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इसलिए मुझे एक ऐसा संबंध चाहिए जिसमें मैं स्वतंत्रता और विश्वास का आनंद ले सकूँ, जहाँ मुझे बार-बार अपने बारे में स्पष्टीकरण न देना पड़े। मुझे इस तरह का संबंध चाहिए, जिसमें मैं अपना ही दोषी न ठहरा दिया जाऊँ। मुझमें गुण भी हैं और दोष भी। मुझे ऐसे संबंध की तलाश है, जिसमें मेरे कमज़ोर पक्ष को लगातार उकसाया और भड़काया न जाए। मैं ऐसा संबंध चाहता हूँ, जिसमें हमेशा मेरे गुणों को उजागर किया जाए। मुझे ऐसा संबंध चाहिए जिसमें मेरे कल को लेकर मेरे आज पर नुक्ताचीनी न की जाए। इंसान होने के नाते मुझसे यदा-कदा ग़लती हो सकती है। मैं चाहता हूँ कि कोई मेरी ग़लतियों का लेखा-जोखा रखकर उसे
दोहराता ही न रहे। मुझे ऐसे संबंध की तलाश है जिसमें कल की लड़ाई आज की बातचीत को बंद न कर दे… कल जहाँ कल के साथ ही विदा हो जाता हो। मुझे ऐसा संबंध चाहिए, जिसमें हमेशा मुझे ही पहल न करनी पड़े। मुझे ऐसा संबंध चाहिए, जिसमें मुझे कुछ छिपाना न पड़े। मुझे ऐसा संबंध चाहिए जिसमें उस संबंध को बनाने और बनाए रखने के लिए मुझे अपनी पसंद-नापसंद में कोई फेर-बदल न करनी पड़े। मुझे ऐसा संबंध चाहिए जिसमें मेरी आत्म-छवि पर कोई आँच न आए। मुझे ऐसा संबंध चाहिए जिसमें मुझसे किसी और ढंग से जीने का आग्रह न किया जाए। मुझे ऐसा संबंध चाहिए जिसमें मैं अपने आपको पूरी तरह महसूस कर सकूँ… जब मैं अपने साथ होता...
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मेरे प्रिय पाठकों, आपके पास यदि ऐसा संबंध है तो उसके प्रति आभार जताने के लिए घुटनों के बल बैठ जाएँ, क्योंकि जीवन की ओर से मिलने वाला अन्य कोई भी उपहार इससे महान नहीं हो सकता। ऐसा संबंध जीवन का महानतम उपहार है। और यदि आपके पास ऐसा कोई संबंध नहीं है तो दुखी न हों। क्या ऊपर वाले ने पर्वत की चोटी से यह नहीं बताया था - “दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करो, जैसा ...
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दूसरों से चाहते हैं? किसी के जीवन के लिए ऐसा उपहार आप ख़ुद बन जाएँ। किसी को इतना प्रेम करें कि आप उसके लिए महानतम उपहार के समान हो जाएँ। लोग आपके प्रेम को इससे महसूस नहीं करते कि आप उनके साथ क्या हैं, बल्कि इससे करते हैं कि वे आपके साथ क्या हो स...
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समस्या पूँजी की कमी की नहीं है, बल्कि ग़लत पूँजी प्रबंधन की है। पूँजी को अर्जित करने में अकुशलता और अर्जित पूँजी के प्रबंधन में असावधानी - यह उन्हें ऊँची ब्याज दर वाले उधार में फँसा देती है।
भारत के लोग यही रोना रोते रहते हैं कि जनसंख्या ही उनकी मुख्य समस्या है।
समस्या यह नहीं है कि आपके पास पर्याप्त स्थान नहीं है, समस्या है स्थान नामक संसाधन के कुशल प्रबंधन की।
समस्या यह नहीं है कि आपके पास पर्याप्त पूँजी नहीं है और इसीलिए आप धनी नहीं हैं, समस्या है पूँजी नामक संसाधन के कुशल प्रबंधन की, वह कितनी भी कम हो, लेकिन आपको धनी बनाने के लिए पर्याप्त है।
हम जो कुछ भी बनाते हैं तैयार करते हैं, उसमें एक अदृश्य घटक डालते हैं, और यह अदृश्य घटक ही बेहतर और बेहतरीन के बीच, साधारण और असाधारण के बीच, और अच्छे व उत्कृष्ट के बीच अंतर पैदा कर देता
है। जो भी काम किया गया, वह प्रेम और प्रसन्नता के साथ किया गया या उदासीनता, भावशून्यता, अनिच्छा व अरुचि के साथ किया गया? कोई भी काम हो, उसे करने में हृदय का, भावना का पुट होना ही वह अदृश्य चीज़ है। जो काम किया गया, उसमें हृदय का, भावना का पुट क्या 101 प्रतिशत रहा है - यही है निर्णायक प्रश्न।
एकाग्रता, ख़ुशी और प्रेम निष्ठा व समर्पण के सह-उत्पाद हैं। सिर्फ़ निष्ठा व समर्पण से ही यथार्थता, कौशल एवं प्रभामण्डल की प्राप्ति होती है।
काम करें तो पूरी निष्ठा से करें या फिर न करें। बीच की कोई स्थिति नहीं होती।
परंपराओं के कारण पंगु न बनें।
इल्ली (कैटरपिलर) एक तितली बन जाने के लिए इतनी लालायित रहती है कि अपने पंख उग आने तक के
लिए वह एक कवच (ककून) में क़ैद हो जाने को तैयार हो जाती है। जीवन भी कभी-कभी हमें किसी ककून में क़ैद हो जाने के लिए इसलिए धकेल देता है ताकि हम शानदार रंगों की विजय पताका फहराते हुए बाहर आएँ।
बाँसुरी बनाने के लिए बाँस को काटना पड़ता है। पत्थर के टुकड़े को मूर्ति का रूप देन...
