Sanskriti Ke Chaar Adhyay (Hindi)
Rate it:
Read between February 5 - February 26, 2023
50%
Flag icon
प्रपत्ति, शरणागति, आत्म–समर्पण और एकान्तनिष्ठा से विभूषित भक्ति का सम्यक् विकास और प्रचार आलवारों के साहित्य द्वारा नवीं सदी के पूर्व ही सम्पन्न हो चुका था
51%
Flag icon
अभी तक भागवत–पुराण ही भक्ति–आन्दोलन का मूल–ग्रन्थ समझा जाता है। किन्तु हमारा अनुमान है कि इस आन्दोलन का मूल–ग्रन्थ भागवत नहीं, प्रबन्धम् है।
51%
Flag icon
विशिष्टाद्वैत–सम्प्रदाय का प्रथम विवेचन यामुनाचार्य (916 से 1040 ई.) ने किया, जो प्रबन्धम् के सम्पादक श्री नाथमुनि (रघुनाथाचार्य) के पुत्र अथवा पौत्र थे।
51%
Flag icon
रामानुज यह कैसे कह सकते थे कि शूद्रों को वैष्णव होने का अधिकार नहीं है? अधिकार तो उन्होंने दिया, किन्तु, प्रपत्ति को उन्होंने शूद्र भक्तों के लिए, विशेष रूप से विहित बताया।
51%
Flag icon
रामानुज की देन
51%
Flag icon
बारहवीं सदी के आरम्भ में रामानुज ने जिस विशिष्टाद्वैत–दर्शन का महल खड़ा किया, उसकी नींव यामुनाचार्य ने ही डाली थी।
51%
Flag icon
रामानुज के मुख्य ग्रन्थ तीन हैं, (1) वेदार्थ–संग्रह, (2) गीता की टीका और (3) वेदान्त–सूत्र का श्रीभाष्य।
51%
Flag icon
वेदान्त का ईश्वर, असल में, ईश्वर नहीं ब्रह्म है, जिसने संसार की रचना नहीं की, जो भक्तों की प्रार्थना पर ध्यान नहीं देता, जिसे विश्व के प्रपंच से कोई मतलब नहीं, जो शुद्ध, बुद्ध, निराकार और निर्विकार है।
51%
Flag icon
शंकर केवल ब्रह्म का ही अस्तित्व मानते हैं, किन्तु रामानुज–मत में ईश्वर (ब्रह्म) के समान जीव और प्रकृति भी अनादि हैं।
51%
Flag icon
‘तत्त्वमसि’, वेदान्त के इस वाक्य की व्याख्या शंकर ने यह की थी कि जीव भी ब्रह्म ही है। रामानुज ने यह अर्थ चलाया कि ‘तत्’ (अर्थात् सृष्टि का कारण स्वरूप ईश्वर) ‘त्वम्’ (अर्थात् जीव में छिपी हुई आत्मा) से एकाकार है।
51%
Flag icon
रामानुज ने मोक्ष का अर्थ ब्रह्म में विलीन होने की अवस्था को नहीं बताया। उनका कहना है कि मोक्ष उस व्यक्ति को मिलता है जो इस जीवन में भक्ति की साधना को पूर्ण कर चुका है। ऐसे भक्त मृत्यु के बाद एक अन्य शरीर प्राप्त करते हैं तथा अनन्त काल तक वैकुंठ में ईश्वर का सामीप्य लाभ करके वहाँ भी भक्ति की साधना करते रहते हैं।
51%
Flag icon
रामानुज ने आलवारों के इस मुक्त संस्कार को वर्णाश्रम के नियन्त्रणों से कैसे मिलाया, यह भी देखने योग्य है। उन्होेंने ज्ञान, कर्म और भक्ति को तो द्विजों के लिए विहित बताया, किन्तु प्रपत्ति का द्वार सबके लिए उन्मुक्त कर दिया।
51%
Flag icon
स्वामी रामानन्द
51%
Flag icon
रामोपासना का वास्तविक प्रवर्तन रामानन्द ने किया।
51%
Flag icon
संगठन में प्रवेश पाने का अधिकार उन्होंने उन वैष्णवों को भी दिया जो जन्मना शूद्र अथवा मुसलमान थे।
51%
Flag icon
‘आनन्दभाष्य’
51%
Flag icon
रामायण भी हिन्दी में पीछे, तमिल में पहले लिखी गई थी।
51%
Flag icon
कबीर के राम दशरथ के पुत्र नहीं हैं12
51%
Flag icon
राम की कल्पना में कबीर ने जो परिवर्तन किए, उनका कारण इस्लामी प्रभाव था।
52%
Flag icon
उन्नीसवीं सदी में समग्र हिन्दुत्व का पूरा प्रतिनिधित्व परमहंस रामकृष्ण और स्वामी विवेकानन्द ने किया जो मूर्तिपूजा, व्रत, उपवास, अवतार और तीर्थ, सबको सार्थक एवं अनिवार्य समझते थे।
52%
Flag icon
बंगाल में चैतन्य महाप्रभु ने भी (1485–1533 ई.) मुसलमानों को शिष्य–रूप में स्वीकार किया।
52%
Flag icon
