Status Updates From प्रतिनिधि कविताएँ: केदारनाथ...
प्रतिनिधि कविताएँ: केदारनाथ सिंह by
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Durgesh Deep
is on page 42 of 160
बनारस
इस शहर में वसंत
अचानक आता है
और जब आता है तो मैंने देखा है
लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ से
उठता है धूल का एक बवंडर
और इस महान पुराने शहर की जीभ
किरकिराने लगती है
— Dec 31, 2021 12:21AM
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इस शहर में वसंत
अचानक आता है
और जब आता है तो मैंने देखा है
लहरतारा या मडुवाडीह की तरफ से
उठता है धूल का एक बवंडर
और इस महान पुराने शहर की जीभ
किरकिराने लगती है
Ankur
is on page 94 of 160
तुम आयीं
जैसे छीमियों में धीरे- धीरे
आता है रस
जैसे चलते - चलते एड़ी में
काँटा जाए धँस
तुम दिखीं
जैसे कोई बच्चा
सुन रहा हो कहानी
तुम हँसी
जैसे तट पर बजता हो पानी
तुम हिलीं
जैसे हिलती है पत्ती
जैसे लालटेन के शीशे में
काँपती हो बत्ती !
तुमने छुआ
जैसे धूप में धीरे- धीरे
उड़ता है भुआ
और अन्त में
जैसे हवा पकाती है गेहूँ के खेतों को
तुमने मुझे पकाया
और इस तरह
जैसे दाने अलगाये जाते है भूसे से
तुमने मुझे खुद से अलगाया ।
— Dec 03, 2021 01:53AM
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जैसे छीमियों में धीरे- धीरे
आता है रस
जैसे चलते - चलते एड़ी में
काँटा जाए धँस
तुम दिखीं
जैसे कोई बच्चा
सुन रहा हो कहानी
तुम हँसी
जैसे तट पर बजता हो पानी
तुम हिलीं
जैसे हिलती है पत्ती
जैसे लालटेन के शीशे में
काँपती हो बत्ती !
तुमने छुआ
जैसे धूप में धीरे- धीरे
उड़ता है भुआ
और अन्त में
जैसे हवा पकाती है गेहूँ के खेतों को
तुमने मुझे पकाया
और इस तरह
जैसे दाने अलगाये जाते है भूसे से
तुमने मुझे खुद से अलगाया ।
Ankur
is on page 50 of 160
ईश्वर और प्याज़
...
"वो बात नहीं-
हिन्दू प्याज़ नहीं खाता
धीरे-से कहती है वह
तो क्या ईश्वर हिन्दू हैं माँ?
हँसते हुए पूछता हूँ मैं
माँ अवाक देखती है मुझे"
...
— Dec 02, 2021 04:37AM
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...
"वो बात नहीं-
हिन्दू प्याज़ नहीं खाता
धीरे-से कहती है वह
तो क्या ईश्वर हिन्दू हैं माँ?
हँसते हुए पूछता हूँ मैं
माँ अवाक देखती है मुझे"
...