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सोने को कुंदन बनाने के लिए उसे आग मे...
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कुछ बनने के लिए आपको परीक्षाओं और परीक्षणों से...
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लोग ख़ुद पर कोई लेबल लगाया जाना पसंद नहीं करते। लेबल के साथ उनका अहं उलझ जाता है। लेबल लोगों के दिमाग़ को ठप्प कर देते हैं।
‘शाकाहारी’ वाला लेबल ही यहाँ समस्या बन गया है।
‘ईसाई’ वाला लेबल ही यहाँ समस्या बन गया है।
“गुरुदेव, मुझे अपना शिष्य स्वीकार कीजिए,” जिज्ञासु ने आग्रह किया। “मुझे बताओ कि तुम कौन हो,” गुरु ने पूछा। “रामचद्रं राव।” “यह तो तुम्हारा नाम है, इसे हटा दो और फिर बताओ कि तुम कौन हो,” गुरु ने फिर कहा। “मैं एक व्यापारी हूँ।” “वह तो तुम्हारा व्यवसाय है, उसे हटा दो और फिर बताओ कि तुम कौन हो।” “मैं एक पुरुष हूँ।” “वह तो तुम्हारा लिंग-भेद है, उसे हटा दो और फिर बताओ कि तुम कौन हो।” “गुरुदेव, इससे आगे मैं नहीं जानता कि मैं कौन हूँ!” “अब ठीक है। किसी जिज्ञासु की यात्रा का पहला चरण यही होता है। जब आप अपने सारे लेबल हटा देते हैं और विशुद्ध आप ही रह जाते हैं, वही हर चीज़ की शुरुआत का प्रारंभिक बिंदु
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ख़र्च याद नहीं रहता, अनुभूति याद रहती है।
पहली बार किसी के हाथ का सहारा लिए बिना जब आपने साइकिल अपने आप चलाई थी… पहली बार जब उसने ‘हाँ’ कहा था, वह भी आपके प्रस्ताव के दो वर्ष बाद… अपने बच्चे के रोने का वह पहला स्वर… वह पहला क़दम… वह पहला शब्द… वह पहला चुंबन… वह पहला उपहार जो आप अपने माता-पिता के लिए लाए थे और वह पहला उपहार जो आपकी बेटी ने आपको दिया था… मंच पर आपका वह पहली बार आना… तालियों की
वह पहली गड़गड़ाहट… वह पहला पुरस्कार…
इस सूची का कोई अंत नहीं है… समय की मार से अनछुई रहने वाली अनुभू...
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लाड़ आपको कमज़ोर बनाता है, प्रेम आपका सृजन करता है।
ऐसा लगता है कि ‘प्रेम पाने’ के बजाय ‘लाड़ पाने’ की ललक हममें अधिक रहती है। दोनों में अंतर क्या है? अधिकांश लोगों के लिए प्रेम पाने का अर्थ है कि प्रेम करने वाला उनके प्रति हमेशा सौम्य बना रहे, उन्हें कभी ‘ना’ न कहे, उनकी आलोचना या शिकायत न करे, ऐसा कुछ न करे, जिससे उन्हें कोई असहजता या परेशानी हो… दरअसल, वह उन्हें वैसा ही रहने दे जैसे कि वे हैं, उन्हें बदलने की इच्छा या भावना न दिखाए। वह मुझे उसी तरह प्रेम करे, जैसे मैं चाहता हूँ - यह लाड़ है। लाड़ करना प्रेम नहीं है। प्रेम यानी वह भावना जिससे फ़र्क़ पड़ता है। लाड़ आपको कमज़ोर बनाता है, प्रेम आपका सृजन करता है। कोई भी व्यक्ति संपूर्ण नहीं है। सुधार
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हमेशा बनी रहती है। जो आपको प्रेम करते हैं, उनके अलावा किसी को यह सरोकार नहीं रहता है कि आपमें सुधार आए। सहन किए जाने के नाम पर, लाड़ आपकी अपूर्णताओं को अपूर्ण ही रहने देता है। लेकिन आपके अहं को ठेस लगने के जोखिम के बावजूद प्रेम आपको आईना दिखा देता है, ताकि आप अपनी कमियों को सुधार सकें। लाड़ आपके अहं को प्रभावित करता है। प्रेम आपको प्रभावित करता है। कोई व्यक्ति हमेशा सही नहीं हो सकता। हर बात मान लेने के चक्कर में, जो सही नहीं है, लाड़ उसे भी सही ठहरा देता है। प्रेम एक दर्पण की तरह है और वह आपको आपका प्रतिबिंब दिखा देता है - वैसा नहीं जैसा कि आप देखना चाहते हैं, बल्कि वह जो आप वास्तव में हैं। जबकि
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है, एक मुखौटा है जो हमेशा अच्छा-अच्छा दिखना और दिखाना चाहता है। लेकिन ग़लत समझ लिए जाने का जोखिम उठाकर भी, प्रेम एक रचनात्मक समालोचक बना रहता है। अधिकांश लोगों का प्रेरणा स्तर बहुत ऊँचा नहीं होता। आगे बढ़ने के लिए आपको किसी बाहरी व्यक्ति या चीज़ की ज़रूरत पड़ती है। लाड़ आपको आपकी कर्मठता के निचले स्तर में, आपकी आरामतलबी में पड़ा रहने देने का अधर्म करता है। प्रेम, मित्र के सृजन के लिए, मित्रता को भी दाँव पर लगा देता है। ‘जीवन के प्रति ख़ुद को और ज़्यादा समर्पित करो’ - प्रेम क...
