एक दिन सब खेल करिकेट से मिलने आए,मानो जैसे दशकों का गुससा समेट कर लाए।करिकेट ने मुसकुराकर सबको बिठाया,भूखे खेलों को पाँच सितारा खाना खिलाया।
बड़ी दुविधा में खेल खुस-पुस कर बोले... हम अदनों से इतनी बड़ी हसती का मान कैसे डोले?आँखों की शिकायत मुँह से कैसे बोलें?कैसे डालें करिकेट पर इलज़ामों के घेरे?अपनी मुखिया हॉकी और कुशती तो खड़ी हैं मुँह फेरे...हिममत कर हाथ थामे टेनिस, तीरंदाज़ी आए,घिगघी बंध गई, बातें भूलें, कुछ भी याद न आए...
"क...करिकेट साहब, आपने हमपर बड़े ज़ुलम ढाए!"
आज़ादी से अबतक देखो कितने ओ...
Published on June 19, 2019 08:28