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क्रोध की प्रतिक्रिया में किया गया क्रोध उससे भी बड़ा क्रोध है। बुराई की प्रतिक्रिया में की गई बुराई उससे भी बड़ी बुराई है।
जीवन में, दो नकारात्मकताएँ मिलकर एक सकारात्मकता नहीं बन जातीं।
हम शत्रु के अवगुणों को बड़े ध्यान से देखते हैं, इतने ध्यान से कि आख़िरकार वे हमारे ही अवगुण बन जाते हैं। शत्रु से निपटते-निपटते हम उस शत्रु के जैसे ही हो जाते हैं!
कभी भी संसार की दुर्बलताओं का बहाना लेकर अपनी दुर्बलताओं का औचित्य सिद्ध न करें। दुर्योधन से निपटने के लिए दुर्योधन बनने की ज़रूरत नहीं है। सच तो यह है कि अर्जुन बनकर ही दुर्योधन से निपटा जा सकता है।
बना लेती हैं, लेकिन उनका चलना जारी रहता है।
कुछ दिन पहले मैंने एक कॉरपोरेट तमाशा देखा। वहाँ उन नए युवकों के एक दल को नियुक्त किया गया था जिन्होंने मार्केटिंग में अपना एमबीए पूरा किया ही था। उत्पादों के परिचय और विक्रय कौशल के लिए दिए गए दो सप्ताह के कड़े प्रशिक्षण के बाद उन्हें फ़ील्ड में जाने के लिए कहा गया। फ़ील्ड-सेलिंग में जाने के दो दिन बाद ही उनमें से कुछ बड़े ही टूटे मन और टूटे हौसले के साथ वापस आ गए। जब उनसे उनकी इस हताशा का कारण पूछा गया तो कुछ ने बताया, “समझ में नहीं आ रहा है कि बाज़ार में अपनी पैठ करने और सफल होने में हम अभी तक कामयाब क्यों नहीं हो पा रहे हैं।” दो दिन फ़ील्ड
में जाने और सफल न हो पाने के लिए इतना बेचैन हो उठना - एक मज़ाक़ ही तो है। मैं इसे कॉरपोरेट तमाशा कहता हूँ क्योंकि या तो कॉरपोरेट के प्रशिक्षण ने, या दो वर्षों के एमबीए के कोर्स ने, या दोनों ने ही ग़लती से उनके कोरे दिमाग़ में ‘सरल सफलता’ या कहें कि ‘सफल होना सरल है’ का विश्वास भर दिया है। ‘सरल सफलता’ या ‘सफल होना सरल है’ ये शब्द ही अनुचित हैं।
एक अँगूठा छाप व्यक्ति भी आपको बता सकता है कि मैच खेलने से ठीक पहले सिर्फ़ एक हफ़्ते का अभ्यास करके कोई खिलाड़ी फ़िटनेस स्तर हासिल नहीं कर सकता। फिर भी, जिस देश में क्रिकेट एक धर्म के समान हो गया हो, वहाँ बड़ी-बड़ी प्रतियोगिताओं से ठीक पहले एक सप्ताह का फ़िटनेस शिविर आयोजित करना एक परंपरा सी बन गई है, या यूँ कहें कि यह एक परंपरागत मज़ाक़ दसियों वर्षों से चला आ रहा है। और इसका परिणाम यह है कि क्रिकेट के मैदान में
खिलाड़ी कम और ‘अंकल’ ज़्यादा नज़र आते हैं।
तो, यदि कोई आज बीज बोता है और कल ही उस पर
आप जो बनना चाहते हैं, उसके लिए जो करना ज़रूरी है, वह तो करना ही होगा।
जब आप पहली बार रोए थे तब वह एक ऐसी आवाज़ थी जो संसार ने पहले कभी नहीं सुनी थी। आपकी पहली मुस्कान के साथ एक नई अर्धचंद्राकार रेखा बनी थी, जो ज्यामिति में एक नया योगदान थी।
जब आपका जन्म हुआ था, तब आप इस संसार को उपहार स्वरूप दिए गए थे, और यह संसार आपको उपहार स्वरूप दिया गया था। इसलिए आपका जन्मदिन आपके लिए महानतम दिन है। यदि आप अच्छी तरह जिए तो संसार के लिए भी यह एक महान दिन होगा।
गप्पबाज़ी एक निष्ठुर क़िस्म का मनोरंजन है।
इसमें, जीभ और बुद्धि को खुली छूट दे दी जाती है। अधिकांश अवसरों पर तो यह गप्पबाज़ी अश्लीलता पर उतर आती है।
गप्पबाज़ी यानी आधी-अधूरी व अपुष्ट जानकारी के आधार पर किसी नतीजे पर पहुँच जाना और फिर उस पर अपनी टिप्पणी करना। लेकिन हर गप्पबाज़ अंतत: अपनी लत का शिकार ख़ुद ही हो जाता है। वह दूसरों के बारे में बहुत सचेत हो जाता है और उसका मन इसी उधेड़-बुन में लगा रहता है कि “लोग उसके बारे में क्या कह रहे हैं?” दूसरों के गुण-दोष की समीक्षा न करें, इससे आपके गुण-दोषों की समीक्षा भी नहीं की जाएगी। इस बात का उल्टा भी सच है - यदि आप दूसरों के गुण-दोष की समीक्षा करते फिरेंगे तो फिर आपके गुण-दोष की भी समीक्षा की जाएगी। गप्पबाज़ असल में दूसरों के नज़रिए को संतुष्ट करने के लिए जीते हैं।
फिर दूसरे लोग भला हमारी स्पष्टवादिता को कैसे सहन कर सकते हैं - जो कि तथ्य न होकर केवल हमारी राय ही होती है?
