बूढ़े बरगद के पार (कहानी) #ज़हन


संतुषटि की कोई तय परिभाषा नहीं होती। बचचा कुदरत में रोज़ दोहराये जाने वाली बात को अपने जीवन में पहली बार देख कर संतुषट हो सकता है, वहीं अवसाद से जूझ रहे परौढ़ को दुनिया की सबसे कीमती चीज़ भी बेमानी लगती है। नवीन के चाय बागान अचछा मुनाफा दे रहे थे। इसके अलावा अचछे भागय और सही समझ के साथ निवेश किये गए पैसों से वह देश के नामी अमीरों में था। एक ही पीढ़ी में इतनी बड़ी छलांग कम ही लोग लगा पाते हैं। हालांकि, नवीन संतुषट नहीं था। मन में एक कसक थी...उसके पिता हरिकमल।
जब नवीन संघरष कर रहा था तब उसके पिता हर...
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Published on June 20, 2019 07:44
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