Sanskriti Ke Chaar Adhyay (Hindi)
Rate it:
Read between February 5 - February 26, 2023
76%
Flag icon
धर्म के जीते–जागते स्वरूप परमहंस रामकृष्ण
76%
Flag icon
आर्य–समाज और ब्राह्म–समाज की सीमाएँ
76%
Flag icon
दयानन्द से भेंट करने गया। मुझे ऐसा दिखा कि उन्हें थोड़ी–बहुत शक्ति प्राप्त हो चुकी है। उनका वक्ष-स्थल सदैव आरक्त दिखायी पड़ता था। वे वैखरी अवस्था में थे। रात–दिन लगातार शास्त्रों की ही चर्चा किया करते थे। अपने व्याकरण–ज्ञान के बल पर उन्होेंने शास्त्र–वाक्यों के अर्थ में उलट–फेर कर दिया है। ‘मैं ऐसा करूँगा, मैं अपना मत स्थापित करूँगा’ ऐसा कहने में उनका अहंकार दिखाई देता है।’’
77%
Flag icon
धर्म का यह जीता–जागता रूप उसे तब दिखाई पड़ा, जब परमहंस रामकृष्ण (1836–1886 ई.) का आविर्भाव हुआ।
77%
Flag icon
पंडित और सन्त का भेद
77%
Flag icon
पंडित और सन्त में वही भेद होता है, जो हृदय और बुद्धि में है। बुद्धि जिसे लाख कोशिश करने पर भी नहीं समझ पाती, हृदय उसे अचानक देख लेता है।
77%
Flag icon
भारतीय सुधारकों के सामने एक नहीं तीन शत्रु थे–1. हिन्दू–धर्म की रूढ़ियाँ एवं अन्धविश्वास, 2. ईसाई मिशनरियों के द्वारा निरन्तर की जानेवाली हिन्दुत्व की निन्दा तथा 3. अंग्रेजी पढ़े–लिखे समाज में नास्तिकता का प्रचार।
77%
Flag icon
फिलासफी नहीं, दर्शन
77%
Flag icon
फिलासफी को और कुछ नहीं कहकर ‘दर्शन’ कहते हैं, क्योंकि हमारे दार्शनिक सत्य सोचे या समझे नहीें गए थे, प्रत्युत, ॠषियों ने आत्मा के चक्षु से, उनका दर्शन किया था।
77%
Flag icon
पन्थ नहीं अनुभूति
77%
Flag icon
वे कुछ दिन सच्चे मुसलमान बनकर इस्लाम की भी साधना करते रहे और कुछ काल तक उन्होंने ईसाइयत का भी अभ्यास किया था। भारतवर्ष की धार्मिक समस्या का जो समाधान रामकृष्ण ने दिया है, उससे बड़ा और अधिक उपयोगी समाधान और कोई हो नहीं सकता।
77%
Flag icon
धर्म की साकार प्रतिमा
77%
Flag icon
रामकृष्ण न तो अंग्रेजी जानते थे, न वे संस्कृत के ही जानकार थे, न वे सभाओं में भाषण देते थे, न अखबारों में वक्तव्य। उनकी सारी पूँजी उनकी सरलता और उनका सारा धन महाकाली का नाम–स्मरणमात्र था।
77%
Flag icon
कंचन से विरक्ति
77%
Flag icon
रामकृष्ण रुपये–पैसे को नहीं छूते और द्रव्य के स्पर्शमात्र से उन्हें पीड़ा होने लगती है,
77%
Flag icon
कामिनी के प्रति अनासक्ति
78%
Flag icon
नारी तो हमहुँ करी, तब ना किया विचार, जब जानी तब परिहरी, नारी महाविकार।
78%
Flag icon
तर्क बनाम अनुभूति
78%
Flag icon
सन्त पद्धति से उपदेश
78%
Flag icon
‘‘कामिनी–कांचन की आसक्ति यदि पूर्ण रूप से नष्ट हो जाए, तो देह अलग है और आत्मा अलग है, यह स्पष्ट रूप से दीखने लगता है। नारियल का पानी सूख जाने पर जैसे उसके भीतर का खोपरा (गरी) नरेटी से खुलकर अलग हो जाता है, खोपरा और नरेटी दोनों अलग–अलग दीखने लगते हैं (वैसे), या जैसे म्यान के भीतर रखी हुई तलवार के विषय में कह सकते हैं कि म्यान और तलवार दोनों भिन्न चीजें हैं, वैसे ही, देह और आत्मा के बारे में जानो।’’
78%
Flag icon
माया ईश्वर की शक्ति है, वह ईश्वर में ही वास करती है, तब क्या ईश्वर भी हमारे समान ही मायाबद्ध है?’’
