संस्‍कृति के चार अध्‍याय Quotes

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संस्‍कृति के चार अध्‍याय संस्‍कृति के चार अध्‍याय by Ramdhari Singh 'Dinkar'
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संस्‍कृति के चार अध्‍याय Quotes Showing 1-22 of 22
“हमारे आचरण की तुलना में हमारे विचार और उद्गार इतने ऊँचे हैं कि उन्हें देखकर आश्चर्य होता है। बातें तो हम शान्ति और अहिंसा की करते हैं, मगर, काम हमारे कुछ और होते हैं। सिद्धान्त तो हम सहिष्णुता का बघारते हैं, लेकिन भाव हमारा यह होता है कि सब लोग वैसे ही सोचें, जैसे हम सोचते हैं और जब भी कोई हमसे भिन्न प्रकार से सोचता है, तब हम उसे बर्दाश्त नहीं कर सकते। घोषणा तो हमारी यह है कि स्थितप्रज्ञ बनना अर्थात् कर्मों के प्रति अनासक्त रहना हमारा आदर्श है, लेकिन काम हमारे बहुत नीचे के धरातल पर चलते हैं और बढ़ती हुई अनुशासनहीनता हमें, वैयक्तिक और सामाजिक, दोनों ही क्षेत्रों में नीचे ले जाती है।”
Ramdhari Singh Dinkar, Sanskriti Ke Chaar Adhyay
“मनुष्य की असली समस्या जन्म–मरण की समस्या है और इस समस्या का समाधान मोक्ष है।”
Ramdhari Singh 'Dinkar', Sanskriti Ke Chaar Adhyay
“निर्धनता को ब्राह्मण का सर्वस्व बताकर शास्त्रों ने उसके धन–लोभ को समाप्त कर दिया।”
Ramdhari Singh 'Dinkar', Sanskriti Ke Chaar Adhyay
“शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद्धि सर्वदा। जिस कुल में नारियाँ शोक-मग्न रहती हैं, उस कुल का शीघ्र ही विनाश हो जाता है। जिस कुल में नारियाँ शोक-मग्न नहीं रहतीं, उस कुल की सर्वदा उन्नति होती है। यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रिया:। जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। जहाँ नारियों की पूजा नहीं होती, वहाँ के सारे कर्म व्यर्थ हैं। वैदिक युग की इस शुभ परम्परा की अनुगूँज हम पुराणों में भी सुनते हैं। नरं नारी प्रोद्धरति मज्जन्तं भववारिधौ। संसार–समुद्र में डूबते हुए नर का उद्धार नारी करती है। यः सदारः स विश्वास्यः तस्माद् दारा परा गतिः। जो सपत्नीक है, वही विश्वसनीय है। अतएव,”
Ramdhari Singh 'Dinkar', Sanskriti Ke Chaar Adhyay
“नगरों में ईसाई और मुसलमान के साथ सहभोज करनेवाला हिन्दू-क्रान्तिकारी भी अपने गाँव जाकर वहाँ हिन्दू–हरिजनों के साथ बैठकर खाने का साहस नहीं कर सकता। और भारत के कम्युनिस्ट सिक्ख भी दाढ़ी और बाल इसलिए नहीं मुँड़ाते कि ऐसा करने से ग्रामों का वातावरण इनके विरुद्ध हो जाएगा।”
Ramdhari Singh 'Dinkar', Sanskriti Ke Chaar Adhyay
“उच्च वर्ण के पुरुषों का हीन वर्ण की स्त्रियों से विवाह अनुलोम विवाह कहलाता है। और हीन वर्ण के पुरुषों का उच्च वर्ण की स्त्रियों से विवाह प्रतिलोम विवाह। प्रतिलोम विवाह तो, आरम्भ से ही, गर्हित समझा जाता था, अनुलोम विवाह की पहले निन्दा नहीं थी। किन्तु, आगे चलकर अनुलोम और प्रतिलोम, दोनों ही प्रकार के विवाहों से उत्पन्न सन्ततियाँ वर्ण–संकर मानी जाने लगीं और वे, सब–की–सब, शूद्र–जाति में प्रविष्ट हो गईं।”
Ramdhari Singh 'Dinkar', Sanskriti Ke Chaar Adhyay
“उनकी प्रार्थना की ऋचाएँ ऐसी हैं, जिनसे पस्त–से–पस्त आदमियों के भीतर भी उमंग की लहर जाग सकती है। उन्हें ऋत का ज्ञान प्राप्त हो चुका था और वे मानते थे कि सारी सृष्टि किसी एक ही प्रच्छन्न शक्ति से चालित और ठहरी हुई है तथा उस शक्ति की आराधना करके मनुष्य जो भी चाहे, प्राप्त कर सकता है। किन्तु, बराबर उनकी प्रार्थना लम्बी आयु, स्वस्थ शरीर, विजय, आनन्द और समृद्धि के लिए ही की जाती थी। वैदिक प्रार्थनाएँ, प्रार्थनाएँ भी हैं, और सबल, स्वस्थ, प्रफुल्ल जीवन को प्रोत्साहन देनेवाले मन्त्र भी।”
Ramdhari Singh 'Dinkar', Sanskriti Ke Chaar Adhyay
