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यह आस्था बनाए रखें कि कल्पना में मौजूद चीज़ अब प्राप्त हो रही है। उसे साकार करने के इरादे को बनाए रखें। याद रखें, कल्पना के उपयोग में आस्था और इरादा ही वैज्ञानिक और स्वप्नदर्शी के बीच अंतर करते हैं।
स्पष्ट मानसिक तस्वीर या सपने को लगातार अपने मस्तिष्क में बनाए रखना होगा। अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए आपको तो बस यह जानने की आवश्यकता है कि आप क्या चाहते हैं और फिर इसे इतने ज़बर्दस्त तरीक़े से चाहें कि यह आपके विचारों में हर समय बना रहे।
अपनी इच्छाशक्ति, विचार या मस्तिष्क को व्यक्तियों या वस्तुओं पर केंद्रित करने की कोशिश न करें। उन्हें स्वयं पर ही केंद्रित रखें। विश्वास करें, इससे जितना हासिल हो सकता है, उतना किसी और तरीक़े से नहीं हो सकता।
ब्रह्मांड में व्याप्त असीमित तत्व आपके प्रति दोस्ताना रवैया रखता है और यह आपको आपकी मनचाही चीज़ देने के लिए आपसे भी अधिक बेचैन है।
अमीर बनने के लिए आपको सिर्फ़ स्वयं पर अपनी इच्छाशक्ति का प्रयोग करने की आवश्यकता है।
चूँकि विश्वास सबसे महत्वपूर्ण है, इसलिए आपको अपने विचारों की रक्षा करनी होगी। आपके विश्वास बहुत हद तक उन चिज़ोंं से तय होते हैं, जिन्हें आप देखते हैं और जिनके बारे में आप सोचते हैं, इसलिए आपको इस बात पर सतर्कता से ग़ौर करना चाहिए कि आप किस चीज़ पर ध्यान देते हैं।
ग़रीबी का अध्ययन करके तथा उसके बारे में सोचकर आज तक कोई भी अमीर नहीं बना है।
आपका संबंध तो इस बात से है कि इलाज क्या है।
व्यापक ज्ञान ने भी ग़रीबी दूर करने में कोई मदद नहीं की है। इसलिए अमीर बनें। यही वह सबसे अच्छा तरीक़ा है, जिससे आप ग़रीबों की मदद कर सकते हैं। ग़रीबी को पीछे छोड़ दें। इससे जुड़ी हर चीज़ को पीछे छोड़ दें और नेकी करें।
ग़रीबी के बारे में सोचने वाले अमीर लोगों की संख्या बढ़ाकर ग़रीबी को दूर नहीं किया जा सकता। इसे तो उन ग़रीब लोगों की संख्या बढ़ाकर ही दूर किया जा सकता है, जो आस्था के साथ अमीर बनने का संकल्प करें।
ग़रीबों को परोपकार की आवश्यकता नहीं है; उन्हें तो प्रेरणा की आवश्यकता है। परोपकार तो उन्हें दुख में जीवित रखने के लिए एक रोटी या एक-दो घंटे का मनोरंजन ही देता है, ताकि वे अपने दुख भूल जाएँ। लेकिन प्रेरणा उनका दुख दूर कर सकती है। अगर आप ग़रीबों की मदद करना चाहते हैं, तो उन्हें यह बता दें कि वे अमीर कैसे बन सकते हैं। स्वयं अमीर बनकर इसे साबित कर दें।
आप अपनी आस्था और संकल्प को जितनी अधिक देर तक बनाए रखेंगे, उतनी ही जल्दी अमीर बनेंगे, क्योंकि आप तत्व पर सिर्फ़ सकारात्मक छाप छोड़ रहे हैं, नकारात्मक छाप छोड़कर इसे नकार नहीं रहे हैं या बराबर नहीं कर रहे हैं।
“जिसका हम प्रतिरोध करते हैं, उसका अस्तित्व बना रहता है।“
दुनिया शैतान के पास नहीं जा रही है। यह तो ईश्वर के पास जा रही है। यह प्रतिदिन अद्भुत बन रही है!
