शहर के पेड़ से उदास लगते हो...(नज़्म)

दबी जुबां में सही अपनी बात कहो,सहते तो सब हैं......इसमें कया नई बात भला!जो दिन निकला है...हमेशा है ढला!बड़ा बोझ सीने के पास रखते हो,शहर के पेड़ से उदास लगते हो...
पलों को उड़ने दो उनहें न रखना तोलकर,लौट आयें जो परिंदों को यूँ ही रखना खोलकर।पीले पननो की किताब कब तक रहेगी साथ भला,नाकामियों का कश ले खुद का पुतला जला।किसी पुराने चेहरे का नया सा नाम लगते हो,शहर के पेड़ से उदास लगते हो...
साफ़ रखना है दामन और दुनियादारी भी चाहिए?एक कोना पकड़िए तो दूजा गंवाइए...खुशबू के पीछे भागना शौक नहीं,इस उममीद में....व...
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Published on July 13, 2019 00:11
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