगा पथ के दावेदारों के लिए सत्य? और इसके लिए जिसकी गरदन फाँसी की रस्सी से बँधी है, उसके हृदय का वाक्य हो जाएगा झूठ? तुम्हारा परम सत्य क्या है, मैं नहीं जानता; लेकिन परम मिथ्या यदि कहीं हो तो वह यही है।”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“सोचती हो कि झूठ को ही बनाना पड़ता है। सत्य शाश्वत, सनातन और अपौरुषेय है। यही झूठी बात है। मिथ्या की ही तरह, सत्य को भी मानव-जाति दिन-रात बनाती है। यह भी शाश्वत नहीं, इसका जन्म है, इसकी मृत्यु है! मैं झूठ नहीं बोलता, सत्य की सृष्टि करता हूँ।”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“तुम लोग कहा करती हो चरम सत्य, परम सत्य और ये अर्थहीन, निष्फल शब्द, तुम लोगों के लिए महा मूल्यवान हैं। मूर्खों को भुलावे में डालने के लिए इतना बड़ा जादू-मंत्र और कोई नहीं है।”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“विप्लव का अर्थ है—अत्यंत शीघ्र आमूल परिवर्तन! राजनीतिक विप्लव नहीं, वह तो मेरा ही है। कवि, तुम दिल खोलकर, केवल सामाजिक विप्लव का गीत गाना शुरू कर दो। जो कुछ सनातन है, जो कुछ प्राचीन, जीर्ण और पुराना है, धर्म, समाज, संस्कार, सब टूट-फूटकर ध्वंस हो जाए और कुछ न कर सको शशि, तो केवल इस महासत्य का ही मुक्त कंठ से प्रचार कर दो कि इससे बढ़कर बड़ा शत्रु भारत का और कोई नहीं”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“कोई भी अस्वाभाविक वस्तु टिक नहीं सकती। अशिक्षितों के लिए अन्न-क्षेत्र खोला जा सकता है; क्योंकि उन्हें क्षुधा-बोध है; लेकिन उनके लिए साहित्य नहीं परोसा जा सकता। उनके सुख-दुःखों का वर्णन करने को साहित्य नहीं कहते।”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“तुम मेरे विप्लव के गीत गाना! जहाँ तुमने जन्म लिया है, जहाँ आदमी बने हो, केवल उन्हीं का, केवल शिक्षित, भद्र जाति के लिए ही।”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“जो असमर्थ और शक्तिहीन जाति आत्मरक्षा भी नहीं कर सकती; उसका राज्य नहीं जाएगा तो किनका जाएगा? ठीक ही हुआ। अब हम लोग जाएँगे, उसका उद्धार करने?”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“न्याय-धर्म ही सबसे बड़ा धर्म है और विजित जाति के अशेष कल्याण के लिए ही यह अधीनता की जंजीर उसके पैरों को पहनाकर, उस पंगु का सब तरह का उत्तरदायित्व ढोते रहना ही यूरोपीय सभ्यता का परम कर्तव्य है, इस परम असत्य का लेखों, वक्तृताओं, मिशनरियों के धर्म-प्रचार में, लड़कों की पाठ्य-पुस्तकों के जरिए प्रचार करना ही तुम लोगों की अपनी सभ्यता की राजनीति है।”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“लज्जाहीन नग्न स्वार्थ और पशुशक्ति का एकांत प्राधान्य ही उसका मूलमंत्र है। सभ्यता के नाम से दुर्बलों और असमर्थों के विरुद्ध मनुष्य की बुद्धि ने इसके पहले इतने बड़े घातक मूसल का आविष्कार नहीं किया था। पृथ्वी के नक्शे की तरफ आँखें उठकार देखो, यूरोप की विश्वग्रासी भूख से कोई भी दुर्बल जाति आज अपनी रक्षा नहीं कर पाती।”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“यही तो तुम्हारे विप्लव का राजपथ है! वस्त्रहीन, अन्नहीन, ज्ञानहीन दरिद्रों की पराजय ही सत्य हुई और उनके समूचे हृदय में जो विष भरकर उफना उठता है, जगत् में वह शक्ति क्या सत्य नहीं है?”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“बहुत घूम चुका, पढ़ चुका और विचार कर चुका; लेकिन भारती, अशांति पैदा करने का अर्थ अकल्याण उत्पन्न करना नहीं। शांति! शांति!