“देश आर्यों के आगमन के पूर्व से ही अहिंसक, अल्पसन्तोषी और सहिष्णु रहता आया था। आर्यों ने आकर यहाँ भी जीवन की धूम मचा दी, प्रवृत्ति और आशावाद के स्वर से सारे समाज को पूर्ण कर दिया। किन्तु, जब उनका यज्ञवाद भोगवाद का पर्याय बनने लगा और आमिषप्रियता से प्रेरित ब्राह्मण जीव–हिंसा को धर्म मानने लगे, इस देश की संस्कृति यज्ञ और जीव–घात, दोनों से विद्रोह कर उठी। महावीर और बुद्ध भारत की इसी सनातन संस्कृति के उद्‌घोष थे।”
Ramdhari Singh 'Dinkar', Sanskriti Ke Chaar Adhyay
“भारतीय साहित्य के भीतर भावुकता की तरंग, अधिकतर आर्य–स्वभाव के भावुक होने के कारण बढ़ी। किन्तु, भारतीय संस्कृति की कई कोमल विशिष्टताएँ, जैसे–अहिंसा, सहिष्णुता और वैराग्य–भावना, द्राविड़ स्वभाव के प्रभाव से विकसित हुई हैं।”
Ramdhari Singh 'Dinkar', Sanskriti Ke Chaar Adhyay
“सुप्रसिद्ध नलचम्पू काव्य के रचयिता त्रिविक्रम भट्‌ट (10वीं सदी)”
Ramdhari Singh 'Dinkar', Sanskriti Ke Chaar Adhyay
“भारवि (7वीं सदी) दक्षिण के थे, जिन्होंने किरातार्जुनीयम् लिखा। भवभूति बरार में जनमे थे और कहते हैं कि विद्याभ्यास उन्होंने कुमारिल भट्‌ट के चरणों में किया था। मुकुन्दमाला नामक काव्य के कर्ता कुलशेखर कवि (7वीं सदी) केरल देश के राजा थे। नलोदय, त्रिपुर दहन, युधिष्ठिर–विजय आदि चार यमक–काव्यों के रचयिता कवि वासुदेव दक्षिण के थे”
Ramdhari Singh 'Dinkar', Sanskriti Ke Chaar Adhyay
“गाथा–सप्तशती के विभ्राट रचयिता हाल शातवाहन महीप थे। जानकी–हरण काव्य के कर्ता महाकवि कुमार दास”
Ramdhari Singh 'Dinkar', Sanskriti Ke Chaar Adhyay
“रामायण पर विवेक–तिलक लिखनेवाले विद्वान् उदालि भी दाक्षिणात्य”
Ramdhari Singh 'Dinkar', Sanskriti Ke Chaar Adhyay
“वाचस्पति मिश्र की भामती टीका ने ही शंकर के शारीरक–भाष्य का सर्वाधिक प्रचार किया।”
Ramdhari Singh 'Dinkar', Sanskriti Ke Chaar Adhyay
“सांस्कृतिक समन्वय के इतिहास में भगवान् कृष्ण का चरम महत्त्व यह है कि गीता के द्वारा उन्होंने भागवतों की भक्ति, वेदान्त के ज्ञान और सांख्य के दुरूह–सूक्षम दर्शन को एकाकार कर दिया।”
Ramdhari Singh 'Dinkar', Sanskriti Ke Chaar Adhyay
“वैदिक देवताओं में प्रधान इन्द्र, अग्नि, ऊषा, वरुण अश्विनीकुमार, पूषन्, ब्रह्मा इत्यादि थे, जिनकी पूजा का प्रचलन अब, प्रायेण, अवरुद्ध हो गया है। प्राग्वैदिक और वैदिक धाराओं को सम्पृक्त करनेवाले देवताओं में से मुख्य देवता शिव और उमा हैं। और जो देवता आर्यों के आगमन के बहुत पश्चात् आनेवाली जातियों के साथ आए, उनमें गणना, कदाचित् राधा की, की जा सकती है।”
Ramdhari Singh 'Dinkar', Sanskriti Ke Chaar Adhyay
“निगम वेदों के सुनिश्चित विधान हैं और आगम परम्परा से आते हुए ज्ञान के समवाय,”
Ramdhari Singh 'Dinkar', Sanskriti Ke Chaar Adhyay
“पारसी अग्निपूजक होते हैं, जैसा कि आरम्भ में सभी आर्य थे। भगवान् जरथुस्त्र को परमात्मा ने ही अग्नि दी थी, जो तब से लेकर ईरान छोड़ने के समय तक ईरान में जल रही थी। यह अग्नि भी पारसी लोग अपने साथ भारत ले आए और उसे उन्होंने बम्बई के उत्तर उदवाद नामक स्थान में मन्दिर बनाकर स्थापित कर दिया। यह अग्नि आज भी जल रही है।”
Ramdhari Singh 'Dinkar', Sanskriti Ke Chaar Adhyay
“राजनैतिक और आर्थिक परिवर्तनों का यह अनिवार्य परिणाम है कि उनसे सामाजिक परिवर्तन उत्पन्न होते हैं; अन्यथा समन्वय न तो हमारे वैयक्तिक जीवन में रह सकता है, न राष्ट्रीय जीवन में।”
Ramdhari Singh 'Dinkar', Sanskriti Ke Chaar Adhyay
“हमें अपने इस आन्तरिक विरोध का शमन करना ही पड़ेगा। और इस काम में हम कहीं असफल हो गए तो यह असफलता सारे राष्ट्र की पराजय होगी और हम उन अच्छाइयों को भी खो बैठेंगे, जिन पर हम आज तक अभिमान करते आए हैं।”
Ramdhari Singh 'Dinkar', Sanskriti Ke Chaar Adhyay
“सिद्धान्त और आचरण का यह विरोध”
Ramdhari Singh 'Dinkar', Sanskriti Ke Chaar Adhyay
“थरथराहट, पुलक और प्रकम्प, ये गुण शौकिया की रचना में होते हैं।”
Ramdhari Singh 'Dinkar', Sanskriti Ke Chaar Adhyay