Why I am a Hindu Quotes
Why I am a Hindu
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Shashi Tharoor3,980 ratings, 3.72 average rating, 610 reviews
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Why I am a Hindu Quotes
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“Who knows whence this creation had its origin?
He, whether He fashioned it or whether He did not,
He, who surveys it all from the highest heaven,
He knows—or maybe even He does not know.
— Rig Veda, X.129 1
‘Maybe even He does not know!’ I love a faith that raises such a fundamental
question about no less a Supreme Being than the Creator of the Universe
Himself. Maybe He does not know, indeed. Who are we mere mortals to claim a
knowledge of which even He cannot be certain?”
― Why I am a Hindu
He, whether He fashioned it or whether He did not,
He, who surveys it all from the highest heaven,
He knows—or maybe even He does not know.
— Rig Veda, X.129 1
‘Maybe even He does not know!’ I love a faith that raises such a fundamental
question about no less a Supreme Being than the Creator of the Universe
Himself. Maybe He does not know, indeed. Who are we mere mortals to claim a
knowledge of which even He cannot be certain?”
― Why I am a Hindu
“Whosoever comes to me, through whatsoever form, I reach him; all men are struggling through paths which in the end lead to me.”
― Why I am a Hindu
― Why I am a Hindu
“मैं तुम्हें सिर्फ़ प्रेम के लिए निःस्वार्थ भाव से प्रेम कर सकूँ।”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
“the problem is never with the faith, but with the faithful.”
― Why I am a Hindu
― Why I am a Hindu
“It is precisely faith that makes thinking possible, for faith offers the unthought ground out of which thinking can emerge. It is faith that makes moral and other decisions possible, opening to us the horizon against which our actions become meaningful.”
― Why I am a Hindu
― Why I am a Hindu
“Tolerance, after all, implies that you have the truth, but will generously indulge another who does not; you will, in an act of tolerance, allow him the right to be wrong. Acceptance, on the other hand, implies that you have a truth but the other person may also have a truth; that you accept his truth and respect it, while expecting him to respect (and accept) your truth in turn. This practice of acceptance of difference—the idea that other ways of being and believing are equally valid—is central to Hinduism and the basis for India’s democratic culture.”
― Why I am a Hindu
― Why I am a Hindu
“the word ‘Hindu’ did not exist in any Indian language till its use by foreigners gave Indians a term for self-definition. Hindus, in other words, call themselves by a label that they didn’t invent themselves in any of their own languages, but adopted cheerfully when others began to refer to them by that word. (Of course, many prefer a different term altogether—Sanatana Dharma,”
― Why I am a Hindu
― Why I am a Hindu
“Merchant interestingly defines a Hindu as one who is an ardent seeker of Truth: ‘An individual who strives to actively discern the existence of the objective Reality otherwise termed as God and attain Him if convinced of His existence, using means that are inherently subjective and dependent on the individual’s own proclivities, beliefs and values, is a Hindu.’ This definition of Hinduism, if it can be called that—since it could apply to almost anyone of any culture or religious faith—emphasises the individualist nature of the quest for truth, the role of reasoning in the process, and the ultimate yearning for God (whether one uses that term or speaks of the soul’s merger with Brahman, the idea is the same).”
― Why I am a Hindu
― Why I am a Hindu
“जुड़ाव का नियम (लॉ ऑफ़ एसोसिएशन) यह कहता है कि भौतिक छवि एक मानसिक विचार की प्रतीक होती है और इसका उलटा भी उतना ही सही है। यही कारण है कि हिन्दू पूजा करते समय अपने सामने एक भौतिक प्रतीक रखना पसन्द करते हैं।”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
