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February 5 - February 26, 2023
साधु हिन्दी की परम्परा
हिन्दी के कवि जिस भाषा में भी कविता लिखते थे, वह भाषा या भाखा कहलाती थी। लेकिन, बोलचाल की भाषा दूसरी थी।
हिन्दी और उर्दू का गद्य
हिन्दी–गद्य का, निश्चित रूप से, सुस्पष्ट प्रमाण हमें रामप्रसाद निरंजनी के ‘ भाषा–योग–वाशिष्ठ‘ नामक ग्रन्थ में मिलता है, जिसे आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी–गद्य का आदि–ग्रन्थ कहा है।
विवाद का समाधान
सामासिक संस्कृति के कुछ और रूप
तन से भारतीय, मन से ईरानी
शक और हूण, धीरे–धीरे, हिन्दुत्व में समा गए, किन्तु मुसलमान हिन्दुत्व से अलग बने रहे।
हिन्दुत्व की पाचन–शक्ति भी अब बहुत खराब हो चुकी थी। इससे भी वह मुसलमानों को अपने भीतर नहीं पचा सका।
भारत के मुसलमान मन से सपना अरब और ईरान का ही देखते थे। हिन्दुस्तान उनके शरीर का घर था, आत्मा का घर अरब और ईरान था।
गर हो कशिशे–शाहे–खुरासान तो ‘सौदा’ सिजदा न करूँ हिन्द की नापाक जमीं पर।
हिन्दुत्व का प्रभाव
इस्लाम की परम्परा सादगी और मितव्ययिता की परम्परा थी।
पान खाने की आदत मुसलमानों ने हिन्दुओं से ली थी,
कसे–चुस्त पायजामे राजपूतानियों ने मुस्लिम–नारियों से लिये।
हिन्दू जैसे श्राद्ध करते हैं, कुछ उसी प्रकार मुसलमान भी मृत व्यक्तियों के नाम पर भोज करने और खैरात बाँटने लगे।
ताजिये का रिवाज भी भारत छोड़कर और किसी देश में नहीं
स्नान की आदत मुसलमानों ने हिन्दुओं से ली। अरब
राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक, ‘खंडित भारत’ में दी है।
अहिंसा और मुसलमान
स्त्रियों की स्थिति
इस्लाम के सबसे बड़े दर्शनाचार्य अल–ग़ज़ाली (मृत्यु 1117 ई.)
औरतों से राय लेना ठीक है, लेकिन, आचरण हमेशा उसके विपरीत करना चाहिए...नबी ने कहा है, औरत की रचना छाती की टेढ़ी हड्डी से की गई थी। इसलिए, तुम औरत को अगर झुकाना चाहोगे तो वह टूट जाएगी और स्वतन्त्र छोड़ोगे तो वह और भी टेढ़ी हो जाएगी। इसलिए उचित है कि उसके साथ नरमी से पेश आओ।’’
शिक्षा और भाषा की स्थिति
कचहरियों में हिन्दी उर्दू को हटाकर नहीं लाई गई थी बल्कि, उर्दू के साथ हिन्दी का भी चलन जारी किया गया था।
अन्य आदान–प्रदान
कौवाली, कदाचित्, अमीर खुसरो की ईजाद है।
अमीर खुसरो के बारे में कहा जाता है कि वीणा को देखकर सितार का आविष्कार उन्हीं ने किया था तथा मृदंग पर से तबले भी उन्हीं ने निकाले थे।
कई धातुओं से रसायन बनाने का रिवाज मुस्लिम–आगमन के बाद विकसित हुआ। कागज बनाना और कलई करना भी यहाँ मुसलमानों ने आरम्भ किया। पत्थर, चाँदी और सोने पर मीनाकारी के काम, जामदानी, कलाबत्तू, जरदोजी, किमखाब और जामेवार भी मुस्लिम–काल में ही चले।
हमारी देशान्तर और अक्षांश रेखाएँ गिनने की प्रणाली भी मुसलमानों से ली हुई है।
हेलि आदि दर्जनों यूनानी शब्द थे, जिनका रूप संस्कृतवत् हो गया था। मुस्लिम–सम्पर्क से कितने ही अरबी और फारसी के शब्द संस्कृत में समा गए।
बंगाल में रमाई पंडित ने एक शून्य–पुराण भी लिखा (14वीं सदी)
भारत में यूरोप का आगमन
पुर्तगाल
सिकन्दर के समय (ई. पू. चौथी सदी) यूरोप में भारत का नाम काफी प्रसिद्ध था।
आज ‘केन्द्र’ शब्द को देखकर किसी को भ्रम भी नहीं होता है कि यह विदेशी शब्द होगा। किन्तु, तथ्य है कि यह, मूलत:, यूनानी शब्द (केंटर) से निकलकर संस्कृत में आ मिला
सन् 1492 ई. में कोलम्बस नामक स्पेन का व्यापारी भारत का पता लगाने को समुद्र की राह से निकला, पर, भटकता–भटकता अमेरिका पहुँच गया। कुछ साल तक यूरोप अमेरिका को ही भारत मानता रहा।
सन् 1498 ई. में पुर्तगाल का एक नाविक, वास्को–डि–गामा अपनी नावों का बेड़ा लिये, सचमुच ही, भारत आ पहुँचा और कालीकट में समुद्र के किनारे उसकी नाव 27 या 28 मई को लगी।
पुर्तगाली लोग गोआ में अपना किला बनाने में (सन् 1510 ई.) सफल हो गए।
क्रूसेड या धर्म–युद्ध की भावना ने सभी यूरोपीय लोगों को इस्लाम का द्रोही बना दिया था।
1545 ई. में गोआ के गवर्नर ने कहा था कि इस देश में हम एक हाथ में क्रॉस (ईसाइयों का धर्म–चिह्न) और दूसरे में तलवार लिये हुए आए हैं। पुर्तगालवालों का यह बर्बर अहंकार आज भी गोआ के वाइसराय–गेट पर मूर्तिमान
पुर्तगाली राज्य स्वेच्छाचारियों का राज्य था, अन्यायियों का राज्य था
सन् 1560 ई. में पुर्तगालियों ने अपने कब्जे के नगरों और गाँवों में इनक्विजिशन की प्रथा
औरत, मर्द और बच्चे–यहाँ तक कि दूध पीते बच्चे को भी वे माँ की छाती से छीनकर बाजार में बेच देते
सन् 1632 ई. में हुगली और बंगाल में पुर्तगालियों का ऐसा दमन हुआ कि वे बंगाल में फिर कभी मस्तक नहीं उठा सके।
हॉलैंड का आगमन
सन् 1648 ई. में हॉलैंड और पुर्तगाल के बीच जो सन्धि हुई उसके अनुसार गोआ, दमन और दिउ के सिवा, सभी स्थानों से पुर्तगालवाले निकल गए और उन पर अधिकार डच जाति का हो गया।
पुर्तगाल का सांस्कृतिक प्रभाव
कमरा, नीलाम, पादरी, मारतौल, मेज, कुंजी, कमीज, अलमारी, गिरजा, पाउँ (रोटी), फालतू, ये और ऐसे अन्य अनेक शब्द पुर्तगाली भंडार के हैं।
तम्बाकू भारत में आते ही, सभी तबकों के लोगों में आसानी से फैल गई और घर आनेवाले अतिथि को हुक्का या चिलम पिलाना स्वागत का सबसे सुलभ एवं प्रिय रूप हो उठा।