“न्याय को अंधा कहा गया है - मैं समझता हूँ न्याय अंधा नहीं, काना है, एक ही तरफ देख पाता है.”
― तिरछी रेखाएँ
― तिरछी रेखाएँ
“या तो प्यार आदमी को बादलों की ऊँचाई तक उठा ले जाता है , या स्वर्ग से पाताल में फेंक देता है।लेकिन कुछ प्राणी हैं, जो न स्वर्ग के हैं न नरक के, वे दोनों लोकों के बीच में अंधकार की परतों में भटकते रहते हैं। वे किसी को प्यार नहीं करते, छायाओं को पकड़ने का प्रयास करते हैं, या शायद प्यार करते हैं या निरंतर नयी अनुभूतियों के पीछे दीवाने रहते हैं और प्यार बिलकुल करते ही नहीं ......... कपूर, मैं उसी अभागे लोक की एक प्यासी आत्मा थी।”
― गुनाहों का देवता
― गुनाहों का देवता
“आम भारतीय जो गरीबी में, गरीबी की रेखा पर, गरीबी की रेखा के नीचे हैं, वह इसलिए जी रहा है कि उसे विभिन्न रंगों की सरकारों के वादों पर भरोसा नहीं है। भरोसा हो जाये तो वह खुशी से मर जाये। यह आदमी अविश्वास, निराशा और साथ ही जिजीविषा खाकर जीता है।”
― आवारा भीड़ के खतरे [Awara Bheed Ke Khatare]
― आवारा भीड़ के खतरे [Awara Bheed Ke Khatare]
“हमारे देश में सबसे आसान काम आदर्शवाद बघारना है और फिर घटिया से घटिया उपयोगितावादी की तरह व्यवहार करना है। कई सदियों से हमारे देश के आदमी की प्रवृत्ति बनाई गई है अपने को आदर्शवादी घोषित करने की, त्यागी घोषित करने की। पैसा जोड़ना त्याग की घोषणा के साथ ही शुरू होता है।”
― आवारा भीड़ के खतरे [Awara Bheed Ke Khatare]
― आवारा भीड़ के खतरे [Awara Bheed Ke Khatare]
“जगन्नाथ काका के साथ मैं एक बारात से लौट रहा था । एक डिब्बे पर बारातियों ने कब्जा कर लिया था । काका ने मुझसे कहा, "अगर अपना भला चाहते हो, तो दूसरे डिब्बे में बैठो । बाराती से ज्यादा बर्बर जानवर कोई नहीं होता । ऐसे जानवरों से हमेशा दूर रहना चाहिए । लौटती बारात बहुत खतरनाक होती है । उसकी दाढ़ में लड़कीवाले का खून लग जाता है और वह रास्ते में जिस-तिस पर झपटती है । कहीं झगड़ा हो गया, तो हम दोनों भी उनके साथ पिटेंगे ।”
― निठल्ले की डायरी
― निठल्ले की डायरी
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