Baaghi Ballia । बाग़ी बलिया Quotes
Baaghi Ballia । बाग़ी बलिया
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Baaghi Ballia । बाग़ी बलिया Quotes
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“अरे खा लो। यह ब्रेड है। किसान का समाजवाद, मजदूर का साम्यवाद और मालिक का पूँजीवाद सब तो इसी में हैं। खा लो।”
― Baaghi Ballia । बाग़ी बलिया
― Baaghi Ballia । बाग़ी बलिया
“और बेटी! जिसे कहना पड़ता था कि ‘अब चुप कर!’ न जाने कितने दिनों से अब बोल ही नहीं रही। दिन में ऊँघते पंखे को देखती और रात में रौशनदान में चाँद के उतर आने का इंतजार करती रहती है। बेटी जो अब किसी के भी चिल्लाने से यह सोचकर काँप उठती है कि गुस्से का कारण वह ही है। बेटी जो माँ को आँचल के किनारे से आँसू पोंछते देखती तो है मगर उठकर आँसू पोछ नहीं पाती। उसे झिड़क दिए जाने का डर है।”
― Baaghi Ballia । बाग़ी बलिया
― Baaghi Ballia । बाग़ी बलिया
“माँ, जिसे दोनों ही ओर से पिसना होता है। पति को इज्जत की खातिर पल-पल कुढ़ते देखने को शापित औरत बेटी को तिल-तिल मरते भी देख ही लेती है।”
― Baaghi Ballia । बाग़ी बलिया
― Baaghi Ballia । बाग़ी बलिया
“कभी-कभी मन न चाहते हुए भी यह मानने को बाध्य हो जाता है कि बुरा वक्त वाकई ग्रहों-नक्षत्रों से संचालित होता है। चीजें सही चलते-चलते अचानक ही गलत होने लगती हैं और यह समस्याएँ एक-एक कर नहीं बल्कि एकसाथ आकर व्यक्ति के मनोबल पर प्रहार करती हैं और यूँ करती हैं कि वह व्यक्ति स्वयं भी स्वयं को भाग्य के हाथ की कठपुतली समझने लगता है।”
― Baaghi Ballia । बाग़ी बलिया
― Baaghi Ballia । बाग़ी बलिया
