संजय को स्टूडेंट यूनियन का इलेक्शन जीतना है और रफ़ीक़ को उज़्मा का दिल।झुन्नू भइया के आशीर्वाद बिना कोई प्रत्याशी पिछले दस सालों से चुनाव नहीं जीता और झुन्नू भइया का आशीर्वाद संजय के साथ नहीं है।शहर की खोजी निगाहों के बीच ही रफ़ीक़ को उज़्मा से मिलना है और शहर प्रेमियों पर मेहरबान नहीं है।डॉक साब कौन हैं जो कहते हैं कि संजय मरहट्टा है और इस मरहट्टे का जन्म राज करने को नहीं राजनीति करने को हुआ है?शहर बलिया, जो देने पर आए तो तीनों लोक दान कर देता है और लेने पर उतारू हो तो...हँसते-हँसते रो देना चाहते हों तो पढ़ें—बाग़ी बलिया...
बागी बलिया के लिखने के लिए व्यास जी आपको प्रणाम और धन्यवाद।
बागी बलिया एकदम बागी कहानी है, इसमें दो पात्र संजय (नेता) और रफ़ीक ( मियां) ये दोनों भी वाकई में बागी आदमी है, मियां तो खैर था ही शुरू से ही, मगर असली बागी मुझे नेता लगा और मैं ये बात ज्योति (नेता की चचेरी बहन, और मियां की मुहबोली बहन) के मृत्यु के उपरांत आए नेता के व्यवहार के बदलाव को देखते हुए कह रहा हूं।
जैसा रूप नेता का ज्योति के दुनियां से अलविदा कह जाने के बाद आया वो बहुत ही अद्भुत था, और हां जैसा डाँ साब कहा करते थे, रफीक को कि तुम नाई की कैची हो, दर्जी की कैची बनो, पर मुझे मेरे अनुसार कहानी के अंत तक आते - आते दर्जी की कैंची संजय बनता दिखा, ( दर्जी की कैंची जो इस सलीके से कपड़ा काटती है, कपड़ा अलग भी हो जाता है, और आंखें पलक भी नही झपक पाती, अंत में संजय ने भी कुछ वैसा ही किया) ख़ैर मैं बहुत ही जल्दी अंत तक आ गया, लेकिन मैं संजय की सूझ - बूझ से बड़ा प्रभावित हुआ, संजय से ये सिखा की आपने वो कहावत तो सुनी होगी कि जैसा देश वैसा भेष ठीक उसी से मिलता जुलता थोड़ा से जोड़ा मोड़ा एक कहावत को मैं अपने भाषा में समझा और वो ये कि ( जैसे पड़े समय की मार, बदल लो अपनी चाल), संजय ने भी ठीक वैसा ही किया, और ज्योति को मन से स्रधांजलि दी, रफीक भी ठीक वैसा ही था संजय के जैसा, लेकिन जरा अल्हड़पना भी था, ( मनमौजी से मतलब है मेरा) बाकी जो साथ दोस्ती का और एक सगा भाई न होते हुए भी सगे भाई जैसा या उससे बढ़ कर उसने ज्योति को अपनी छोटी बहन मान कर निभाया वह काबिल - ए - तारीफ़ था, वाकई में ज़ब रिश्ता खून से नही हृदय से ताल्लुकात रखता हो, और उसका निर्वहन भी हृदय की पवित्रता से किया जाए, तो रिश्ते एक अलग ही आयाम बनाते चले जाते है, रफीक और संजय दोनों ने मिलकर अपनी प्यारी बहन छोटकी (ज्योति) की मौत का बदला लिया, जो लिया जाना उचित भी था,
क्यूंकि जो ज्योति के साथ हुआ, जो बर्बरता हुई, वो आज के समाज में रोज कही न कही हर छण हो रही है, जिससे जाने कितनी ज्योति जैसी जाने जा रही है, और ये जो अपराध है, ये अछम्य है, जघन्य है, किसी ने ठीक कहा है, गलती की माफ़ी हो सकती है, लेकिन अपराध की नही। अपराध की एक ही सज़ा होती है, और वो है मौत बस एक ही मौत। बिरजू और नसीम की मेहनत और साथ भुलाए न भूलेगा ख़ास कर ज्योति और नसीम की हत्या।
