Amir Banane Ka Naya Vigyan
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अमीर बनने की इच्छा दरअसल अधिक समृद्ध, पूर्ण और प्रचुर जीवन जीने की इच्छा है और यह इच्छा प्रशंसनीय है।
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आप ईश्वर और मानवता की जो सर्वोच्च सेवा कर सकते हैं, वह है स्वयं का अधिकतम विकास करना।
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अवसर का ज्वार अलग-अलग दिशाओं में उठता है।
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प्रकृति दौलत का असीम भंडार है। आपूर्ति कभी कम नहीं होगी।
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विस्तार करना प्रज्ञा की प्रकृति है और चेतना हमेशा नए मोर्चे खोजती है व अधिक पूर्ण अभिव्यक्ति की चाह रखती है।
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सबके लिए पर्याप्त से बहुत अधिक उपलब्ध है।
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सभी चीज़ें एक ही मूल निराकार तत्व से बनती हैं। अलग-अलग दिखने वाले सभी तत्व वास्तव में एक ही तत्व के भिन्न संस्करण हैं। प्रकृति में पाए जाने वाले सभी सजीव और निर्जीव आकार बस उसी तत्व के भिन्न-भिन्न आकार हैं; तत्व में रखे गए विचार उस विचार में मौजूद आकार को पैदा करते हैं।
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यह स्पष्ट है कि अगर कोई इस मूल प्रज्ञावान तत्व तक कोई विचार पहुँचा सके, तो वह अपनी मनचाही चीज़ का सृजन कर सकता है।
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जब तक कि आप इस सत्य पर विचार नहीं करते हैं कि इस ब्रह्मांड में ग़रीबी है ही नहीं, सिर्फ़ प्रचुरता है। तब तक ग़रीबी के आभास का अवलोकन आपके मस्तिष्क में इसके अनुरूप आकार पैदा करता है।
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जो हम पाना चाहते हैं और वह बन सकते हैं, जो बनना चाहते हैं।
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प्रज्ञा की सतत वृद्धि के लिए यह आवश्यक है; चेतना का दायरा लगातार फैलता है। हम जो भी विचार सोचते हैं, वह हमें कोई दूसरा विचार सोचने के लिए प्रेरित करता है। ज्ञान लगातार बढ़ता है। हमारा सीखा हुआ हर तथ्य हमें अगले तथ्य की ओर ले जाता है। हमारे द्वारा विकसित की गई हर योग्यता किसी दूसरी योग्यता को विकसित करने की इच्छा जगाती है। हम सभी अभिव्यक्ति चाहने वाली जीवन आकांक्षा के अधीन हैं, जो हमें अधिक जानने, करने और बनने के लिए प्रेरित करती है।
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ईश्वर आपसे बस इतना चाहता है कि आप स्वयं को अधिकतम स्तर पर पहुँचाएँ- स्वयं के लिए भी और दूसरों के लिए भी। स्वयं को संभावित अधिकतम स्तर पर पहुँचाकर आप दूसरों की जितनी अधिक मदद कर सकते हैं, उतनी किसी दूसरे तरीक़े से नहीं कर सकते।
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ब्रह्मांड का यह तत्व प्रज्ञा है, जो ईश्वर है। इसलिए यह ईश्वर की इच्छा है कि आप अमीर बनें। ईश्वर आपको अमीर बनाना चाहता है, क्योंकि दैवी तत्व आपके माध्यम से अधिक पूर्णता से तभी व्यक्त हो सकता है, जब आपके पास प्रचुरता हो। परमपिता, ईसा मसीह या बुद्ध प्रकृति के रूप में ईश्वर आपमें अधिक पूर्णता से तभी जी सकता है, जब आपके पास जीवन के साधनों की असीमित दौलत हो।
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आप अमीर इसलिए बनना चाहते हैं, ताकि आप जब चाहें खा-पी सकें, और ख़ुश रह सकें। आप अमीर इसलिए बनना चाहते हैं, ताकि आपके पास अच्छी और सुंदर चीज़ें रहें, आप दुनिया की सैर कर सकें, अपने मस्तिष्क को पोषण दे सकें और अपनी वृखि का विकास कर सकें। आप दूसरों से प्रेम करने, नेक काम करने और अंतत: दुनिया के सुख में योगदान देने में समर्थ बनना चाहते हैं।
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प्रतिस्पर्धा से मिली अमीरी कभी संतुष्टिदायक और स्थायी नहीं होती। यह आज आपकी होती है, तो कल किसी दूसरे की हो जाती है।
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आप प्रतिस्पर्धी नहीं, सर्जक बन जाते हैं। आप अनुभूति, तर्क, इच्छा, स्मृति, कल्पना और अंतर्बोध की अनूठी मानवीय शक्तियों का उपयोग करके अपने आस-पास के तत्व को मनचाही चीज़ में बदल देते हैं। यही नहीं, इस प्रक्रिया में आप अपने आस-पास के हर व्यक्ति को भी फ़ायदा पहुँचाते हैं।