“हिन्दू धर्म का समूचा लक्ष्य मनुष्य के परिपूर्णता पर पहुँचने का सतत संघर्ष”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
“एक मनुष्य को भी इस संसार में रहते हुए अपना हृदय ईश्वर से और अपने हाथ अपने कर्म से जोड़े रखने चाहिए।”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
“आध्यात्मिक जगत् के नियम भी हमेशा से मौजूद हैं और रहेंगे। आत्मा और आत्मा के बीच जो नैतिक और आध्यात्मिक सम्बन्ध हैं, और आत्मा और सभी आत्माओं के पिता अर्थात् परमात्मा या परमेश्वर के बीच जो नैतिक और आध्यात्मिक सम्बन्ध हैं, वे उनकी खोज से पहले भी मौजूद थे, और अगर हम उन्हें भूल भी जाते हैं तो भी वे मौजूद रहेंगे।”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
“वेदों का अर्थ पुस्तकें नहीं हैं। वे आध्यात्मिक नियमों का एक ऐसा कोश हैं जिन्हें अलग-अलग महापुरुषों ने अलग-अलग समय में खोजा।”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
“ज़्यादा प्रभाव श्री नारायण गुरु ने छोड़ा, जो पिछड़ी जाति के होने के बावजूद सभी बन्धनों को तोड़ते हुए एक महात्मा पुरुष के रूप में उभरे। उन्होंने प्रेम, समानता और सार्वभौमिकता के सिद्धान्तों वाले हिन्दूवाद की शिक्षा दी। उनका धर्म वाक्य था—‘सभी मनुष्यों के लिए एक धर्म, एक जाति और एक ईश्वर’। उनके अनुसार, “मनुष्य की जाति कुछ भी हो, उसे एक अच्छा मनुष्य होना चाहिए।” उन्होंने पूरे दक्षिण भारत में बहुत-से शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की।”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
“रमण महर्षि की गहरी आध्यात्मिक लगन, आत्म-बोध की तड़प, और अद्वैत और भक्ति के उनके असीम ज्ञान के कारण उन्हें ‘जीवनमुक्ता’ के रूप में जाना जाने लगा था। अगर हम रामकृष्ण परमहंस को ‘भक्ति योग’ के प्रतीक के रूप में देखें और स्वामी विवेकानन्द को ‘कर्म योग’ के प्रतीक के रूप में, तो हम रमण महर्षि को ‘ज्ञान योग’ के प्रतीक के रूप में देख सकते हैं। उनके आत्म-बोध की कुंजी यह प्रश्न था—‘मैं कौन हूँ?”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
“धर्म और स्त्रियों के सतीत्व की रक्षा के लिए उठाये गये इन क़दमों में मन्दिरों में प्रवेश पर नियन्त्रण (ताकि उनका ख़ज़ाना ताक-झाँक करने वालों की नज़रों में न आये), बाल-विवाह (ताकि उनका सतीत्व सुरक्षित रहे और वे आक्रमणकारियों की हवस का शिकार होने से बची रहें) और सती प्रथा (विधवाओं के सतीत्व की रक्षा के लिए) इत्यादि शामिल थे। इस प्रकार, ये सभी घृणित सामाजिक व्यवहार हिन्दूवाद का अभिन्न अंग न होकर बाहरी आक्रमणों से उपजी परिस्थितियों में विवशतावश उठाये गये क़दम थे,”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
“वेदों ने अत्यधिक कर्मकाण्ड और औपचारिकताओं पर आधारित धर्म को जन्म दिया तो उपनिषदों ने दार्शनिक चिन्तन और आध्यात्मिक आन्दोलन के माध्यम से धर्म को कम बोझिल और अधिक लचीला बनाया। जब धर्म परस्पर मतभेदों और सिद्धान्तों के टकराव का अखाड़ा बनने लगा तो बुद्ध ने सादगी और नैतिकता का सन्देश देकर एक नयी राह दिखाई। इसके बाद आदि शंकराचार्य ने देश भर का भ्रमण करते हुए और जगह-जगह मन्दिर और चार बड़े मठ स्थापित करते हुए हिन्दू धर्म का पुनरुत्थान और पुनर्जागरण किया। शंकराचार्य और उसके बाद रामानुज के प्रयासों से ही हिन्दू धर्म एक बार फिर से भारत का प्रमुख और सबसे लोकप्रिय धर्म बन पाया। मध्वाचार्य, चैतन्य, रामानन्द और बसव (जिनके लिंगायत अनुयायी आजकल अपने धर्म को एक अलग धर्म माने जाने का आग्रह कर रहे हैं) जैसे सुधारकों के साथ-साथ कबीर, मीराबाई, तुलसीदास और गुरुनानक (जिनके द्वारा सिख धर्म की नींव रखी जाने के बावजूद जिन्हें स्वामी विवेकानन्द की तरह बहुत-से हिन्दू एक हिन्दू सुधारक के रूप में भी देखते हैं)”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
“स्वामी विवेकानन्द के अनुसार, “शाक्य मुनि (बुद्ध) कुछ नष्ट करने के लिए नहीं आये थे। वे तो एक प्राप्ति थे, एक तर्कपूर्ण निष्कर्ष थे, हिन्दू धर्म के तार्किक विकास के प्रतीक थे। हिन्दू दर्शन और हिन्दू मस्तिष्क के बिना एक बौद्ध का काम नहीं चल सकता; और एक बौद्ध के हृदय के बिना एक हिन्दू का भी काम नहीं चल सकता।”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