छात्र राजनीति में अक्सर दो ही घटनाएं घटित होती है, एक या तो आपकी इज़्जत सूली चढ़ जाती है, या सियासत मिल जाती है, दोनो का परस्पर मेल नहीं है, दोनों एक साथ घटित नही होती, आपको एक खोना पड़ेगा एक पाने के लिए. और यही तो हुआ बागी बलिया में भी, संजय और रफीक ने ज्योति को खोया फिर सियासत मिल गई, अब कैसे मिली, उसके लिए भी कितना संघर्ष, त्याग, और श्रम लगा वो तो आप पढ़ेंगे तो समझ पाएंगे, ख़ैर राजनीति में काम रुचि होने के कारण आगे बढ़ते है।
हमें व्यास जी आपका शायरी वाला हिस्सा पसंद है, जो आप उपन्यास में शायरी भी जोड़ देते है, हम इसके कायल है, आपने हर कहानी के हर अध्याय(चैप्टर) के टाइटल को शेर दिया है, और जब आप वो चैप्टर ख़त्म करते है, तो चैप्टर के टाइटल का शेर आपको सार्थक दिखता है, मुझे तो दिखा, वैसे भी मेरा भी जुड़ाव है, अतः मैंने सार्थकता देखी।
खैर अब और कुछ तो नही है कहने को पर फिर भी व्यास जी आपकी पांचों कहानियां पढ़ने के उपरांत अब एक पाठक के तौर पर मुझे कुछ नया, कुछ अलग आपकी कहानियों में देखने की इच्छा है।
अब हमेशा के जैसा कुछ विचार, भाव, और सोचने योग्य बातें जो मैने पढ़ते वक्त कहानी से नोट कर लिए थे, वे ये रहे। -
1. इतिहास वह बहरूपिया है जिसके पास करतब कम है। वह वक्त, स्थान और चोले बदलकर करतब दोहराता रहता है।
2. बारह बरस ले कुक्कुर जिए चौदह बरस ले जिए सियार और बीस बरस जो बडां जिए वाके जीवन काे धिक्कार। ( ई वाला पहेली खुदे नू बुझियेगा तो आनंद आएगा)
3. युवावस्था और प्रेम का अन्योन्याश्रय संबंध है। इस अवस्था में प्रेम से अछूता रह जाना तपस्या है, और सबके बस की बात नही। प्रेम स्त्री और पुरूष दोनों पर एक समान भाव से तारी होता है। बस प्रेम के जगजाहिर होने का प्रभाव दोनों पर अलग - अलग होता है। पुरुष ऐसी स्थिति में बात को जहाँ हँसी में निकाल सकता है। वहीं अंतमुख़ी और संकोची स्त्री भी ऐसी स्थिति में वाचाल हो जाती है। कारण यह कि यदि प्रेम हैं तो वह पुरुष के लिए हँसी का विषय हो सकता है, स्त्री के लिए नही होता।
4. दुख की मात्रा नापने की कोई इकाई होती तो यह साबित कर पाना बिलकुल भी मुश्किल नही होता कि विश्वास टूटना श्वास के टूटने से कही अधिक कष्टकारी होता है। छले जाने का भाव वह घाव है जो दिखता नही मगर हर छण टीसता रहता है। दैहिक छल दैहिक कम और मानसिक अधिक होता है। मस्तिष्क के तंतु हर छण हृदय को धिक्कार - तरंगें भेजते रहते है। पहले चयन के निर्णय में ही यदि छल मिल जाए तो व्यक्ति इस कदर निर्बल हो जाता है कि वह आगे के लिए जाने वाले हर निर्णयों में ताउम्र भयभीत ही रहता है।
5. जाके सम्मुख बैरी जीवे, वाके जीवन काे धिक्कार ( इस पहेली को भी बूझ सकते है, कुछ ज़रूर सीखने को मिलेगा)
6. कभी - कभी प्रारंभ को, शुरूआत को महज एक धक्के की, एक झटके की जरूरत होती है। या बाहरी बल ही वह कारक होता है जो शिथिल पड़े मन को नई ऊर्जा देता है। ( यह विचार में मेरे मन में घर कर गया है)
7. प्रेम का अतिरेक वह आत्मविश्वास प्रदान करता है जिसे सामाजिक भाषा में घृष्टता भी कहते है। दिल को दिल की ही राह होती है और इस राह चलते वह रास्ते की मुश्किलों को नज़रअंदाज़ न करे तो चलना दूभर हो जाए। प्रेम मार्ग पर चलने की इसी जिजीविषा को समाज धृष्टता कहे तो कह सकता है। प्रेमी इस लगन को कोई नाम नहीं देते, बस चलते जाते है। फिर वह रास्ता समाज के विरूद्ध निकले, घर के विरूद्ध निकले या अपनाें के विरूद्ध निकले।
