Sanskriti Ke Chaar Adhyay (Hindi)
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इस्लाम ही ऐसा धर्म है जिसका विषय केवल व्यक्ति नहीं, सारा समाज है अथवा जो व्यक्ति के सभी आचारों का निर्धारण करता है। कुरान में केवल वैयक्तिक धर्म की ही बातें नहीं हैं, प्रत्युत, उसमें मनुष्य-मनुष्य के विविध सम्बन्ध, राजनैतिक बर्ताव, न्याय, शासन, सेना-संगठन, विवाह, तलाक, शान्ति, युद्ध, कर्ज, सूदखोरी, दान आदि के सम्बन्ध में भी धार्मिक उपदेश हैं, जिनका पालन धार्मिक नियमों के समान ही आवश्यक माना जाता है।
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जिहाद और जिजिया
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(1) दृश्य शत्रु के विरुद्ध संघर्ष, (2) अदृश्य शत्रु (जिन) के विरुद्ध संघर्ष और (3) इन्द्रियों के विरुद्ध संघर्ष।
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सुन्नी–शिया सम्प्रदाय
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मुहम्मद साहब के कोई पुत्र नहीं था, केवल एक बेटी थी, जिसका नाम फातिमा था।
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छठे खलीफा के समय वह विवाद विकराल हो उठा और एक दल ने हजरत अली के पुत्र (और मुहम्मद साहब के नाती) हजरत इमाम हुसैन को खलीफा घोषित कर दिया। कहा जाता है कि हजरत इमाम हुसैन जब मदीने से कूफा जा रहे थे, तब रास्ते में कर्बला नामक स्थान में तत्कालीन
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मुहर्रम का शोकोत्सव हजरत इमाम हुसैन7 की याद में ही मनाया जाता है और शियों का यह खास पर्व है।
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कुछ अन्य विशेषताएँ
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इस्लाम संसार में सबसे अधिक अपरिवर्तनीय धर्म है।
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किन्तु सन् 1918 ई. में, जब टर्की के अधिनायक कमाल पाशा ने खिलाफत को उठा दिया, तब से मुसलमान इस नेतृत्व से विहीन हो गए हैं।
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तसव्वुफ या इस्लामी रहस्यवाद
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इस्लाम ने ईश्वर के उन गुणों को प्रधानता दी, जिनसे प्रेम कम, भय अधिक हो सकता था।
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‘हुलूल’ और ‘तकसीर’ के सिद्धान्तों की घोषणा की।
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मोतजली चिन्तक निर्मुक्त विचारक थे और उनकी दृष्टि बहुत ही उदार थी।
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‘तुहफतुल-फिलासफा’ की रचना की। गजाली को पं. चन्द्रबली पांडेय ने इस्लाम का व्यास कहा
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जो अक्ल का गुलाम हो, वह दिल न कर कबूल।
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मुक्त चिन्तकों में उमर खैयाम और अबुल अरा (1057) का बड़ा नाम है।
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रहस्यवादी मुद्रा थकी, पराजित और संघर्षहीन जाति को बहुत पसन्द आती है।
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यूनानी और भारतीय प्रभाव
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दर्शन के लिए फलसफा शब्द
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अफलातून ने इस पुनर्जन्मवाद में कर्मफलवाद भी मिला दिया।
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गद्य में तसव्वुफ नहीं तो, और क्या है?