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आँखों को दिखाई देने वाली आपूर्ति के बजाय हमेशा निराकार तत्व में मौजूद असीम दौलत की ओर देखें। हमेशा विश्वास रखें कि यह दौलत आपकी ओर उतनी तेज़ी से आ रही है, जितनी तेज़ी से आप इसे पा सकते हैं और इसका उपयोग कर सकते हैं।
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सारी चीज़ें एक ही प्रज्ञावान तत्व से बनी हैं। यह तत्व इसकी मूल अवस्था में ब्रह्मांड की सभी ख़ाली जगहों में मौजूद हैं और उन्हें भरता है।
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आपको जितना भी दाम मिले, उपयोगिता में हर एक को उससे अधिक मूल्य दें। इस तरह आप हर व्यापारिक सौदे से दुनिया के जीवन में विस्तार लाते हैं।
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इस तरह दावा करें, जैसे यह पहले से ही आपकी हो चुकी है।
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ईश्वर, वह एक तत्व, मानवता के माध्यम से जीने, करने और चिज़ोंं का आनंद लेने की कोशिश कर रहा है। ईश्वर कह रहा है, “मैं अद्‌भुत इमारतें बनाने, दैवीय संगीत बजाने, महान तस्वीरें बनाने के लिए हाथ चाहता हूँ। मैं अपने प्रतिदिन के कार्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक दौड़-भाग करने हेतु पैर चाहता हूँ, सुंदरता को देखने के लिए आँखें चाहता हूँ, सशक्त सच्चाइयों को बताने और अद्‌भुत गीत गाने के लिए ज़ुबान चाहता हूँ।''
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“ईश्वर आपके भीतर काम करता है, ताकि आप इच्छा कर सकें और काम कर सकें। ''
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ईसा मसीह ने कहा था, ''यह परम पिता की ख़ुशी है कि वह आपको साम्राज्य दे।'' (ल्यूक 12:32)। एक्लेज़ियास्ट्स के लेखक ने 2:22-2:25 में कहा था, “इंसान के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं है कि वह खाए-पिए और अपने अच्छे कामों से अपनी आत्मा को आनंदित करे... क्योंकि ईश्वर इंसान को वह सब देता है, जो उसकी नज़र में अच्छा है : बुद्धि, ज्ञान और ख़ुशी।''
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मैं आपको ऐसे निर्देश देना चाहता हूँ, जो आपके मस्तिष्क को ब्रह्मांड की सर्वोच्च शक्ति के सामंजस्य में ले आएँगे। ये क़दम सरल हैं : 1. विश्वास करें कि एक प्रज्ञावान तत्व है, जिससे सारी चीज़ें पैदा होती हैं। 2. विश्वास करें कि यह तत्व आपको हर वह चीज़ देता है, जिसकी आप इच्छा करते हैं। 3. गहरी कृतज्ञता के साथ उस प्रज्ञावान तत्व से संपर्क करें।
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जो भी धन्यवाद कहता है, अपनी आत्मा का भला करता है।''
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कृतज्ञता आपके पूरे मन को ब्रह्मांड की रचनात्मक ऊर्जाओं के निकटतम सामंजस्य में लाती है।
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सिर्फ़ कृतज्ञता ही आपको सब कुछ उपलब्ध कराने वाले स्रोत की ओर ले जा सकती है।
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सर्वोच्च प्रज्ञा के प्रति कृतज्ञता और प्रशंसा व्यक्त करने की क्रिया से हमारी ओर समान प्रतिक्रिया होगी। कृतज्ञता, हमारे भीतर एक ऊर्जा मुक्त करती है, जो तुरंत निराकार तत्व में फैल जाती है? जहाँ से यह तत्काल वस्तुओं के रूप में हमारी ओर लौटा दी जाती है।
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“परम पिता, मैं आपको धन्यवाद देता हूँ कि आपने मेरी बात सुनी।''
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सर्वश्रेष्ठ पर ध्यान केंद्रित करने का अर्थ है, सर्वश्रेष्ठ चिज़ोंं से घिरे रहना और सर्वश्रेष्ठ बनना। हमारे भीतर की सृजनात्मक शक्ति हमें उसी छवि में ढालती है, जिस पर हम ध्यान देते हैं। हम भी विचारशील तत्व से बने हैं और विचारशील तत्व हमेशा उस विचार का आकार लेता है, जिसका यह अनुभव करता है।
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आपकी उन्नति में सभी चिज़ोंं ने योगदान दिया है इसलिए वे सभी अच्छी हैं। आपको अपनी कृतज्ञता में सभी चिज़ोंं को शामिल करना चाहिए।
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कृतज्ञ मस्तिष्क हमेशा अच्छी चिज़ोंं की अनुभूति करता है। यह अनुभूति इसी तरह की और अधिक चिज़ोंं की अपेक्षा बन जाती है।
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देने से पहले आपके पास होना चाहिए, और कई लोग विचारशील तत्व पर छाप इसलिए नहीं छोड़ पाते, क्योंकि उनके मन में उन चिज़ोंं का सिर्फ़ अस्पष्ट और धुँधला विचार होता है, जिन्हें वे करना या पाना चाहते हैं या जो वे बनना चाहते हैं।
