Sourav Kumar

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“मही का सूर्य होना चाहता हूँ, विभा का तूर्य होना चाहता हूँ। समय को चाहता हूँ दास करना, अभय हो मृत्यु का उपहास करना। “भुजा की थाह पाना चाहता हूँ, हिमालय को उठाना चाहता हूँ। समर के सिन्धु को मथ कर शरों से, धरा हूँ चाहता श्री को करों से। “ग्रहों को खींच लाना चाहता हूँ, हथेली पर नचाना चाहता हूँ; मचलना चाहता हूँ धरा पर मैं, हँसा हूँ चाहता अङ्गार पर मैं। “समूचा सिन्धु पीना चाहता हूँ, धधक कर आज जीना चाहता हूँ; समय को बन्द करके एक क्षण में, चमकना चाहता हूँ हो सघन मैं।
रश्मिरथी
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