—सुनते-सुनते कान बहरे हो गए। इस असत्य का किन लोगों ने प्रचार किया, जानती हो? दूसरों की शांति का हरण करके, जो प्रासादों में बैठे हैं, वे ही इसके प्रर्वतक हैं। वंचित, पीडि़त नर-नारियों को लगातार यह मंत्र सुनाकर, उन लोगों को ऐसा बना दिया है कि वे अशांति के नाम से ही चौंक उठते हैं और सोचते हैं कि शायद यह पाप है, अमंगल है! बँधी हुई गाय खड़ी-खड़ी ही मर जाती है; लेकिन उस पुरानी रस्सी को तोड़कर, मालिक की शांति नष्ट नहीं करती। इसी से तो आज दरिद्रों के चलने का रास्ता एकदम बंद हो गया है! फिर भी उन्हीं लोगों की अट्टालिकाओं और प्रासादों को तोड़ने के काम में, हम लोग भी उन्हीं लोगों के साथ स्वर मिलाकर आज अशांति कहकर रोने लगें तो रास्ता कहाँ मिलेगा?”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“उसके आनंददीप्त मुखमंडल की कपटरहित अभ्यर्थना से, उसके अकृत्रिम उत्साहपूर्ण समादर से, भारती का समस्त क्रोध पानी हो गया।”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“मृत्यु को तो बहुतेरे सह सकते हैं; लेकिन यह जो शरीर और मन को लगातार सताते रहना, अपने-आपको इच्छापूर्वक हर क्षण इस तरह हत्या की ओर ले जाने की सहिष्णुता है, स्वर्ग या मृत्यु में क्या कहीं भी इसकी तुलना है? पराधीनता की वेदना ने, क्या इन लोगों के इस जीवन के और सभी वेदना-बोध को एकदम धोकर साफ कर दिया है? कहीं कुछ भी बाकी नहीं है?”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“तुम्हारे प्रेम की तुलना नहीं है; वहाँ से अपूर्व को कोई हटा न सकेगा, लेकिन अपने को उसके ग्रहण करने योग्य बनाए रखने की, आज से यह जो जीवन-व्यापी अति सतर्क साधना शुरू होगी, उसकी प्रतिदिन के असम्मान की ग्लानि, तुम्हारे मनुष्यत्व को एकदम छोटा बना देगी भारती! ऐसे चिर-शुद्ध हृदय का जहाँ मूल्य नहीं, वहाँ इसी तरह बहलाना पड़ता है। कौन जाने, भाग्य में उतने दिनों तक बचे रहने का समय मेरे लिए है या नहीं, पर यदि हो जीजी, तो बहन कहकर गर्व करने को, तब सव्यसाची के पास और कुछ शेष न रहेगा।”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“बहन, तुम्हारे चरित्र पर संदेह करनेवाला आज कोई नहीं; फिर यदि तुम्हारा अपना ही मन दिन-रात अपने ऊपर संदेह करता फिरे तो तुम जिओगी कैसे?”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“अभागा सिर्फ तुम्हारा आनंद ही चुराकर नहीं भागा, वह तुम्हारा साहस तक नष्ट कर गया!”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“निमिषमात्र के लिए ऐसा मालूम हुआ, मानो उनकी सुरमा-अंजित आँखों की दीप्ति कुछ धीमी पड़ गई हो।”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“विश्वमानव की एकांत शुभ बुद्धि की धारा क्या इस प्रकार समाप्त हो गई है कि इस रक्तरेखा के सिवा और किसी मार्ग का पता, आगे क्या किसी दिन उसकी दृष्टि में पड़ेगा ही नहीं? ऐसा विधान किसी तरह भी सत्य नहीं हो सकता! भैया, मनुष्य की इतनी बड़ी परिपूर्णता, तुम्हारे अलावा और कहीं भी मैंने नहीं देखी, निष्ठुरता के बहु प्रचलित मार्ग से तुम अब मत चलो। वह द्वार शायद आज भी बंद है, इसलिए तुम हम लोगों के लिए उसे खोल दो, इस जगत् के सभी लोगों से प्रेम करते हुए हम लोग तुम्हारा अनुसरण करके चलें।’ भारती”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“जिनकी सेवा करोगी, वे ही तुम्हें संदेह की दृष्टि से देखेंगे; जिनके प्राण बचाओगी, वे ही तुमको बेच देना चाहेंगे! मूढ़ता और सहानुभूति है यहाँ। कोई पास तक नहीं बुलाएगा, कोई सहायता देने नहीं आएगा, विषैला साँप समझकर लोग दूर हट जाएँगे। देश को प्यार करने का यही हमारा पुरस्कार है”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“क्रोध करके लेटा जा सकता है; लेकिन सोया नहीं जा सकता। बिछौने पर पड़कर छटपटाते रहने से बढ़कर, दूसरी कोई सजा नहीं होती।”