Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan Quotes
Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
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Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan Quotes
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“खामोशी से कहा, “अब मैं रात-भर तूफान के साथ टहलने, प्रकृति की अभिव्यक्ति की निकटता को महसूस करने जा रहा हूँ। पतझड़ और जाड़े के दिनों में मुझे ऐसा करने में बहुत आनंद आता है।”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
“यह आत्मा में होनेवाली जागृति है। जो इसे जानता है, वह इसे शब्दों में बयान नहीं कर सकता और जो इसे नहीं जानता, वह कभी वजूद के जबरदस्त और खूबसूरत रहस्य पर विचार नहीं करेगा।” एक घंटा बीत गया था और यूसुफ अल फाखरी कमरे में लंबे डग भरता घूम रहा था।”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
“एक सौम्य और निश्छल स्वर में उसने कहा, “यह आत्मा में होनेवाली जागृति है। यह दिल की गहराइयों में होनेवाली जागृति है। यह एक जोरदार और शानदार शक्ति होती है, जो अचानक उसकी आँखों पर उतरती है, जिससे वह जिंदगी को सुंदर संगीत की चकरा देनेवाली बौछार के बीच विशाल प्रकाश-चक्र से घिरा हुआ देखता है, जिसमें मनुष्य तो सुंदरता के एक स्तंभ के समान धरती और आकाश के बीच खड़ा होता है। यह एक ज्वाला होती है, जो अचानक आत्मा के अंदर भड़कती है और हृदय को झुलसाकर शुद्ध कर देती है। धरती से ऊपर उठती और विराट् आकाश में मँडराती है। यह एक दयालुता होती है, जो व्यक्ति के हृदय को अपने घेरे में ले लेती है, जिससे वह इसका विरोध करनेवाले सभी लोगों को हैरान व नापसंद कर देता है और इसके महान् अर्थ को न समझने वालों से बगावत कर देता है। यह एक खुफिया हाथ है, जिसने उस समय मेरी आँखों से परदा हटा दिया था, जब मैं मेरे परिवार, मेरे दोस्तों और मेरे देशवासियों के बीच समाज का सदस्य था।”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
“सभ्यता व्यर्थ है। उसमें जो कुछ है, सब व्यर्थ है। आविष्कार और अन्वेषण थके हुए और क्लांत शरीर के लिए महज मनोरंजन और सहूलियत हैं। दूरी को मिटाना और सागरों पर विजय पाना तो महज झूठे फल हैं, जो न तो आत्मा को संतुष्ट करते हैं, न दिल को पोसते हैं और न ही मन का उत्थान करते हैं, क्योंकि वे प्रकृति से बहुत दूर हैं। जिन ढाँचों और सिद्धांतों को मनुष्य ज्ञान और कला कहता है, वे कुछ नहीं, बस बेड़ियाँ और सुनहरी जंजीरें हैं, जिन्हें मनुष्य घसीटता है और वह उनके चमचमाते अक्सों व उनकी खनखनाती आवाजों में खुश होता है। वे तो मजबूत पिंजरे हैं, जिनकी सलाखों को इनसान ने युगों पहले बनाना शुरू कर दिया था और उसे पता नहीं था कि वह अंदर से इन्हें बना रहा है और जल्दी ही वह अनंत के हाथों अपना ही कैदी हो जाएगा। हाँ, व्यर्थ हैं कर्म मनुष्यों के और व्यर्थ हैं उसके मकसद। धरती पर सबकुछ व्यर्थ है।”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
“दोनों के बीच जो फर्क है, वह बाघ और शेर के फर्क से ज्यादा नहीं है। एक उचित और मुकम्मल नियम है, जो मैंने समाज के बाहरी आवरण के पीछे देखा है, जो बदहाली और खुशहाली तथा अज्ञान को बराबर कर देता है। यह एक कौम को दूसरी कौम से ज्यादा पसंद नहीं करता”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
“जिसे मैं हकीकत में सच समझता हूँ, वह मेरे अंतस की पुकार है। मैं यहाँ रह रहा हूँ और मेरे वजूद की गहराइयों में एक प्यास और भूख है। मुझे आनंद आता है, जब मैं उन पात्रों से जीवन की सुरा और रोटी ग्रहण करता हूँ, जिन्हें मैं अपने हाथों से बनाता और तैयार करता हूँ।”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
