AadityaA Vashishth

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Book cover for नीम का पेड़
सत्ता का अपना एक नशा होता है और अपनी ज़ात भी। जो भी उस तक पहुँचता है उसकी ज़ात का ही हो जाता है। जो उसकी रंगत में नहीं रँगना जानता है वह उस तक कभी नहीं पहुँच सकता। कभी नहीं पहुँच पाता। उस तक पहुँचने के लिए उसकी ताकत को ही सलाम करना पड़ता है।
AadityaA Vashishth
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आचार्य चतुरसेन
“इस प्रकार अपनी दोनों योजनाओं को कार्यान्वित कर तथा अमीर को निष्कंटक करके दुर्लभदेव ने अपना तीसरा नेत्र अब पाटन की ओर फेरा। उसके लिए जिन लोगों ने विपित्ति मोल ली थी, उनकी उस स्वार्थी ने चिन्ता नहीं की। उसे केवल अपनी माता महारानी दुर्लभदेवी को जैसे बने, महाराज का मन फेर कर सिद्धपुर ले आने और मन्त्री विमलशाह को समझा-बुझाकर जैसे बने, अपने पक्ष में करने की व्यग्रता थी।”
आचार्य चतुरसेन, सोमनाथ

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