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Om Swami

“धीरे-धीरे यह मेरी समझ में आने लगा कि कोई बहुत महत्वपूर्ण चीज मुझसे छूट गई; मैंने खुद को पूर्ण रूप से अनुभूत नहीं किया था। मैंने पुरुष और प्रकृति, शिव और शक्ति, यिन और यांग के बारे में अध्ययन किया था। मैंने तंत्र का अध्ययन किया और तांत्रिक अभ्यास भी किए। पर तंत्र के अंतर्गत संसर्ग के विषय में मेरी समझ उथली ही थी; मुझे उसका कोई व्यावहारिक अनुभव नहीं था। हमेशा धार्मिक सिद्धांतों से प्रभावित रहने की वजह से मैं यह सोचा करता कि आत्मानुभूति के लिए ब्रह्मचर्य जरूरी था। पर बाद में मैंने इस विचार को आधारहीन और अनुचित पाया। मैं बहुत सी लड़कियों को जानता था, जिनमें से कुछ मुझे चाहती भी थीं। मगर मुझ पर तो बस मेरी अपनी आस्थाएं हावी थीं और मैं उनके साथ किसी भी किस्म की घनिष्ठता के लिए तैयार न था। और फिर यह भी सच था कि वस्तुतः मुझे ऐसे किसी संबंध की जरूरत भी महसूस नहीं होती। मैंने उनका प्रत्युत्तर देने की कोशिश की, मैंने कुछ लोगों का खयाल भी रखा, यहां तक कि उनसे प्रेम भी किया, मगर उनके प्रति कभी कोई लगाव महसूस नहीं किया। उनकी उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति से मेरे मन की स्थिति पर कोई अंतर नहीं पड़ता। ‘मुश्किल यह है कि,’ एक लड़की ने कहा, ‘आपको देने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है, क्योंकि आपकी कोई आवश्यकता ही नहीं है।’ और वह पूरी तरह गलत नहीं थी। मेरा मन तो हमेशा हिमालय में ही रहा करता था। मैं उस स्थिति का अनुभव करना चाहता, जिसे बुद्ध ने प्राप्त किया; जिसकी चर्चा योगशास्त्रों में थी; वह भावातीत स्थिति, वेदों ने जिसके उपदेश दिए; वह समाधि, जिसके विषय में प्राचीन ऋषियों ने बताया।”

Om Swami, If Truth Be Told (Hindi) (1)
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If Truth Be Told (Hindi) (1) (Hindi Edition) If Truth Be Told (Hindi) (1) by Om Swami
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