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February 5 - February 26, 2023
स्थापत्य या वास्तु–कला पर प्रभाव
भारत और, प्राय: समस्त विश्व के सर्वश्रेष्ठ मन्दिर जावा में हैं, यह बात अन्य देशों के विद्वान् भी मानते हैं।
सोमनाथ का मन्दिर पाँच बार तोड़ा गया था और पाँच बार, किसी–न–किसी, हिन्दू राजा ने उसे फिर से बनवा दिया।
धारा नगरी की यज्ञशाला का यही हाल हुआ
कुतुब–मीनार में हिन्दू–कला की जो छाप है, वह इस कारण कि उसमें 27 मन्दिरों के खंडित अंश लगाए गए थे।
विश्वकर्मा और जौहरी का मिलन
साहित्य और भाषा पर प्रभाव
अनाध्यात्मिक काव्य
सबसे प्राचीन दृष्टान्त राजा हाल की ‘गाथा–सप्तशती’ है जिसकी रचना, कदाचित्, ईसा के जन्म के आस–पास हुई थी।
यदि कोई व्यक्ति चिन्तन की ऊँचाइयों तक उड़ना चाहे तो मैत्री उसे किसी हिन्दू विद्वान् से करनी चाहिए। लेकिन, अगर उसे खेलने–कूदने और तैरने का शौक हो तो दोस्ती किसी मुस्लिम नौजवान से अच्छी रहेगी।
हिन्दी के सबसे पहले मुसलमान कवि अमीर खुसरो नहीं, बल्कि, अब्दुर्रहमान हुए हैं। अब्दुर्रहमान मुलतान के निवासी और जाति के जुलाहे थे। राहुलजी ने इनका समय 1010 ई.
दर्द की नई अदाएँ, रूपकों की नई छटा
आलम ब्राह्मण से मुसलमान हुए थे, किन्तु, उनके विख्यात सवैये 3 में विरह की जो टीस है, दर्द की जो अदा है, वह उनके समकालीन कवि–बन्धुओं के लिए किंचित् नवीन रही होगी।
छुरी, कटार, कातिल, मकतल और खून के प्रतीकों द्वारा प्रेम की अनुभूतियों का वर्णन फारसीवाले करते थे।
हमीं को कत्ल करते हैं, हमीं से पूछते हैं वो, शहीदे–नाज, बतलाओ, मेरी तलवार कैसी है?
केशवदास ने नायिकाओं के 360 भेद कहे थे, देव ने 384, किन्तु, सैयद गुलाम नबी ‘रसलीन’ ने उन्हें 1352 तक पहुँचा दिया5
रहीम और रसलीन ने नायिका–भेद का वर्णन शुद्ध संस्कृत–हिन्दी की परम्परा में किया है।
प्रेम-पीड़ा की नई भंगिमा
हिन्दी के भक्ति–काव्य में प्रेम का आलम्बन ईश्वर का साकार रूप है।
सूफी–काव्य में प्रेम अपने–आपमें, स्वतन्त्र मूल्य बन गया।
पोथी पढ़ि–पढ़ि जग मुआ, पंडित हुआ न कोय, ढाई आखर प्रेम का पढ़ै सो पंडित होय।
मुझको शायर न कहो ‘मीर’ कि साहब मैंने, दर्दो ग़म कितने किये जमा तो दीवान किया।
जिन मरने थैं जग डरै
मृत्यु को काम्य मानने का भाव भी भारतीय साहित्य में कबीर से पहले नहीं मिलता है।
जिन मरने थैं जग डरै, सो मेरो आनन्द, कब मरिहूँ कब देखिहूँ पूरण परमानन्द।
अमरता है जीवन का हास, मृत्यु जीवन का चरम विकास,
भक्तों का बहुरियावाद
केवल ओन्दाल ने कृष्ण को अपना पति माना था।
सहजयान ने नर और नारी को कृष्ण और राधा का प्रतीक मान लिया और साधक–साधिका का शारीरिक मिलन भी राधा–कृष्ण के मिलन का प्रतीक माना जाने लगा।
चूड़ी पटकौं पलँग से, चोली लावौं आगि, जा कारन यह तन धरा, ना सूती गर लागि।
भाषा पर प्रभाव
फारसी और अरबी भाषाओं का, बहुत जोर का प्रभाव, सिन्ध, कश्मीर और पंजाब में पड़ा। भाषा
सिन्धी, पंजाबी और कश्मीरी में अरबी और फारसी के इतने अधिक शब्द घुस पड़े कि आर्य–भाषाओं की स्वाभाविक संस्कृतनिष्ठता इन भाषाओं से बहुत दूर हो गई।
चन्दबरदाई ने अपने महाकाव्य में अरबी और फारसी शब्दों का इतना अधिक प्रयोग किया है कि देखकर आश्चर्य होता है।
हिन्दी कवियों की भाषा–नीति
हिन्दी में अरबी और फारसी शब्द
जेन्दावेस्ता की भाषा और वैदिक संस्कृत कभी एक ही भाषा थीं। जेन्दावेस्ता की भाषा से आगे चलकर फारसी उत्पन्न हुई और वैदिक संस्कृत की परम्परा से हिन्दी का
उर्दू का जन्म
खड़ीबोली में साहित्य–रचना
खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग। तन मेरो मन पीउ को, दोउ भये एकरंग।
उर्दू के आरम्भिक कवि
उर्दू का जन्म दक्षिण में क्यों हुआ?
अकबर से पूर्व ही, फिरोजशाह बहमनी ने दो हिन्दू महिलाओं से विवाह किया था जिनमें से एक विजयनगर के राजा देवराय (प्रथम) की पुत्री थी।
खड़ीबोली का ईरानीकरण आरम्भ किया जिससे उर्दू का जन्म हुआ
मतरूकात या बहिष्कार की नीति
कुछ थोड़े–से मुसलमान शायरों और शाहजादों ने हिन्दी में से हिन्दवीपन और हिन्दी के शब्द निकाल–निकालकर अरबी–फारसी के तत्सम और अप्रचलित शब्दों की भरमार कर एक नई बनावटी जबान उर्दू बना ली।’’13 उर्दू का जन्म खड़ीबोली में से संस्कृत और हिन्दी के शब्दों को निकालकर हुआ।
जब उर्दू का जन्म हो रहा था, तब इस देश की राजनीति साम्प्रदायिक हो गई थी और उस राजनीति का प्रभाव साहित्य पर भी जोरों से पड़ा।
सारा उर्दू–साहित्य भारतीय जीवन से दूर, आध्यात्मिक, सामाजिक और राजनैतिक प्रेरणाओं से रहित, फारसी का निरा जूठनमात्र हो गया।
हिन्दी से उर्दू या उर्दू से हिन्दी?
हिन्दी में अरबी, फारसी, तुर्की शब्द बढ़ा देने और फारसी मुहावरे चला देने से उर्दू का जन्म हुआ है।