अब कुछ चुनिंदा शेर - शायरी भी देख लेते है, जो मुझे तो बहुत भाया। ये सब शेर उर्दू के एक से एक फनकार शायरों ने कही है, -
दोस्ती ख़ून-ए-जिगर चाहती है काम मुश्किल है तो रस्ता देखो - बाक़ी सिद्दीक़ी
पत्थर तो हज़ारों ने मारे थे मुझे लेकिन जो दिल पे लगा आ कर इक दोस्त ने मारा है - सुहैल अज़ीमाबादी
इन से उम्मीद न रख हैं ये सियासत वाले ये किसी से भी मोहब्बत नहीं करने वाले - नादिम नदीम
बक रहा हूँ जुनूँ में क्या क्या कुछ कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई - मिर्ज़ा ग़ालिब साहब
मोहब्बत हो तो जाती है मोहब्बत की नहीं जाती ये शोअ'ला ख़ुद भड़क उठता है भड़काया नहीं जाता - मख़मूर देहलवी
किसे ख़बर थी कि ये वाक़िआ भी होना था कि खेल खेल में इक हादसा भी होना था - अज्ञात
बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना जहाँ दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता - बशीर बद्र ( अपने पसंदीदा)
अब हवाएँ ही करेंगी रौशनी का फ़ैसला जिस दिए में जान होगी वो दिया रह जाएगा - महशर बदायुनी
This was a novel on college elections and before you make any comparison to his previous book "Banaras Talkies" which was set in a college, this one was totally different. This is a story of 2 friends - Sanjay (Neta) and Rafeek (Miyan) and how they team up to fight college elections. While it was not as hard-hitting and original as Anurag Kashyap's Gulaal, it was much better than Karan Johar's unbearable K3G and SOTY. In the first half, I felt as though the story was going nowhere. Also, Satya Vyas's jokes were stale and boring compared to his previous works - "Banaras Talkies" and "Dilli Darbar". But thankfully the second half was more purposeful and much better. A light read which is not as good as his prev works but his fans will enjoy reading.
कहिलेकाहीँ सिमित हिन्दी आख्यान गैर-आख्यान पढिन्छ। भलै समय ज्यादा किन नलागोस्, तर highlight , mark गर्फै पढ्दा खुब रमाइलो बोध हुन्छ।सत्य व्यासले लेखेका यो आख्यानमा ग्रामीण भारत तिर हुने राजनीतिक खिचातानी, नाता सम्बन्धमा राजनीतिक फ्लेवरमा पार्टीको विरोध र समर्थनमा बसेका कारण आउने relationship dynamics, मित्रता, ग्रामीण बोलीचाली, शान्ति - क्रान्ति - भ्रान्ति अनि सामाजिक - राजनीतिक रफुचक्करको सन्दर्भ आएको छ। अलिअली अहिले चर्चामा रहेको पंचायत र मिर्जापुरमा देखिने दृश्य जस्तै। किताबमा प्रयोग गरिएको भाषा शैली पनि पढुँ पढुँ लाउने नै छ। चुनाव तिर हुने फर्जी भोटको किस्सा नि आएको छ यस उपन्यासमा।
हाम्रो तिर बेला बेलामा हुने स्ववियु चुनाव, विश्वविद्यालय हरुमा गरिने तालाबन्दी, पक्ष प्रतिपक्षका नाममा गरिन्व धाँधली, चर्का चर्की, एउटै विषय र रटानलाई नयाँ नयाँ प्याकेजिङ गर्ने, बाँडिने सुख- समृद्धि-प्रगति- परिवर्तन का नारा, आदि आउँदछ यस आख्यानमा पनि। यसमा भारतेली गाउँतिर देखिने, अक्सर सिनेमा र डकुमेन्ट्रीमा बताइने देखाइने चुनावको माहोल, मिडिया र राजनीतिको ओपन - क्लोज proximity, greed, पैसाका आडमा हुने powerplay, जातीयता, धार्मिकता र लैंगिकताका नाममा सोझा सिधालाई ललीपप मात्र खुवाउने परिपाटी मज्जाले देखाएको छ।
