पाकिस्तान ना रहा तो?सुबह उठाकर समाचार देखा तो दिल बैठ गया...

पाकिस्तान ना रहा तो?


सुबह उठाकर समाचार देखा तो दिल बैठ गया, पाकिस्तान का कोई प्रधानमन्त्री नहीं था । दुःख के मारे मेरे हाथ - पैर फूल गए । बड़ी मुस्किल से चाय की फरमाइश की और जीवन में पहली बार बिना शिकायत के पूरी चाय गटक गया । पता नहीं इतना गम मेरे मन को क्यों घेरे था ...ऐसा लग रहा था मानो मेरा फेसबुक अकाउंट सील हो गया हो । खोये खोये मन से दफ्तर के लिए तैयार हुआ और पहली बार बिना भाग्यवान के चुम्बन के अपने रास्ते हो लिया । पूरे रास्ते के दौरान यही सोचता रहा की अब पाकिस्तान का क्या होगा?भले ही पाकिस्तान ने कई बार हमपर चढ़ाई की हो, भले ही वो वहां से आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा हो, भले ही वो दुसरे देशों से मिलकर हमारे खिलाफ शाजिश करता रहा हो मगर है तो ये वही देश जिसे पीट पीट कर हम अपना सीना चौड़ा करके घुमते हैं । ये वही पाकिस्तान है जहाँ जब उनके ही पाले हुए आतंकवादी बम फोड़ते है तो हमे कहने का मौका मिलता है - 'बोए पेड़ बबूल के तो आम कहा से होए' । ये वही देश है जो अपने ही तथा कथित दोस्तों से जब फटकार सुनता है तो हम कहते है 'और ले लो मज़े' । जब जब हमारी गाड़ी सड़क के गड्ढो में जाती है तो हम ये सोचकर अपने आप को तसल्ली देते है कि अगर मैं पाकिस्तान में होता तो गाड़ी गड्ढे से निकलती ही नहीं । जब जब चावल में कंकड़ पड़ते है तो मन कहता है पाकिस्तान में होता तो ऐसे कंकड़ नहीं चावल मुंह में पड़ रहे होते । जब जब भ्रष्ट अधिकारी रिश्वत खाने की बात करता है तो हमे लगता है की अगर ये अधिकारी पाकिस्तानी होता तो पैसे मांगता नहीं बल्कि छीन लेता । खैर इसी तरह सोचते सोचते आफिस पहुँच गया और वहां भी यही मुद्दा छाया हुआ था । वर्माजी मेरे पास दौड़े दौड़े आये और कहने लगे, "कुछ सुना, पाकिस्तान प्रधानमन्त्री विहीन हो गया है ...अब क्या होगा कहीं सेना तो अपने हाथ में सत्ता नहीं आ जाएगी?" हमने उन्हें आश्चर्य से देखा...वो तो हमसे ऐसे पूछ रहे थे जैसे ज़रदारी हमारे ससुर हो और घर की बात है तो हमें तो पता ही होगा। देखते ही देखते वहां लोगों की भीड़ जमा हो गई। हमने चारो ओर खड़े लोगो को देखा और कहा, " अरे आप यहाँ के राष्ट्रपति की चिंता करिए ना, कहाँ पाकिस्तान के मुद्दे में अपनी टांग अड़ा रहे हैं । सभी लोग ऐसे निराश हो गए जैसे सिक्स्थ पे कमीशन रद्द कर दी गई हो। हम अपने केबिन में गए और वहां की टीवी ऑन करके समाचार देखने लगे । पाकिस्तान के हालिया हालत पर पूरी रिपोर्ट आ रही थी । कुछ देर बाद ध्यान गया तो हमारे आफिस का चपरासी मुकेश हमारी चाय में चीनी मिला रहा था...मिलाता ही जा रहा था...मिलाता ही जा रहा था। हमने कहा अरे घनचक्कर कितनी चीनी मिलाएगा? 'सॉरी सर ' बोलकर चला गया । जब हमने चाए की चुस्की ली तो मेरे बदन का सुगर ८ गुना बढ़ गया...लगा की ये एक कप चाए में तो इतनी चीनी है जितना पूरे पाकिस्तान में पूरे महीने चलती होगी ।

पाकिस्तान को तो प्रधानमंत्री मिल ही जाएगा मगर जाने कब हम पाकिस्तान के बारे में सोचना बंद करेंगे? समझ नहीं आता की क्यों हम अपनी तुलना उस छोटे से देश से करते रहते है ? क्यों उनके देश में जो भी हो रहा है उसपर इतनी पैनी नज़र होती है? क्यों उस देश में हो रही छोटी घटना भी हमारे देश में न्यूज़ चैनल पर आ जाती है ?क्या ये दुश्मनी है या आज भी हम पाकिस्तान से खुद को अलग नहीं कर पाए हैं ?


 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on July 03, 2012 05:19
No comments have been added yet.