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आपको पता होना चाहिए कि आप क्या चाहते हैं।
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स्पष्ट और सटीक बनें।
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आपको उस स्पष्ट मानसिक तस्वीर या सपने को लगातार अपने मस्तिष्क में रखना होगा। जिस तरह नाविक के मस्तिष्क में हमेशा वह बंदरगाह होता है, जिसकी ओर वह अपना जहाज़ ले जा रहा है, उसी तरह आपको भी हर समय अपना चेहरा सपने की ओर रखना होगा।
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अपनी तस्वीर के मनन में फ़ुरसत का अधिक से अधिक समय बिताएं।
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आप जितनी स्पष्ट और सटीक मानसिक तस्वीर बनाते हैं और उसकी जितनी अधिक कल्पना करते हैं, उसके आनंददायक हिस्सों को जितने विस्तार से देखते हैं, आपकी इच्छा उतनी ही सशक्त होगी। और आपकी इच्छा जितनी सशक्त होगी, आपके लिए अपने मस्तिष्क में मनचाही चीज़ की तस्वीर बनाकर रखना उतना ही आसान होगा।
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आपके स्पष्ट सपने के पीछे इसे हासिल करने, इसे साकार रूप में लाने का सच्चा इरादा भी होना चाहिए। इस इरादे के पीछे एक अजेय और अटल आस्था भी होनी चाहिए कि वह चीज़ पहले से ही आपकी हो चुकी है, आपके सामने ही रखी है और आपको तो सिर्फ़ उसे अपने अधिकार में लेना है।
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“मिलने के विश्वास के साथ प्रार्थना में जो माँगोगे, वह तुम्हें मिल जाएगा''
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हमें माँगना होगा और साथ ही यह विश्वास भी रखना होगा कि वह चीज़ पहले से ही हमारी हो चुकी है। तभी हम अपनी मांगी हुई...
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मानसिक रूप से नए घर में रहें, जब तक कि यह आपके चारों ओर भौतिक आकार ग्रहण न कर ले। अपनी मनचाही चिज़ोंं को इस तरह देखें, जैसे वे हर समय सचमुच आपके पास हों। स्वयं को उनका मालिक बनते और उन्हें इस्तेमाल करते देखें। अपनी कल्पना में उनका उपयोग उसी तरह करें, जिस तरह तब करते, जब वे साकार रूप में आपके पास होतीं।
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कृतज्ञ रहें, जब आप इसकी कल्पना कर रहे हों, तब कृतज्ञ रहें। जब आप इसकी अपेक्षा कर रहे हों, तब कृतज्ञ रहें। और जब यह साकार हो जाए, तब कृतज्ञ रहें।
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जो लोग ईश्वर को उन चिज़ोंं के लिए सचमुच धन्यवाद देते हैं, जो अब तक सिर्फ़ कल्पना में ही हैं, उनमें सच्ची आस्था
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होती है। वे अमीर बनेंगे। वे अपनी हर मनचाही चीज़ का स...
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लेकिन शब्दों को दोहराने भर से छाप नहीं छूटती है। यह काम तो अपनी सारी इंद्रियों के माध्यम से कल्पना करने से होता है। यह तो इसे हासिल करने के अटल इरादे के साथ लगातार मानसिक तस्वीर देखते रहने से होता है। यह तो इस अटल आस्था से संभव होता है कि वह चीज़ आपको हर हाल में मिल ही जाएगी।
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अमीर बनने के लिए आपको ''प्रार्थना के सिर्फ़ एक मधुर घंटे'' की आवश्यकता नहीं होती है बल्कि ''लगातार प्रार्थना करने” की आवश्यकता होती है।
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प्रार्थना से मेरा मतलब है, अपने सपने को निरंतर बनाए रखना, उसे साकार करने का स्पष्ट इरादा, और यह अटूट विश्वास कि वह चीज़ आपकी ओर आ रही है।
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कृतज्ञता में परम सत्ता को संबोधित करना उपयोगी होता है। फिर, आपको अपनी कल्पना में उस चीज़ को पा लेना चाहिए, जिसे आपने माँगा है। नए मकान में रहें, अच्छे कपड़े पहनें, कार की सवारी करें, सैर पर जाएँ और विश्वास के साथ लंबी यात्राओं की योजना बनाएँ।
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अपनी माँगी हुई सभी चिज़ोंं के बारे में इस तरह सोचें और बोलें, जैसे आप सचमुच उनके मालिक बन चुके हों। अपने परिवेश और आर्थिक स्थिति की ठीक वैसी कल्पना करें, जैसी आप उन्हें चाहते हों। फिर पूरे समय उसी मानसिक परिवेश और आर्थिक स्थिति में रहें, जब तक कि आप उन्हें साकार होता न देख लें।
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