लाक्षागृह (कृष्ण की आत्मकथा -IV)
Rate it:
Kindle Notes & Highlights
77%
Flag icon
‘‘अकेला ही तो संसार में आया हूँ। अकेला यहाँ से जाऊँगा भी।’’
77%
Flag icon
‘‘तुम किसी बात को लेकर बहुत दूर तक पकड़े मत रहा करो। यह सदा याद रखो कि परिस्थितियाँ ही मनुष्य को प्रभावित करती रहती हैं।
78%
Flag icon
‘‘हर प्रकाशमान की नियति चारों ओर से अंधकार से घिरने की होती है।’’ विपत्ति में उभरनेवाली एक शाश्वत मुसकान मेरे अधरों पर आई—‘‘वह दीप क्या, जो अंधकार से घिरा न हो! अँधेरा ही उसे अस्मिता प्रदान करता है और उसकी उपयोगिता भी स्थापित करता है।’’
79%
Flag icon
ब्राह्मण का अहं कुछ भी करने को तैयार हो जाता है।
79%
Flag icon
एक ब्राह्मण का क्रोध तो हिमखंड पर अप्रत्याशित उभरी वह दावाग्नि है, जो अंततः उसके अस्तित्व को ही भस्म करके उड़ा देती है।
79%
Flag icon
संसार में सारे पापों का प्रायश्चित्त है, पर कृतघ्नता का कोई प्रायश्चित्त नहीं है।’’
79%
Flag icon
भूल करना तो मनुष्य की प्रकृति है; पर उसको सुधार लेना उसकी संस्कृति है।’’
80%
Flag icon
‘‘गुरु के ज्ञान का उत्तराधिकार तो उसके शिष्य का ही होता है।’’
80%
Flag icon
आपने अभी कहा है कि अर्जुन आपका सबसे प्रिय शिष्य था। क्या उसके लिए आपके आचार्यत्व ने ज्ञान लुटाते हुए निष्पक्षता बरती होगी?’’
80%
Flag icon
सबकुछ बन सकता हूँ, पर सांदीपनि नहीं बन सकता।’’
80%
Flag icon
‘‘मार्ग की भी आवश्यकता है और चलने की शक्ति की भी। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं, एक-दूसरे से अलग नहीं।’’
81%
Flag icon
‘काल किसी व्यक्ति से कम छलिया नहीं है। यदि कन्हैया ऐसे ही छलिया होते तो पांडवों को अवश्य बचा लेते।’ मैं बोला।’’
82%
Flag icon
‘इस युग में अब युद्ध और प्रेम में कुछ भी उचित-अनुचित नहीं रह गया।
83%
Flag icon
मैं जितनी शीघ्रता में हूँ उतनी ही बाधाएँ आती जा रही हैं।
83%
Flag icon
यद्यपि हमारा चिंतन पशुओं से अधिक विकसित है; पर हमारे राग-द्वेष ने हमारी संवेदनशीलता के पंख बहुत कतर दिए हैं और हम सहज प्रकृति के आकाश में उतनी सरलता से नहीं उड़ पाते और न अपने मित्र तथा शत्रु का उचित अनुमान लगा पाते हैं। वस्तुतः हम इस प्रयास में अपनी उस बुद्धि से काम लेते हैं, जो काम, क्रोध, लोभ, मोह से बेतरह घायल होती है।
83%
Flag icon
कभी-कभी समय अपना अवगुंठन स्वयं खोल देता है।’’
84%
Flag icon
‘तुम कहते कुछ और हो, करते कुछ और हो तथा सोचते कुछ और हो।
84%
Flag icon
आज की राजनीति की यही नियति है कि वह कार्य नहीं, परिणाम देखती है; साधन नहीं, साध्य देखती है।’ ‘तब सत्य तो बहुत दूर चला जाता होगा।’ मेरा प्रत्यय बोला। ‘सत्य मूल्यवान् है, पर समय और परिस्थितियाँ सत्य से अधिक मूल्यवान् हैं।’