“क्या कभी वह समय आएगा, जब मनुष्य जीने के अधिकार पर कायम रहेगा और दिन की चमकदार रोशनी और रात की शांतिपूर्ण खामोशी के साथ खुशी मनाएगा?”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
“धरती पर कोई ऐसा नहीं है, जो इनसानियत का फायदा कर सके। बोनेवाला चाहे कितना भी अकलमंद और होशियार क्यों न हो, वह खेत को जाड़े में अंकुरित नहीं कर सकता।”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
“एकांत की तलाश इसलिए की, क्योंकि इसमें आत्मा के लिए और दिल के लिए, देह के लिए पूरा जीवन है। मुझे वे अनंत घास के मैदान मिले, जहाँ सूरज की रोशनी विश्राम करती है, जहाँ फूल अपनी खुशबू अंतरिक्ष में छोड़ते हैं, जहाँ धाराएँ गुनगुनाती हुई सागर की राह तय करती हैं। मैंने वे पहाड़ देखे, जहाँ मुझे वसंत का नूतन जागरण और ग्रीष्म का रंगीन बसेरा मिला, शीत का। मैं परमेश्वर के राज्य के इस दूर-दराज कोने में इसलिए आया, क्योंकि मुझमें संसार के रहस्यों को जानने की, परमेश्वर के सिंहासन के नजदीक पहुँचने की भूख थी।” यूसुफ”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
“मैंने इसलिए दुनिया को छोड़ा और एकांत की तलाश की, क्योंकि मैं उन तमाम साधारण लोगों को शिष्टाचार दिखा-दिखाकर थक गया था, जो यह मानते हैं कि विनम्रता तो एक तरह की कमजोरी है और दया एक तरह की कायरता तथा अकड़ एक तरह की ताकत है। “मैंने एकांत की तलाश इसलिए भी की, क्योंकि मेरी आत्मा उन लोगों की संगति से तंग आ गई थी, जो पूरी निष्ठा के साथ यह मानते हैं कि सूरज, चाँद और सितारे बस उनके खजानों में उगते और बस उनके बागों में डूबते हैं।”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
“मैंने एकांत की तलाश प्रार्थना करने और एक साधु का जीवन बिताने के लिए नहीं की; क्योंकि प्रार्थना तो हृदय की गति होती है और वह हजारों स्वरों की चीख-चिल्लाहट के बीच भी परमेश्वर के कानों तक पहुँच ही जाती है। संन्यासी का जीवन जीने का मतलब है—शरीर और आत्मा को यातना देना और इच्छाओं को मारना। यह ऐसी जिंदगी है, जिससे मुझे चिढ़ होती है, क्योंकि परमेश्वर ने शरीर को आत्मा का मंदिर बनाया है और यह हमारा मकसद है कि परमेश्वर ने हम पर जो भरोसा जताया है उसे बनाकर रखें। “नहीं मेरे भाई, मैंने धार्मिक उद्देश्य के लिए नहीं बल्कि केवल लोगों और उनके नियमों, उनकी परीक्षाओं और उनकी परंपराओं, उनके विचारों और उनकी चीख-पुकार व हाय-तौबा से बचने के लिए एकांत की तलाश की।”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
“गहरे चिंतन में रहा और फिर बोला, “मैं परमेश्वर के जीवों के बीच रहकर भी उसकी इबादत कर सकता था, क्योंकि इबादत के लिए एकांत की जरूरत नहीं होती। मैंने परमेश्वर को देखने के लिए लोगों को नहीं छोड़ा, क्योंकि उसको तो मैंने अपने पिता और माँ के घर में हमेशा ही देखा है। मैंने तो लोगों को इसलिए छोड़ा, क्योंकि उनके स्वभाव मेरे स्वभाव से टकराते थे। उनके सपने मेरे सपनों से मेल नहीं खाते थे। मैंने मनुष्य को छोड़ दिया, क्योेंकि मेरी आत्मा का चक्र एक ओर घूम रहा था और दूसरी आत्माओं के चक्रों से रगड़ खा रहा था, जो विपरीत दिशा में घूम रहे थे। मैंने सभ्यता को इसलिए छोड़ दिया, क्योंकि मुझे यदि एक पुराना और विकृत पेड़ लगा, जो मजबूत और भयंकर है और जिसकी जड़ें धरती की गुमनामी में बंद हैं तथा उसकी शाखाएँ बादलों के पार पहुँच रही हैं; लेकिन इसके फूल लालच, दुष्टता और गुनाह के हैं। मुजाहिदों ने इसमें भलाई घोलने की और इसकी फितरत बदलने की कोशिश की, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली। वे निराश, प्रताड़ित और आहत होकर मर गए।”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