यह न सोचें कि दुनिया ग़रीबी से उबर रही है, बल्कि यह सोचें कि दुनिया अमीर बन रही है। याद रखें कि अमीर बनने में दुनिया की मदद करने का एकमात्र उपाय स्वयं अमीर बनना है, प्रतिस्पर्धी तरीक़े से नहीं, बल्कि सृजनात्मक तरीक़े से। अपना पूरा ध्यान अमीर बनने पर केंद्रित करें। ग़रीबी, कमी या दुख के किसी भी रूप पर ध्यान न दें।
सचमुच अमीर बनना वह सबसे ऊँचा लक्ष्य है, जो आप जीवन में अपने लिए तय कर सकते हैं, क्योंकि इसमें हर चीज़ शामिल होती है। आप पूरी दुनिया के लिए जो सर्वश्रेष्ठ काम कर सकते हैं, वह है अपनी अधिकतम संभावना तक पहुँचना।
आप अमीर बनकर ईश्वर और मानवता की सेवा जितने असरदार ढंग ले कर सकते हैं, उतनी किसी दूसरे तरीक़े से नहीं कर सकते।
लोगों को प्रतिस्पर्धा नहीं, सृजन के माध्यम से अमीर बनना सिखाना होगा।
एक औंस कार्य करना एक पौंड बातचीत करने के बराबर है।
एक विचारशील तत्व है जिससे सारी चीज़ें बनती हैं और जो मूल अवस्था में ब्रह्मांड की सभी आंतरिक जगहों को भरता है, उनमें व्याप्त है और उपस्थित रहता है।
इस तत्व तक पहुँचाया गया विचार उम चीज़ को पैदा कर देता है, जिसकी तस्वीर विचार में होती है। लोग अपने विचारों में तस्वीर बना सकते हैं और उन विचारों की छाप निराकार तत्व पर छोड़कर वह चीज़ पैदा कर सकते हैं, जिसके बारे में वे सोचते हैं।
ऐसा करने के लिए आपको प्रतिस्पर्धी मानसिकता से निकलकर सृजनात्मक मानसिकता में पहुँचना होगा। आपको अपनी मनचाही चिज़ों का स्पष्ट मानसिक चित्र बनाना होगा और फिर अपने विचारों में इन...
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रखनी ...
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“गाँधीजी को ग़रीब रखने के लिए बहुत सारे धन की आवश्यकता होती है।''
अपनी मनचाही चीज़ की स्पष्ट और सटीक मानसिक तस्वीर बनाना, आप जो भी पाना चाहते हैं, उसे पाने के अपने इरादे को बनाए रखना, कृतज्ञता और आस्था के साथ यह एहसास करना कि आपको अपनी मनचाही चीज़ मिल रही है।
विचार और कर्म का मिलन ही अमीर बनने के विज्ञान का अनिवार्य बिंदु है।
अपने विचारों के माध्यम से आप जिस पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं, वह आपकी ओर आता है और कर्म करके आप उसे पा लेने हैं।
अपने काम के माध्यम से माहौल को बदल दें।
आप इस समय जिस माहौल में हैं, उसी में इस तरह काम कर सकते हैं, कि बेहतर माहौल में पहुँच जाएँ। पूरी आस्था और इरादे के साथ बेहतर माहौल में काम करने की तस्वीर अपने मस्तिष्क में बनाकर रखें और अपने वर्तमान माहौल में ही पूरे दिल, पूरे ध्यान और पूरी ताकत के साथ काम करें।
कोई भी इतनी ग़लत जगह पर नहीं है कि अपनी वर्तमान स्थिति को बेहतर बनाकर सही जगह पर न पहुँच सके।
अपने वर्तमान पद को बेहतर पद पाने का साधन बनाएँ। अपने वर्तमान परिवेश का उपयोग बेहतर परिवेश पाने के साधन के रूप में करें।
सही पद के सपने को अगर आप आस्था और इरादे के साथ बनाए रखते हैं, तो सर्वोच्च शक्ति सही पद को आपकी ओर आकर्षित करेगी।
विचार से आपकी मनचाही चीज़ आपकी ओर आती है और कर्म करके आप उसे प्राप्त करते हैं।
आप तो सिर्ख उसी जगह पर काम कर सकते हैं, जहाँ आप इस समय उपस्थित हैं।
आप दुनिया में तभी आगे बढ़ सकते हैं, जब आप अपने वर्तमान पद की आवश्यकताओं से अधिक बड़े बन जाएँ।