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“उनका और परिचय मालूम न होने पर भी, पहले से ही उस शांत, तीक्ष्ण, विद्या-बुद्धिशालिनी रमणी की दुर्भेद्य गंभीरता के परिचय से कोई भी अपरिचित नहीं था। उनके स्वरूप और भाषण से, उनके प्रखर सौंदर्य के हर पदक्षेप से, उनके संयम-गंभीर वार्त्तालाप से, उनके अचंचल आचरण की गंभीरता से, इस दल में रहते हुए भी, उनके असीम दूरत्व को सब लोग स्वतःसिद्ध की भाँति मानो अनुभव करते थे, यहाँ तक कि उनकी अस्वस्थता के संबंध में भी, अपने-आप किसी प्रकार की आलोचना करने का भी किसी को साहस नहीं होता था, लेकिन एक दिन इस दुर्लंघ्य कठोरता को भेदकर उनकी अत्यंत गुप्त दुर्बलता, उस दिन अपूर्व और भारती के सामने प्रकट हो पड़ी थी, जिस दिन एक आदमी को विदा करते समय, सुमित्रा अपने को सँभाल न सकी थी और उसी से वह मानो अपने को सबसे अलग, बहुत दूर हटा ले गई है।”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“यह मित्रता नाम की वस्तु, संसार में कितनी क्षणभंगुर है भारती! एक दिन जिसके संबंध में सोचा भी नहीं जा सकता, दूसरे दिन उससे जरा सा कारण उपस्थित होते ही चिरविच्छेद हो जाता है।”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“भय के कारण जिसको हिताहित का ज्ञान नहीं रहता, उनके उन्माद के लिए यहाँ स्थान नहीं है।”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“मनुष्य होकर जन्म लेने की मर्यादा,”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“तुम लोगों के सभी प्रकार के दुःख और कष्टों के मूल में, तुम लोगों के असंयत चरित्र को ही जिम्मेदार ठहराते हुए वे तुम्हारी सर्व प्रकार की उन्नति को रोकते आए हैं, केवल इस झूठ को ही वे सर्वदा तुमको समझाते आए हैं कि खुद भला न होने से किसी की कभी उन्नति नहीं हो सकती।”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“केवल तुम लोगों का चरित्र ही तुम्हारी अवस्था के लिए दोषी नहीं है।”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
“वह नहीं चाहते कि कोई तुम्हें, तुम्हारी दुःख-दुर्दशा की बातें बताए। तुम उनके कारखाने चलाने और बोझा ढोनेवाले जानवर हो! लेकिन फिर भी तुम उनकी ही तरह मनुष्य हो। उसी प्रकार पेटभर भोजन करने का, उसी तरह आनंद करने का अधिकार तुमको भी भगवान् ने दिया है। यदि इस सत्य को समझ सको कि तुम लोग भी मनुष्य हो, तुम लोग चाहे जितने दुःखी, जितने दरिद्र, जितने अशिक्षित क्यों न हो, फिर भी मनुष्य हो। तुम्हारी मनुष्यता के दावे को, किसी बहाने, कोई भी नहीं रोक सकता। ये चंद कारखानों के मालिक तुम्हारे सामने कुछ नहीं हैं! यह धनिकों के विरुद्ध दरिद्रों की, आत्मरक्षा की लड़ाई है। इसमें देश नहीं है, जात नहीं है, धर्म नहीं है, मतवाद नहीं है, हिंदू नहीं है, मुसलमान नहीं है; जैन, सिख कोई कुछ भी नहीं है, केवल है धनोन्मत्त मालिक और श्रमिक वर्ग। तुम्हारी शारीरिक शक्ति से वे डरते हैं, तुम्हारी शिक्षा की शक्ति को वे संशय की नजर से देखते हैं, तुम लोगों के ज्ञान पाने की आशंका को देखकर उनका रक्त सूख जाता है। अक्षम, दुर्बल, मूर्ख तुम लोग ही तो उनके विलास-व्यसन के एकमात्र सहारे हो। इस सत्य को हृदयंगम करना, क्या तुम लोगों के लिए इतना कठिन है? और उन्हीं बातों को मुक्त कंठ से व्यक्त करने के अपराध में ही क्या आज इन गोरों के सामने हमारी लांछना की सीमा न रहेगी? दरिद्रों की आत्मरक्षा की लड़ाई में तुम लोग क्या अपनी पूरी शक्ति न जुटा सकोगे?”
― पथ के दावेदार
― पथ के दावेदार