84%
Flag icon
मनुष्य हो या कोई समाज, वह अपनी मूल पहचान खोता नहीं है, उसपर अन्य पहचान ओढ़ अवश्य लेता है।’’
85%
Flag icon
तुमने एक सत्य तो स्वीकार किया कि मैं भगवान् हूँ नहीं, भगवान् दिखाई देता हूँ।’’
86%
Flag icon
इसे अच्छी तरह समझ लो, छंदक, मृत्यु किसीके लाए नहीं आती। उसका समय होता है—और जब आती है तो खाली हाथ नहीं जाती।’’
86%
Flag icon
तुम अभी भविष्य के प्रश्न क्यों खड़े कर रहे हो? इस समय हमारे सामने जो विचारणीय प्रश्न है, हमें अपना चिंतन वहीं तक सीमित रखना चाहिए।
86%
Flag icon
संसार में ऐसी कोई समस्या नहीं, जिसका समाधान न खोज निकाला जा सके।’’
87%
Flag icon
फिर लोभी ब्राह्मण पर भरोसा करना विषैले सर्प पर भरोसा करना है।’’
87%
Flag icon
‘‘पर क्या तुम्हारे सोचने से यह होने वाला है?’’ मैंने बड़े प्रभावशाली ढंग से कहा, ‘‘यदि मनुष्य जैसा सोचता है वैसा ही होने लगता तो पांडव वास्तव में भस्म हो गए होते। मनुष्य के वश में बस सोचना है; पर करती नियति है। उसने हम सबको कार्य सौंप दिए हैं। जब तक वे कार्य पूरे नहीं होते, हमें उनसे मुक्ति नहीं मिलती।’’
87%
Flag icon
और यही रहस्यमयता तो मुझे भगवान् बनाती है।’’
88%
Flag icon
नारी कहीं की हो, कोई भी हो; पर उसकी कई समस्याएँ एक जैसी होती हैं।
88%
Flag icon
आस्था टूटते ही भगवान् भी निरर्थक हो जाता है।
88%
Flag icon
वह कई में विभाजित हो सकती है, पर अपने प्रेम को विभाजित होने देना नहीं चाहेगी। वह आज के समाज में मात्र भोग्या है, भोक्ता नहीं।’’
88%
Flag icon
संगीत एक स्वर्गिक कला है, जो प्रकृति और पुरुष का भेद मिटा देती है।
89%
Flag icon
अप्रिय को रहस्य के गर्भ में ही रहने दिया।
89%
Flag icon
कूटनीति जब तक रहस्य की मंजूषा में रहती है तब तक वह बहुमूल्य रत्न है, बाहर होते ही वह काँच का टुकड़ा हो जाती है।
89%
Flag icon
जहाँ कृष्ण हैं वहाँ कुछ भी असंभव नहीं। दो खाइयों पर सेतु बना देना उनकी कूटनीति के बाएँ हाथ का खेल है।’’
90%
Flag icon
क्योंकि मैं कभी किसी व्यक्ति के पक्ष में नहीं होता। यदि होता भी हूँ तो अस्थायी तौर पर; क्योंकि व्यक्ति स्वयं अस्थायी है। उसका अस्तित्व अस्थायी है। उसका मन अस्थायी है। उसका चिंतन अस्थायी है। स्थायी तो इस धरती पर केवल एक धर्म है। और मैं उसीके पक्ष में रहता हूँ।
90%
Flag icon
‘‘मैं परिणाम पर कभी नहीं सोचता और न किसीको सोचने की सलाह देता हूँ। जो अपने हाथ में नहीं है, उसपर सोचना क्या! हाँ, इतना अवश्य है कि जो होना है, वही होगा।’’
90%
Flag icon
‘‘मरीचिका से ग्रसित व्यक्ति को यदि कहीं से जल दिखाई भी पड़े तो उसकी दृष्टि उधर नहीं जाती। उसकी दृष्टि तो मरीचिका की ओर ही लगी रहती है; जो वस्तुतः भ्रम है, भुलावा है, छलना है। इसी प्रकार द्रुपद का प्रतिशोध भी एक छलना है। ऐसे में उसने सत्य की पहचान खो दी है। वह ऐसा विक्षिप्त है, जो अपने लक्ष्य के लिए व्याकुल है, पर अपने लक्ष्य को ही नहीं पहचानता।’’
