खोया हुआ बचपन

कल जब मेंदफ़्तर से घरलौट रहा थातो कुछ स्कूलीबच्चो को देखअपना बचपन यादआ गया...यादआया वो दोस्तोमे गप्पे हांकनाकि मेरे घरमे क्या-क्याहै और मैनेइस वीकेंड परक्या धमाकेदार किया? मेरा मन बचपनकी यादे संजोएघर पहुच गयाऔर देर तकबचपन की यादोमे खोया रहा ι आज फिरसे में उसीरास्ते से घरआ रहा थामगर आज वोस्कूली बच्चे कही नाथे ι इधर -उधरनज़रे दौड़ाई तोकुछ बच्चे दिखाईदिए, वो पासही कचरे केढेर से कुछचुन रहे थेι यहाँ वहाँ बगलेझाकते हुए घरपहुच गया ι जबफ्रेश होकर कुर्सीपर बैठा तोअचानक ही लगाकि उन कचराउठाते बच्चो कोदेख मुझे बचपनयाद क्यो नहीआया ? क्या वोबच्चे नही है? आख़िर क्यों उन्हेदेख कर मेंबगले झाकने परमजबूर हो गया? अपनी ही लिखीहुई कविता केअंश याद आगये - 'कचरे कीप्लास्टिक की थैलियोंमे वो एकसपना तलाशता है,नफ़रत से घूरतीउन निगाहों मेभी कोई अपनातलाशता है'ι अचानकही लगा कीमेरी सहानुभूति बसउन शब्दों मेसिमटकर रह गयीहै ι फिर लगासिर्फ़ मैं हीक्यों हम सभीकिसी ना किसीरूप मे इनबच्चों के अस्तित्वसे जो प्रश्नउठ रहा हैउससे बच निकलनाचाहते हैं ι हमअपनी जेलों मेकसाब जैसे आतंकवादीको पालकर तोउनके उपर करोड़ोरुपए खर्च करसकते है, जाँचसमिति के नामपर लाखों रुपएबर्बाद कर सकतेहै, चूहो केबहाने हज़ारो टनअनाज की चोरीतो कर सकतेहै मगर ऐसेबच्चो को स्नेहकी चादर तोक्या आँसू पोच्छनेके लिए रुमालतक नही देसकतेι हमारे देशमे बड़े बड़ेमुद्दे आते हैऔर चले जातेहैι आजकल सबसेबड़ा मुद्दा येहै की राष्ट्रपतिकौन बनेगा? मैंपूछता हूँ कीक्या फ़र्क पड़ताहै ? प्रणब मुखर्जीबने या संगमा...इस देश मेराष्ट्रपति की कितनीभूमिका है येसब जानते हैι शाहरुख ख़ान यासलमान ख़ान अगरकही ओछि हरकतकरते है याहाथापाई करते हैतो वो ब्रेकिंगन्यूज़ बन जातीहै मगर कितनेग़रीब , लावारिस और अनाथबच्चे गर्मी कीलू मे याठंड की शीतलहरमे अपनी जानगवाँ देते हैकिसी को पताभी नही चलता? गाहे -बगाहे अगर इसमुद्दे पर कोईरिपोर्ट बन भीजाती है याकुछ छप भीजाता है तोना तो उसकोकोई देखता हैऔर ना हीकोई पढ़ता हैι क्या सचमुच हमइतने निष्ठूर होचुके है?एकतरफ तो लाखोंटन आनाज़ बर्बादहोने पर भीदेश का प्रधानमंत्रीकहता है किहम किसी कोआनाज़ मुफ़्त मेनही दे सकतेऔर दूसरी तरफहर महीने 2000 बच्चेभूख का शिकारहो अपना दमतोड़ देते हैι आख़िर किस रास्तेजा रहे हैहम? इस देशके ऐसे लोगजो एक दिनमे करोड़ो रुपएकमाते है क्याकुछ सौ बच्चोको भी पालनेका दम नहीरखते? क्या हमइतने क्रूर होगये है किहज़ारो रुपए कीपार्टियाँ तो करसकते हैं मगरहमारे सामने भूखसे बिलखते बच्चेको दो रोटीनहीं दे सकते? क्या हमारी सरकार इतनीसंवेदनाहिन हो गईहै कि करोड़ोरुपए के कॉमनवेल्थऔर 2जी स्पेक्ट्रमघोटालो को तोनज़रअंदाज़ कर सकतीहै मगर इनबच्चो के भविष्यके लिए कुछनही कर सकती? बड़ी विडंबना हैहमारे देश कीभी...हमे येकहने मे फक्रमहसूस होता हैकि हिन्दुस्तान सबकोअपना लेता हैचाहे वो अपनाहो या परायामगर अपने हीदेश के मजबूरबच्चो को आजतक हम अपनानही पाए हैι जो क़ानून केठेकेदार बाल-मज़दूरीदंडनीय है औरशिक्षा सबका मौलिकअधिकार है जैसेस्लोगन निकालकर उसे अपनीरिपोर्ट कार्ड पर उपलब्धिके रूप मेदिखाते है उन्हीके घरों मेछोटे बच्चे बर्तनसॉफ करते हैι आज ज़रूरत हैहमारे एकजूट प्रयासकी । ज़रूरतहै कि हमऐसे बच्चो कोनफरत की दृष्टीसे नहीं बल्किस्नेह की दृष्टीसे देखे औरअपने देश कीसरकार को कुछठोस कदम उठानेके लिए प्रेरितकरें ι अगर मीडियाऔर हम मिलजुलकर प्रयास करेंतो ये संभवहै की ऐसाएक भी बच्चासड़क पर कचराउठाते हुए नदिखे ι
कुछ और नसही मगर हमएक तो कदमउठाए, कृषि प्रधानइस देश मेंकोई बच्चा भूखसे तो नमर जाए ι
Published on June 29, 2012 03:49
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नफ़रत से घूरती उन निगाहों मे भी कोई अपना तलाशता है
... wah! Chandan bandhu! wah!!! lekh ka jhakjhorne wala swaroop kaafi achha laga aur ye panktiyaan toh hain hi kamaal :)