कसप Quotes

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कसप कसप by Manohar Shyam Joshi
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कसप Quotes Showing 1-12 of 12
“मुझे किसी के लायक नहीं बनना. अपने लायक ही बन जाऊं बहुत होगा. तू किसी के लायक क्यों बनना चाहता? तेरे भीतर सभी गुन ठहरे. तू अपने लायक जो बनना चाहेगा तो कितना बड़ा जो आदमी नहीं बन जाएगा?”
Manohar Shyam Joshi, कसप
tags: being
“जिन्दगी की घास खोदने में जुटे हुए हम जब कभी चौंककर घास, घाम और खुरपा तीनों भुला देते हैं, तभी प्यार का जन्म होता है”
Manohar Shyam Joshi, कसप
tags: love
“मैं सोच रहा हूँ कि जिसे तुम अन्तरंगता कहती हो वह प्यार के विना कैसे हो सकती है? प्यार से भिन्न कैसे हो सकती है?”
“प्यार दाता या भिखारी होता है। अन्तरंगता कुछ माँगती नहीं। दे रही हूँ औघड़दानी बनकर, इस भाव से कुछ देती नहीं। और हाँ, अन्तरंगता को बिना माँगे कुछ मिल जाये तो वह धन्य भी नहीं हो जाती।”
“प्यार भी कुछ नहीं माँगता।”
“सिवा इसके कि कृपया मुझे स्वीकार किया जाये! नहीं करोगे तो एक गरीब मारा जायेगा। प्यार लिप्सा और वर्जना के खानों पर जमाने-भर के भावनात्मक मोहरों से खेली जानेवाली शतरंज है। अन्तरंगता खेल नहीं है, उसमें कोई जीत-हार नहीं है, आरम्भ और अन्त नहीं है। प्यार एक प्रक्रिया है, अन्तरंगता एक अवस्था।”
Manohar Shyam Joshi, कसप
“प्रेम के आनन्द को प्रेम की पीड़ा से अलग नहीं किया जा सकता। नित्य संयोगात्मक है प्रेम, और नित्य वियोगात्मक। देखिबौ जहाँ विरह सम होई, तहाँ कौ प्रेम कहा कहि कोई।
नायक ने लिखा कि कदाचित् चिर-अतृप्ति ही प्रीति है। प्यास ही प्यार है। प्यारी जू को रूप मानो प्यास ही को रूप है।
नायक ने जानना चाहा कि यदि प्यार, प्यास ही है तो क्या प्यास का बुझ जाना प्यार का मर जाना नहीं है? क्या कोई खाँटी प्रेमी इस उद्देश्य से प्रेम कर सकता है कि प्रेम को अन्ततः मार दे? क्या असली प्रेमी, प्यास की विह्वलता बढ़ने से विचलित हो सकता है? क्या वह नहीं जानता कि इस प्यास का समाधान अतिरिक्त प्यास है? प्यार की पीड़ा का उपचार और अधिक प्यार है?”
Manohar Shyam Joshi, कसप
“चौंका होना प्रेम की लाक्षणिक स्थिति जो है। जिन्दगी की घास खोदने में जुटे हुए हम जब कभी चौंककर घास, घाम और खुरपा तीनों भुला देते हैं, तभी प्यार का जन्म होता है। या शायद इसे यों कहना चाहिए कि वह प्यार ही है जिसका पीछे से आकर हमारी आँखें गदोलियों से ढक देना हमें चौंकाकर बाध्य करता है कि घड़ी-दो घड़ी घास, घाम और खुरपा भूल जायें।”
Manohar Shyam Joshi, कसप
“इतना निर्मल हो चला था नायक का मन कि वह मानने लगा था कि प्रेम में जो भी तुम उसे लिखते हो, खुद अपने को लिखते हो। डायरी भरते हो तुम और क्योंकि वह तुमसे अभिन्न है इसलिए उसे भी पढ़ने देते हो।”
Manohar Shyam Joshi, कसप
“प्रेम के आनन्द को प्रेम की पीड़ा से अलग नहीं किया जा सकता। नित्य संयोगात्मक है प्रेम, और नित्य वियोगात्मक। देखिबौ जहाँ विरह सम होई, तहाँ कौ प्रेम कहा कहि कोई।”
Manohar Shyam Joshi, कसप
“क्या हम मानव एक-दूसरे को दुख-ही-दुख दे सकते हैं, सुख नहीं? हम क्यों सदा कटिबद्ध होते हैं एक-दूसरे को गलत समझने के लिए? इतना कुछ है इस सृष्टि में देखने-समझने को, फिर भी क्यों हम अपने-अपने दुखों के दायरे में बैठे रहने को अभिशप्त हैं? अगर हम खुशियाँ लूटना-लुटाना सीख जायें तो क्या यही दुनिया स्वर्ग जैसी सुन्दर न हो जाये?”
Manohar Shyam Joshi, कसप
“किस्सागोई की कुमाऊँ में यशस्वी परम्परा है। ठण्ड और अभाव में पलते लोगों का नीरस श्रम-साध्य जीवन किस्सों के सहारे ही कटता आया है। काथ, क्वीड, सौल-कठौल, जाने कितने शब्द हैं उनके पास अलग-अलग तरह की किस्सागोई के लिए! यही नहीं, उन्हें किस्सा सुनानेवाले को ‘ऐसा जो थोड़ी’ या ‘ऐसा जो क्या’ कहकर टोकने की और फिर किस्सा अपने ढंग से सुनाने की साहित्यिक जिद्द भी है।”
Manohar Shyam Joshi, कसप
“अब उसका सर्वस्व दंशित है।”
Manohar Shyam Joshi, कसप
“जब तुम उसको पत्र लिख रहे होते हो तब तुम अपने को ही पत्र लिख रहे होते हो - नि:संदेह ! किंतु उर में विहलता भरता प्रश्न यह है कि जब तुम उसके पिता को लिख रहे होते हो, तब किसे लिख रहे होते हो? तर्क यही उत्तर देता है कि 'अपने पिता को'.”
Manohar Shyam Joshi, कसप
“कहलाना पसन्द करे। इस पसन्द को कुछ मसखरे मित्रों ने उसे डी. डी. टी. कहकर पुकारने की हद तक खींच डाला है। कुछ लोग उसे ‘डी. डी. द मूडी’ भी कहते हैं पर इससे उसे कोई आपत्ति नहीं क्योंकि मूड का इस छोर से उस छोर पर झटके से पहुँचते रहना उसे अपनी संवदेनशीलता का लक्षण मालूम होता है।”
Manohar Shyam Joshi, कसप