78%
Flag icon
अभागा मनुष्य ही यह मानता है कि मैं पापी हूँ। ऐसा सोचते–सोचते वह पापी हो भी जाता है।’’
78%
Flag icon
विनोदप्रियता
78%
Flag icon
मनीषियों द्वारा अभिनन्दन
78%
Flag icon
कर्मठ वेदान्त, स्वामी विवेकानन्द
78%
Flag icon
गंगा के भगीरथ
78%
Flag icon
रामकृष्ण और विवेकानन्द एक ही जीवन के दो अंश, एक ही सत्य के दो पक्ष हैं। रामकृष्ण अनुभूति थे, विवेकानन्द उनकी व्याख्या बनकर आए।
78%
Flag icon
तन से राजसी, मन से जिज्ञासु
78%
Flag icon
वे सन् 1863 ई. की 12 जनवरी को कलकत्ते में एक क्षत्रिय परिवार में पैदा हुए थे।
78%
Flag icon
वे कुश्ती, बॉक्सिंग दौड़, घुड़दौड़ और तैरना, सभी के प्रेमी और सबमें भली–भाँति दक्ष थे। वे संगीत के भी प्रेमी और तबला बजाने में उस्ताद थे।
78%
Flag icon
नरेन्द्रनाथ हर्बर्ट स्पेंसर और जोन स्टुअर्ट मिल के प्रेमी थे।
79%
Flag icon
अपने छात्र–जीवन में वे केवल शंकावादी ही नहीं, प्रचंड नास्तिक के समान बातें करते
79%
Flag icon
श्रद्धा और बुद्धि का मिलन
79%
Flag icon
रामकृष्ण ने नरेन्द्रनाथ से कुछ भी नहीं लिया, हाँ, अपनी साधना का तेज और अपनी अदृश्यदर्शिनी दृष्टि को नरेन्द्रनाथ में उतारकर उन्होंने उन्हें विवेकानन्द अवश्य बना दिया।
79%
Flag icon
निवृत्ति की परम्परा
79%
Flag icon
जब समाज प्रवृत्तिमार्गी होता है, तब शारीरिक श्रम निन्दा की वस्तु नहीं होता। उस समय हलवाहे और विद्वान्, दोनों, एक समान उद्यमी होते हैं।
79%
Flag icon
धर्म को अफ़ीम कहनेवाला चिन्तक यूरोप में जनमा, जबकि धर्म ने सबसे अधिक विनाश हिन्दुओं का किया है।
79%
Flag icon
सांस्कृतिक राष्ट्रीयता के पिता
79%
Flag icon
स्वामी विवेकानन्द का देहान्त केवल 39 वर्ष की आयु में हो गया,
79%
Flag icon
सांस्कृतिक राष्ट्रीयता के पिता स्वामी विवेकानन्द थे।
79%
Flag icon
शिकागो–सम्मेलन...
79%
Flag icon
सन् 1893 ई. में शिकागो (अमेरिका) में निखिल विश्व के धर्मों का ए...
This highlight has been truncated due to consecutive passage length restrictions.
79%
Flag icon
हिन्दू–जाति का धर्म है कि वह जब तक जीवित रहे, विवेकानन्द की याद उसी श्रद्धा से करती जाए; जिस श्रद्धा से वह व्यास और वाल्मीकि की याद करती है।
79%
Flag icon
यूरोप और अमेरिका को निवृत्ति की शिक्षा
79%
Flag icon
धर्म मनुष्य के भीतर निहित देवत्व का विकास है।’’
79%
Flag icon
भारत को प्रवृत्ति का उपदेश
80%
Flag icon
स्वामीजी ने कहा, ‘‘हाँ, निन्दा का भय माने बिना मांस–मछली तुम जी भर खा सकते हो।
80%
Flag icon
अच्छे और बुरे का भेद, शुद्ध और अशुद्ध का विचार इन्द्रिय-निग्रह नहीं, उस ध्येय के सहायक मात्र हैं।’’
80%
Flag icon
में जो साहस और जो विवेक प्रच्छन्न है, हमें उसे बाहर लाना है। ‘‘मैं भारत में लोहे की मांसपेशियों और फौलाद की नाड़ी तथा धमनी देखना चाहता हूँ, क्योंकि इन्हीं के भीतर वह मन निवास करता है, जो शम्पाओं एवं वज्रों से निर्मित होता है।
80%
Flag icon
हिंसा को कदाचित् वे सभी स्थितियों में त्याज्य नहीं मानते थे।
1 18 23