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ईसाई सन्त ईसामसीह को दूल्हा और अपने को उनकी दुलहिन कहा करते थे। सॉलोमन के गीतों में यह कल्पना इतनी रंगीन है कि उससे अश्लीलता की बू आती है।
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ताराचन्द ने सूफी-मत के पाँच उद्गम माने हैं : (1) कुरान, (2) मुहम्मद का जीवन, (3) ईसाई-मत और अभिनव-अफलातूनी मत, (4) हिन्दुत्व और बौद्ध मत तथा (5) ईरान में प्रचलित जरथुस्त्र-धर्म।
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सूफी-मत का आधार कुरान में था, किन्तु, भारतीय विचारधारा का इस पर अत्यन्त गम्भीर प्रभाव पड़ा है।
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सूफियों के विश्वास
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सूफियों में संगीत की प्रधानता है,
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जब तक मनुष्य मोक्ष अथवा ईश्वर-मिलन से दूर है, तब तक उसकी स्थिति ‘बका’ की स्थिति समझी जाती है तथा जब वह मोक्ष अथवा ब्रह्म मिलन को प्राप्त करता है, तब वह ‘फना’
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पीर और मुर्शिद (शिष्य) के सम्बन्ध के बिना सूफियों में साधना का कोई अस्तित्व ही नहीं है।
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मौलिक इस्लाम से भेद
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उमंग में आकर उन्होंने अनलहक (अहं ब्रह्मास्मि) का नारा दिया और, बदले में, सुन्नी हुकूमत ने उनकी गर्दन उड़ा दी।
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भारतवर्ष में सूफियों के चार सम्प्रदाय प्रसिद्ध हैं,
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तेरी बेइल्मी ने रख ली बेइल्मों की शान, आलिम-फाजिल बेच रहे हैं अपना दीन-ईमान।
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हुस्न भी हो हिजाब में, इश्क भी हो हिजाब में, या खुद आशकार हो, या मुझे आशकार कर। (बाले-जिबरील)
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खुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तक़दीर के पहले, ख़ुदा बन्दे से ख़ुद पूछे, बता, तेरी रज़ा क्या है।
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मुस्लिम-आक्रमण और हिन्दू-समाज
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अचरज की बातें
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हिन्दू हारे क्यों?
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हिन्दुओं की पराजय इसलिए हुई कि उनका राजनैतिक जीवन मन्द हो गया था।
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राजनीतिक चेतना का अभाव
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हमारी ग्रामीण जनता की दृष्टि संकीर्ण हो गई और उसने गाँव की दुनिया से बाहर की बड़ी दुनिया में दिलचस्पी लेना छोड़ दिया।
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सर्वनाशी अन्धविश्वास
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ब्राह्मणों को यह नहीं सूझा कि राजाओं को इस खतरे से आगाह करें अथवा प्रजा को इस विपत्ति से भिड़ने के लिए तैयार करें। उलटे, उन्होंने विष्णु-पुराण में कल्कि-अवतार की कथा घुसेड़ दी और जनता को यह विश्वास दिलाया कि “ सिन्धु-तट, दाविकोर्वी, चन्द्रभागा तथा कश्मीर प्रान्तों का उपभोग व्रात्य, म्लेच्छ और शूद्र करेंगे।
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पुराणों का प्रचार हुआ तो वे देश-रक्षा, जाति-रक्षा और धर्म-रक्षा का भार भी देवताओं पर छोड़ने लगे।
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देवल के सभी पुरुषों को मार डाला और विहार की सात सौ भिक्षुणियों को बाँदी बना लिया।
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सोमनाथजी की रक्षा करने के प्रयास में कोई 50 हजार हिन्दू मन्दिर के द्वार पर मारे गए और मन्दिर तोड़कर महमूद ने कोई दो करोड़ दीनार की सम्पत्ति लूट ली।
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जात-पाँत, छुआछूत और धर्म के मिथ्या आडम्बरों को हिन्दुओं ने बहुत अधिक महत्त्व देना सीख लिया था। वही आदत उनका काल बन गई।
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मैंने कई बार सुना है कि जब (युद्ध में कैद हुए) हिन्दू दास भागकर अपने देश और धर्म में वापस जाते हैं, तब हिन्दू उन्हें प्रायश्चित-रूप में उपवास करने का आदेश देते हैं। फिर वे उन्हें गौओं के गोबर, मूत्र और दूध में नियत दिनों तक दबाए रखते हैं... फिर वे उन्हें वही मल खिलाते हैं। मैंने ब्राह्मणों से पूछा कि क्या यह सत्य है परन्तु, वे इससे इनकार करते हैं और कहते हैं कि ऐसे व्यक्ति के लिए कोई भी प्रायश्चित सम्भव नहीं है।’’ (जयचन्द्र)।
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अकबर ने सुजानसिंह हाड़ा को फौज लेकर काबुल के पार जाने को कहा।
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धर्म की बाधा
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