मुसाफिर Cafe Quotes

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मुसाफिर Cafe मुसाफिर Cafe by Divya Prakash Dubey
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मुसाफिर Cafe Quotes Showing 1-18 of 18
“गलतियाँ सुधारनी जरुर चाहिए लेकिन मिटानी नहीं चाहिए। गलतियाँ वो पगडंडियाँ होती है जो बताती रहती हैं कि हमने शुरू कहाँ से किया था।”
Divya Prakash Dubey, मुसाफिर Cafe
“जिनको कभी-कभी गुस्सा आता है उनको जब गुस्सा आता है तो वो कंट्रोल नहीं कर पाते। इसलिए थोड़ा-थोड़ा गुस्सा करते रहना चाहिए, रिश्तों और जिंदगी चलाते रहने के लिए अच्छा रहता है।”
Divya Prakash Dubey, मुसाफिर Cafe
“एक बार ये भी लगा कि उस दिन कोई बात अधूरी रह गई। असल में बातें हमेशा अधूरी ही रहती हैं। ऐसा तो कभी होता ही नहीं कि हम बोल पाएँ कि मेरी उससे जिंदगी भर की सारी बातें पूरी हो गईं। हम सभी अपने-अपने हिस्से की अधूरी बातों के साथ ही एक दिन यूँ ही मर जाएँगे।”
Divya Prakash Dubey, मुसाफिर Cafe
“जिंदगी की कोई भी शुरुआत हिचकिचाहट से ही होती है। बहुत थोड़ा-सा घबराना इसीलिए जरूरी होता है क्यूँकि अगर थोड़ी भी घबराहट नहीं है तो या तो वो काम जरूरी नहीं है या फिर वो काम करने लायक ही नहीं है। ह”
Divya Prakash Dubey, मुसाफिर Cafe
“हम सुबह ऑफिस के लिए निकलते हैं तो हमें मालूम होता है कि ये हमारी मंजिल नहीं है, हम रोज सही पते पर पहुँचकर भी भटके हुए होते हैं। च”
Divya Prakash Dubey, मुसाफिर Cafe
“लाइफ को लेकर प्लान बड़े नहीं, सिम्पल होने चाहिए। प्लान बहुत बड़े हो जाएँ तो लाइफ के लिए ही जगह नहीं बचती।”
Divya Prakash Dubey, मुसाफिर Cafe
“पहली हर चीज की बात हमेशा कुछ अलग होती है क्यूँकि पहला न हो तो दूसरा नहीं होता, दूसरा न हो तो तीसरा, इसीलिए पहला कदम ही जिंदगी भर रास्ते में मिलने वाली मंजिलें तय कर दिया करता है। पहली बार के बाद हम बस अपने आप को दोहराते हैं और हर बार दोहरने में बस वो पहली बार ढूँढ़ते हैं।”
Divya Prakash Dubey, मुसाफिर Cafe
“समंदर जितना बेचैन होता है हम उसके पास पहुँचकर उतना ही शांत हो जाते हैं। यही ज़िन्दगी का हाल है - पूरा बेचैन हुए बिना जैसे शांति मिल ही नहीं सकती।”
Divya Prakash Dubey, मुसाफिर Cafe
“हमारे सब जवाब हमारे पास खुद हैं, ये बात समझने के लिए अपने हिस्से भर की दुनिया भटकनी पड़ती ही है। बिना भटके मिली हुई मंजिलें और जवाब दोनों ही नकली होते हैं। वैसे भी जिंदगी की मंजिल भटकना है कहीं पहुँचना नहीं।”
Divya Prakash Dubey, मुसाफिर Cafe
“जिंदगी की सबसे अच्छी और खराब बात यही है कि ये हमेशा नहीं रहने वाली। ये बात एक उम्र के बाद हम सभी को समझ में आने लगती है कि दिन अच्छे हों या खराब, दोनों बीत जाते हैं। रोते हुए हम अपने सबसे करीब होते हैं और हँसते हुए दूसरों के। इसलिए लाख अपने करीब होकर भी रोना हँसने से रेस में पीछे रह जाता है।”
Divya Prakash Dubey, मुसाफिर Cafe
“जिनके पास खोने के लिए कुछ नहीं होता वो फैसले जल्दी ले लिया करते हैं। जिस दिन हमको ये समझ में आता है कि यहाँ हममें से किसी के भी पास जिंदगी के अलावा खोने को कुछ नहीं है, उस दिन हम अपनी जिंदगी का पहला कदम अपनी ओर चलते हैं। बाहर चलते-चलते हम करीब-करीब भूल ही चुके होते हैं कि हमारे अंदर भी एक दुनिया है।”
Divya Prakash Dubey, मुसाफिर Cafe
“कहानियाँ कोई भी झूठ नहीं होतीं। या तो वो हो चुकी होती हैं या वो हो रही होती हैं या फिर वो होने वाली होती हैं।”
Divya Prakash Dubey, मुसाफिर Cafe
“किताब की अंडरलाइन अक्सर वो फुल स्टॉप होता है जो लिखने वाले ने पढ़ने वाले के लिए छोड़ दिया होता है। अंडरलाइन करते ही किताब पूरी हो जाती है।”
Divya Prakash Dubey, मुसाफिर Cafe
“असल में किताबें दोस्त तब बनती हैं जब हम सालों बाद उन्हें पहली बार की तरह छूते हैं। किताबें खोलकर अपनी पुरानी अंडरलाइन्स को ढूँढ़-ढूँढ़कर छूने की कोशिश करते हैं। किसी को समझना हो तो उसकी शेल्फ में लगी किताबों को देख लेना चाहिए, किसी कि आत्मा समझनी हो तो उन किताबों में लगी अंडरलाइन को पढ़ना चाहिए।”
Divya Prakash Dubey, मुसाफिर Cafe
“थोड़ा-सा पागल हुए बिना इस दुनिया को झेला नहीं जा सकता।”
Divya Prakash Dubey, मुसाफिर Cafe
“किसी से मिलकर नाइस मीटिंग यू अगर कभी लगा भी करे तो बोला मत करो। कुछ चीज़ें बोलते ही कचरा हो जाती हैं।”
Divya Prakash Dubey, मुसाफिर Cafe
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“जैसे आसमान देखते हुए हम तारों से बनी हुई शक्लें पूरी करते हैं। हम शक्लों में खाली जगह अपने हिसाब से भरते हैं इसलिए दुनिया में किन्हीं भी दो लोगों को कभी एक-सा आसमान नहीं दिखता। हम सबको अपना-अपना आसमान दिखता है।”
Divya Prakash Dubey, मुसाफिर Cafe
“Basically I wanted a world made up of books, chai, hills and rains”
Divya Prakash Dubey, मुसाफिर Cafe