“महाकाव्य के लिए संस्कृत आचार्यों ने उनमें निम्नलिखित बातों का होना आवश्यक माना है— महाकाव्य सर्गों में बंटा होना चाहिए। उसका एक नायक होना चाहिए, चाहे वह देवता हो अथवा कुलीन वंश में उत्पन्न क्षत्रिय हो। वह धीर और उदात्त गुणों से युक्त होना चाहिए या एक वंश में उत्पन्न हुए अनेक उच्च कुलीन राजा भी नायक हो सकते हैं। महाकाव्य में श्रृंगार, वीर या शान्त इनमें से एक रस प्रधान होना चाहिए। गौण रूप से इसमें सब रस और सब नाटक सन्धियां प्रयुक्त की जानी चाहिए। इसकी कथा इतिहासप्रसिद्ध होनी चाहिए अथवा किसी श्रेष्ठ व्यक्ति को आधार बनाकर कल्पित कथा भी लिखी जा सकती है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इनमें से किसी एक की प्राप्ति उस नाटक का फल होना चाहिए। प्रारम्भ में नमस्कार, आशीर्वाद अथवा कथावस्तु का उल्लेख होना चाहिए। बीच-बीच में कहीं-कहीं दुष्टों की निन्दा और सज्जनों की प्रशंसा होनी चाहिए। एक सर्ग में एक ही छन्द रहना चाहिए। सर्ग के अन्त में आनेवाली कथा का संकेत रहना चाहिए। महाकाव्य में सन्ध्याकाल, सूर्य, चन्द्रमा, रात्रि, ब्राह्ममुहूर्त, अन्धकार, दिन, प्रभात, दुपहरी, शिकार, पहाड़, ऋतु, वन और सागर का वर्णन होना चाहिए। संयोगश्रृंगार, और वियोगश्रृंगार, मुनियों, स्वर्ग नगर तथा यज्ञों का वर्णन होना चाहिए। युद्ध के लिए प्रस्थान, विवाह, वार्तालाप तथा पुत्र-जन्म इत्यादि का यथावसर सांगोपांग वर्णन होना चाहिए। महाकाव्य का नाम कवि के नाम पर, कथा के नाम पर, नायक के नाम पर अथवा अन्य किसी व्यक्ति के नाम पर रखा जाना चाहिए और प्रत्येक सर्ग का नाम उस सर्ग में वर्णित कथा के अनुसार रखा जाना चाहिए। संस्कृत आचार्यों के अनुसार किसी भी काव्य को महाकाव्य तभी माना जाएगा जब उसमें ये लक्षण पाए जाएंगे। इन लक्षणों की दृष्टि से विचार करने पर कुमारसम्भव महाकाव्य सिद्ध होता है। इसमें मुख्य रस श्रृंगार है। महादेव इससे नायक हैं। इसकी कथावस्तु इतिहास प्रसिद्ध है। इसमें आठ से अधिक सर्ग हैं। प्रत्येक सर्ग के अन्त में आगे आनेवाली कथावस्तु की सूचना मिल जाती है। इसमें पर्वत, ऋतु, विवाह, संध्या, सूर्यास्त, रात्रि इत्यादि के सुन्दर और विस्तृत वर्णन हैं। निस्सन्देह कुमारसम्भव महाकाव्य है।”
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Kumarsambhav (Sanskrit Classics)
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