KHELA Quotes
KHELA
by
Neelakshi Singh12 ratings, 4.50 average rating, 8 reviews
KHELA Quotes
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“..वरा कुलकर्णी मोटे-मोटे सात छंदों वाले पद्य की तरह एक कमरे में दाखिल हो रही थी। हर एक छंद में इतने गझिन ढंग से ठूँस - ठूँस कर शब्द भरे थे कि नजरों के एक शब्द से दूसरे शब्द तक जाने के बीच कोई साँस नहीं बचती थी। इसलिए उसे पढ़ते हुए अक्सर साँसें अकुलाने लगती थीं। उसे गद्य करार दिया जा सकता था पर उसका बिना पूर्णविराम, कॉमा के सात टुकड़ों में समाप्त हो जाना उसे पद्य की तरफ खींच लेता था। नहीं यह भी नहीं। उसका बिल्कुल समझ में न आना उसे कविता बना रहा था।.”
― KHELA
― KHELA
“क्या प्रेम में पहले लकीरें खींच कर खेल के नियम तय कर लेना अनिवार्य है? .....
पहले भी हम अलग-अलग ही साथ रहे होंगे। वक्त की बही में कोई सम्मिलित ठेस या साझा छलाँग हमारे खाते में दर्ज नहीं हुई होगी।
सच है यहाँ भी रंग है बहुत। फूल का ढेर सा पीला रंग है, नारंगी आकाश और नीले पानी की नदी के बीच। इतने गहरे रंगों के बीच दुबले-पतले रंग का हमारा रिश्ता ठीक खड़ा नहीं हो पा रहा। जबकि रंग आपस में लड़ते हों ऐसा भी नहीं। फिर उसका इस तरह कँपकँपा लेना मुझे अस्थिर तो करता है। जब ऐसा है तो हम उसे खड़े होने के लिए या घुटनों के बल बैठ कर डगमग कदम बढाने के लिए या कमर के बल रेंग कर ही कोई करतब दिखाने के लिए मजबूर क्यों करें? उसे उसके ही हाल पर छोड़ देना चाहिए। क्या जाने हम किन्हीं गुमनाम रंगों का जोर देख पाने के गवाह ही बन जाएँ कभी।
किसी बीतते हुए को रोक लेने और जाने देने के बीच के फर्क का कायदा बस इतना सा ही तो है।”
― KHELA
पहले भी हम अलग-अलग ही साथ रहे होंगे। वक्त की बही में कोई सम्मिलित ठेस या साझा छलाँग हमारे खाते में दर्ज नहीं हुई होगी।
सच है यहाँ भी रंग है बहुत। फूल का ढेर सा पीला रंग है, नारंगी आकाश और नीले पानी की नदी के बीच। इतने गहरे रंगों के बीच दुबले-पतले रंग का हमारा रिश्ता ठीक खड़ा नहीं हो पा रहा। जबकि रंग आपस में लड़ते हों ऐसा भी नहीं। फिर उसका इस तरह कँपकँपा लेना मुझे अस्थिर तो करता है। जब ऐसा है तो हम उसे खड़े होने के लिए या घुटनों के बल बैठ कर डगमग कदम बढाने के लिए या कमर के बल रेंग कर ही कोई करतब दिखाने के लिए मजबूर क्यों करें? उसे उसके ही हाल पर छोड़ देना चाहिए। क्या जाने हम किन्हीं गुमनाम रंगों का जोर देख पाने के गवाह ही बन जाएँ कभी।
किसी बीतते हुए को रोक लेने और जाने देने के बीच के फर्क का कायदा बस इतना सा ही तो है।”
― KHELA
“वह लड़का एक सादा पाठ था।
उसमें बूंद भर भी चटक अक्षर नहीं थे।
दबे और पुराने किस्म के वर्ण थे वहाँ।
'उखड़ चुके और ताजा उगे' के बीच की छपाई थी उधर।
वह ऐसा सरल भी न था कि तुकबंदी की शक्ल में उसे याद किया जा सके।
कठिन तो बिल्कुल भी नहीं कि किसी मायने पर आकर ठिठका जाए।
उसे उलट कर पढ़ें या कि सुलट कर, अक्षरों का हिसाब एक बराबर ठीक ही बैठता था।
उस पर मोड़ थे पर निशान ऐसे नहीं कि कोई अपनी हथेली की किसी रेखा का जुड़वा मान बैठे उन लकीरों को।
वह तरख भी हो सकता था पर ऐसा नहीं कि उस पर कोई स्मृति छोड़ देने को किसी का मन ही ललक जाए।
कभी-कभी वह नष्ट हुआ सा भी दिखता था। कभी इतना तुरंत जन्मा सा कि उसे डर लगता था कि कहीं कच्ची स्याही ही न लेपा जाए उससे।”
― KHELA
उसमें बूंद भर भी चटक अक्षर नहीं थे।
दबे और पुराने किस्म के वर्ण थे वहाँ।
'उखड़ चुके और ताजा उगे' के बीच की छपाई थी उधर।
वह ऐसा सरल भी न था कि तुकबंदी की शक्ल में उसे याद किया जा सके।
कठिन तो बिल्कुल भी नहीं कि किसी मायने पर आकर ठिठका जाए।
उसे उलट कर पढ़ें या कि सुलट कर, अक्षरों का हिसाब एक बराबर ठीक ही बैठता था।