91%
Flag icon
जानते हो, भीतर का भाव छिपाने पर वह एक-न-एक दिन विषैले व्रण की तरह फूटता है और सारे व्यक्तित्व को घायल कर देता है।’’
92%
Flag icon
‘‘मानवीय संबंधों का एक ही आधार है—और वह है विश्वास। यदि वह आधार खिसका तो संबंध फिर वायवी ही रह जाते हैं।’’
92%
Flag icon
‘‘जीवन के साथ तो कुछ भी नहीं जाता, सिवा धर्म के।’’
92%
Flag icon
क्रोध वह आग है, जो दूसरों को जलाने के पहले स्वयं को जलाती है।
92%
Flag icon
नारी की इच्छा सर्वोपरि है;
94%
Flag icon
जन्म से भले ही तुम स्वयं को अंत्यज समझते हो। फिर जन्म से हर व्यक्ति अंत्यज होता है। जाति का आधार तो कर्म है।’’
94%
Flag icon
कर्म की गरिमा को स्वीकार किए बिना कोई समाज बहुत दिनों तक जीवित नहीं रह सकता।’’
94%
Flag icon
सचमुच ऐसे साधक ही वास्तविक साधक हैं; जो फल को नहीं, केवल कर्म को देखते हैं।
95%
Flag icon
किसी और से लड़कर तो मनुष्य जीत भी सकता है, पर वह जब स्वयं अपने से लड़ने लगता है तब पराजित ही होता है।’’ ‘‘और यही पराजय उसकी विजय है।’’ छंदक बीच में ही बोल उठा—‘‘मनुष्य जब स्वयं अपने विरुद्ध खड़ा होता है तो पराजय और विजय के लिए नहीं खड़ा होता, स्वयं को तौलने के लिए खड़ा होता है। यही उसका आत्माकलन है। यह घड़ी बड़े संकट की होती है—और महत्त्व की भी।’’ मैंने छंदक को बड़े ध्यान से देखा और अपने पर बहुत कुछ नियंत्रण करते हुए बोला, ‘‘जब व्यक्ति धराशायी होता है तब उसे हर व्यक्ति ज्ञान देने लगता है।’’
96%
Flag icon
‘घूमने-फिरने से रास्ते का ज्ञान होता है। इसका स्पष्ट अर्थ है कि तुम लोग देशाटन करो। इससे ज्ञान और अनुभव की वृद्धि होती है। यह तभी निर्विघ्न हो सकता है, जब इसकी जानकारी किसीको न हो।’
96%
Flag icon
वे केवल विदुर का संकेत समझते हैं और कर्म करते हैं। फल तो उन्होंने मुझपर छोड़ दिया है।’’
96%
Flag icon
‘‘जब शत्रुता मित्रता का मुखौटा लगाकर उपस्थित होती है तब वह बहुत अच्छी लगती है; क्योंकि नाटक यथार्थ से आकर्षक भी होता है और मनोरंजक भी।’’
97%
Flag icon
‘‘तनावमुक्त होने के लिए हर परिस्थिति को बहुत हलके से लेना चाहिए; क्योंकि मैं जिसका कर्ता नहीं हूँ, उसे गंभीरता से लेकर व्यग्र क्यों होऊँ! कर्ता तो नियति है। मैं तो उसका माध्यम हूँ, निमित्त हूँ। आप भी चिंतामुक्त होइए, जो होना है वही होगा।’’
97%
Flag icon
क्या यह नहीं हो सकता कि द्रोण के किसी शिष्य का धनुष कभी द्रोण के विरुद्ध ही उठे? न आप जानते हैं और न मैं जानता हूँ कि नियति के प्रकोष्ठ में कैसे-कैसे अद्भुत चमत्कार छिपे हैं!’’