मिठो लागेको कुरा फरकफरक धर्म सम्प्रदायबाट रहे भए पनि रफीक र संजय पात्रहरूको दोस्ती यारी, एक अर्कालाई हर हालमा साथ दिने, जिस्किने, आदि कार्य गर्दछन्। व्यासले राजनीति, दोस्ती, चुनाव, समय, प्रेम अनि अनेकौं सम्बन्धलाई स्वादिष्ट ककटेल बनाएर लेखेका छन्। उपन्यास पढ्दै जाँदा राम्रै फिल्म हेरेको झैँ भान हुन्छ अनुराग काश्यप, तिगमंशु धुलिया, प्रकाश झा आदिको directorial मा बनेका। किताबमा आउने अकस्मात् twist, gripping narrative र रोचक climax ले पढेको समय मेरो चै खेर गएन। यसमा tragedy, comedy, suspense, chills अनि thrills का कारण उम्दा लाग्यो व्यासको लेखन शैली र कथानक प्रस्तुत गर्ने तौरतरिका।
पाठकबीच Silence, laughter, deep thinking, calm, rage, fury पनि राम्रै reflect हुन्छ पढ्दै जाँदा। आफ्नो श्रम, अधिक समय, शत प्रतिशत dedication र loyalty पार्टीका लागि दिए तापनि अगाडि मौका पाउने चै जहिले मुख्य नेताका आसेपासे नै हुन्छन् विद्यार्थी राजनीति होस् वा मुलधारको राजनीति होस् या ग्रामीण मोफसल कै नै। यता; नेपाली देशकाल र समाजमा नि यस्तै छ दृश्य परिदृश्य।
उपन्यास पढेर सकिसक्दासम्म कतिपय takeaway lessons पनि टिपेँ। युपी बलियाको historical social reference नि आउँछ यस उपन्यासको narrative बीच बीचमा।
उदाहरणका लागि केही पाठ :
- धर्म, जाति, समुदाय, लिङ्ग जुनसुकै होस् ; कहिलेकाहीँ विश्वविद्यालयमा गाँसिने मित्रताको साइनो बहुत सुन्दर, सरल अनि समय समयमा काम लाग्छ।
- केही कुरा, लक्ष्य, सपना, जपना प्राप्त गर्नाका खातिर केही न केही जीवनका पाटोलाई गुमाउनै पर्छ।
- युवा, किशोर हुँदाताका हुने प्रेम, infatuation अनि sexual attraction बाट टाढा तटस्थ रहन सक्नु meditation, योग गरे झैँ हुने रहेछ। अनि मान्छे रोबोट मसिन हैन कि भावना नै नहोस् ।
- राजनीतिको नसामा चुर्लुम्म डुब्न थालेपछि विद्यार्थी नेताले अरुहरुलाई विद्यार्थी कम र चुनावमा भोट हाल्ने भोटर, सत्ता - शक्तिको संघर्षमा frontline मा खडा रहने योद्धा र आफ्ना नितान्त निजी मामिला र प्रगति हेतु चढ्ने सिँढी ज्यादा देख्छ।
- स्थिति, चुनावी सरगर्मी, स्वार्थ, आर्थिक राजनीतिक लाभ अनि वैचारिक संस्थागत स्वार्थ साकार गर्नलाई नेता कार्यकर्ता कमेलियन chameleon छेपारो भन्दा ज्यादा माहिर हुन्छन्।
- हामी बोली वचनका त्यति पक्का त छँदै छैनौँ। एक फेर यी पुराना लाई त भोट दिइन्न भनेर सामाजिक संजालमा अभियान गर्छौँ तर चुनाव सकिएर नतिजा आउँदा त्यही पुराना tried tested failed leadership? नै आउँछन् अगाडि जितेर।
मन परेका एकाध lines यस उपन्यासबाट :
- राजनीति यहाँ के पाँच तत्व में है। मिट्टी में राजनीति । पानी में राजनीति । आग में राजनीति । आकाश में राजनीति। और-तो-और हवाओं तक में राजनीति घुली हुई है। इसलिए यहाँ जब बेटी पैदा होती है तो लक्ष्मी पैदा होती है मगर जब लड़का पैदा होता है तो गोपाल जी नहीं आते। खुशखबरी सुनाने वालियाँ कहती हैं कि बधाई हो ! नेता हुआ है।