वह समाज प्रगति नहीं कर सकता, जिसमें रहने वाला हर व्यक्ति अपने पद की आवश्यकता से कम काम करता हो। मानसिक विकास ही सामाजिक विकास का मार्गदर्शन करता है। अगर कोई अपने वर्तमान पद की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है, तो इसका अर्थ है कि हर चीज़ नीचे की ओर फिसल रही है। जो लोग अपने पद की आवश्यकता के काम पूरे नहीं कर पा रहे हैं, वे समाज पर, सरकार पर, कंपनी पर, सेना और उधोग-धंधे पर बोझ हैं। यह बोझ दूसरों को उठाना होता है। इसका मूल्य सभी को चुकाना पड़ता है। इसका इकलौता संभावित परिणाम है, सबका पतन।
अधिक बड़े स्थान पर पहुँचना इस बात पर निर्भर करता है कि आप जीवन में इस सिद्धांत को कितना लागू करते हैं।
सफल दिन वही है, जिस दिन आप अपनी मनचाही चीज़ पाने में सफल हुए हों।
यदि कोई ऐसी चीज़ है, जिसे आप कर तो सकते हैं, लेकिन करते नहीं हैं, तो जहाँ तक उस चीज़ का संबंध है, आप असफल हो चुके हैं। इसके परिणाम आपकी कल्पना से अधिक विनाशकारी हो सकते हैं।
आप यह नहीं जानते कि कितनी सारी शक्तियाँ आपके पक्ष में काम शुरू कर चुकी हैं। आपके किसी सरल से काम पर बहुत कुछ निर्भर हो सकता है। शायद यह वही काम हो, जिससे आपकी महान संभावनाओं के दरवाजे खुल जाएँ।
दरअसल आपके कामों की संख्या नहीं, बल्कि हर काम की प्रभावकारिता महत्वपूर्ण होती है।
प्रभावी कर्म हाथ के संसाधनों का उपयोग करके कार्य पूरा करता है और भावी संभावनाओं की बुनियाद रखता है। अप्रभावी कर्म आमतौर पर बिना काम पूरा किए प्रक्रिया में व्यस्त रहता है, उस कार्य में आवश्यकता से अधिक संसाधनों का उपयोग करता है या महत्वपूर्ण अवसर चूक जाता है।
हर प्रभावी कर्म अपने आप में सफल है। अगर आपका हर कर्म प्रभावी है, तो आपका पूरा जीवन सफल होगा। और अगर आप अपने हर कर्म को प्रभावी बना सकते हैं, तो आप देखेंगे कि अमीर बनना भी गणित जितना ही सटीक विज्ञान हो सकता है।
याद रखें कि सफल काम का परिणाम संचयी (cumulative) होता है। चूँकि अधिक या विस्तृत जीवन की इच्छा सभी चिज़ों में निहित होती है, इसलिए जब लोग अधिक विस्तृत जीवन की ओर बढ़ना शुरू करते हैं, तो उनकी ओर अधिक चीज़े आकर्षित होती हैं और उनके इरादे का असर कई गुना हो जाता है।
इसलिए हर दिन वह सब कुछ करें, जो आप उस दिन कर सकते हों और अपने हर काम में प्रभावी बनें।
सारी चीज़े एक प्रज्ञावान तत्व से बनी हैं। यह तत्व इसकी मूल अवस्था में ब्रह्मष्ठं की सभी ख़ाली जगहों में उपस्थित है और उन्हें भरता है। इस तत्व पर छोड़ी गई विचार की छाप उस चीज़ को पैदा कर देती है, जिसकी छवि विचार में मौजूद होती है। विचार के माध्यम से हर कोई चिज़ों को आकार दे सकता है और उस विचार की छाप निराकार तत्व पर छोड़कर उस चीज़ का सृजन करवा सकता है।
आप दुनिया में तभी आगे बढ़ सकते हैं, जब आप अपने वर्तमान पद की आवश्यकताओं से अधिक बड़े बन जाएँ।
सफल उद्यमी तब सबसे अधिक प्रभावी थे, जब उन्होंने उर्जादायक, निष्प्रयास व आनंददायक काम किए, और बाक़ी सारे काम या तो दूसरों को सौंप दिए या उनसे बचे रहे।
10 द कास्टअवे फ़िल्म इस सिद्धांत के काम करने का आदर्श उदाहरण है।
सुजनात्मक धरातल पर कभी जल्दबाज़ी नहीं होती और अवसर की कमी भी नहीं होती।

