“शहरी अछूत—भंगी, चूहड़ा और मेहतर—सारे सफ़ाईकर्मी, बड़ी संख्या में एक साथ रहते थे और असल में एक राजनीतिक समूह बन जाते थे। इस डर से कि कहीं वे ईसाई धर्म न अपना लें, लाला मुल्कराज भल्ला, एक पंजाबी खत्री हिन्दू सुधारवादी, ने उन्हें 1910 में पुन: धर्मदीक्षा दी, और वे सामूहिक तौर पर बाल्मीकि कहलाने लगे। गांधी ने बाल्मीकियों को लपक लिया और उन्हें अस्पृश्यता अभियान का शो-विंडो बना दिया। उन पर गांधी ने अपने सद्भाव और दान-पुण्य के मिशनरी कृत्यों का प्रदर्शन शुरू कर दिया। उन्होंने बाल्मीकियों को उपदेश दिया कि कैसे वे अपनी पुरखों द्वारा दी गई विरासत से प्रेम करें व उसे पकड़े रहें, और कभी भी अपने वंशानुगत व्यवसाय से प्राप्त ख़ुशियों से अधिक और अन्य किसी ख़ुशी की आकांक्षा न पालें। अपने पूरे जीवन में गांधी ने ‘पाख़ाना साफ़ करना एक धार्मिक कर्तव्य है’ विषय पर काफ़ी कुछ विस्तार से लिखा। इस बात से गांधी को कभी कोई मतलब नहीं रहा कि बाक़ी दुनिया में सब लोग, अपना मल ख़ुद साफ़ करते हैं, और इस पर उन्हें आपत्ति भी नहीं होती।”
―
Ek Tha Doctor Ek Tha Sant
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