“उसने मौत के सायों से मुँदी आँखें उठाकर देखा और कोमल स्वर में कहा— “हे न्याय, जो इन भयंकर छवियों के पीछे छिपे हो तुम और केवल तुम, मेरी विदा होती आत्मा की चीख और मेरे उपेक्षित हृदय की पुकार सुनो! अकेले तुमसे मैं प्रार्थना और याचना करती हूँ कि मुझ पर रहम करो और अपने दाहिने हाथ से मेरे बच्चे की हिफाजत करो और अपने बाएँ हाथ से मेरी आत्मा को ग्रहण करो।”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
“जब वह मेरे जिस्म से छक लिया और मेरी आत्मिक गरिमा को उसने झुका लिया तो वह वहाँ से चला गया। मेरे अंदर एक जीता शोला छोड़ गया, जो मेरे जिगर से खुराक पाकर तेजी से बढ़ने लगा।”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
“आत्मा तो ईश्वरीय शृंखला की एक कड़ी है। आग की तपिश इस कड़ी का रंग-रूप बिगाड़ सकती है और इसकी सुडौल सुंदरता को बेडौल कर सकती है, लेकिन वह अपने सोने को किसी और धातु में तब्दील नहीं कर सकती; बल्कि वह तो और भी चमकदार हो जाएगी।”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
“मेरे बच्चे को हिकारत की नजरों से देखेंगे और उसका यह कहकर मजाक उड़ाएँगे कि यह तो पाप की पैदाइश है। यह मार्था वेश्या का बेटा है। यह शर्म के संजोग की औलाद है। वे उसके बारे में और भी बहुत कुछ कहेंगे; क्योंकि वे तो अंधे हैं। उन्हें दिखाई नहीं देगा। उन्हें मालूम नहीं कि उसकी माँ ने उसके बचपन दु:ख और बदनसीबी से उसकी जिंदगी के लिए प्रायश्चित्त किया है।”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
“तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ, यहाँ से चले जाओ; क्योंकि तुम्हारा यहाँ होना तुम्हारे लिए शर्म का कारण होगा और मुझ पर तरस खाने से तुम्हें बेइज्जती तथा नफरत ही मिलेगी। जाओ, इससे पहले कि सुअरों की गंदगी से गंदे इस गंदे कमरे में कोई तुम्हें देखे, यहाँ से चले जाओ। तेज कदमों से निकल जाना और अपने लबादे में अपना मुँह छिपा लेना, ताकि यहाँ से गुजरनेवाला कोई तुम्हें पहचान न पाए। तुम्हारी यह करुणा मेरी पाकीजगी को लौटा नहीं पाएगी, न ही मेरे पापों को धो पाएगी और न ही यह मेरी तरफ बढ़ते मौत के मजबूत हाथ को रोक पाएगी। मेरी बदनसीबी और मेरे गुनाह ने मुझे इन अँधेरी गहराइयों में धकेल दिया है। अपनी दया से अपने आपको कलंकित होने के करीब मत आने दो। मैं तो कब्रों के बीच रह रही एक कोढ़िन हूँ। मेरे पास मत आओ। ऐसा न हो कि लोग तुम्हें नापाक समझें और तुमसे दूर भागें। अब लौट जाओ, लेकिन मेरा नाम उन पवित्र वादियों में मत लेना, क्योंकि चरवाहा अपने झुंड के डर से बीमार भेड़ को अपनाने से इनकार कर देगा। अगर तुम मेरा नाम लो भी तो बस इतना कहना कि बान की रहनेवाली मार्था मर गई। और कुछ मत कहना।”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
“तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ, यहाँ से चले जाओ; क्योंकि तुम्हारा यहाँ होना तुम्हारे लिए शर्म का कारण होगा और मुझ पर तरस खाने से तुम्हें बेइज्जती तथा नफरत ही मिलेगी। जाओ, इससे पहले कि सुअरों की गंदगी से गंदे इस गंदे कमरे में कोई तुम्हें देखे, यहाँ से चले जाओ। तेज कदमों से निकल जाना और अपने लबादे में अपना मुँह छिपा लेना, ताकि यहाँ से गुजरनेवाला कोई तुम्हें पहचान न पाए। तुम्हारी यह करुणा मेरी पाकीजगी को लौटा नहीं पाएगी, न ही मेरे पापों को धो पाएगी और न ही यह मेरी तरफ बढ़ते मौत के मजबूत हाथ को रोक पाएगी। मेरी बदनसीबी और मेरे गुनाह ने मुझे इन अँधेरी गहराइयों में धकेल दिया है।”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
“क्या चाहिए तुम्हें, अरे आदमी? क्या तुम मेरी जिंदगी की आखिरी धज्जियाँ खरीदने आए हो कि उन्हें अपनी हवस से गंदा कर सको? चले जाओ मेरे पास से, क्योंकि ऐसी गलियों में ऐसी औरतों की कोई कमी नहीं है, जो अपने शरीर और अपनी आत्मा को सस्ते में बेचने को तैयार रहती हैं। लेकिन मेरे पास बेचने को कुछ उखड़ती साँसों के सिवाय कुछ नहीं है—और उन्हें भी मौत कब्र की शांति के बदले जल्द ही खरीद लेगी।”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
