“विश्व की रंगभूमि पर हिटलर आया, मुसोलिनी आया, स्टालिन आया, रूस में लाल सितारा चमका, अमरीका के उड़नकिले उड़े, हिटलर के चमत्कारों से विश्व चमत्कृत हुआ। महाराज्यों के राजमुकुट उड़-उड़कर हवा में बिखर गए। समूचा मानव-विश्व रक्त-स्नान में जुट गया। देश, राष्ट्र, पूँजी, सत्ता-अधिकार, सत्ता अपनी-अपनी सीमाएँ बदलने लगे। आकाश में वायुयान अनेक करतब दिखाने लगे। जापान का आतंक आया और अणु महास्त्र ने जादू के ज़ोर पर उसे विलय कर दिया। सोना और खून दुनिया में अपनी होड़ लगाने लगे। संसार का साहित्य, संसार की वाणी, संसार की विचार-सत्ता, संसार का मस्तिष्क सब कुछ ‘सोना और खून’ की महत्ता को समझने में जुट गए। सोना मनुष्य के शरीर पर लदा था और खून उसकी नसों में बह रहा था। सोने में उसका संसार था। और खून में उसका जीवन था। मनुष्य खून बहाता था, पर सोना देना न चाहता था। इससे मनुष्य का खून एक करामात बन गया। ज्ञान-विज्ञान, शक्ति, सत्ता, सभी मनुष्य का खून उसकी नसों से बाहर निकाल बहाने में जुट गए।”
―
धर्मपुत्र
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