शंकरदेव ने जो महापुरुषीय सम्प्रदाय चलाया,
52%
Flag icon
महापुरुषाीय–सम्प्रदाय में शूद्र गुरु भी ब्राह्मण शिष्य को दीक्षा दे सकता
52%
Flag icon
शैवाचार्य
52%
Flag icon
शैवाचार्य नाम्बिआन्दार–नम्बी ने शैव गानों और पदों का संकलन ग्यारह जिल्दों में किया, जिनका सम्मिलित नाम ‘तिरुमरइ’ या पावन पुस्तक
52%
Flag icon
आलवारों के पदों में जो स्थान विष्णु का था, नायनारों के गीतों में वही स्थान शिव का है।
52%
Flag icon
रहस्यवाद
52%
Flag icon
इस पद्धति की अभारतीयता यह है कि इसमें परमात्मा को नायिका का रूप दे देते हैं, जबकि भारतीय दृष्टिकोण से परमात्मा ही पुरुष और आत्मा ही नारी मानी जाती है।
52%
Flag icon
भक्ति–आन्दोलन में हिन्दी में तीन प्रकार के कवि उत्पन्न हुए।
52%
Flag icon
अमृत और हलाहल का संघर्ष
52%
Flag icon
तौहीदे–इलाही
53%
Flag icon
हिन्दुओं के बीच इस्लाम के प्रति श्रद्धा जगाने को उसने एक छोटा–सा उपनिषद् भी लिखवाया था, जिसका नाम ‘ अल्लोपनिषद्“e;
53%
Flag icon
सन् 1593 ई. में, उसने धार्मिक स्वतन्त्रता के लिए कई आज्ञाएँ निकालीं, जिनमें से प्रमुख ये थीं कि (1) कोई जबर्दस्ती मुसलमान बनाया गया हिन्दू अगर फिर हिन्दू बनना चाहे तो उसे कोई न रोके। (2) किसी भी आदमी को जबर्दस्ती एक धर्म से दूसरे धर्म में न लाया जाए। (3) प्रत्येक व्यक्ति को अपना धर्म–मन्दिर बनाने की पूरी स्वतन्त्रता रहे और (4) जबर्दस्ती किसी विधवा को सती न बनाया जाए।
53%
Flag icon
हलाहल का विस्फोट
53%
Flag icon
शेख अहमद सरहिन्दी
53%
Flag icon
शेख अहमद सरहिन्दी का जन्म 1563 ई. में हुआ था और उसकी मृत्यु सन् 1624 ई. में, यानी अकबर की मृत्यु के कोई 19 साल बाद हुई।
53%
Flag icon
हिन्दुओं से शेख अहमद को भयानक विद्वेष था। वह उन्हें काफिर समझता था और उसका विश्वास था कि काफिरों के दलन और अपमान से बढ़कर भगवान् को प्रसन्न करने का और कोई उपाय नहीं है।
53%
Flag icon
शेख अहमद सरहिन्दी के मरने के बाद उसके मतों के प्रचार का बीड़ा अहमद के पुत्र, मुहम्मद मासूम ने उठाया। और जब मासूम का देहान्त हुआ, तब उसके बेटे शेख सैफुद्दीन
53%
Flag icon
शेख सैफुद्दीन को औरंगजेब ने अपना गुरु बनाया
53%
Flag icon
अमृत की पराजय
53%
Flag icon
औरंगजेब ने दाराशिकोह को मार डाला। जिस दिन दाराशिकोह मारा गया, उस दिन हलाहल जीता और अमृत हार गया।
53%
Flag icon
एकता के दुर्बल प्रहरी
53%
Flag icon
1632 ई. में, न जाने शाहजहाँ को क्या हुआ कि उसने फरमान निकाल दिया कि अब आगे से नए मन्दिर नहीं बनवाए जाएँ और जो मन्दिर बनाए जाने के क्रम में हों, वे तोड़ दिए जाएँ।
53%
Flag icon
पराजित पीयूष, दाराशिकोह
53%
Flag icon
क्रान्तिकारी का साथी कोई नहीं
53%
Flag icon
औरंगजेब ने दाराशिकोह का पीछा किया, बेचारा दारा बाज के द्वारा खदेड़े हुए कपोत के समान सारे राजस्थान और पंजाब में त्राण खोजता भागता फिरा। किन्तु, कोई भी हिन्दू माई का लाल ऐसा नहीं निकला, जो उसे शरण दे अथवा उसकी ओर से झंडा लेकर खड़ा हो।
54%
Flag icon
धर्मान्धता का परिणाम
54%
Flag icon
विद्रोह मचाया कि मुगल–साम्राज्य की नींव ही उखड़ गई। किन्तु औरंगजेब की धर्मान्धता पर सबसे विलक्षण टीका यह हुई कि उसके अन्याय से आहत होकर गुरु नानक का चलाया हुआ सिक्ख–सम्प्रदाय, जो शान्त भक्तों का सम्प्रदाय था, खुलकर सैनिकों का सम्प्रदाय बन गया।
54%
Flag icon
अकबर और औरंगजेब
54%
Flag icon
भारतीय इस्लाम के सबसे बड़े कवि सर मुहम्मद इकबाल ने
1 10 23