- अगर ट्रेन से गुजर रहे हैं और रास्ते में बलिया स्टेशन पर 'विष-लहरी, विष-लहरी' की आवाज आने लगे तो डरिएगा नहीं। दरअसल कोई वेंडर पानी बेच रहा होगा और उसकी मुराद 'बिसलरी' से होगी।
- सन् बयालीस में पूरा देश 'स्वराज-स्वराज' की रट लगाए था। बलिया वालों ने सोचा कोई प्रयोग होगा, चलो कर के देखते हैं। ऐसा प्रयोग किया कि जिले से अँग्रेज ही बाहर कर दिए। सात दिन। पूर्ण स्वराज। करते रहिए धर-पकड़। थाना-फौजदारी। हम हो गए देश से पहले ही आजाद।
- कपड़े के बैनर में जगह-जगह छेद न करने पर लोग उतारकर ले जाते थे। कच्छा-बनियान के लिए कच्चा और अच्छा माल मिल जाता था। बनवाते और पहनते। इसी से परेशान होकर शुरू हुई छिद्रण प्रथा। अब कोई उतारकर ले जाए ! देश को इतना बड़ा आइडिया दिया बलिया ने। सारे देश में कटे-छिदे बैनर आराम से झूल रहे हैं।
- जनता पर आते हैं। परिवार यहाँ 'जय संतोषी माँ', 'शिर्डी साई बाबा' से थोड़ा ऊपर उठता है तो सपत्नीक 'हम साथ साथ हैं' जैसी फिल्में देखने ही सिनेमा हॉल तक जा पाता है। लड़कियाँ तो यहाँ इतनी सुशील कि सिनेमा हॉल का मुँह देखने के लिए जीजाजी के आने का इंतजार करती हैं। लड़के इतने संस्कारी कि सिनेमा हॉल के पर्दे पर भी यदि हीरोइन, हीरो से अकेले मिल रही है तो 'रह-रह तोरा बाप के बतावा तानी' चिल्लाकर हीरोइन को आने वाले खतरे से आगाह कर देते हैं।
- जिला है बाबू जी। बलिया जिला। मजाक थोड़े है। यहाँ बदन इकहरा हो तो चला लिया जाता है; जर्दा दोहरा ही चलता है और मर्डर तो तिहरा से कम चलता ही नहीं है।' दिमाग' का पर्यायवाची यहाँ 'अंगविशेष' है। इसलिए यहाँ 'दिमाग न चाटो' मुहावरा नहीं चलता। दिमाग को विशेष कष्ट देने ही नहीं दिया जाता। अंगविशेष से काम चला लिया जाता है।
- राजनीति यहाँ रक्तबीज है। यहीं खिलती, खुलती और खौलती है। यही कारण है कि यहाँ मसला नहीं होता- 'पालटिक्स' हो जाती है। फौजदारी नहीं होती- पालटिक्स हो जाता है। और-तो-और बेवफाई भी नहीं होती पालटिक्स हो जाता है।
Loved it, story about friendship , love and dedication. Story of a typical Uttar Pradesh town , college politics and life lessons. Totally loved it. Desi , crisp and interesting.
Based on the city Balia, which has an important place in history as well as Hindu mythology. this book is all about university and events of college life.
It has been more than 10 years, since I visited my native town ballia. The story revolves around the places in ballia, which takes me back to one of the best times of my childhood that I have spent there. Whether it is station road, cinema road, sheesh mahal, vijay cinema, gyan peethika school, daya chapra or maujhua! The story shows the beautiful bond of friendship between the two prominent characters. The language as well the flow of the story is amazing which keeps you hooked. This Storyline perfectly depicts love, friendship, trust, humor, betrayal, revenge. I absolutely enjoyed this book!