“उसकी आवाज इतनी टूटी हुई और कमजोर थी मानो उसे लंबी यातना की धरोहर के तौर पर मिली हो। मैंने उसके छोटे से पीले चेहरे में झाँका और उसकी आँखों को गौर से देखा, जो क्लांति और दरिद्रता की छायाओं से काली पड़ गई थी। उसका मुँह एक चोटिल सीने में घाव की तरह थोड़ा सा खुला था। उसकी मुरझाई नंगी बाँहें और उसका ठिगना छोटा शरीर फूलों की ट्रे पर झुका था, जैसे ताजा हरे पौधों के बीच पीला पड़ गया और मुरझाया हुआ गुलाब का पौधा हो।”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
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“क्या कभी वह दिन आएगा, जब मनुष्य की शिक्षक प्रकृति होगी और मानवता उसकी किताब और जिंदगी उसकी पाठशाला होगी?क्या वह दिन आएगा?”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
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“यह तो एक चिड़िया की तरह है, जो अपना पिंजरा खुला पाकर इधर-उधर उड़ती है। उसका सीना गीत और कैद से छूटने की खुशी में फूला रहता है। यौवन एक खूबसूरत सपना होता है, लेकिन इसकी सरसता पुस्तकों की नीरसता की गुलाम होती है और इसका जागना कठोर होता है। क्या”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
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“उसकी चमकती त्वचा को देखा, जो उसे सूरज की देन थी, उसकी बाँहों को देखा, जिन्हें प्रकृति ने मजबूत बनाया था। लेकिन वह खामोश और शरमाई हुई ही खड़ी रही। वह वहाँ से जाना नहीं चाहती थी और पता नहीं क्यों, उसमें बोलने की ताकत भी नहीं थी।”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
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“उस सारी रात चुपचाप सपने में उसे एक जंगली जानवर के पंजों में देखता है कि वह उसके जिस्म को फाड़कर टुकड़े-टुकड़े किए दे रहा था, जबकि वह मुसकराती और रोती जा रही थी।”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
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“कवि की कल्पना में मुक्त विचारोें की तरह अपनी जमीनी कारा से मुक्त एक झरने के किनारे बैठी थी और पेड़ों से गिरती पीली पत्तियों का फड़फड़ाना देख रही थी। वह उनके साथ हवा को खेलता देख रही थी, जैसे मौत मनुष्यों की आत्माओं के साथ खेलती है। उसने फलों को गौर से देखा। उसने देखा कि वे मुरझा गए थे और उनके दिल सूख गए थे और टूटकर छोटे-छोटे टुकड़ों में बिखर गए थे।”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
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“निर्मलता और आत्मिक शुद्धतावाली उस खूबसूरत और सादगी भरी जिंदगी के फलसफे को हम भूल चुके हैं, या कम-से-कम अपने आपसे तो हम यही कहते हैं। अगर हम मुड़कर देखें तो हमें यह वसंत में मुसकराती, ग्रीष्म के सूरज के साथ भीगती, शिशिर में फसल काटती और शांति में विश्राम करती दिखाई दे जाएगी”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
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“अपनी तुलना बस यूँ ही उस ताजा अछूती मिट्टी से करती, जिसमें अभी ज्ञान के बीज नहीं बोए गए थे और जिस पर अभी अनुभव के निशान नहीं पड़े थे। वह एक गहन-गंभीर और आत्मा से पवित्र लड़की थी, जिसे नियति के निर्देश ने उस खेत में निर्वासित कर दिया था, जहाँ जिंदगी साल में आते-जाते मौसमों के बीच एक बँधे-बँधाए ढर्रे पर बीतती थी। मानो वह धरती और सूरज के बीच रह रहे किसी अनजान देवता की छाया थी। हममें”
― Khalil Zibran Ki Lokpriya Kahaniyan
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