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Sarat Chandra Chattopadhyay

“वह नहीं चाहते कि कोई तुम्हें, तुम्हारी दुःख-दुर्दशा की बातें बताए। तुम उनके कारखाने चलाने और बोझा ढोनेवाले जानवर हो! लेकिन फिर भी तुम उनकी ही तरह मनुष्य हो। उसी प्रकार पेटभर भोजन करने का, उसी तरह आनंद करने का अधिकार तुमको भी भगवान् ने दिया है। यदि इस सत्य को समझ सको कि तुम लोग भी मनुष्य हो, तुम लोग चाहे जितने दुःखी, जितने दरिद्र, जितने अशिक्षित क्यों न हो, फिर भी मनुष्य हो। तुम्हारी मनुष्यता के दावे को, किसी बहाने, कोई भी नहीं रोक सकता। ये चंद कारखानों के मालिक तुम्हारे सामने कुछ नहीं हैं! यह धनिकों के विरुद्ध दरिद्रों की, आत्मरक्षा की लड़ाई है। इसमें देश नहीं है, जात नहीं है, धर्म नहीं है, मतवाद नहीं है, हिंदू नहीं है, मुसलमान नहीं है; जैन, सिख कोई कुछ भी नहीं है, केवल है धनोन्मत्त मालिक और श्रमिक वर्ग। तुम्हारी शारीरिक शक्ति से वे डरते हैं, तुम्हारी शिक्षा की शक्ति को वे संशय की नजर से देखते हैं, तुम लोगों के ज्ञान पाने की आशंका को देखकर उनका रक्त सूख जाता है। अक्षम, दुर्बल, मूर्ख तुम लोग ही तो उनके विलास-व्यसन के एकमात्र सहारे हो। इस सत्य को हृदयंगम करना, क्या तुम लोगों के लिए इतना कठिन है? और उन्हीं बातों को मुक्त कंठ से व्यक्त करने के अपराध में ही क्या आज इन गोरों के सामने हमारी लांछना की सीमा न रहेगी? दरिद्रों की आत्मरक्षा की लड़ाई में तुम लोग क्या अपनी पूरी शक्ति न जुटा सकोगे?”

Sarat Chandra Chattopadhyay, पथ के दावेदार
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पथ के दावेदार पथ के दावेदार by Sarat Chandra Chattopadhyay
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