सत्य व्यास की क़िताब का इंतज़ार रहता ही है| 'बागी बलिया दोस्ती, प्यार, धोखा, और छात्रसंघ का चुनाव, इस किताब के कीवर्ड्स हैं। बनारस टॉकीज की तरह ही देसीपन पर बढ़िया लेखन है इसमें। इतिहास का छौंका बाकमाल लगा है। भाषा, संवाद और रोचकता के मामले में किताब बेहतरीन है। कहानी ऐसी है कि चाहें तो कल फ़िल्म बना दें।
लेखक ने अपनी लिखावट के नएपन, डायलॉग्स में ताजगी और देसीपन पर मजबूत पकड़ से गज़ब का माहौल बांधा है। दूसरों के लिए ये राइटर होंगे, हमारे लिए सत्य व्यास नशा हैं... अगर पढ़ना शुरू करना चाहते हैं तो इनकी किताब से शुरू कीजिए, पढ़ने से इश्क़ हो जाएगा । सत्य व्यास जी जो मेरी समझ में नई वाली हिंदी के शीर्ष लेखकों में पहले ही शुमार हैं, ने एक और अनमोल किताब "बागी बलिया" पेश की है!
पहली तारीफ तो ये कि इस किताब की कवर ही आपको इतना आकर्षित कर लेगी की आप इसे पूरा पढ़े बिना नहीं रह पाएंगे! किताब बालियां जैसे ऐतिहासिक शहर को पृष्ठभूमि में रखकर लिखा गया है! जिसमें बलिया एकमात्र शहर ही नहीं अपितु एक सम्पूर्ण चरित्र की तरह नुमाया है! दूसरे इसे स्टूडेंट पॉलिटिक्स जैसे विषय पर लिखा गया और दोस्ती और अन्य मानवीय चरित्रों को पूरे आत्मीयता से उकेरा गया है!
संजय,रफीक,ज्योति,उजमा,बिरजू,नसीम,डाक साहब आपको आपके आसपास के किरदार मालूम होते हैं सत्य व्यास जी ने बनारस टॉकीज, दिल्ली दरबार, चौरासी से जो उम्मीदें जगाईं थी उसे और प्रभावी रूप से आगे बढ़ाया है! जैसा कि नाम से ज़ाहिर होता है उपन्यास की कहानी बलिया शहर की है और लेखक ने अपनी बाकी किताबों की तरह ही अबकी बलिया (पूर्वी उत्तर प्रदेश का एक शहर) को बहुत खूबसूरती से लिखा है।
उपन्यास के मुख्य पात्र हैं संजय और रफ़ीक, एक हिन्दू तो दूसरा मुस्लिम और दोनों लंगोटिया यार। दोनों की दोस्ती ऐसी है कि दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हं। संवाद काफी मजेदार और हंसी वाले है। कुछ संवाद पर आपकी हंसी नहीं रुकेगी।
कुछ सीन पर दिल भी भर आएगा। हमारे आपके बीच की. प्यार की, अपमान के बदले की, भाई बहन और दोस्ती की. सबसे खास बात जो इस किताब में है वो है किस्सागोई का तरीका जो आपको आखिरी पन्ने तक बांध कर रखती है. अगर इस उपन्यास पर कभी भी कोई फ़िल्म बनती है तो लोग "शोले के जय-वीरू" की ही तरह इनकी दोस्ती को भी "बागी-बलिया के संजय-रफ़ीक़" के रूप में सालों-साल याद करेंगे। पूरा पैसा वसूल है बिल्कुल निराशा नहीं होगी।
The Book was really an amazing read, Now i have read all the works by the author and this is now my second favourite, (84 still remains a favourite),
The story is of Two friends, Sanjay and Rafique.. Sanjay wants to win the student elections of the university and Rafique is determined to make him win..
They are contesting against some really villainous political goons who do what they are known for" dirty politics" they use all the dirty tricks they can which ofcourse rattles both the friends and also the readers... But then Sanjay realises a big mistake in his strategy and starts working again on it, with a new perspective... Will he be able to Succeed, in this election? For that you will have to read the Book...
The story was so amazing that i was continuously reading this for the last 24 hours and i was not really able to put the book down for more than 30 minutes.. it is that good..
Another Point that i have realised about the author is his books have instances that will really make you laugh hard... which i have rarely found in other books... and same goes for this book there was atleast 5 instances where i laughed so hard.. that i got interrogated by my family...😆😆
The friendship of both the friends,is so lovely to read about..and the way they can easily taunt each other even on their religious beliefs are a delight to read..