“भक्ति ने हिन्दू धर्म को वैदिक कर्मकाण्ड, कठोर ब्रह्मचर्य और गूढ़ आध्यात्मिक ज्ञान से ऊपर उठाकर इसे एक सरल और जन-जन का धर्म बना दिया। भक्त और भगवान के बीच प्रेम भरे सम्बन्धों और सच्ची भक्ति से परम आध्यात्मिक आनन्द प्राप्त किया जा सकता था। इसके लिए किसी औपचारिकता या मध्यस्थ की आवश्यकता नहीं थी।”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
“ऊँचा मनुष्य वह है जो स्वयं को जानता है,” वे कहा करते थे। “क्या देवता का मन्दिर और शूद्र का झोंपड़ा एक ही पृथ्वी पर नहीं खड़े हैं? क्या अनुष्ठान का जल कुल्ला करने वाले जल से अलग होता है?”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
“इसका दायरा इतना व्यापक था कि गुजरात के महान कवि, दार्शनिक और धर्मोपदेशक नरसी मेहता से लेकर मिथिला के विद्यापति और बंगाल के चैतन्य देव तक कितने ही महापुरुष इस महाधारा से जुड़ते रहे। (चैतन्य देव ने कीर्तनों और कृष्ण के भजनों के माध्यम से बंगाल में एक वैष्णव आन्दोलन ही शुरू कर दिया था।) महाराष्ट्र के सन्त ज्ञानेश्वर, सन्त तुकाराम, सन्त एकनाथ और सन्त नामदेव, कर्नाटक के बसवन्ना और तमिलनाडु के त्यागराज इत्यादि सभी इस आन्दोलन का हिस्सा बनकर अपनी-अपनी भूमिका निभाते रहे और भक्ति का सन्देश फैलाते रहे। कृष्णभक्त शंकर देव देश भर का”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
“कश्मीर की लाला रुख़ (1317-1372) भी भक्ति रस की सन्त कवयित्री के रूप में ख़ूब लोकप्रिय रही थीं। वे भगवान शिव की भक्तिन थीं और दिन-रात उन्हीं के भक्ति रस में डूबी रहती थीं। उन्होंने मुसलमानों और हिन्दुओं में भेद करने से इनकार करते हुए अपनी रचनाओं में खुलकर इन भावनाओं को व्यक्त किया।”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
“संन्यासी रामानन्द चौदहवीं सदी में आर्यावर्त भूमि अर्थात् गंगा के समूचे मैदानी क्षेत्र में घूमते हुए ईश्वर-भक्ति का सन्देश देते रहे। सांसारिक कष्टों से उबरने के लिए कृपालु ईश्वर से जुड़ने के उनके सन्देश में सभी मनुष्यों की समानता के विचार के साथ-साथ एक मोहक रहस्यवाद भी था, जिसके कारण उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गयी। बाद में वाराणसी में बस जाने के बाद वे अपने योग्य शिष्यों के माध्यम से भक्ति का सन्देश देते रहे।”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
“शंकराचार्य का अनुसरण करने के बावजूद रामानुज ने ‘गीता’ और ‘ब्रह्मसूत्र’ की जो व्याख्याएँ कीं, वे शंकराचार्य की व्याख्याओं से बिल्कुल अलग थीं। उनके अनुसार, कर्म के दायित्वों को ईश्वर के प्रेम और कृपा से ही निभाया जा सकता था, जिसे ईश्वर की सच्ची भक्ति और उसके प्रति अटूट समर्पण के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता था। इस प्रकार उन्होंने आदि शंकराचार्य के दार्शनिक धर्म की बजाय ईश्वर-प्रेम और ईश्वर-भक्ति का रास्ता अपनाया और हिन्दू धर्म को जन-जन का धर्म बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने ईश्वर-भक्ति को लोकप्रिय बनाते हुए इसे एक संगठनात्मक स्वरूप प्रदान किया और दैनिक पूजा और वार्षिक मन्दिर उत्सवों के माध्यम से लोगों को आपस में जोड़ा।”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
“इस्लाम ने हिन्दूवाद के दार्शनिक आधार को चुनौती देते हुए इसके सामाजिक ढाँचे पर प्रश्न किया, इसके पन्थिक विश्वासों को नकारा, इसके बहुलवादी सिद्धान्तों को तिरस्कार से देखा और इसके ख़ज़ानों को लूटने के लोभ का खुल कर प्रदर्शन किया।”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
“उसका न कोई आदि है न अन्त अव्यवस्था के बीच एक रचनाकार असंख्य रूपों और आकारों का निराकार चितेरा जिसने उस ईश्वर को जान लिया समझो सब बन्धनों से मुक्त हो गया। —श्वेताश्वतर उपनिषद्,”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
“मण्डूक उपनिषद् में ओ३म् को धनुष, आत्मा को बाण और ब्रह्म को लक्ष्य बताया गया है।”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
“ब्रह्म ‘परमार्थिक सत्यम्’ है, परम सत्य, और मनुष्य की ‘आत्मा’ या ‘स्व’ इसी का एक अंश है। इस परम सत्य का बोध ही— जो अपने-आपमें एक पूर्ण चेतना का प्रतीक है—मनुष्य को मोक्ष की तरफ़ ले जाता है। कुछ”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
“ब्रह्म नामक विराट आत्मा पूरे ब्रह्माण्ड को अपने घेरे में समेटे हुए है और यही एकमात्र और परम सत्य है।”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
“सांख्य दर्शन ‘द्वैतवाद’ पर विश्वास करते हुए यह मानता रहा है कि आत्मा और ब्रह्म दो अलग इकाइयाँ या सत्ताएँ हैं,”
― Main Hindu Kyun Hoon
― Main Hindu Kyun Hoon