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है। किसी को उसकी निष्क्रियता की ऊँघ से जगाने के लिए आवाज़ लगा देना - यह प्रेम का विशुद्ध और उत्कृष्ट स्वरूप है। लाड़ तो शराब की लत जैसा होता है। यह आपकी शामों को मज़ेदार तो बना सकता है, लेकिन इससे आपमें कोई बदलाव आने वाला नहीं है। प्रेम ध्यान की तरह होता है। इसमें लगता तो ऐसा है कि कुछ नहीं हो रहा है, लेकिन फिर भी आपमें सब कुछ बदल जाता है। प्रेम पाने की और अपने सृजन की आकांक्षा करें, न कि लाड़ पाने और गर्त में पड़े रहने की। मेरे प्रिय! मेरा तुमसे यह कह...
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बात इस संसार की नहीं है, बल्कि संसार के प्रति मेरी प्रतिक्रिया - स्वीकार करना या न करना - की है, जो मेरी भावनात्मक गुणवत्ता को निर्धारित करती है।
ज्ञान अतीत की व्याख्या करने के लिए नहीं, बल्कि भविष्य का निर्माण करने के लिए है।
ज्ञान के दृष्टिकोण से, महत्वपूर्ण यह है कि आप देख किसे रहे हैं - अपने अतीत को, या अपने भविष्य को?
अगर आप अपने भविष्य निर्माण को लेकर जागरूक हैं, तो फिर अपने अतीत को दोबारा जीवित करने की अर्थहीन कोशिश क्यों कर रहे हैं?
हमें यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि गुणवत्ता पहले भीतर उदित होती है और फिर बाहर प्रकट होती है।
गुणवत्ता के प्रति सजगता का अर्थ है - कोई दूसरा हमसे जितनी अपेक्षा करे, हम ख़ुद से उससे ज़्यादा अपेक्षा करें।
सुगंध हो या न हो, फूल तो फूल ही रहेगा, लेकिन उसमें सुगंध होने से बहुत फ़र्क़ पड़ता है। गुणवत्ता ही वह अदृश्य शक्ति है… जिसका होना ही सारा फ़र्क़ पैदा कर देता है।
मैंने तय कर लिया है कि जीवन के महत्वहीन मुद्दों पर दूसरे व्यक्ति को मैं उसके निष्कर्ष पर रहने दूँगा।
बढ़िया बात यह है कि हमारे सारे मुद्दों में से 90 प्रतिशत से भी अधिक मुद्दे महत्वहीन ही होते हैं।
यह एक ऐसा माहौल बना देती है, जिसमें हम जो भी कर रहे हैं, उसे ही सही ठहराना हमारी प्रवृत्ति बन जाती है -
‘फ़्रोज़न थॉट्स
ठेस लगना प्रेरित होने का एक अच्छा स्रोत भी हो सकता है,
संबंधों के मामले में, भी मैंने देखा है कि जिन संबंधों में लोग बहुत ही कम समय में एक-दूजे के हो जाते हैं, वे संबंध किसी एक ग़लतफ़हमी, किसी एक घटना या किसी एक तर्क-वितर्क के बाद ही छिन्न-भिन्न हो जाते हैं।
जो संबंध पर्याप्त समय के साथ-साथ सुदृढ़ता, आश्वस्तता, विश्वस्तता, स्पष्टता और घनिष्ठता
के साथ बनाते हैं, केवल वे ही समय की कसौटी पर खरे उतरने के योग्य स्थायित्व और ...
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कहावत है कि, ‘यदि कोई झूठ हज़ार बार बोला जाए तो वह सच बन जाता है।’ हो सकता है कि दूसरों के लिए वह सच प्रतीत होने लगे, लेकिन आपको तो हमेशा यह सच पता ही रहेगा कि वह झूठ है।