The Book is on Students Politics, stays true to its central plot throughout, Dirty politics gets dirty to an extent you will hate it.. Already i mentioned about the humour quotient.. and then there is a love story too which is really lovely to read... so if one book has all these factors, you can easily judge my love for it... and yes, definately highly recommended for all the "Hindi Fiction Lovers"..
यह मेरी लेखक 'सत्य व्यास' की पहली पुस्तक थी। मैंने काफी नाम सुना था लेखक का पर पढ़ने का मौका आज मिला। ये कहानी उत्तर प्रदेश के एक जिला बलिया के बारे में है। कहानी में रफीक और संजय के किरदारों को बखूबी दर्शाया है जहाँ रफीक मुस्लिम है और संजय हिन्दू। इन दोनों की दोस्ती लाजवाब थी जहाँ धर्म, मजहब कभी आड़े नहीं आता। कहानी शुरू होती है संजय के अध्यक्ष बनने से और रफीक एक सहयोगी की तरह उसकी पूरी तरह से मदद करता है। रफीक न ही अच्छा दोस्त बल्कि एक अच्छा भाई भी साबित होता है। संजय की चचेरी बहन ज्योति जो रफीक को अपने भाई से कम न मानती थी।
इस कहानी में आपको प्यार, बदला, दोस्ती और भरपूर राजनीति मिलेगी जो इस कहानी को और भी रोमांचक बना देती है। किरदारों की कहें तोह सभी किरदार को बहुत बखूभी दिखाया है जैसे- झुन्नू भैया , डॉक साब, उजमा , बिरजू , अनुपम। यह कहानी बहुत ही महत्वपूर्ण ढंग से लिखी गयी है जिसे मैं कभी नहीं भूल पाऊँगी।
अग़र आपको लगता है कि नशा सिर्फ़ शराब और शबाब का ही सबसे बड़ा होता है तो मियाँ आप बहुत बड़े छलावे में जी रहे हो, क्योंकि अभी आपने सत्य व्यास के लेखन को नही पढ़ा। अग़र एक बार पढ़ लिए होते तो ऐसा ना सोचते। इनका लेखन एक ऐसा नशा है जो एक बार चढ़ जाए तो आप ख़ुद चाहोगे कि यह नशा कभी ना उतरे।
आज ही यह क़िताब पढ़े हैं। आपको सब कुछ इसमें देखने को मिलेगा। राजनीति, धोखा, छल-प्रपंच, प्यार, दोस्ती, और इतिहास की एक झलक। एक तरफ़ आपको यह क़िताब हसाती है तो दूसरी तरफ रोने को मजबूर कर देती है। बस यह समझ नही आया कि जब संजय और रफीक की हर परेशानी के पीछे झुन्नू भैया थे तो उसे ऐसे ही क्यों छोड़ दिया गया!
बस इतना ही बोलेंगें कि क़िताब मंगाइये और पढ़ डालिए। और हाँ, सारा काम निपटा के तब पढ़ने बैठना वरना बीच मे उठने का मन नही करेगा और दिन में पूरा पढ़ लेना वरना क़िताब के क़िरदारों और घटनाओं का आपके सपने में आना निश्चित है। खुद का एक्सपीरियंस बता रहे हैं।😊
समकालीन राजनीतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य को देखते हुए, मेरा विचार है कि इस प्रकार की पुस्तकें ज्यादा से ज्यादा संख्या में लिखी जानी चाहिए। "बाग़ी बलिया" में आपको प्रेम, शत्रुता, राजनीति, सामाजिक-सौहार्द और उससे भी बढ़कर सच्ची दोस्ती, इन सभी का रसास्वादन मिलेगा।
लेखनी ऐसी कि आपको किताब बिना खत्म किये छोड़ने का मन नही होगा। संवाद मजेदार है। कहीं-कहीं दार्शनिकता भी दिखा गए हैं लेखक महोदय। इसमें अलावा इसमें एक ऐसा पात्र जिसके संवादों की ऐतिहासिक रूपकता (Historical Allegory) पर पूरा कथानक टिका हुआ। इतिहास में यदि आपकी प्रगाढ़ रुचि हुई तो इसे आप शुरुआत में ही पकड़ ले जायेंगे, और नही भी पकड़ पाए, तो अन्त तक जाते-जाते रोमांच तो देगा ही।
हिन्दी पट्टी वाले और खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के पाठकों को यह किताब एक बार अवश्य पढ़नी चाहिए।
I have heard a lot about satya vyas but never tried to read him then I watched a ott series based on his novel 84. I liked it then I tried to read it. This in my sense is not a novel it is a story an elaborated story of friendship, love betrayal politics etc. Though the main charecters are hindu and Muslim yet this novel neither preach religious harmony nor taunt any religion. This is the best thing about the book that he portrayed it so casually that one will feel it only as 2 names. If you will read this novel with the thinking that they will get modern day munsi premchand then you will be disappointed but if you'll treat it only as a book to read then it keep you stick with the novel. One time read just to enjoy the story.
