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“(६) ध्यान करते समय कभी संकल्प-विकल्प आ जायँ, तो ‘अड़ंग बड़ंग स्वाहा’—ऐसा कहकर उनको दूर कर दे अर्थात् ‘स्वाहा’ कहकर संकल्प-विकल्प (अड़ंग-बड़ंग) की आहुति दे दे। (७) सामने देखते हुए पलकोंको कुछ देर बार-बार शीघ्रतासे झपकाये और फिर नेत्र बंद कर ले। पलकें झपकानेसे जैसे बाहरका दृश्य कटता है, ऐसे ही भीतरके संकल्प-विकल्प भी कट जाते हैं। (८) पहले नासिकासे श्वासको दो-तीन बार जोरसे बाहर निकाले और फिर अन्तमें जोरसे (फुंकारके साथ) पूरे श्वासको बाहर निकालकर बाहर ही रोक दे। जितनी देर श्वास रोक सके, उतनी देर रोककर फिर धीरे-धीरे श्वास लेते हुए स्वाभाविक श्वास लेनेकी स्थितिमें आ जाय। इससे सभी संकल्प-विकल्प मिट जाते हैं। परिशिष्ट भाव—यदि पूर्वश्लोकके अनुसार चुप-साधन न कर सके तो मन जहाँ-जहाँ जाय, वहाँ-वहाँसे हटाकर उसको एक परमात्मामें लगाये। मनको परमात्मामें लगानेका एक बहुत श्रेष्ठ साधन है कि मन जहाँ-जहाँ जाय, वहाँ-वहाँ परमात्माको ही देखे अथवा मनमें जो-जो चिन्तन आये, उसको परमात्माका ही स्वरूप समझे। एक मार्मिक बात है कि जबतक साधक एक परमात्माकी सत्ताके सिवाय दूसरी सत्ता मानेगा, तबतक उसका मन सर्वथा निरुद्ध नहीं हो सकता। कारण कि जबतक अपनेमें दूसरी सत्ताकी मान्यता है, तबतक रागका सर्वथा नाश नहीं हो सकता और रागका सर्वथा नाश हुए बिना मन सर्वथा निर्विषय नहीं हो सकता।”

Ramsukhdas, Gita Sadhak Sanjeevani, Code 0006, Hindi, Gita Press Gorakhpur (Official)
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