उस पर मोड़ थे पर निशान ऐसे नहीं कि कोई अपनी हथेली की किसी रेखा का जुड़वा मान बैठे उन लकीरों को।
वह तरख भी हो सकता था पर ऐसा नहीं कि उस पर कोई स्मृति छोड़ देने को किसी का मन ही ललक जाए।
कभी-कभी वह नष्ट हुआ सा भी दिखता था। कभी इतना तुरंत जन्मा सा कि उसे डर लगता था कि कहीं कच्ची स्याही ही न लेपा जाए उससे।”
― KHELA
“उस लड़की के बहुत सारे साइड-इफेक्ट्स थे। कमरे के कोने में किसी कुर्सी की मुँडेर पर या अलगनी पर लटकता बासी कपड़ा जैसे पंखे की हवा में उड़ियाता है अपनी धुन में बेखबर कि किसी की नजर कभी जाएगी उस पर या नहीं, कुछ उसी तरह। वह दिमाग के एक कोने में उफनाना बदस्तूर जारी रखती―सामने होने या न होने पर भी। बल्कि न होने पर ज्यादा।”
― KHELA
― KHELA
“वे रोज मिलते थे। मतलब रोज एक जगह पर हो पाते थे। दिनभर में जब चाहें वे एक-दूसरे की आवाज सुन सकते थे। रात में भी। आखिर फोन के आविष्कार का मतलब क्या था। वे इतने सामने होते कि एक-दूसरे को पलकें झपका कर देख पाने और बगैर पलकें झपकने दिये देख लेने के सुख का भेद श्वेत-स्याह में पहचान सकते थे। उन्हें एक-दूसरे के बारे में सार्वजनिक और निजी की सीमा रेखा के आसपास वाली सारी बातें मालूम होनी चाहिए थीं। वे एक-दूसरे के बारे में सबसे प्रामाणिक बयान बन सकते थे। पर उन्होंने एक-दूसरे को रोकते-रोकते इतना रोक लिया था कि वे आपस में एक बुदबुदाहट भर हाजिरी ही बन पाये।”
― KHELA
― KHELA
“दीप्ति सकलानी उसे देख रही थी। प्रश्नवाचक चिह्न बन कर। अमिय रस्तोगी ने ऐन वक्त पर दिमाग से काम लिया। उसने अपने आप को विस्मयादिबोधक निशान बना लिया। दो प्रश्नवाचक चिह्न एक-दूसरे की तरफ देखते हुए नुकीले आधार पर टिके एक पक्के शून्य की रचना कर डालते। अमिय रस्तोगी ने अपनी सूझ-बूझ से आधे शून्य की परिकल्पना को संभव किया। यह नयी बात थी और इस अप्रत्याशित बुनियाद पर आगे बेहतर कुछ प्रत्याशित घटित हुआ।”
― KHELA
― KHELA
“तुम्हारे आने के पहले सब कुछ देश और दुनिया के हालातों में डूबा हुआ सा रहता है। तुम्हारे आ जाने के बाद सब मोहल्ले की बात लगने लगती है। तुम्हारी और मेरी बात सी।'
वह ठठा कर हँस पड़ी। तो क्या बात यहाँ तक बढ़ी हुई थी कि उसके होने से दूसरे लोग भी देशकाल से कट जाते थे। वह सबके लिए गैर - समसामयिकता के दरवाजे खोल देती थी।”
― KHELA
वह ठठा कर हँस पड़ी। तो क्या बात यहाँ तक बढ़ी हुई थी कि उसके होने से दूसरे लोग भी देशकाल से कट जाते थे। वह सबके लिए गैर - समसामयिकता के दरवाजे खोल देती थी।”
― KHELA
“किसी को नहीं देखने की जिद्द में आप उसे कैसे देख सकते हैं। आंखों की कोर से,पलकों की नोक से या कि कानों से ही। हर किसी का एक निजी तरीका होता होगा। उसका भी था। वह सूंघ सकती थी लड़के का देखना, धुएं के पहले उठान के उत्स में,और कमाल की बात यह थी कि उसके उकसावे पर लड़का भी सीख गया था - बगैर उसे देखे, देखना।”
― KHELA
― KHELA
“अधूरी बात को पूरी बात वाले कायदे से भले खत्म किया जाए, फिर भी उसका अधूरापन छिप नहीं पाता।”
― KHELA
― KHELA
“उस खुशबू का स्वाद मीठा नहीं हो सकता था।तीखा भी नहीं होता वह। वरा कुलकर्णी की कल्पना में उसे भी नमकीन ही होना था।दोनों गैर- मीठे थे पर कुल- गोत्र अलग थे उनके।
एक थोड़ा नमकीन सा ज्यादा था। दूसरा खारेपन के कुछ करीब था। दोनों पृथक उमग से उठते थे, पर आखिर में एकमेव होने का तादात्म्य गजब था। यह सब एकतरफा प्रयास से संभव नहीं हो सकता। दोनों को अलग-अलग कम होना होता था, साथ-साथ ज्यादा होने के लिए।”
― KHELA
एक थोड़ा नमकीन सा ज्यादा था। दूसरा खारेपन के कुछ करीब था। दोनों पृथक उमग से उठते थे, पर आखिर में एकमेव होने का तादात्म्य गजब था। यह सब एकतरफा प्रयास से संभव नहीं हो सकता। दोनों को अलग-अलग कम होना होता था, साथ-साथ ज्यादा होने के लिए।”
― KHELA