4.25 stars. Another gem by Mr Stay Vyas. In a way he has revived hindi novels by writing such pieces, making hindi novels more mainstream and palatable for the youth. Although, the plat is not new or unheard of but the way it’s written makes it stand out. A story about friendship, love, family and politics told in such a way that it feels a story of your city or town. I won’t be surprised if it’s adapted in a movie in the coming future.
The book take you on a ride and goes through unexpected turn. The friendship in the book has been dealt in very mature way. The book never leaves its authenticity of being rooted in Ballia. The book has all the emotion comedy, romance, action and suspense. The trump card of book is Daak Saab and also how author uses the history to explain current situation.
बागी बलिया एक बहुत ही अच्छी कहानी हमे सुनाती है इस उपन्यास को पढ़ते वक्त ये समझ जरूर आयेगा की कैसे कोई लेखक, पढ़ने वाले को अपने इक्षा अनुसार हँसा सकता है, परेशान कर सकता है और रुला भी सकता है। संजय और रफिक जो इस कहानी के मुख्य किरदार हैं, हंसी मजाक में ही न जाने कितनी सीख देते है, मित्रता की सुंदरता दिखाते हैं। एक बार तो जरूर ही पढ़िए।
It was my first book of Satya Vyas. The story was good. Earlier I used to think that modern hindi writers do not have good storyline but this book changed my perspective. Must read if you associate yourself with the culture of Poorvanchal. Even if you are not from eastern UP but If you like Mirzapur series then this book is definitely for you.
This novel reveals the strength of the new breed of writers in Hindi literature. Very few would venture to write a story in such a remote setting using the colloquial language and making it a showpiece and formidable part of the novel. Loved the genre, content and style.
बागी बलिया (बलिया की मिट्टी की सोंधी खुशबू और छात्र राजनीति)
सत्य व्यास मुझे सन 1998 से 2005 के बीच कुँवर सिंह और टीडी कॉलेज में बिताए गए दिन, छात्र राजनीति से जुड़ी यादें और दोस्तों के साथ शहर की हर सड़क पर बिताए क्षणों के बीच ले गए। एक पल को भी नहीं लगा कि हम बलिया शहर से 1000 किलोमीटर दूर बैठकर उनकी रचना पढ़ रहे हैं।
बलिया जिले के इर्द-गिर्द घूमती कहानी जिसमे हिन्दू-मुस्लिम औऱ राजनीति को फोकस कर के लिखा गया है. शुरू में तो काफी बोरिंग किताब है लेकिन अंत तक आते आते इंटरेस्टिंग हो जाती है, एक बार पढ़ने योग्य किताब 👍🏾👍🏾
Baghi balia is a story about student presidential election in a college, where 2 ambitious men with a few means stood against the already established and powerful political figures.
The story is written in such a way that the character of Sanjay and Rafiq will stay with you for a long time.
If you want gangs of wasseypur type gaaon ka feel, with little less violence and more politics, you can go for it.
Satya Vyas books are always filled with drama emotions and humor. This has been amazing joy ride and excepted nothing else. Strong relation between main characters and apt story telling makes this wonderful read. Once you start reading , difficult to put it down without finishing it.
सत्य व्यास जी की बाकी किताबों की तरह ये किताब भी बेहतरीन है, एक शहर बलिया,दोस्त,प्यार, कॉलेज राजनीति सब कुछ है। कई पन्नों पर आप हसेंगे कुछ पन्ने आपको मौन कर देंगे। जरूर पढ़ियेगा।