यदि कभी आपको कोई तीर आकर लगे तो क्या आप उसका, उस पर लगी सारी सामग्री का विश्लेषण करने बैठ जाएँगे, जिससे वह तीर बना है? जब शब्द किसी कोमल हृदय को चोट पहुँचाते हैं, तो इस बात की ओर ध्यान नहीं जाता कि उन शब्दों का अर्थ क्या है।
उदासीनता क्रोध से भी बुरी होती है, घृणा से भी क्रूर होती है और बदले से भी बदतर होती है। क्रोध, घृणा और बदले के आवेग में दूसरों के लिए कोई तो भावना होती ही है, लेकिन उदासीनता तो दूसरे का होना या न होना बराबर कर देती
“प्रतिभावान होने में 1 प्रतिशत प्रेरणा और 99 प्रतिशत प्रयास होता है।”
नव वर्ष में लिए गए संकल्प कभी फ़रवरी का मुँह भी नहीं देख पाते।
है कि हम ‘सेल्फ़ स्टार्टर’ बनें, न कि ‘किक स्टार्टर’।
आप उन चीज़ो के लिए याद नहीं किए जाएँगे, जिन्हें आपने एक-दो बार किया हो, बल्कि उनके लिए किए जाएँगे, जो आप हमेशा करते हैं और करते रहे हैं।
‘आपको वह नहीं मिलता जो आप चाहते हैं, बल्कि वही मिलता है जिसके आप योग्य हैं’ - यह ईश्वर का विधान है, इसे होने दें।
‘अपना निरंतर निर्देशित स्व-प्रेरित प्रयास करते हुए मैं यह सुनिश्चित करूँगा कि मैं जीवन में सर्वोत्तम और केवल सर्वोत्तम पाने का ही पात्र
हम बिना संवाद किए जितने अधिक विचार बनाते जाएँगे, हम बिना प्रकट किए जितनी अधिक भावनाएँ महसूस करते जाएँगे, उतना ही बड़ा अंतराल हमारे संबंधों में आता चला जाएगा। कब तक आप कूड़ा-करकट और
धूल-मिट्टी को बुहारकर कालीन के नीचे सरकाते जाएँगे। कभी न कभी तो उसे बाहर आना ही है, और जिस दिन वह बाहर आएगा तो इतनी बड़ी गंदगी बन चुका होगा कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते।
विचार तो बने लेकिन व्यक्त नहीं किए गए, भावनाएँ तो महसूस कीं, लेकिन प्रकट नहीं की गईं, तो यह एक अपूर्ण चक्र होता है। और यह अपूर्ण चक्र आपके अवचेतन में हमेशा जीवित रहता है। इसे यदि अलंकारिक भाषा में कहें तो ठहरा हुआ वह अपूर्ण चक्र चश्मे में आई खरोंच की तरह होता है - जिसमें से देखी गई हर चीज़ खरोंच युक्त दिखाई देती है। विडंबना यह होती है कि वह खरों...
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जब आप अपने विचारों को तत्काल व्यक्त नहीं करते हैं, अपनी भावनाओं को तत्काल प्रकट नहीं करते हैं, तो आप उन्हें विकृत करने लगते हैं। अपनी दबी हुई भावनाओं को शांत व पोषित करने के लिए आप सत्य की अतिशयोक्ति करने लगते हैं या फिर उस पर कैंची चलाने की ओर प्रवृत्त हो जाते हैं।
दुर्भाग्य से, जीवन सही और ग़लत से नहीं चलता। यह तो परिपक्वता से चलता है।
कई बार यह महत्वपूर्ण नहीं होता कि कौन सही है और कौन ग़लत, बल्कि वास्तव में एक ऐसे परिपक्व मन-मस्तिष्क की ज़रूरत होती है, जो भिन्नताओं को जीवन के विभिन्न रंगों की
तरह स्वीकार कर सके और स्थिति क...
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रमाकांत आचरेकर सचिन तेंदुलकर से बेहतर क्रिकेटर नहीं थे, फिर भी उन्हीं की कोचिंग थी, जिसने सचिन को इस मुक़ाम तक पहुँचाया। ओ. एम. नांबियार कभी पी. टी. ऊषा की बराबरी नहीं कर सकते, लेकिन उन्होंने ही भारत को एक महान धाविका दी। यह द्रोणाचार्य का ही प्रताप था, जिसने अर्जुन को निपुणता की इतनी ऊँचाई तक पहुँचा दिया कि युद्ध में वह अपने ही गुरु का सामना कर सका।
मार्गदर्शन के लिए हमें अपने से बाहर कोई चाहिए, कोई ऐसा दर्पण जो हमें ख़ुद की तस्वीर दिखा सके, जो हमारी वह सबलता हमें बता सके जिसके द्वारा हम अपनी दुर्बलताओं को पछाड़ सकें।
अपनी कुशलता को कुशाग्रता में बदलने के लिए हमें प्रशिक...
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में क़ानून के पालन पर नज़र नहीं रखी गई, जबकि सिंगापुर में नज़र रखी गई।
जब परिवर्तन को लंबे समय तक क़ायम रखा जाता है तो वह संस्कृति बन जाता है। चुनौती केवल परिवर्तन
कर देने की नहीं है, बल्कि उस परिवर्तन को संस्कृति मे...
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