चरमस्तरीय व्यंग्य
कुछ दूर चलने पर रंगनाथ ने कहा, "गलती मेरी थी। मुझे कुछ कहना नहीं चाहिए था। "
रुप्पन बाबू ने सांत्वना दी, "बात तो ठीक ही है। पर कसूर तुम्हारा भी नहीं, तुम्हारी पढाई का है। "
सनीचर ने भी कहा, "पढ़कर आदमी पढ़े-लिखे लोगों की तरह बोलने लगता है। बात करने का असली ढंग भूल जाता है। "
— Jul 23, 2020 03:38AM
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